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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

आयुर्वेदिक चिकित्सा

 संकलन एवं मार्गदर्शनः - श्री राजीव दीक्षित 

ऋषि वाग्भट्ट द्वारा लिखित अष्टांगहृदयम्‌ पर आधारित
 
आयुर्वेदिक चिकित्सा

 

 स्वस्थ रहने की कुंजी

जीवन शैली व खान-पान मैं बदलाव से कई रोगों से मुक्ति पाई जा सकती हैं। घेरलू वस्तुओं के उपयोग से शरीर तो स्वस्थ रहेगा ही बीमारी पर होने वाला खर्च भी बचेगा।
  • फलों का रस, अत्याधिक तेल की चीजें, मट्ठा, खट्टी चीजें रात में नहीं खानी चाहिए।
  • घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि एक-डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिए।
  • भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना हानिकारक हैं। इसलिए कुछ देर आराम करके ही जाना चाहिए।
  • शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिए खाने के तुरंत बाद सो जाने से पेट की गड़बड़ियाँ हो जाती हैं।
  • प्रातकाल जल्दी उठना चाहिए और खुली हवा में व्यायाम या शरीर श्रम अवश्य करना चाहिए।
  • तेज धूप में चलने के बाद, शारीरिक मेहनत करने के बाद या शौच जाने के तुरंत बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिए।
  • केवल शहद और घी बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिए वह विष हो जाता हैं।
  • खाने पीने में विरोधी पदार्थों को एक साथ नहीं लेना चाहिए जैसे दूध और कटहल, दूध और दही, मछली और दूध आदि चीजें एक साथ नहीं लेनी चाहिए।
  • सिर पर कपड़ा बांधकर या मोजे पहनकर कभी नही सोना चाहिए।
  • बहुत तेज या थीमी रोशनी में पढ़ना, अत्याधिक टीवी या सिनेमा देखना गर्म-ठंड़ी चीजों का सैवन करना, अधिक मिर्च मसालों का प्रयोग करना, तेज धूप में चलना इन सबसे बचना चाहिए। यदि तेज धूप में चलाना भी हो तो सर और कान पर कपड़ा बांधकर चलना चाहिए।
  • रोगी को हमेशा गर्म अथवा गुनगुना पानी ही पिलाना चाहिए और रोगी को ठंड़ी हवा, परिश्रम, तथा क्रोध से बचाना चाहिए।
  • कान में दर्द होने पर यदि पत्तों का रस कान में डालना हो तो सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद ही डालना चाहिए।
  • आयुर्वेद में लिखा हैं कि निद्रा से पित्त शांत होता हैं, मालिश से वायु कम होती हैं, उल्टी सै कफ कम होता हैं और लंघन करने से बुखार शांत होता हैं। इसलिए घरेलू विकित्सा करते समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
  • आग या किसी गर्म चीज से जल जाने पर जले भाग को ठंड़े पानी में डालकर रखना चाहिए।
  • किसी भी रोगी को तेल, घी या अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
  • अजीर्ण तथा मंदाग्नि दूर करने वाली दवाएँ हमेशा भोजन के बाद ही लेनी चाहिए।
  • मल रुकने या कब्ज होने की स्थिति में यदि दस्त कराने हों तो प्रातःकाल ही कराने चाहिए, रात्रि में नहीं।
  • यदि घर में किशोरी या युवती को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो उसे उल्टी, दस्त या लंघन नहीं कराना चाहिए।
  • यदि किसी दवा को पतले पदार्थ में मिलाना हों तो चाय, कॉफी या दूध में न मिलाकर छाछ, नारियल पानी या सादे पानी में मिलाना चाहिए।
  • हींग को सदैव देशी घी में भून कर ही उपयोग में लाना चाहिए। लेप में कच्ची हींग लगानी चाहिए।

त्रिदोष सिद्धान्त

आयुर्वेद में "त्रिदोष सिद्धान्त' की विस्तृत व्याख्या हैं, वात,पित्त,कफ-दोषों के शरीर में बढ़ जाने या प्रकृपित होने पर उनको शांत करने के उपायों का विशद वर्णन हैं। आहार के प्रत्मेक द्रव्य के गुण-दोष का सूक्ष्म विश्लेषण हैं, ऋतुचर्या-दिनचर्या, आदि के माध्यम में स्वास्थ्य-रक्षक उपायों का सुन्दर विवेचन हैं तथा रोगों से बचने व रोगों की विरस्थायी चिकित्सा के लिए पथ्य-अपध्य पालन के लिए उचित मार्ग दर्शन हैं। आयुर्वेद में परहेज-पालन के महत्व को आजकल आधुनिक डॉक्टर भी समझने लग गए हैं और आवश्यक परहेज-पालन पर जोर देने लग गए हैं।

वात-पित्त-कफ रोग लक्षण

पित्त रोग लक्षण ➨ पेट फूलना दर्द दस्त मरोड़ गैस, खट्टी डकोरें, ऐसीडीटी, अल्सर, पेशाब जलन, रूक रूक कर बूंद-बूंद बार बार पेशाब, पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्रदोष, लार जैसी घात घात गिरना, शुक्राणु की कमी, बांझपन, खून जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशय ओवरी में छाले, अण्डकोश बढ़ना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी सिर दर्द मधुमेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इंसुलिन की कमी, पीलिया, खून की कमी बवासीर, सफेद दाग, महावारी कम ज्यादा आदि।

वात रोग लक्षण ➨ अस्सी प्रकार के वात, सात प्रकार के बुखार, घुटना कमर जोड़ो में दर्द संधिवात सवाईकल स्पांडिलाइटडिस, लकवा, गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर में सूजन कही भी दबाने से गड्ढा हो जाना, लिंग दोष, नामर्दी, इन्द्री में लूजपन, नसों में टेढ़ापन, छोटापन, उत्तेजना की कमी, मंदबुद्धि वीर्य की कमी, बुढ़ापे की कमजोरी, मिर्गी चक्कर, एकांत में रहना आदि।

कफ रोग लक्षणबार-बार सर्दी, खांसी, छीकें आना, एलर्जी, ईयोसिनोफिलिया, नजला, टी.बी., सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, हार्ट अटैक के लक्षण, स्वास फूलना, गले में दर्द गांठ, सूजन, टांन्सिल, कैंसर के लक्षण, थायराइड़, ब्लड़ प्रेशर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर मुंह से बदबू, लीवर किड़नी, का दर्द सूजन, सेक्स इच्छा कमी, चेहरे का कालापन, मोटापा, जांघों का आपस में जुड़ना, गुप्तांग में खुजली, घाव, सुजाक, कान बहना, शरीर फूल जाना, गर्भ नली का चौक होना, कमजोर अण्डाणु आदि।

दिनचर्या

  • रात को दाँत साफ करके सोये। सुबह उठ कर गुनगुना पानी बिना कुल्ला किए बैठकर, घूंट-घूंट करके पीये। एक दो गिलास जितना आप सुविधा से पी सकें उतने से शुरुआत करके, धीरे-धीरे बढ़ा कर सवा लीटर तक  हैं।
  • भोजनान्ते विषमबारी अर्थात्‌ भोजन के अंत मैं पानी पीना विष पीने के समान हैं। इस लिए खाना खाने से आधा घंटा पहले और डेढ़ घंटा बाद तक पानी नहीं पीना। डेढ़ घंटे बाद पानी जरूर पीना।
  • पानी के विकल्प में आप सुबह के भोजन के बाद मौसमी फलों का ताजा रस पी सकते हैं, दोपहर के भोजन के बाद छाछ और अगर आप हृदय रोगी नहीं हैं तो आप दहीं की लस्सी भी पी सकते हैं। शाम के भोजन के बाद गर्म दूथ। यह आवश्यक हैं कि इन चीजों का क्रम उलट-पलट मत करें।
  • पानी जब भी पीये बैठ कर पीयें और घूंट-घूंट करके पीये फ्रीजर का पानी कभी ना पीये। गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े का पानी पी सकते हैं।
  • सुबह का भोजन सूर्योदय के दो से तीन घंटे के अन्दर खा लेना चाहिए। आप अपने शहर में सूर्योदय का समय देख लें और फिर भोजन का समय निश्चित कर लें। सुबह का भोजन पेट भर कर खाएं। अपना मनपंसद खाना सुबह पेट भर कर खाएं।
  • दोपहर का भोजन सुबह के भोजन से एक तिहाई कम करके खाएं, जैसे सुबह अगर तीन रोटी खाते हैं तो दोपहर को दो खाएं। दोपहर का भोजन करने के तुरंत बाद बाई करवट लेट जाए,चाहे तो नींद भी ले सकते हैं, मगर कम से कम 20 मिनट अधिक से अधिक 40 मिनट। 40 मिनट से ज्यादा नहीं।
  • इसके विपरीत शाम को भोजन के तुरंत बाद नहीं सोना। भोजन के बाद कम से कम 500 कदम जरूर सैर करें। संभव हो तो रात का खाना सूर्यास्त से पहले खा लें। भोजन बनाने में फ्रीजर,माइक्रोवेव ओवन, प्रेशर कूकर तथा एल्युमीनियम के बर्तनों का प्रयोग ना करें।
  • खाने में रिफाइन्ड तेल का इस्तेमाल ना करें। आप जिस क्षेत्र में रहते हैं वहाँ जो तेल के बीज उगाये जाते हैं उसका शुद्ध तेल प्रयोग करें, जैसे यदि आपके क्षेत्र में सरसों ज्यादा होती हैं तो सरसों का तेल, मूंगफली होती हैं तो मूंगफली का तेल, नारियल हैं तो नारियल का तेल। तेल सीधे सीधे घानी से निकला हुआ होना चाहिए।
  • खाने में हमेशा सैंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए, ना कि आयोड़िन युक्त नमक का। चीनी की जगह गुड़, शक्कर, देसी खाण्ड या धागे वाली मिश्री का प्रयोग कर सकते हैं।
  • कोई भी नशा ना करें, चाय, काफी, मांसाहार, गैदा, बेकरी उत्पादों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • रात को सोने से पहले हल्दी वाला दूध दाँत साफ करने के बाद पीये।
  • सोने के समय सिर पूर्व दिशा की तरफ तथा संबंध बनाते समय
  • सिर दक्षिण दिशा की तरफ करना चाहिए।

✥गौ चिकित्सा

देशी गाय घी के दिन रात काम आने वाले उपयोग

हम यदि गोरस का बखान करते करते मर जाए तो भी कुछ अंग्रेजी सभ्यता वाले हमारी बात नहीं मानेंगे क्योंकि वे लोग तो हम लोगों को पिछड़ा, साम्प्रदायिक और गँवार जो समझते हैं। उनके लिए तो वही सही हैं जो पश्चिमी कहे तो हम उन्ही के वैज्ञानिक शिरोविच की गोरस पर खोज लाये हैं जो रुसी वैज्ञानिक हैं। गाय का घी और चावल की आहुति डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे - एथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन ऑक्साइड, फॉर्मल डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं। इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली जीवाणुरोधक गैस हैं, जो शल्य-विकित्सा से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं। वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षों का आधार मानते हैं।

गौघृत में मनुष्य

शरीर मैं पहुँचे रोडियोधर्मी विकिरण का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं। अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता हैं, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राण वायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं।
                                    देसी गाय के घी को रसायन कहा गया हैं। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता हैं। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता हैं। गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमें अद्भुत औषधीय गुण होते हैं, जो कि गाय के घी के अलावा अन्य घी में नही मिलते। गाय के घी में वैक्सीन एसिड़, ब्यूट्रिक एसिड़, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूद्री मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता हैं। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्री में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती हैं। यदि आप गाय के 09 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 4 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण हैं कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा, धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित हैं। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदृभुत क्षमता होती हैं।

गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग➤

  • मासिक स्राव में किसी भी तरह की गड़बड़ी में 250 ग्राम गर्म पानी में (घी पिघला हो तो 3 चम्मच जमा हुआ हो तो 4 चम्मच) डालकर पीने से लाभ होगा। यह पानी मासिक स्राव वाले दिनों के दौरान ही पीना हैं।
  • गाय का घी नाक मैं डालने से एलर्जी खत्म हो जाती हैं, ये दुनिया की सारी दवाइयों से तेज असर दिखाता हैं।
  • गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना आपरेशन के ठीक हो जाता हैं।
  • नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती हैं और दिमाग तरों ताजा हो जाता हैं।
  • गाय का घी नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती हैं,याददाश्त तेज होती हैं।
  • गर्भवती माँ को गौ माँ का घी अवश्य खाना चाहिए, इससे गर्भ में पल रहा शिशु बलवान, पुष्ट और बुद्धिमान होता हैं।
  • दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होती हैं।
  • जिस व्यक्ति को बहुत हार्ट ब्लकेज की तकलीफ हैं और चिकनाई खाने की मना किया गया हो, तो गाय का घी खाएं, हार्ट ब्लाकेज दूर होता हैं।
  • देशी घी के प्रयोग से नाक से पानी बहना, नाक की हड्डी बढ़ना तथा खर्राटे बूंद हो जाते हैं।
  • सर्दी जुकाम होने पर गाय का घी थोड़ा गर्म कर 2-2 बूंद दोनों नाक में डाल कर सोयें।
  • अच्छी नींद के लिए, माइग्रेन और खर्राटे से निजात पाने के लिए भी उपरोक्त विधि अपनाएँ।
  • गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता हैं।
  • गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती हैं।
  • गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता हैं।
  • 20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता हैं।
  • गाय का घी नामक में डालने से कान का पर्दा बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो जाता हैं।
  • नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती हैं और दिमाग तारो ताजा हो जाता हैं।
  • गाय का घी नाक में डालने से बाल झड़ना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते हैं।
  • गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती हैं,याददाश्त तेज होती हैं।
  • हाथ पाव में जलन होने पर गाय के घी को तलवों में मालिश करें जलन ठीक होता हैं।
  • हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए,हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
  • गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती हैं।
  • गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता हैं और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता हैं।
  • गाय के पुराने घी बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती हैं।
  • अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
  • हथेली और पांव के तलवों में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
  • गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता हैं और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता हैं।
  • जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही हैं तो गाय का घी खाएं, हृदय मजबूत होता हैं।
  • देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती हैं। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता हैं।
  • संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी।
  • फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता हैं। गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चों के बलगम को बाहर निकालने में सहायक होता हैं।
  • सांप के काटने पर 100-150 ग्राम घी पिलायें ऊपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उल्टी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
  • दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता हैं। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरो के तलवे पर मालिश करें, सर दर्द ठीक हो जाएगा।
  • यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलैस्ट्रॉल नहीं बढ़ता हैं। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता हैं। यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता हैं, मोटे व्यक्ति का मोटापा कम होता हैं।
  • एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बुरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती हैं।
  • गाय के घी को ठंडे जल में फेट ले और फिर घी को पानी से अलग कर लें यह प्रक्रिया लगभग सौ बात करें और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त्घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता हैं जिसे जिसे त्वचा संबंधी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मरहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर हैं।
  • गाय का घी एक अच्छा (LDC) केलेस्ट्रॉल हैं। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी हैं। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदे दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ)को संतुलित करता हैं।
  • घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शकक्‍्कर(बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-वबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता हैं, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता हैं।

गोमूत्र-घृत-दुग्ध के गुण

  • गोमूत्र माने देशी गाय (जर्सी नहीं) के शरीर से निकला हुआ सीधा साधा मूत्र जिसे सती के आठ परत की कपड़ों से छान कर लिया गया हो।
  • गोमूत्र वात और कफ को अकेला ही नियंत्रित कर लेता हैं। पित्त के रोगों के लिए इसमें कुछ औषधियाँ मिलायी जाती हैं।
  • आधा कप देशी गाय का गोमूत्र सुबह पीने से दमा अस्थमा,ब्रोन्कियल अस्थमा सब ठीक होता हैं और गोमूत्र पीने से टीबी भी ठीक हो जाता हैं, लगातार पांच छह महीने पीना पड़ता हैं।
  • गोमूत्र में पानी के अलावा कैल्शियम, सल्फर की कमी से होता हैं। घुटने दुखना, खाँसी, जुकाम, टीबी के रोग आदि सब गोमूत्र के सेवन से ठीक हो जाते हैं क्योंकि यह सल्फर का भंडार हैं।
  • टीबी के लिए डोट्स का जो इलाज हैं, गोमूत्र के साथ उसका असर 20-40 गुणा तक बढ जाता हैं।
  • शरीर में एक रसायन होता हैं, इसकी कमी से कैंसर रोग होता हैं। जब इसकी कमी होती हैं तो शरीर के सैल बेकाबू हो जाते हैं और ट्यूमर का रूप ले लेते हैं। गोमूत्र और हल्दी मैं यह रसायन प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता हैं।
  • आँख के रोग कफ से होते हैं। आँखों के कई गंभीर रोग हैं जैसे ग्लूकोमा (जिसका कोई इलाज नहीं हैं एलोपैथी में), मोतियाबिंदू आदि सब आँखों के रोग गोमूत्र से ठीक हो जाते हैं। ठीक होने का मतलब कंट्रोल नहीं, जड़ से ठीक हो जाते हैं। आपको करना बस इतना हैं कि ताजे गोमूत्र को कपड़े से छानकर आँखों में डालना हैं।
  • बाल झड़ते हों तो ताम्बे के बर्तन में गाय के दूथ से दही को 5-6 दिन के लिए रख दें। जब इसका रंग बदल जाए तो इसे सिर पर लगा कर । घंटे तक रखें। ऐसा सप्ताह में 4 बार कर सकते हैं। कई लोगों को तो एक ही बार से लाभ हो जाता हैं।
  • गाय के मूत्र में पानी मिलाकर बाल धोने से गजब की कंडशनिंग होती हैं।
  • छोटे बच्चों को बहुत जल्दी सर्दी जुकाम हो जाता हैं। 1 चम्मच गो मूत्र पिला दीजिए सारी बलगम साफ हो जाएगी।
  • किडनी तथा मूत्र से संबन्धित कोई समस्या हो जैसे पेशाब रुक कर आना, लाल आना आदि तो आधा कप (50 मिली) गोमूत्र सुबह-सुबह खाली पेट पी लें। इसको दो बार पीएं यानी पहले आधा पीएं फिर कुछ मिनट बाद बाकी पी लें। कुछ ही दिनों में लाभ का अनुभव होगा।
  • बहुत कब्ज हो तो कुछ दिन तक आधा कप गोमूत्र पीने से कब्ज खत्म हो जाती हैं।
  • गोमूत्र की मालिश से त्वचा पर सफेद थब्बे और डार्कसर्कल कुछ ही दिनों में खत्म हो जाते हैं।
  • गोमूत्र को सुबह खाली पेट पीना सर्वोत्तम होता हैं। जो लोग बहुत बीमार हैं, उन्हें 100 मिली से अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। यह TEA CUP का आधे से अधिक भाग होता हैं। इसे कुछ मिनट का अंतराल देकर दो किश्तों में पीना चाहिए। निरोगी व्यक्ति को 50 मिली से अधिक नहीं पीना चाहिए। गोमूत्र केवल उन्हीं गौमाता का पीएं जो चलती हों क्योंकि उन्हीं का मूत्र उपयोगी होता हैं। बैठी हुई गोमाता का मूत्र किसी काम का नहीं होता । जैसे - जर्सी गाय कभी नहीं घूमती और उसके मूत्र में केवल 3 ही पोषक तत्व पाए जाते हैं। वही देसी गाय के मूत्र में 18 पौषक तत्व पाये जाते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

आयुर्वेदिक चिकित्सा

कब्ज

हमरे द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद उसका पाचन संस्थान द्वारा पाचन होता हैं। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की रूकावट होती हैं, तो फिर भोजन सही ढंग से नहीं पचता तथा अपच होती है और फिर कब्ज होती हैं। सही ढंग से मल का न निकलना कब्ज कहलाता हैं।
  • सौंठ+काली मिर्च+पीपल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें,सुबह-शाम एक-एक चम्मच लें। कब्ज दूर होगी।
  • रात में दूध के साथ दो चम्मच ईसबगौल खाने से कब्ज में आराम मिलता हैं।
  • रात को गर्म दूध के साथ एक चम्मच त्रिफला लेने से कब्ज दूर होगा।
  • भोजन के साथ सुबह शाम पपीता खाने से कब्ज टूर होता हैं।
  • सौंठ + हरड़ + अजवायन को समान मात्रा में पानी में उबालें तथा वह पानी लेने से कब्ज टूर होगा।

पेट दर्द, एसिडिटी (अम्लपित्त)

पेट में कब्ज के दौरान अम्लपित्त बनने लगता हैं। खट्टी डकारें आती हैं। पेट में भारीपन लगता हैं। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती।
  1. अजवायन का चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से बदहजमी दूर होती हैं।
  2. अजवायन और नमक की फंकी गर्म पानी के साथ लें।
  3. एक ग्राम सौंठ के चूर्ण में चुटकी भर हींग और सेंधा नमक मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ सैवन करें।

अतिसार एवं संग्रहणी

यह आंतों का रोग हैं। पतले और बदबूदार दस्त होना अतिसार कहलाता हैं। यह अधिकांशतः दूषित जल के कारण होता है या दृषित भोजन के कारण। इसमें पेट में दर्द, मरौड, ऐंठन होती हैं और कभी गाढ़ा या पतला दस्त होता हैं।
  • भुने हुए जीरे का चूर्ण दही के साथ खायें।
  • थोड़ी सी सौंफ तवे पर भूनकर उसका पावडर बनाकर मड़े के साथ लें।
  • तेजपात के पत्ते + दालचीनी + 1/4 मात्रा कत्था का काढ़ा बनाकर पिलाने से दस्त तुरन्त बंद होते हैं।
  • चावलों का मांड तथा थोड़ा काला नमक और जरा सी भुनी हींग मिलाकर पीने से दस्त में लाभ मिलता हैं।
  • 5.10 दाने तुलसी के बीज पीसकर गाय के दूध के साथ लें।

अल्सर / पेप्टिक अल्सर

पोप्टिक अल्मर एक तरह का घाव हैं जो कि पेट के भीतरी हिस्से की परत में, भोजन नली में और छोटी आंत में विकसित होते हैं। पेप्टिक अल्सर के दौरान पेट मैं दर्द होता हैं और ये दर्द नाभि से लेकर छाती तक महसूस होता हैं, अल्मर कि वजह से पेट में जलन, दांत काटने जैसा दर्द, ये दर्द हमारे पीछे के हिस्से में भी हो सकता हैं। आमतौर पर पेट में दर्द तब होता हैं जब खाना खाने के कई घन्टे के बाद तक हमारा पेट खाली रहता हैं।
  • गुडंहल के लाल फूलों को पीसकर, पानी के साथ इसका शर्बत बनाकर पीए।
  • गाय के दृध में हल्दी की कुछ मात्रा मिलाकर इसे प्रतिदिन पीये।
  • बेल का जूस या बेलपत्र को पीसकर इसे पानी में घोलकर बनाए गए पेय का सेवन करने से अल्सर में लाभ मिलता हैं।

पीलिया (जॉन्डिस)

इसका मुख्य कारण शरीर में सही ढंग से खून ना बनना हैं। इस कारण शरीर में पीलापन आ जाता हैं। सबसे पहले आंखों में पीलापन आता हैं उसके बाद शरीर और मूत्र पीला होता हैं। भूख न लगना, भोजन को देखकर उल्टी आना, मुंह का स्वाद कड़वा होना, नाड़ी की गति धीरे चलना आदि लक्षण हैं।
  • गिलोय का चूर्ण एक-एक चम्मच सुबह-शाम सादे पानी के साथ लेने से पीलिया रोग में लाभ मिलता हैं।
  • त्रिफला चूर्ण का काढा बनाएँ उसमें मिश्री और घी मिलाकर सेवन करें।
  • 10 ग्राम सौंठ का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम उपयोग करें।

बवासीर(अर्श)

यह रोग मुख्यतः कब्ज के कारण होता हैं। जिन लोगों को कब्ज की शिकायत लंबे समय तक रहती हैं उनको मुख्यतः यह रोग होता हैं। बवासीर दो प्रकार की होती हैं। 1. खूनी बवासीर 2. बादी बवासीर। इस रोग में मल बहुत कठिनाई से निकलता हैं और मल के साथ खून भी निकलता हैं।
  • ऑवले चूर्ण 0 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ लेने पर बवासीर में लाभ मिलता हैं।
  • मूली का रस काला नमक डालकर पीने से भी आराम मिलता हैं।
  • 10 ग्रामत्रिफला चूर्ण शहद के साथ चाटें।
  • काले तिल और ताजे मक्खन को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बवासीर नष्ट होता हैं।

उच्च रक्तचाप

उच्च रक्तचाप हृदय, गुर्दे और रक्त संचालन प्रणाली की गड़बड़ी के कारण होता हैं। यह रोग किसी को भी हो सकता हैं। जो लोग क्रोध, भय, दुख या अन्य भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। उन्हें यह रोग अधिक होता हैं। जो लोग परिश्रम कम करते हैं तथा अधिक तनाव में रहते हैं, शराब या धूम्रपान अधिक करते हैं। इसमें सिर में दर्द होता हैं और चक्कर आने लगते हैं। दिल की धड़कन तेज हो जाती हैं। आलस्य होना, जी घबराना, काम में मन न लगना, पाचन क्षमता कम होना, और आँखों के सामने अंधेरा आना, नींद न आना आदि लक्षण होते हैं।
  • कच्चे लहसुन की एक दो कली पीसकर प्रातः काल चाटने से उच्च रक्तचाप सामान्य होता हैं।
  • उच्च रक्त चाप के रोगी को साधारण नमक की जगह सैंधा नमक का उपयोग लाभकारी होता हैं।
  • सौंफ, जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें तथा सुबह-शाम सादे पानी से लें आराम मिलेगा।
  • आधा चम्मच दालचीनी, आधा चम्मच शहद मिलाकर गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सुबह लें।
  • एक चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर, पानी में उबालकर पीयें।

निम्न रक्त चाप

व्यक्ति के भोजन न करने से अथवा अधिक आयु होने से निम्न रक्त चाप होता हैं। यानि कि बुढापे में सामान्य रूप से यह बीमारी होती हैं। पाचन तंत्र ठीक न होना, असफलता, निराशा और हताशा से निम्न रक्‍त चाप होता हैं। चक्कर आना, थकाना होना, नाड़ी धीरे चलना, मानसिक तनाव, हाथ पैर ठंडे पड़ना इसके लक्षण हैं।
  • गुड़ पानी में मिलाकर, नमक डालकर, नीबू का रस मिलाकर दिन में दो - तीन बार पीयें।
  • मिश्री में मक्खन मिलाकर खाये।
  • पीपल के पत्तों का रस शहद में मिलाकर चाटें।
  • कच्चे लहसुन का प्रयोग करें, एक या दो कली प्रतिदिन दातों से कुचलकर खायें।

हृदय में दर्द

आजकल की जीवन शैली में, व्यापार में, घर में तनाव के कारण यह रोग अधिक होता हैं। हृदय में धमनियों द्वारा रक्त संचार बराबर मात्रा में नही होता। धमनियों में रूकावट के कारण ही यह रोग होता हैं।
  • कच्ची लौंकी का रस थोड़ा हींग, जीरा मिलाकर सुबह-शाम पीने से तत्काल लाभ मिलता हैं।
  • अर्जुन की छाल का १0 ग्राम पाउडर और पाषाणवैध का 40 ग्राम पाउडर लेकर 500 मिली पानी में उबालें और पानी आधा रहने पर ठंड़ा करके सुबह शाम पीयें। इससे हृदय घात की बीमारी दूर होती हैं।
  • गाजर का रस निकालकर सूप बनाकर पीने से लाभ मिलता हैं।
  • इस बीमारी में लहसुन का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ हैं। खाने में पके रूप में और कच्चे रूप में भी ले सकते हैं

मोटापा

शरीर में जब वसा की मात्रा बढ़ जाती हैं और वह शरीर में एकत्र होने लगती हैं तो इसी से मोटापा आता जाता हैं। वह एकत्र वसा ही मोटापा हैं। मोटापा आने के बाद शरीर में सुस्ती रहती हैं, थकान होने लगती है। इसी कारण शुगर,हृदय रोग, अपच, कब्ज आदि बीमारी होने लगती हैं।
  • सुबह-शाम खाली पेट गर्म पानी में नींबू निचोड़कर, सैंधा नमक मिलाकर पीयें।
  • 10 ग्राम सौंठ को शहद में मिलाकर चाटने से भी मोटापा कम होता हैं।
  • मूली के सलाद मैं नींबू और नमक मिलाकर प्रतिदिन लें,।
  • खाने के बाद एक चुटकी काले तिल चबाकर खायें।

खाज खुजली

खाज-खुजली एक संक्रामक रोग हैं। जिसके कारण त्वचा पर छोटी-छोटी फुन्सियां निकल आती हैं और उनमें से पानी भी निकलता हैं। कभी-कभी पेट साफ न होने से, कब्ज रहने से तथा खून में अशुद्धि होने से भी ये खुजली पैदा होती हैं।
  • नारियल के तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर गरम करें और खुजली वाले स्थान पर लगायें।
  • गाय के घी में कुछ लहसुन मिलाकर गर्म करें और उसकी मालिश खुजली वाले स्थान पर करें।
  • नींबू के रस में पके हुए केले को मसलकर खुजली वाले स्थान पर लगायें।
  • भूने हुए सुहागे को पानी में मिलाकर लगाने से खुजली में आराम मिलता हैं।

फोड़ा फुन्सी

खून में विकार होने से फोडे फुन्सी निकलते हैं। वर्षा ऋतु मैं अधिक आम खाने से या गंदे पानी में घूमने से फोडे फुन्सी निकलते हैं।
  • लौंग को चंदन के साथ घिसकर लगाने से फुन्सियों में लाभ होता हैं।
  • नीम की पत्तियों की पुल्टीस बांधने से तथा नीम की छाल का पानी लगाने से फोड़े फुन्सी जल्दी ठीक हो जाते हैं। 
  • फोडे-फुन्सियों पर लौंग घिसकर लगाने से आराम मिलता हैं।
  • हल्दी के साथ शहद चाटें।

दाद (छलन)

दाद रोग अपच होने, लू लगने, खून में विकार रहने, साबुन, चूने का अत्याधिक प्रयोग करने, माँ के दूध में खराबी होने से तथा स्त्रियों में मासिक धर्म की गड़बड़ियों की वजह से होता हैं। यह रोग हाथ, पैर, मुहँ, कोहनी, गर्दन, पेट आदि कहीं पर भी हो सकता हैं। लाल फुन्सियां शरीर पर हो जाती हैं।
  • सबसे पहले अत्याधिक मिर्च मसाले, मिठाई, तेल और अचार, खट्टी चीजे खाना बंद करना चाहिए। क्योंकि यह पदार्थ रोग को बढ़ाते हैं। पेट साफ रखें और कब्ज न होने दें।
  • नींबू के रस में सुहागे को मिलाकर लगाने से दाद समाप्त होता हैं।
  • भूना हुआ सुहागा और भुनी हुई फिटकरी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें और दाद पर लगायें।

जलजाना

आग या किसी गर्म चीज से अचानक से जल जाने से शरीर में फफोले पड़ जाते हैं। घी, तेल, दूध, चाय, भाष, गर्म तवे से जलने से भी फफोले पड़ जाते हैं। काफी तेज जलन होती हैं। कभी-कभी फफोलों में मवाद भी आ जाता हैं।
  • सबसे पहले जले हुए हिस्से को ठंड़े पानी में डालकर रखें।
  • दही के पानी में थोड़ा सा चूना मिलाकर जले हुए स्थान पर लगायें। (तेल से जलने पर)
  • आग से जल जाने पर तारपीन के तेल में कपूर मिलाकर लेप करें।
  • नारियल के तेल में मोम मिलाकर गरम करें और ठंड़ा होने पर मरहम की तरह लगायें।
  • मुल्तानी मिट्टी को दही में मिलाकर जले हुए स्थान पर लेप करें।


शरीर पर किसी भी तरह का घाव, बहुत गंभीर चोट

मिरगी

शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को मिरगी अधिकांश रूप से आती हैं। अत्याधिक शराब पीना, अधिक शारीरिक श्रम, सिर में चोट लगने से यह बीमारी हो सकती हैं। इस रोग में अचानक से दौरा पड़ता हैं और रोगी गिर पड़ती हैं। हाथ और गर्दन अकड़ जाती हैं, पलकें एक जगह रूक जाती हैं रोगी हाथ पैर पटकता हैं, जीभ अकड़ जाने से बोली नहीं निकलती, मुँह से पीला झाग निकलता हैं। चारों तरफ या तो काला अंधेरा दिखाई देता हैं या सब चीजें सफेद दिखाई देती हैं। इस तरह के दौरे 10-15 मिनट से लेकर 1-2 घंटे तक के भी हो सकते हैं।
  • दौरा पड़ने पर रोगी को दायीं करवट लिटायें ताकि उसके मुँह से सभी झाग आसानी से निकल जायें। दौरा पड़ने के समय रोगी को कुछ भी न खिलायें बल्कि दौरे के समय अमोनिया या चुने की गंध सुंघानी चाहिए, इससे उसकी बेहोशी दूर हो सकती हैं।
  • ब्रह्मी बूटी का रस 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पिलाने से आधा रहने पर हल्का सा सेँधा नमक मिलाकर दिन में 2 बार पिलायें।
  • नीम की कोमल पत्तियां, अजवायन और काला नमक इन सबको पानी में पीसकर पेस्ट बनाकर सेवन करें।
  • तुलसी के 4-5 पत्ते कुचबलकर उसमें कपूर मिलाकर रोगी को सुंघाये।

लकवा

लकवा/पक्षाघात होने पर रोगी का आधा शरीर संवेदनहीन हो जाता हैं। पेट में अधिक गैस बनने, मस्तिष्क पर वायु का दबाव पड़ने और हृदय पर वायु का दबाव बढ़ने से शरीर पर वायु का झटका लगता हैं। स्रायु शिथिल हो जाते हैं। शरीर का आधा भाग टेढ़ा हो जाता हैं।
  • 250मिली गाय के दूध में 8-0 लहसुन की कलियाँ डालकर उबालें। गाढ़ा होने पर रोगी को पिलायें।
  • 250 ग्राम सरसों के तेल में थोड़ी काली मिर्च पीसकर डालें और मालिश करें।
  • तुलसी के 8-0 पत्ते, सेंधा नमक और दही की चटनी बनाकर लककवे वाले स्थान पर लेप करें।
  • सौंठ और उड़द उबालकर उसका पानी पीने से लकवे में काफी लाभ होता हैं।

आधा सीसी

आधा सीसी का दर्द अधिकाशतः दिन में ही होता हैं। यह अत्याधिक मानसिक श्रम, पेट में वायु के बने रहने से शरीर में धातु दोष होने से होता हैं। यह पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता हैं। आधा सीसी का रोग सिर के आधे हिस्से में ही होता हैं और काफी ते दर्द होता हैं और रोगी बैचेन हो जाता हैं।
  • छोटी पीपली का चूर्ण शहद के साथ चाटने से लाभ होता हैं।
  • संतरे के छिलके का रस उस नथुने में डाले जिस ओर आधा सीसी दर्द नहीं हो रहा हैं।
  • देशी गाय का घी नाक के नथुनों पर डालें
  • मेहंदी की पत्तियों को पीसकर माथे पर लेप लगायें।

कमर दर्द

महिलाओं को श्वैत प्रदर या मासिक धर्म की गड़बड़ी के कारण यह दर्द रहता हैं। तथा पुरूषों को अधिक परिश्रम करने या वायुप्रकोप या गलत ढंग से उठने बैठने या सोने से यह रोग हो जाता हैं।
  • प्रातः काल खाली पेट अखरोट की गिरी खाने से कमर दर्द में आराम मिलता हैं।
  • नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करें।
  • सौंठ+हरड़+गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। सुबह शाम आधा चम्मच लेने से कमर दर्द में आराम मिलेगा।
  • पीपला की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम लें।

याददाश्त कम होना

कमजोर स्मरण शक्ति आजकल प्रायः युवा लोगों में देखी जाती हैं। बुढ़ापे में भी इसकी आम शिकायत रहती हैं। अत्याधिक चिंता या भय से ग्रस्त होने पर अथवा क्रोध या शोक से प्रभावित होने पर या अत्याधिक पढने से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती हैं।
  • शंख पुष्पी को पीसकर चूर्ण बनायें और 250 ग्राम दूध में आधा चम्मच शंख पुष्पी और चम्मच शहद मिलाकर प्रातःकाल लें।
  • आठ दस बादाम की मिगी रात्रि में पानी में भिगायें तथा सुबह इनके छिलके उतारकर अच्छी तरह पीसें। 250 ग्राम देशी गय के गर्म दूध में इसे मिलाये तथा थोड़ा सा काली मिर्च चूर्ण और दो चम्मच शहद दूध में मिलाये, (ठंडा होने पर), इसके साथ दूध में चम्मच देशी गाय का घी भी मिलायें और सैवन करें।
  • प्रतिदिन गाय के दूध में मुलहठी का । चम्मच चूर्ण डालकर पीयें।

अनिद्रा

अनिद्रा मानसिक अशांति के कारण होती हैं। बहुत अधिक थकान,गलत ढंग के खाने पीने से, कब्ज रहने से, मानसिक तनाव और चिंता रहने से, या शरीर के किसी भी भाग के रोगग्रस्त हो जाने से यह बीमारी होती हैं। अत्याधिक धूम्रपान और मदिरापान करने से भी यह बीमारी होती हैं।
  • रात्रि में सोने से पूर्व अच्छे ढंग से गर्म पानी से हाथ पैर धोकर तलवों पर सरसों के तेल की मालिश करें।
  • 2 चम्मच शहद में 1 चम्मच प्याज का रस मिलाकर चाटें |
  • रात्रि को भोजन के बाद घूमने अवश्य जाये, भोजन जल्दी करें, देर रात मैं न खाये, हल्का भोजन करें।
  • 10 मिनट ध्यान मुद्रा योग करें, बहुत अच्छी नींद आयेगी।

सिरदर्द

पेट की खराबी बदहजमी या पेट में गैस बनने से सिरदर्द हो सकता हैं। दर्द के कारण नींद नहीं आती तथा सिर फटता हुआ सा महसूस होने लगता हैं। सिर दर्द में कई बार उल्टियाँ भी होती हैं।
  • तुलसी के पत्तों के रस में जरा सी सौंठ मिलाकर माथे पर लेप करें।
  • लहसुन की एक कली को घी में भुन कर खाये
  • हल्दी और ऐलोवेरा को मिलाकर माथे पर लेप करें।
  • दो चम्मच त्रिफला चूर्ण और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर भोजन से पूर्व ले।


श्वसन संस्थान के रोग

आयुर्वेदिक चिकित्सा

श्वसन संस्थान हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हमारे साँस लेने से लेकर और साँस निकालने तक की प्रक्रिया में ढेर सारे अंगों का उपयोग होता हैं। नाक, गला, हृदय, फेफड़े, पसलियां, डायफ्राम, आदि अंगों का उपयोग होता हैं। यदि हमें पर्याप्त मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन ना मिले तो इन सभी अंगों में बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं। अत्याधिक शराब पीने , चिंता करने, तम्बाकू, गुटखा खाने, दूषित और विषैले भोज्य पदार्थ खाने से तथा अत्याधिक धूम्रपान करने से यह अंग खराब होते हैं। इनके अंतर्गत खाँसी, दमा, सर्दी, जुकाम, टॉन्सिल्स, श्वास रोग आदि सब होते हैं।

ब्रेन मलेरिया, टाइफाईड, चिकुनगुनिया, डेंगू, स्वाइनफ्लू, इन्सेफेलाइटिस, माता व अन्य के बुखार

  • 20 पत्ते तुलसी, नीम की गिलोई 5 ग्राम, सोंठ(सूखी अदरक) 10 ग्राम, 10 छोटी पीपर के टुकड़े, सब आपके घर में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। इन सब को एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बनाना हैं ठण्डा होने के बाद दिन में सुबह, दोपहर और शाम तीन बार पीना चाहिए।
  • नीम गिलोई - इसका डेंगू रोग में श्वेत रक्त कणिकाये, प्लेटलेट्स कम होने पर तुरंत बढ़ाने में बहुत ज्यादा काम आता हैं।
  • एक और अच्छी दवा हैं, एक पेड़ होता हैं उसे हिन्दी में हारसिंगार कहते हैं, संस्कृत में पारिजात कहते हैं बंगला में शिउली कहते हैं, उस पेड़ पर छोटे छोटे सफेद फूल आते हैं,और फूल की डंडी नारंगी रंग की होती हैं, और उसमें खुश्बु आती हैं, रात को फूल खिलते हैं और सुबह जमीन में गिर जाते हैं। इस पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पीस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गर्म करो के पानी आधा हो जाए फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पियो तो बीस से बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है। और यही पत्ते को पीस के गर्म पानी मै डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता हैं और जो बुखार किसी दवा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता हैं जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर,ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते हैं।

खाँसी

खाँसी तीन प्रकार की होती हैं, सुखी खाँसी, काली खाँसी और कफ खाँसी। खाँसी आने पर मुहँ से खों- खों की आवाज आती हैं। सूखी खाँसी में रोगी खाँसने से बेहाल हो जाता हैं। लेकिन बलगम वाली खाँसी में कफ बाहर निकलता हैं। यहाँ जो घरेलू नुस्खे दिये जा रहे हैं वह तीनों प्रकार की खाँसी के लिए हैं।
  • अदरक के टुकड़ों को नमक लगाकर चूसते रहने से खाँसी में आसम मिलता हैं।
  • काली खांसी में दो रत्ती शोधित हींग चाटने पर आराम मिलता हैं।
  • लौंग को पीसकर आग पर भून लें तथा शहद में मिलाकर चाटे।
  • 7-8 काली मिर्च का पाउडर 2 चम्मच शहद में मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटें।
  • थोड़ी सी हल्दी और 1 चुटकी नमक सादे पानी में मिलाकर पीएं।

न्यूमोनिया

जब फेफड़ों में लगातार दर्द रहने लगे तो न्युमोनिया कहलाता हैं। यह मुख्य रूप से ठंड़ लग जाने के कारण तथा फेफड़ों में सूजन आ जाने सै हो जाता हैं। सर्दी, गर्मी में परिवर्तन एका एक पसीना आना, जीवाणुओं द्वारा संक्रमण आदि के कारण हो जाता हैं। इस बीमारी में फेफड़ों में कफ बढ़ जाता हैं। छाती में तेज दर्द रहता हैं। रोगी को बेहोशी आने लगती हैं। श्वास लेने में कष्ट होता हैं और खाँसी की भी शिकायत रहती हैं।
  • गेहूँ की जगह जौ की रोटी और गर्म लगातार पिलाने से न्युमोनिया में काफी लाभ होता हैं।
  • हल्‍दी की गांठ को बालू में भूनकर उसका चूर्ण बना लें तथा दिन में दो बार गर्म पानी के साथ सेवन करें।
  • अदरक और तुलसी का रस बराबर मात्रा में निकलाकर शहद के साथ चाटने से काफी आराम मिलता हैं.
  • बच्चों के लिए 1 चुटकी हींग पानी में घोलकर पिलाने से जमा हुआ कफ बाहर निकलता हैं।

दमा

जब फेफड़ों में जकड़न एवं संकुचन होने के कारण साँस लेने में तकलीफ हो तो दमा की स्थिति कहलाती हैं। ज्यादातर यह रोग अधिक उम्र के लोगों को होता हैं। धूल और धुआँ भरे माहौल में रहने के कारण भी यह हो सकता हैं। प्रायः यह रोग अनुवांशिक होता हैं। अत्याधिक धूम्रपान करने वालों को भी यह रोग होता हैं। इसमें रोगी को साँस लेने में तकलीफ होती हैं यह तकलीफ कभी कम कभी ज्यादा घटती-बढ़ती रहती हैं। कभी-कभी खाँसी के साथ कफ निकलता हैं तो रोगी को आराम मिलता हैं। बलगम न निकले तो रोगी का हाल बेहाल हो जाता हैं।
  • तेजपात के पत्तों का चूर्ण अदरक के रस के साथ लेने से दमे में काफी लाभ होता हैं।
  • प्रातः काल खाली पेट 3-4 चम्मच अदरक का रस शहद के साथ लेने से काफी आराम मिलता हैं।
  • तुलसी के पत्तों के साथ 2-3 काली मिर्च चबाने से रोग में आराम मिलता हैं।
  • जब दमे का दौरा पड़े उस समय जरा सी फिटकरी जीभ पर रखकर चूसने से तुरंत आराम मिलता हैं।
  • लहसुन की कच्ची कली पर लौंग के तेल की दो-तीन बूंदे चबायें और गर्म पानी पीयें। दमा के दौरे नहीं पड़ेगे।

नजला जुकाम

सामान्य रूप से ठंड लगने, या ठंडे पानी में चलने-फिरने से नजला-जुकाम हो जाता हैं। यह एक प्रकार का संक्रामक रोग हैं। जुकाम होने पर बार-बार छींके आती हैं और नाक से पानी आता हैं कभी-कभी बलगम भी आता हैं।
  • कच्चे लहसुन की 1-2 कली चबाकर खायें और पानी पीयें।
  • 10 पत्ते पुदीना और 6 दाने काली मिर्च और चुटकी सेंधा नमक और 10 पत्ते तुलसी इन सबको मिलाकर काढ़ा बनायें तथा आधा पानी रह तने पर काढ़ा पिलाएं।
  • ऑवले के रस को शहद में मिलाकर चाटने से आराम मिलता हैं।
  • राई पीसकर नाक पर लगाने से जुकाम में आराम मिलता हैं।
  • दालचीनी और जायफल बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें और सुबह शाम लें। 
  •  गाय का घी नाक में डालें।

तपेदिक (टी.बी.)

टी.बी. का रोग किटाणुजन्य होता हैं। इसके अलावा प्रदूषित वातावरण में रहने से, अधिक श्रम करने से, चिंता करने से और पौष्टिक आहार न मिलने से यह रोग होता हैं। शुरूआत में हल्का बुखार आता हैं और थकान का अनुभव होता हैं। धीरे-धीरे थकान बढ़ती जाती हैं और खाँसी शुरू होती हैं और खाँसी के साथ खून भी आने लगता हैं। धीरे-धीरे वजन कम होता जाता हैं और भूख भी नहीं लगती। छाती में लगातार दर्द रहना, अपच होना, मिचली आना और साँस लेने में तकलीफ और पतले दस्त होना और बूंद-बूंद करके पेशाब आना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
  • केले के पत्तों को सुखाकर उसकी राख बनायें। आधा चम्मच राख शहद के साथ प्रतिदिन चाटें। इसके साथ - साथ कच्चे केले की सब्जी बनाकर खायें और 2 चम्मच केले के तने का रस भी पीयें। भोजन के बाद पके केले खाने से भी रोग में काफी आराम मिलता हैं।
  • आधा चम्मच पीपल के फलों का चूर्ण गाय के दूध के साथ लें।
  • दालचीनी का चूर्ण शहद के साथ दिन में 3-4 बार चाटें।
  • देशी गाय के घी में 2 लौंग का चूर्ण बनाकर चाटें।
  • मुलहठी का चूर्ण, शहद और मिश्री को समान मात्रा में लेकर मिलायें, तथा प्रातः काल में सैवन करें।
  • आधा कप देशी गाय का गोमूत्र सुबह पीने से टीबी ठीक हो जाता हैं, लगातार 5-6 महीने पीने पड़ता हैं।

गले में कोई भी इन्फेक्शन, टौन्सिल

गले में कितनी भी खराब से खराब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अच्छी दवा हैं हल्दी। जैसे गले में दर्द हैं, खरास हैं, गले में खांसी हैं, गले में कफ जमा हैं, गले में टॉसिल हो गया, ये सब बीमारिओं में आध चम्मच कच्ची हल्दी क रस लेना और मुँह खोल कर गले में डाल देना, और फिर थोड़ी देर चुप हकर बैठ जाना तो ये हल्दी गले में नीचे उतर जाएगी लार के साथ, और एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरूरत नही। ये छोटे बच्चों को तो जरूर करना ये बच्च॑ के टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते हैं ना तो हम ऑपरेशन करवाकर उनको कठवाते हैं वो करने की जरुरत नही हैं हल्दी से सब ठीक होता हैं।

मधुमेह (डायबिटीज)

आजकल मधुमेह की बीमारी आम बीमारी हैं। जब किसी व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी होती हैं। इसका मतलब हैं वह व्यक्ति दिन भर में जितनी भी मीठी चीजें खाता हैं (चीनी, मिठाई, शक्कर, गुड़ आदि) वह ठीक प्रकार से नहीं पचती अर्थात् उस व्यक्ति का अग्नाशय उचित मात्रा में उन चीजों से इन्सुलिन नहीं बना पाता इसलिए वह चीनी तत्व मूत्र के साथ सीधी निकलता हैं। इसे पेशाब में शुगर आना भी कहते हैं। जिन लोगों को अधिक चिंता, मोह, लालच, तनाव रहते हैं। उन लोगों को मधुमेह की बीमारी अधिक होती हैं। मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती हैं, लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती हैं। शरीर सूखने लगता हैं, कब्ज की शिकायत रहने लगती हैं। अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती हैं और रोगी का वजन कम होती जाता हैं। शरीर में कही भी जख्म/घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।
  • जामुन मधुमेह के रोगी के लिए सर्वोत्तम दवाई हैं। सीधे जामुन खाना लाभदायक तो है ही, लेकिन जामुन की गुठली का चूर्ण ताजे पानी के साथ दिन में 2-3 बार लेने पर मधुमेह में बहुत लाभकारी होता हैं। इसके साथ जामुन के हरे पत्तों की चटनी बनाकर 1 ग्लास पानी में प्रतिदिन पीने से लाभ होता हैं।
  • पान के साथ चार पत्ती बंग भस्म लेने से मधुमेह दूर होता हैं।
  • प्रातःकाल 20 ग्राम गिलोय का रस बराबर मात्रा में शहद के साथ मिलाकर लेने से बीमारी में लाभ मिलता हैं।
  • प्रतिदिन रात्रि विश्राम से पहले शहद के साथ त्रिफला चूर्ण लेने से लाभ होता हैं।
  • इन्द्र जौ, बादाम और चने का चूर्ण बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह और शाम फीके दूध से लें।
  • त्रिफला चूर्ण में गैथी के दानों का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाये और प्रतिदिन प्रातः काल 2 चम्मच चूर्ण गुनगुने जल के साथ सेवन करें।

बहुमुत्र

बहुमृत्र रोग में बार-बार पेशाब आता हैं। और थोड़ा-थीोड़ा पेशाब आता हैं। यह रोग बच्चों तथा युवाओं को अधिक होता हैं और अधिकाशत: अनुवांशिक है। इस रोग में कब्ज, अपच, अधिक मूत्र आना, और नींद न आना इस तरह की शिकायतें रहती हैं। रोगी प्रतिदिन कमजोर होता जाता हैं कमर और कमर के नीचे के हिस्सों में दर्द रहता हैं।
  • ऑवले का सूखा चूर्ण या आँवले का रस गुड़ के साथ मिलाकर लेने से बीमारी में लाभ होता हैं।
  • 20 ग्राम काले तिल और 10 ग्राम अजवायन को मिलाकर पाउड़र बना लें फिर इस पाउडर को 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम 1-1 चम्मच सेवन करें।
  • प्रातःकाल खाली पेट अदरक का रस 1 चम्मच लेने से बहुमूत्र की शिकायत दूर होती हैं।
  • रात्रि विश्राम से पहले गाय के दूध में पकाये हुए 4 छुआरे खाने से बहुमूत्र के रोग में आराम मिलता हैं।

मूत्राशय प्रदाह (जलन)

इस रोग में मूत्राशय में दर्द होता हैं। और बार-बार पेशाब जाने की इच्छा होती हैं और पेशाब करते समय मूत्राशय में जलन और दर्द रहता हैं कष्ट के साथ पेशाब आती हैं।
  • प्रतिदिन गाजर का रस पीने से जलन में आराम मिलता हैं।
  • चावल के मांड में मिश्री मिलाकर पीने से बीमारी में लाभ होता हैं।
  • त्रिफला चूर्ण का काढ़ा गुड़ मिलाकर पीने से आराम मिलता हैं।
  • 3 यम्मव मूली का रस जरा सी सेंधा नमक डालकर पीयें।

गुर्दे की पथरी

जिन लोगों के मूत्र में कैल्शियम अधिक मात्रा में बनता हैं उनको पथरी जल्दी होती हैं। यह भिन्न भिन्न प्रकार के छोटे-छोटे क्षारीय तल होते हैं। जो किन्‍ही कारणों से मूत्राशय तथा मूत्रनली से नहीं निकल पाते और धीरे-धीरे एकत्र होकर पथरी का रूप ले लेते हैं। पथरी होने के बाद जब व्यक्ति मूत्र त्याग करता हैं तब उसे दर्द का अनुभव होता हैं। ऐसे में मूत्र धीरे-धीरे और रूककर बाहर आता हैं।
  • चौलाई अथवा बथुआ के साग को अच्छी तरह धोकर पानी मैं उबालें और यह उबला हुआ पानी कपड़े से छान लें तथा इसमें कालीमिर्च, जीरा, तथा जरा सा सेंधा नमक मिलाकर दिन मैं कई बार पियें कुछ ही सप्ताह में लाभ अवश्य मिलेगा।
  • जीरे के पाउडर को शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती हैं।
  • सफेद प्याज को कूटकर कपड़े से उसका रस निकालें | सुबह खाली पेट पीयें। इससे पथरी जल्दी टूट- टूटकर खत्म हो जायेगी।
  • सूखे आँवले का पाउडर बनायें और प्रात: काल खाली पेट मूली पर लगाकर चबा-वबाकर खायें।
  • मूली के बीजों का चूर्ण । चम्मच शहद में मिलाकर चाटें।

गुप्त रोग

शीघ्र पतन

शीघ्र पतन प्रायः उन लोगों को होता हैं जो प्रकृति के विरूद्ध सहवास की प्रक्रिया अपनाते हैं। हस्त मैथून, मुख मैथून करते हैं, या अत्याधिक अश्लील साहित्य पढ़ते हैं अथवा अत्यधिक सम्भोग में रत रहते हैं। इस बीमारी का प्रमुख लक्षण यह हैं कि संभोग के समय पुरूष स्त्री को संतुष्ट करने से पूर्व ही स्खलित हो जाता हैं। और इसी को शीघ्रपतन कहते हैं। कई बार तो स्त्री का आलिंगन करने या चूम्बन लेने मात्रा से ही पुरूष स्खलित हो जाता हैं। लेकिन घरेलू विकित्सा करने और अच्छा साहित्य पढ़ने से यह बीमारी आसानी सै दूर हो सकती हैं।
                                          प्रातः काल खाली पेट एक पका हुआ केला एक चम्मच गाय के घी के साथ लगाकर एक महीने खाने से यह बीमारी दूर होती हैं।
  • 10 ग्राम घी + 5 ग्राम शहद + 10 ग्राम मुलहठी मिलाकर चाटें तथा गर्म दूध भी पीयें यह सहवास के पश्चात ही लें तो शीघ्रपतन धीरे-धीरे दूर होगी तथा कमजोरी भी नहीं होगी।
  • सूखा धनियाँ + मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बनायें प्रतिदिन सुबह ठंडे पानी में लेने पर काफी लाभ मिलेगा।
  • तुलसी के बीज+ मिश्री को बराबर की मात्रा में मिलाकर पाउडर बनायें तथा प्रातः दूध के साथ सेवन करें।
  • लौग का तेल लिंग पर लगाकर सहवास करने से शीघ्रपतन दूर होता हैं।

✥ स्वप्नदोष

रात में सोते समय या दिन मैं कभी भी कामैच्छा मात्रा से ही जब वीर्य स्खलित हो जाये तो उसे स्वप्न दोष कहते हैं। कामुक दृश्यों, सिनेमा देखने या अश्लील किताबों को पढ़ने से कामुक भावनाएं मन में बैठ जाती हैं। जो स्वप्न में आती हैं। इसी कारण वीर्य स्खलित हो जाता हैं।
  • प्रातः काल उठकर ताम्रपत्र में रखा हुआ ठंड़ पानी पीने से यह बीमारी दूर होती हैं। गर्म प्रकृति वाले लोगों को यह नुस्खा अवश्य अपनाना चाहिए।
  • प्रातःकाल शहद के साथ केला खाने से स्वप्नदोष में आराम मिलता हैं।
  • सूखा धनिया और मिश्री बराबर मात्रा में पीसकर ठंडे पानी के साथ लें। स्वप्नदोष की शिकायत दूर होगी।
  • गुलकंद को गाय के दूध में मिलाकर पीने से स्वप्न दोष दूर होता हैं।
  • प्रातःकाल आँवले का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से स्वप्नदोष ठीक होता हैं।
  • विषय वासना, व हस्तगैथून से दूर रहें, सदा प्रसन्ना रहें तथा अच्छी संगत में रहें। योग और व्यायाम करें। अवश्य लाभ होगा।

नपुसंकता

यह बीमारी अत्याधिक स्त्री सम्भोग, मोटापा बढ़ने या चर्बी बढ़ने, या किसी प्रकार की अण्डकोष संबंधी दुर्घटना या हार्निया, बहुमूत्र आदि के होने से होता हैं। अधिक शराब पीने या नशा करने वालों में भी नपुसंकता आती हैं। इस बीमारी में मैथुन शक्ति कमजोर होती जाती हैं। पुरूष में उत्तेजना खत्म होती जाती हैं। और लिंग में तनाव नहीं आता यदि आता भी हो तो वह शीघ्र ही खत्म हो जात हैं इस बीमारी के कारण कई अन्य मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं।
  • लहसुन की 6-8 कलियों को छीलकर घी में तलकर पीसकर खायें यह बीमारी टूर करती हैं। कच्ची कलियाँ शहद के साथ भी ले सकता हैं।
  • प्रातः काल गाय के गर्म दूध के साथ तुलसी से बीज और गुड़ बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से नपुसंकता दूर होती हैं। दूध में दो छुआरे और किशमिश डालकर पीयें।
  • शहद + गाय का घी + सफेद प्याज का रस बराबर मात्रा में मिलाकर दूध के साथ लें।
  • जमीकंद और तुलसी की जड़ दोनो को पान के साथ खाने से वीर्य जल्दी स्खलित नहीं होगा।
  • प्यास के रस में शहद मिलाकर चाठटने से वीर्य बढ़ता हैं।


मुख के रोग

आयुर्वेदिक चिकित्सा

आँखों के रोग

अधिक ठंड, अधिक गर्मी, या आँखों में धूल जाने से या आँखों में किसी संक्रामक बीमारी के कारण दर्द होना शुरू हो जाता हैं और आँखें आ जाती हैं। इस कारण आँखों से पानी निकलता हैं और आँखें लाल हो जाती हैं। आँखों में से कीचड़ निकलना शुरू हो जाता हैं।
  • सफेद प्याज का रस आँखों में लगाने से दर्द में कमी होती हैं।
  • सुबह उठकर बासी मुहँ की लार आँखों में लगाने से आँखों के प्रत्येक रोग दूर होते हैं।
  • त्रिफला चूर्ण, घी और शहद मिलाकर खाने से आँखों की बीमारी दूर होती हैं।
  • देशी गाय का घी आँख में लगाने से जलन दूर होती हैं।
  • गुलाब जल में फूली फिटकरी डालकर आँखों को धोने से जलन एवं सूजन समाप्त होती हैं। केवल गुलाबजल डालने से भी आँखों में राहत मिलती हैं।
  • बथुए के रस को 1-1 बूंद करके आँखों में डालें।
  • गुलाब जल, ताजे खीरे का रस और थोड़ा सा ठंड़ा दूध मिलाकर इसमें रूई के फोहो को भिगोकर पलकों के ऊपर रखे। आँखों में अनार का रस डालने से भी काफी लाभ होता हैं।

गुहेरी

आँख की पलकों के ऊपर कोने में फुन्सी निकल आने को गुहेरी कहते हैं। यह एक गांठ की तरह होती हैं और हल्का -हल्का दर्द भी होता हैं।
  • लौंग को पानी मैं घिसकर लगाने से गुहेरी बैठ जाती हैं।
  • रात मैं भिगायें हुए त्रिफला चूर्ण के पानी से आँखों को छप्पे मार मार कर थोयें। बीमारी में काफी लाभ होगा।
  • गुलाब जल में छोटी हरड़ को घिसकर लेप करने से लाभ मिलता हैं।
  • गुलाब जल में थोड़ा फिटकरी का पानी मिलाकर डालने से गुहैरी बैठ जाती हैं।

रतौंधी

अत्याधिक धूल, तीव्र प्रकाश, और दूषित पर्यावरण के कारण रतौंधी होती हैं। इसमें रोगी को रात्रि में बिल्कुल नहीं दिखाई देता तथा दिन में ठीक दिखाई देता हैं।
  • तुलसी के पत्तों का रस दिन में 3-4 बार आँखों में डालें।
  • सफेद प्याज का रस आँखों में डालने से काफी लाभ होता हैं।
  • देशी गाय का मूत्र आँखों में डालने से काफी लाभ होता हैं।
  • आँखों में शुद्ध शहद लगाने से भी काफी आराम मिलता हैं।

मोतियाबिंद

इस बीमारी में आँखों की पुतली पर सफेदी आती हैं और रोगी की दृष्टि धुंधली पड़ जाती हैं। कोई भी चीज स्पष्ट नहीं दिखाई देती। यह रोग प्रायः वृद्धा अवस्था में होता हैं।
  • सुबह शाम 1 गिलास गाजर का रस पीने से मोतियाबिंद में लाभ होता हैं।
  • रात में पानी में भिगोई हुई लहसुन की कालियों को प्रातः काल उठकर खायें और पानी पीयें। मोतियाबिंद में लाभ होगा।
  • शुद्ध शहद आँखों में लगाने से भई मोतियाबिंद में लाभ होता हैं।
  • सूखा धनियाँ और सौंफ और देशी शक्कर बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बनायें सुबह शाम जल से सैवन करें।

कान के रोग

कान मैं कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। कान का बहना, फोड़े-फुन्सी, कर्ण शूल, बहरापन आदि हैं।
  • सरसों का तेल कान में डालने से फोड़े - फुन्सी ठीक होते हैं।
  • दर्द होने पर प्याज का रस गर्म करके कान में डालने पर आराम मिलेगा।
  • तुलसी के पत्तों के रस में थोड़ा सा कपूर मिलाकर गर्म करें और v
  • कान में गौमूत्र डालने से फोड़े फुन्सी ठीक होते हैं।
  • कान सें स्वमूत्र डालने से कान का दर्द रूक जाता हैं।
  • लहसुन, मूली और अदरक तीनों का रस मिलाकर कान में डालने से आराम होता हैं।

नाक के रोग

नाक में चोट लग जाने से या किसी प्रकार के संक्रामक रोग से अथवा सिर की गर्मी से अक्सर नाक से खन निकलने लगता हैं। बच्चों में यह बीमारी अधिकांश देखी जाती हैं।
  • सबसे पहले रोगी को सीथा लिटाकर ठंडे पानी से सिर थोयें। उससे खून निकलना बंद होगा।
  • धनियें के पत्तों का रस या प्याज का रस नाक में डालने से खून निकलना बंद हो जाता हैं।
  • आंवला पीसकर घी में भूने और नाक पर लेप करें।
  • मुल्तानी मिट्टी का लेप नाक पर लगाने से नकसीर बंद होती हैं।
  • नाक के किसी भी रोग के लिए देशी गाय का घी नाक में डालें।

दाँतों के रोग

दाँतों की सही ढंग से सफाई न करने से दाँतों के रोग होते हैं। अत्याधिक कब्ज रहने से तथा खाना न पचने से भी दाँतों में सड़न होती हैं। दाँतों की सड़न या दाँतों में कीड़े लगना दाँतों को साफ न रखने से और भोजन के बाद कुल्ला न करने से दाँतों में कीडे लग जाते हैं।
  • 1 चम्मच शहद में लहसुन का रस मिलाकर चाटने से दाँतों की सड़न एवं बदबू दूर होती हैं।
  • थोड़ा सा अदरक का रस और नमक गिलास पानी में मिलाकर गर्म करें और उस पानी से कुल्ला करें।
  • पीपल व नीम की दातून से दाँतों के कीड़े नष्ट होते हैं।
  • सेंधा नमक, काली मिर्च, त्रिफला, हल्दी और सरसों के तेल को लेकर पेस्ट बनाये और सुबह शाम करें।

दातों का दर्द

दांतों को नियमित रूप से साफ न करने से, पेट में कब्ज एवं वायु के रहने से, भोजन के पश्चात दाँतों में अन्न कण फँसे रहने से, तथा अत्याधिक आईस्क्रीम खाने से दाँतों में दर्द रहता हैं। दांत हिलने शुरू हो जाते हैं।
  • अदरक और तुलसी के पत्तों का रस दातों पर लगायें।
  • हींग को पानी में घोलकर उस पानी से कुल्ला करें।
  • रूई द्वारा लौंग का तेल दर्द होने वाले दाँत पर लगाये।
  • सरसों के तेल मैं 1 चुटकी नमक मिलाकर दाँतों में मलें तथा 25 मिनट बाद गर्म पानी में कुल्ला करें।
  • दाढ़ में दर्द होने पर नमक लगे अदरक के टुकड़े चूसने से आराम मिलता हैं।

पायरिया

पायरिया रोग काफी हानिकारक हैं। प्रतिदिन दाँतों की सफाई न होने से अन्न के कण दांतों में सड़न पैदा करते हैं। मसूड़ों को जरा सा दबाने से या ब्रश करने पर या मंजन करने पर खून निकलता हैं। यदि ध्यान न दें तो यह रोग काफी बढ़ जाता हैं तथा दांत निकालने भी पड़ सकते हैं।
  • सेंधा नमक, लौंग का तेल, हल्दी, और काली मिर्च को समान मात्रा में लेकर बारीक पाउडर बना लें। और प्रतिदिन सुबह शाम करें।
  • फिटकरी+खिला सुहागा+सेंथा नमक बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें तथा मंजन की तरह उपयोग करें।
  • नीम की कोमल पत्तियाँ, काली मिर्च और काला नमक का पाउडर बनाकर प्रतिदिन प्रातः काल सेवन करने से लाभ होता हैं।
  • आँवला जलाकर उसमें थोड़ सैंधा नमक मिलाकर सरसों के तेल में रगड़ने से पायरिया दूर होता हैं।

मुहँ के छाले

मुँह के छाले प्रायः पेट की गड़बड़ी से होते हैं। ज्यादा गर्म चीजों को खाने से, अमाशय की गड़बड़ी, रक्त की अशुद्धि आदि से भी होते हैं। ये छाले कभी जीभ की नोक पर तो कभी पूरी जीभ पर निकलते हैं । छाले होने के कारण मुँह में बार-बार पानी आने लगता हैं। इन छालों में जलन तथा दर्द हो जाता हैं। होठों पर भी छाले आ जाते हैं।
  • भोजन के बाद सौंफ के पानी से कुल्ला करें। आराम मिलेगा।
  • सुहागे को थोड़ा सा तवे पर गर्म करके, पानी के साथ ले, तुरन्त लाभ होगा।
  • दो चम्मच हल्दी का चूर्ण पानी में उबालकर उससे कुल्ला करें।
  • गाय के दूध में एक चम्मच घी डालकर पीयें।
  • मेंहदी की पत्तियों को चबाने से छाले ठीक होते हैं।


वात रोग

वात रोग आयुर्वेदिक चिकित्सा
अर्थराइटिस/गठिया/जोड़ो का दर्द

जब हम खड़े होकर पानी पीते हैं, तो पानी के साथ वायु हमारे घुटनों तक पहुँच जाती हैं, जिससे गठिया बाय का रोग हो जाता हैं। जब भोजन नही पचता तो कच्चा रस इकट्ठा होने लगता हैं जिस कारण गठिया होने लगती हैं। ये रोग ज्यादातर आरामदायक जीवन बिताने वालो को होता हैं,मोटापा, धूम्रपान, अनियमित या जल्दी में भोजन करना, कब्ज रहना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
  • 1 दिन में 2 ग्राम (गेहूँ के दाने के बराबर) चूना छाछ या दही के साथ खाने से 3 महीने में पुरानी से पुरानी गठिया ठीक हो जाती हैं।
  • मेथी दाना रात को पानी में भिगोकर रख दे, सुबह उठकर मेथी दाने को चबाचबा कर खायें और पानी को पी लें।

थाइराइड

  • हाइपरथाइराडिज्म, हाइपोथायराडिज्म दोनो प्रकार के थाइराइड़ का उपचार धनिया से पूरी तरह से इलाज किया जा सकता हैं।
  • थाइराइड़ के लिए धनिया चटनी बनाकर दिन में 2 बार इस्तेमाल करें और जिन लोगों का थाइराइड के कारण वजन या मोटापा बहुत बड़ा हुआ हैं उन लोगो को मोटापा भी इसी से कम होगा।
  • थाइराइड़ के सभी मरीजों के लिए आयोड़ीन युक्त नमक जहर के समान होता हैं थाइराइड के सभी मरीजों को सबसे पहले आयोड़ीन नमक छोड़कर उसकी जगह पर सैंथा या काला नमक का ही प्रयोग करना चाहिए क्योकि भारत में आज जितने भी लोगों को हैं उनका प्रमुख कारण आयोड़ीन युक्त नमक, भारत में आज आयोड़ीन की कमी किसी को भी नही हैं, लेकिन सरकार जबरदस्ती ये नमक भारत के सभी लोगों को खिला रही हैं। 
  • खाने में हमेशा सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए,ना की आयोड़िन युक्त नमक का। चीनी की जगह गुड़,शक्कर, देसी खाण्ड या थागे वाली मिश्री का प्रयोग कर सकते हैं।

एड्स

एड्स एक सिंड्रोम है और बीमारी नहीं है, जब हमारे शरीर का कोई अंग सही से काम नहीं करता है और उसके लक्षण दिखने लगते हैं उसे हम बीमारी कहते हैं ! जबकि सिंड्रोम का मतलब होता है कि आप का वह अंग नहीं रहा और उसके ज्यादा लक्षण आपको नहीं दिख रहा है ! एचआईवी ( हयूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस) वायरस के संक्रमण से मनुष्य में एड्स होता है ! एचआईवी मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून)को खत्म देता है! जिससे मनुष्य अन्य बीमारियों से लड़ने की ताकत को खो देता है! इसीलिए एड्स को सिंड्रोम कहते हैं
                                   एड्स से बीमार आदमी को कोई अन्य बीमारी हो जाए तो ज्यादातर चांस होता है कि उस बीमारी का इलाज नहीं हो पाएगा | इसलिए आप कह सकते हैं कि एड्स का मरीज़ एड्स के कारण नहीं मरता है, वह तो किसी अन्य बीमारियों या संक्रमण या दोनों से मरता है !
                                  आधा कप गैमूत्र रोज सुबह खाली पेट खाने से 1 घण्टे पहले पीयें।

सोराइसिस

  • सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह पर होने वाला चर्म रोग है। सोरायसिस एक वंशानुगत बीमारी है, जिसमें त्वचा पर एक मोटी परत जम जाती है। अलग शब्दों में कहें तो चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे)घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। हालांकि यह रोग केवल 1-2 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है। यह रोग आनुवंशिक भी हो सकता है।
  • त्वचा पर सुबह की लार लगाये। 4 साल में ठीक हो जायेगी।

कैंसर

कैंसर बहुत तेजी से बढ़ रहा हैं इस देश में, हर साल बीस लाख लोग कैंसर से मर रहे हैं और हर साल नए केस आ रहे हैं और सभी डॉक्टर हाथ -पैर डाल चुके हैं।
                                   राजीव भाई की एक छोटी सी विनती हैं याद रखना कि ..... कैंसर के मरीज को कैंसर से मृत्यु नहीं होती हैं बल्कि जो ईलाज कैंसर के लिए दिया जाता हैं उससे मृत्यु होती हैं। मतलब कैंसर से ज्यादा खतरनाक कैंसर का इलाज हैं। ईलाज कैसा हैं आप सभी जानते हैं... कैम्योथैरेपी,रोडियोथैरेपी, कोबाल्ट थैरेपी।
                                  इसमें क्‍या होता हैं कि शरीर की जो प्रतिरक्षक शक्ति हैं वो बिल्कुल खत्म हो जाती हैं। जब कैम्योपैरेपी दी जाती हैं ये बोल कर कि हम कैंसर के सेल को मारना चाहते हैं तो अच्छे सेल भी उसकी के साथ मर जाते हैं। राजीव भाई के पास कोई भी रोगी जो कैम्योथरेपी लेने के बाद आता हैं वे उनको बचा नही पाए। लेकिन इसका उल्टा भी रिकार्ड हैं ... राजीव भाई के पास बिना कैम्योथैरेपी लिए हुए कोई भी रोगी आया दूसरी या तीसरी स्टेज तक वो एक भी नही मर पाया।
                                    मतलब क्या हैं ईलाज लेने के बाद जो खर्च आपने कर दिया वो तो मर ही गया और रोगी भी आपके हाथ से गया। डॉक्टर आपको भूल शलैया में रखता हैं अभी 6 महीने में ठीक हो जायेगा 8 महीने में ठीक हो जायेगा। लेकिन अंत में वो जाता ही हैं। आपके घर परिवार में यदि किसी को कैंसर हो जाये तो ज्यादा खर्चा मत करिए क्योंकि जो खर्च आप करेंगे उससे मरीज का तो भला नहीं होगा बल्कि उसको इतना कष्ठ होता हैं कि आप कल्पना नहीं कर सकते।
                                 उसको जो इंजैक्शन दिए जाते हैं जो गोली खिलाई जाती हैं उसको जो कैम्योथैरेपी दी जाती हैं उससे सारे बाल उड़ जाते हैं, भौंहों के बाल उड़ जाते हैं, चेहरा इतना डरावना लगता हैं कि पहचान में नही आता ये अपना ही आदमी हैं। इतना कष्ट क्यों दे रहे हो उसको? सिर्फ इसलिए कि आपको एक अंहकार हैं कि आपके पास बहुत पैसा हैं तो इलाज करा के ही मानेगा। आप अपनी आस पड़ोस की बाते ज्यादा मत सुनिए क्योंकि आजकल हमारे रिश्तेदार बहुत भावनात्मक शोषण करते हैं। घर में किसी को गंभीर बीमारी हो गयी तो जो रिश्तेदार हैं वो पहले आ कर कहते हैं “अरे आल इंडिया नहीं ले जा रहे हो? पी.जी.आई. नहीं ले जा रहे हो? टाटा इंस्टीटियट मुंबई नहीं ले जा रहे हो? आप कहोगे नहीं लेजा रहा हूँ, अरे तुम बड़े कंजूस आदमी हो बाप के लिए इतना भी नहीं कर सकते, माँ के लिए इतना नहीं कर सकते | ये बहुत खतरनाक लोग होते हैं। हो सकता हैं कई बार व मासूमियत के साथ कहते हो, उनका मकसद खराब नहीं होता ह लेकिन उनक जानकारी कुछ भी नहीं हैं, बिना जानकारी के वो सलाह पर सलाह देते जाते हैं और कई बार अच्छा खासा पढ़ा लिखा आदमी फंसता हैं उसी में, रोगी क भी गंवाता और पैसा भी जाता हैं।
                                 कैंसर के लिए क्‍या करें? हमारे घर में कैंसर के लिए एक बहुत अच्छी दवा हैं, अब डॉक्टरों ने मान लिया हैं पहले तो वे मानते भी नही थे उसका नाम हैं - “हल्दी” । हल्दी कैंसर ठीक करने की ताकत रखती हैं,हल्दी में एक कैमिकल हैं सका नाम हैं कर्कुमिन और ये ही कैंसर सेलों को मार सकता हैं, बाकि कोई कैमिकल बना नहीं दुनिया में और ये भी आदमी ने नहीं भगवान ने बनाया हैं। हल्दी जैसा ही कर्कुमिन और एक चीज में हैं वो हैं देशी गाय के मूत्र में। गोमूत्र माने देशी गाय के शरीर से निकला हुआ सीधा साधा मूत्र जिसे सती के आठ परत की कपड़ो से छान कर लिया गया हो। तो देशी गाय का मूत्र अगर आपको मिल जाये और हल्दी आपके पास हो तो आप कैंसर का इलाज आसानी से कर पायेंगे। अब देशी गाय का मूत्र आधा कप और आधा चम्मच हल्दी तथा आधा चम्मच पुनर्नवा चूर्ण तीनों को मिला के गर्म करना जिससे उबाल आ जाये फिर उसको ठंड़ा कर लेना। कमरे के तापमान में आने के बाद रोगी को चाय की तरह पिलाना हैं.... चुस्कियां ले ले कर सिप कर करके पीयें,इससे अच्छा नतीजा आयेगा।
                               इस दवामें सिर्फ देशी गाय का मूत्र ही काम में आता हैं, जर्सी का मूत्र कुछ काम नहीं आता। और देशी गाय काले रंग का हो उसका मूत्र सबसे अच्छा परिणाम देता हैं इन सब में। इस दवा को (देशी गाय की मूत्र, हल्दी, पुनर्नवा) सही अनुपात में मिला के उबाल के ठंड़ा करके कांच के पात्र में स्टोर करके रखिए पर बोतल को कभी फ्रिज में मत रखिये, ये दवा कैंसर के सैकंड स्टेज में और कभी-कभी थर्ड स्टेज में भी बहुत अच्छे परिणाम देती हैं। जब स्टेज थर्ड क्रास करके चौथी स्टेज में पहुँच जाये तब परिणाम में सफलता की प्रतिशतता थोड़ी कम हो जाती हैं और अगर आपने किसी रोगी को कैम्योथैरैपी दे दिया तो फिर इसका कोई असर नहीं आता। कितना भी पिला दो कोई परिणाम नहीं आता। आप यदि किसी रोगी को ये दवा दे रहे हैं तो उससे पूछ लीजिए, जान लीजिए कहीं कैम्योथैरेपी शुरू तो नहीं हो गयी? अगर शुरू हो गयी हैं तो आप उसमें हाथ मत डालिए, जैसा डॉक्टर करता हैं करने दीजिए, आप भगवान सै प्रार्थना कीजिए उसके लिए, इतना ही करें। और अगर कैम्योथैरेपी शुरू नहीं हुई हैं और उसने कई ऐलपैथी ईलाज शुरू नहीं किया तो आप देखेंगे इसके चमत्कारिक परिणाम आते हैं। ये सारी दवाई काम करती हैं शरीर प्रतिकारक शक्ति पर। हमारी जो जीवनी शक्ति हैं उसका सुधार करती हैं। हल्दी को छोड़कर गोमूत्र और पुनर्नवा शरीर की जीवनी शक्ति को ताकतवर बनाती हैं और जीवनी शक्ति के ताकतवर होने के बाद कैंसर के सेलों को खत्म करती हैं।
                              ये त बात हुई कैंसर की चिकित्सा की, पर जिन्दगी में कैंसर आए ही ना ये और भी अच्छा हैं। तो जिंदगी में आपको कभी कैंसर ना हो उसके लिए एक बात याद रखिए आप खाना बनाने में जो तेल इस्तेमाल करते हैं वो रिफाईंड तेल या डालड़ा ना हो, ये देख लीजिए दूसरा जो भी खाना खा रहे हैं, उसमें रेशेदार भोजन का हिस्सा ज्यादा हो जैसे -छिलके वाली दालें, छिलके वाली सब्जियाँ, चावल भी छिलके वाला, अनाज भी छिलके वाला तो आप निश्चित रहें आपक कभी कैंसर नही होगा।
                            और कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से दो तीन कारण हैं रासयनिक खाद और कीटनाशक दवाओं वाला अनाज, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, गुटका आदि जैसी चीजों का प्रयोग।
                            कैंसर के बारे में सारी दुनिया एक ही बात कहती हैं चाहे वो डॉक्टर हो विशेषज्ञ हो या वैज्ञानिक हो कि इससे बचाव इसका उपाय हैं। महिलाओं में आजकल बहुत कैंसर हो रहे हैं गर्भाशय के, स्तन के और ये काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले गांठ (ट्यूमर) होती है फिर वो कैंसर में बदल जाता हैं। मातां और बहनों को क्‍या करना हैं कि जिंदगी में कभी (ट्यूमर)ही ना आए। आप के लिए सबसे अच्छा बचाव का काम हैं जैसी ही आपके शरीर के किसी भी हिस्से में किसी रसौली या गांठ का पता चलें तो सावधान हो जाइये। हालांकि सभी गांठ या रसौली कैंसर नहीं होती हैं। 2 या 3 प्रतिशत ही कैंसर में बदलती हैं। लेकिन आप के पास इस रसौली या गांठ को ठीक करने की दुनिया की सबसे अच्छी दवा हैं - “वूना”। चूना वही जो पान में खाया जाता हैं। पान वाले की ठुकान से चूना ले आइये , यह चूना एक गेहूँ के दाने के बराबर प्रतिदिन खाइये, दही में मिला कर, लस्सी में मिला कर, छाछ या मट्ठा में मिला कर, दाल में मिलाकर , सब्जी में मिलाकर या पानी में मिलाकर खा लीजिए। अधिक से अधिक तीन महीने तक।ध्यान रहे पथरी के रोगी चुना नहीं खा सकते।

सौन्दर्यवर्धक नुस्खे

सौन्दर्य प्रसाधनों के दिन-दूने रात चौगुने बढ़ते बाजार को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि लोग सुन्दरता के लिए कितने परेशान हैं। स्त्री पुरूष यहाँ तक कि नई पीढ़ी के बच्चे तक सुन्दर दिखने के लिए मेकअप के नए-नए तरीके आजमाने में लगे हैं। सुन्दरता के प्रति इतनी जागरूकता शायद पहले कभी नहीं रही। यदि इतनी ही जागरूकता समूचे स्वास्थ्य को लेकर लोगों में होती तो चिन्ता की विशेष बात नहीं थी। लेकिन दुर्भाग्य से लोग स्वास्थ्य के प्रति पूरी मनमानी करते हुए भी कृत्रिम प्रसाधनों के सहारे अपना सौन्दर्य निखारना चाहते हैं। अब कौन समझाय कि हँसना और गाल फुलाना, दोनों एक साथ नहीं हो सकते हैं। यदि कुछ लोग यह सोचते हों कि वे स्वास्थ्य के प्रति पूरे लापरवाह रहकर भी अपने सौन्दर्य की हिफाजत कर लेंगें तो निरा भ्रम के ही शिकार हैं। बाजारू सौन्दर्य प्रसाथनों का नकली आवरण असलियत को कितनी देर छुपाएगा? वास्तव में सच्चे सौन्दर्य का रहस्य तो अच्छे स्वास्थ्य में ही छुपा हैं। स्वास्थ्य निखरेगा तो सौन्दर्य में अपने आप निखार आ जायेगा, यह तय हैं।
                                    कहने का सीधा सा अर्थ यह हैं कि अगर सौन्दर्य चाहिए तो स्वास्थ्य को सही-सलामत रखने का इन्तजाम भी अनिवार्यता करना ही पड़ेगा। अब सवाल यह हो सकता हैं कि स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए किया क्या जाए? तो इसका सीधा सा उत्तर हैं कि 1दिनचर्या सुधार ली जाए, तो बहुत कुछ ठीक हो जाएगा।
                                  दिनचर्या में आहार, निद्रा और व्यायाम पर ध्यान देना सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं। जिन्हें अपने सौन्दर्य - रक्षा की चिन्ता हैं उन्हें शुद्ध साविक शाकाहार अपनाना चाहिए। दाल, चावल, गेहूँ, जौ, बाजरा आदि विविध अन्नों के साथ हरी साग,-सब्जी, फल व सलाद की समुचित मात्रा अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। यह जरूरी नहीं हैं कि स्वास्थ्य सुधारने के लिए आप महँगे फल-मैवे की तरफ ही भागें। मौसम के अनुसार मिलने वाले ढेरों सस्ते फल, सब्जियाँ आदि हैं जिनका उपयोग अपनी शारीरिक प्रकृति को देखते हुए किया जाए तो स्वास्थ-रक्षा का काम बखूबी हो सकता हैं।
                                  आहार के विषय में यह ध्यान देने वाली बात हैं कि वर्तमान में जो लोगों की दिन भर कुछ न कुछ खाते रहने की आदत बढ़ रही हैं, यह गलत हैं। इसके अलावा “फास्ट फूड़' संस्कृति ने आहार के मामले में और भी ज्यादा भ्रष्टाचार फैला दिया हैं। अगर अपने स्वास्थ्य व सौन्दर्य की हिफाजत करनी हैं तो इन आदतों को भी सुधारना ही पड़ेगा। दिन भर में मुख्य भोजन सिर्फ दो बार करना ही सेहत की दृष्टि से उचित हैं।
                                 यदि दोपहर 12 बजे तथा शाम 8 बजे के आस-पास भोजन करने की आदत हो तो सबेरे 8 बजे और तीसरे पहर 4 बजे के आस-पास हल्का सुपाच्य नाश्ता लिया जा सकता हैं। वैसे शाम का भोजन सूर्यास्त तक कर लेना श्रेयस्कर हैं। जो लोग दोपहर का भोजन जल्दी करते हैं, वे सबेरे नाश्ते की आदत न बनायें तो अच्छा हैं। भोजन के साथ ढेर सारा पानी पीने की भी लोगों की अक्सर गलत आदत देखने को मिलती हैं। यह आदत एक न एक दिन पाचन संबंधी विकारों का कारण अवश्य बनती हैं। भोजन में यदि रोटी आदि सूखी चीजें ज्यादा मात्रा में हों, तो ही बीच-बीच में यदा -कदा एकाथ घूँट पानी लिया जा सकता हैं, अन्यथा भोजन के कम से कम डेढ़ दो घंटे बाद ही पर्याप्त मात्रा में पानी पीना उचित हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से दिन भर में कम से कम 7-8 गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए। दोपहर के भोजन के बाद आधा घंटा विश्राम तथा रात के भोजन के बाद लगभग आधा घंटा टहलने की आदत स्वस्थय के लिए लाभप्रद हैं।
                              आहार के बाद निद्रा पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत हैं। रात देर तक जागने तथा सवेरे देर तक सोने की आदत आजकल आम बात हो गई हैं। यदि कोई विशेष विवशता न हो तो रात 10 बजे तक सो जाना तथा सवेरे 4-5 बजे तक जाग जाना आदर्श स्थिति हैं। अलबत्ता, कुछ लोगों की शारीरिक प्रकृति ऐसी भी हो सकती हैं, जिन्हें नींद का समय कुछ कम या ज्यादा भी करना पड़ सकता हैं। सामान्य नियम यह हैं कि जितनी नींद से मन और शरीर में प्रफ़ुल्लता और ताजगी बनी रहे, उतनी नींद पर्याप्त हैं।
                              आहार और निद्रा के बाद व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम सबसे जरूरी चीज हैं। शरीर को सुडौल तथ कार्यश्रम बनाए रखने के लिए व्यायाम वास्तव में अनिवार्य हैं | जो लोग व्यायाम या शरीर श्रम पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते वे पौष्टिक आहार का भी उचित लाभ नहीं ले सकते। खाया पिया शरीर में अच्छी तरह हो, इसके लिए व्यायाम या श्रम जरूरी हैं। स्वास्थ्य और सौन्दर्य रक्षा के लिए प्रतिदिन एकाथ घंटे का समय व्यायाम के लिए अवश्य दिया जाना चाहिए। योगासन-व्यायाम की किसी अच्छी पुस्तक से इस विषय में जानकारी ली जा सकती हैं। बेहतर हैं कि किसी योगासन- व्यायाम केद्ध या विशेषज्ञ व्यक्ति से उचित विधि से प्रशिक्षण लेने के बाद ही इसे दिनचर्या में शामिल किया जाए।
                              अन्त में स्वास्थ्य और सौन्दर्य की दृष्टि से ब्रह्मचर्य पालन पर भी किचित संकेत कर देना आवश्यक हैं। वैसे ब्रह्मचर्य के व्यापक अर्थों में आहार, निद्रा, व्यायाम जैसी चीजें भी शामिल हैं, परन्तु यहाँ ब्रह्मचर्य का उल्लेख वीर्य-रक्षा के विशेष अर्थ में किया जा रहा हैं। विवाहित लोगों के लिए सिर्फ इतना संकेत पर्याप्त हैं कि अगर उन्हें स्वास्थ्य और सौन्दर्य को बरकरार रखना हैं तो वे स्त्री-संसर्ग के मामले में ऋतुगामी बनें, अर्थात् अति करने से बचें और संयम से काम ले। सांस्कृतिक मूल्यों के अनुसार जो ऋतुगामी हैं वह समझिए कि ब्रह्मचारी ही हैं। अविवाहित युवाओं के लिए तो खैर हर प्रकार से ब्रह्मचर्य पालन अनिवार्य हैं। भारतीय संस्कृति में यदि 25 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या प्राप्ति का संदेश दिया गया हैं तो इसका वास्तव में बहुत व्यापक उद्धेश्य हैं। जिसने युवावस्था में ब्रह्मचर्य का मन, वचन, कर्म से समुचित पालन किया, उसका पूरा जीवन ही सौन्दर्यता से परिपूर्ण. आनन्दमय और तेजस्वी हो जाता हैं। महापुरूषों के जीवन-चरित्र पढ़ने से इसके ढेरों प्रमाण मिल जाते हैं। आज अगर उपभोक्‍्तावादी संस्कृति के प्रवाह के चलते ब्रह्मचर्य विनाश की परिस्थितियाँ दिख रही हैं तो यह हम सबके लिए ही चिन्ता का विषय होना चाहिए। यहाँ पृष्ट सीमा के नाते ब्रह्मर्य पालन की विस्तार से चर्चा न करके सिर्फ कुछ संकेतिक बातें ही कही गई हैं। वैसे जिनको ब्रह्मचर्य पालन का वैज्ञानिक तरीके से महत्व जानना हो, उन्हें डॉ. सत्यव्रत सिंद्धान्तालंकार लिखित 'ब्रह्मचर्य-संदेश' नामक पुस्तक एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए।
                                  चेहरे को सुन्दर बनाने के लिए कुछ घरेलू नुस्खे
दरअसल चेहरे के सौन्दर्य का असली अर्थ यह हैं कि चेहरा स्वस्थ हो तथा ओज और ताजगी सै परिपूर्ण रहें। चेहरे के स्वास्थ्य और सौन्दर्य सुधारने का यह भी अर्थ नहीं हैं कि यह कोई एकदम से अलग विषय हैं। सही बात यह हैं कि अगर आपका शरीर स्वस्थ हैं तो स्वास्थ्य की झलक चेहरे पर भी दिखाई ही देगी। हाँ, थोड़ी अतिरिक्त देखभाल करके चेहरे की चमक, दमक और रौनक अवश्य बढ़ायी जा सकती हैं।
  • चेहरे पर काली मिट्टी का लेप लगाएं, यह ऊपरी चिकनाहट दूरकर मृत त्वचा को हटाती हैं।
  • नीम की जड़ को महीन पीसकर लेप करने से मुहाँसे जल्दी ठीक होते हैं।
  • एक छोटा चम्मच जौ का आटा, आधा चम्मच चंदन पाउडर,चुटकी भर हल्दी लेकर नींबू के रस में घोल बनाएं तथा चेहरे पर लगाकर आधे घण्टे बाद धो लें।
  • पहले चेहरा ठण्डे पानी से थो ले और फिर गर्म पानी में तौलिय गीला करके चेहरे पर रखकर भाप सेंक करें। इसके तुरंत बाद ठण्डे पानी में भीगा तौलिया चेहरे पर रखें। चेहरे को तैलीय न होने दें। कुछ दिनों के प्रयेग से मुहाँसों से आसानी से छुटकारा मिल जाएगा।
  • त्वचा का स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आँवला, कच्चा नारियल, मक्खन-मिश्री, सलाद, संतरे जैसी चीजें विशेष लाभप्रद हैं। चूने के पानी का शर्बत त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता हैं। इसको बनाने का तरीका यह है कि खाने का चूना पानी में भिगोकर 4-5 दिन तक रख दें। इसे दिन में 2-3 बार साफ लकड़ी से हिलाकर चला दिया करें। पाँचवे दिन ऊपर का निथरा हुआ पानी अलग कर लें। इसमें शक्कर मिलाकर शर्बत योग्य चाशनी बनाकर ठण्डा करके बोतल में भर लें। इस शर्बत को भोजन के बाद दोनों समय एक-एक चम्मच की मात्रा में 40 दिनों तक सेवन करना चाहिए।
  • जिन महिलाओं के चेहरे व होठों के ऊपर घने रोएं हों। उन्हें बेसन, मैदा, शहद और नींबू का रस -4 चम्मच लेकर एक में मिलाकर चेहरे पर लेप करना चहिए । लेप सूखने लगे तो मसलकर छूड़ा दें। इस प्रयोग से धीरे-धीरे अनावश्यक बालों की समस्या से निजात मिल जाएगी। इसके अलावा चेहरे की त्वचा भी मुलायम, विकनी और चमकीली बन जाएगी।
  • नींबू का रस और तुलसी के पत्तों का रस समान मात्रा में मिलाकर झाँइयों पर लगाने से झाँइ्यों से मुक्ति मिल जाती हैं। इससे मुहाँसे भी समाप्त होते हैं।
  • चेहरे पर निखार लाने के लिए एक चम्मच चूने के पानी में थोड़ा शहद मिलाकर लेप करें और लगभग आधे घण्टे बाद चेहरा धो लें।
  • काली कसोंदी का रस नींबू और तुलसी पत्तों के रस में मिलाकर ताँबे की कटोरी में भरकर धूप में रख दें। यह घोल जब गाढ़ा हो जाए तो मुहाँसों पर लगाएं, काफी लाभ होगा।
  • दो चम्मच दही में एक चम्मच मसूर की दाल भिगोएं। दाल फूल जाए तो पीसकर इसमें थोड़ा सा मक्खन और चुटकी भर हल्दी मिलाकर चेहरे व गर्दन पर लगाएं। लगभग आधे घण्टे बाद गुनगुने पानी से चेहरा थो लें। नियमित यह प्रयोग करने से चेहरे की स्निग्धता और चमक बढेगी।
  • मलाई में नींबू का रस मिलाकर 10-15 मिनट तक चेहरे की मालिश करें। कुछ देर रूककर चेहरा थो लें। कुछ दिनों के प्रयोग से चेहरा दमकने लगेगा।
  • आँखों के नीचे काले गड़ढे पड़ जाएं तो एक भाग नीबूं के रस में चार भाग पानी मिलाकर मालिश करते हुए थोएं। थोड़े दिनों में स्थाहपन मिटने लगता हैं। या फिर सुबह की मुहँ की लार आँखों के नीचे लगाये।
  • एक-दो चम्मच बेसन में तिल का तेल मिलाकर चेहरे पर लगाएं तथा मलकर छूड़ा दें। चेहरे की आभा बढेगी।
  • चेहरे पर चेचक के दाग हों तो मुरदार-श्व॑ंग में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए। इस प्रयोग से गहरे दाग होंगे ते हल्के हो जायेगें और हल्के दाग होंगे तो समाप्त हो जाएंगे।
  • माता के दाग दूर करने के लिए नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करें।
  • खीरा व ककड़ी का रस मिलाकर मलने से आँखों के नीचे का स्याहपन मिटता हैं।
  • ग्लिसरीन, नींबू का रस तथा गुलाबजल बराबर मात्रा में लेकर घोल बनाकर रख लें। सर्दी के दिनों में चेहरे पर लगाने का यह अच्छ लोशन हैं। त्वचा की खुश्की टूर तो होगी ही, त्ववा के रोग भी खत्म होंगे।
  • संतरे और नींबू के छिलके सुखाकर महीन पीसें तथा इसमें दूध मिलाकर गाढ़ा लेप बनाएं। इसे चेहरे या पूरे शरीर पर लगाकर सूखने दें फिर स्नान करें। शरीर कान्तिमान होने लगेगा।
  • नींबू व संतरे के सूखे छिलकों के चूर्ण में दही, बेसन तथा गुलाबजल मिलाकर लेप बनाएं तथ चेहरे पर मलें। मुहासे और झाँइयों से छुटकारा मिलेगा। यदि इसे पूरे शरीर में उबटन की भाँति लगाया जाए तो त्वचा का रंग साफ होकर मुलायमियत आती हैं।
  • नींबू का रस, शहद, मैद और बेसन चारों समान मात्रा में लेकर किचित पानी के साथ गाढ़ा लेप बनाकर कुछ देर तक चेहरे पर अच्छी तरह मलें। नियमित प्रयोग से कुछ दिनों में चेहरे से अनावश्यक रोएं साफ हो जाएंगे।
  • सूखे आँवलों के कपड़छन चूर्ण में उचित मात्रा में दही मिलाकर चेहरे पर अच्छी तरह लगाकर सूखने दें। सूखने के बाद लेप को मसलकर छुड़ा दें। अब गर्म पानी से भीगे तौलिए से चेहरे की सैंक करें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुहाँसे तो ठीक ही होंगे, चेहरा साफ, सुंदर, चमकदार भी दिखेगा।
  • रात सोने से पूर्व चेहरे पर मलाई मलने से ख़िग्धता बढ़ती हैं।
  • काली मिर्च, लाल चंदन तथा जायफल समान भाग लेकर पानी में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुहाँसों से छुटकारा मिल जाता हैं।
  • गोबर के रस में पीसकर लेप करने से त्वचा की विकृतियाँ ठीक हो जाती हैं और वर्ण निखरता हैं।
  • त्वचा रूखी-सूखी रहती हो तो आधा चम्मच शहद में आधा चम्मच जैतून का तेल तथा आधा चम्मच पिसी मुल्तानी मिट्टी मिलाकर गाढ़ा लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं तथा आधा घण्टा बाद धो दें।
  • फटे होंठों पर अरण्डी के तेल में गुलाबजल और शहद मिलाकर लगाये या फिर नाभि पर नीम का तेल लगाने से होठ मुलायम होते हैं।
  • सूर्य की गर्मी से चेहरे की त्वचा झूलस जाए तो दही मैं गुलाबजल मिलाकर लगाएं। खीरा के रस में ग्लिसरीन मिलाकर लगाने से भी फायदा होगा।
  • दो तोला दूध मे चार कली लहसुन उबालकर चेहरे पर मलने से चेहरा खिल उठता हैं।
  • पलकों पर सोते समय एरण्ड के तेल की हल्की मालिश करने से पलकें घनी होती हैं।
  • दाँतों को स्वस्थ और सुन्दर बनाए रखने के लिए नियमित रूप से नीम या बबूल की दातून करना श्रेष्ठ उपाय हैं।
  • भोजन व नाश्ते के बाद गिलास पानी में आधे चम्मच नमक घोलकर कुल्ला करते रहने से भी दाँत निरोगी रहते हैं।
  • दाढ़ी बनाने के लिए , पहले गर्म पानी से चेहरा भिगो लीजिए, इसके बाद थोड़ा सा कच्चा दूध लेकर चेहरे पर अच्छी तरह मलिए। अब रेजर चलाइए, एकदम चिकनी दाढ़ी बनेगी। दाढ़ी बनाने के बाद क्रीम वगैरह लगाने की जरूरत एकदम समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि कच्चा दूध अव्वल दर्जे का 'क्लीनिंग एजेंट' हैं। कचे दूध के इस्तेमाल से चेहरे की ख्रिग्धता और सौन्दर्य में वृद्धि होगी, सो अलग।
  • स्नान करने के लिए, एक नींबू एक छोटी कटोरी भर कचे दूध में निचोड़ दीजिए, बस अच्छे से अच्छे साबुन से भी बेहतर स्नान सामग्री तैयार हैं। नींबू नियोड़ने के बाद जब दूध फट जाए तो एक साफ सूती कपड़े का टुकड़ा इसमें भिगोकर शरीर पर अच्छी तरह रगड़ते हुए फेरिए और स्नान कर लीजिए। यह हैं आपका एकदम सौ प्रतिशत सम्पूर्ण स्नान।
काले-घने और घुँघराले बालों के लिए कुछ प्रयोग
 
बालों को स्वस्थ रखने के लिए आहार-विहार पर ध्यान देना सबसे जरूरी बात हैं। स्वास्थ्य के लिए जरूरी आहार-विहार की पर्याप्ति चर्चा विभिन्न प्रकरणों में आ चुकी हैं। किसी विशेष बीमारी की वजह से बालों के पकने या झड़ने की समस्या हो तो उसका इलाज कराएं। बालों की समस्याओं से निजात पाने के लिए होम्योपैथी में बहुत ही कारगर इलाज मौजूद हैं, बशर्ते लक्षणों से मेल खाती उपयुक्त दवा का चयन हो जाए। जड़ी-बूटियों से आंतरिक चिकित्सा के लिए कुछ कारगर नुखखे तो खैर आगे दिए ही जा रहे हैं।
                                आंतरिक चिकित्सा के साथ-साथ बालों की बाहरी देखभाल भी जरूरी हैं, पहली बात यह कि सिर की मालिश प्रतिदिन या एकाथ दिन के अंतर पर अवश्य करें। इससे त्वचा में रक्त संचार सुचारू रूप से होगा और बालों की जड़ी तक पोषण आसानी से पहुँचेगा। मालिश के लिए आए दिन तेल बदल-बदलकर न इस्तेमाल करें। कोई एक अपने अनुकूल अच्छा तेल चुन लें और नियमित इसी से मालिश करें। सिर धोने की कई देशी विधियाँ आगे दी गई हैं, उन्हें अपनाए तो अच्छा लाभ मिलेगा। धूम्रपान, क्रोध, अधिक रात्रि जागरण, वनस्पति घी, तेल, मिर्च,मसालों से जितना बच सकें, उतना ही बेहतर रहेगा। खान-पान का सुधार रखते हुए भोजन में आँवले का नियमित प्रयोग बालों की सेहत के लिए विशेष लाभप्रद हैं। आँवले के स्थान पर आमलकी रसायन का भी प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता हैं। इतनी सावधानियों के साथ आप जरूरी लगे तो नीचे दिए जा रहे नुस्खें आजमाएं और बालों की समस्याओं से निजात पाएं।
  • आपके बाल झड़ना शुरू हो रहें हो तो आँवले के रस में शहद मिलाकर सिर में मालिश करें।
  • ऑँवला चूर्ण मेंहदी के साथ पीसकर बालों में लेप करने से बाल घने और काले होते हैं।
  • पिसी हुई सूखी मेंहदी 1 कप, कत्था 1 चम्मच, दही 1 चम्मच, नींबू का रस 1 चम्मच, पिसा कॉफी पाउडर चम्मच, आँवला चूर्ण 1 चम्मच, ब्रह्मी बूटी का चूर्ण 1 चम्मच, सूखे पोदीने का चूर्ण 1 चम्मच |
  • इन सभी चीजें को एक में मिलकर गाढ़ा लेप बन सकें, इतने पानी में भिगों देँ। दो ढाई घण्टे बाद इस लेप को सिर में बालों की जड़ों तक लगाएं और घण्टे भर बाद सूख जाने पर सिर को मुल्तानी मिट्टी या बेसन से थो दें। इस प्रयोग से आपके बाल काफी सुंदर दिखेंगे। बालों में रंग न लाना हो तो कत्था और कॉफी पाउडर का इस्तेमाल न करें। बालों को सुंदर, लंबे, घने और काले बनाए रखने का यह एक अच्छा उपाय हैं, बशर्ते साबुन का प्रयोग बंद कर दिया जाए।
  • उचित आहार-विहार के साथ एक चम्मच साबुत काले तिल तथा एक चम्मच भृंगराज पंचांग कपड़छन चूर्ण करके फॉँक लें तथा ऊपर से ताजा पानी पिएं। 6 माह तक निरंतर यह प्रयोग करने से बालों का असमय पकना व झड़ना रूकेगा इस के साथ सायंकाल सोने से पूर्व सूर्यतप्त नीले नारियल तेल की भी मालिश करें तो अच्छा परिणाम मिलेगा।
  • 200 ग्राम सूखे आँवले, 150 ग्राम शिकाकाई, 100 ग्राम कपूर कचरी, 100 ग्राम नागरमोथा, 40 ग्राम रीठा तथा 40 ग्राम कपूर लेकर सबका महीन कपड़छन चूर्ण बनाकर रख लें ।
  • इसमें से 50 ग्राम चूर्ण लेकर लगभग 400 ग्राम उबलते पानी में 15-20 मिनट तक भिगोएं। तदन्तर मसल-छानकर इस जल से बालों में जड़ों तक मलें। इस प्रयोग से बाल मजबूत होते हैं, उनका झड़ना रूक जाता हैं तथा काले, मुलायम बने रहते हैं। इससे लीक-जूँ भी नष्ट होती हैं।
  • चमेली के पत्ते, चित्रक के पत्ते, लाल कनेर के पत्ते तथा करंज के पत्ते- प्र्येक 250-250 ग्राम लेकर जल में पीसकर कलल्‍क बनाएं। अब 4 किलो तिल का तेल लेकर इसमें कल्क मिलाकर 16 किलो पानी डालकर पकाएं। तेल सिद्ध हो जाने पर छानकर रख लें।                   इस तेल की मालिश से सिर या दाढ़ी के, जहाँ भी बाल उड़ गए हों, वहाँ जल्दी ही पुनः उगने लगते हैं। इस तेल की कुछ दिनों तक नियमित रूप से रूई के फोहे से मालिश करनी चाहिए।
बाल चकत्तों के रूप में उड़ गए हों, गंज हो या पक रहे हों तो निम्न चिकित्साक्रम अपनाना चाहिए -
  1. इसके 1 घण्टे बाद 3 ग्राम शतावरी चूर्ण 10 ग्राम त्रिफला घृत में मिलाकर दूध के साथ प्रातः तथा इसी तरह सांय सेवन करें।
  2.  त्रिफला, काले तिल तथा भृंगराज सभी सम्भाग लेकर चूर्ण बनाकर इसके बराबर पिसी मिश्री मिलाकर रख लें। इसमें से 10 ग्राम चूर्ण की एक मात्रा भोजन के बाद लें।
  3. सिर में प्रतिदिन सांयकाल सीने सै पूर्व भृंगराज तेल की मालिश करें।
  4. यूँ चाय पीना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हैं। परंतु यदि आप आदतवश चाय पीते ही हैं तो चाय बनाने के बाद चाय की पत्ती का एक अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। उबली हुई चाय पत्ती को फेंकने के बजाए इसे पुनः: उबालकर छान लें और ठण्ड़ा होने दें। अब इसमें नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाएं तथा मल-मलकर सुखाएं, फिर थो डालें। इससे बाल साफ और चमकदार होते हैं।
  5. नींबू संतरे का रस और दही मिलाकर बालों में मलें और पानी से थो दें। यह प्रयोग बालों को सुन्दर और घना बनाने में उपयोगी हैं।
  6. किसी खेत या तालाब में साफ जगह पर खोदकर फुट नीचे की मिट्टी निकालकर रख लें। काली मिट्टी हो तो अति उत्तम। आवश्यकता भर यह मिट्टी पानी में गलाकर कंकड़-पत्थर छानकर साफ घोल बनाएं। इस घोल से नित्य सिर धोने से बाल खिल उठते हैं और घने, लम्बे, मुलायम बने रहते हैं।
  7. दही में नींबू का रस मिलाकर बालों में मलें तथा धूप में सुखाएं। सूखने पर थी दें। इससे बाल हल्के-फुल्के और फूले-फूले से रहेंगे।
  8. यदि आप खरे पानी वाले इलाके में रहते हों तो शैम्पू आदि करने के बाद बालों को लाल सिरके से धोएं।
  9. शैम्पू में थोड़ी सी दही मिलाकर बालों में मलकर 10-15 मिनट बाद धोने से आप के बाल चमकदार दिखेंगे।
  10. यदि डाई करने या रंगने की वजह से बालों में रूखेपन की शिकायत हो तो दूध में केला मथकर बालों में लगाएं। पका पपीता भी लगा सकते हैं। इससे रूखापन दूर हो जाएगा।
शरीर और साँसों की बदबू भगाइए
 
शरीर और साँसों में बदबू आने के आंतरिक और बाह्य दोनों तरह के कारण हो सकते हैं। एक तो खान-पान की गड़बड़ी या किसी रोग की वजह से बदबू आ सकती हैं, दूसरे शरीर और दाँतों व मुँह की साफ- सफाई में की जा रही लापरवाही से भी बदबू की समस्या पैदा हो सकती हैं। बदबू की समस्या के यदि शारीरिक विकार, जैसे कि - दाँतों, मसूड़ों की खराबी, पेट की गड़बड़ी, टॉन्सिल की सूजन- पस॒, नाक व साइनस विकार, श्वासनली व फेफड़ों के विकार, मुँह के छाले रक्त की कमी, मधुमेह, यकृत-गुर्दों की बीमारी, पीनस आदि कारण हों तो आहार-विहार ठीक रखते हुए आवश्यक उपचार करना चाहिए।
  • बेलपत्र, आँवला, हरड़ चूर्ण मिलाकर शरीर में लेप करके कुछ देर बाद थो दें। इससे शरीर और पसीने की दर्गध से छुटकारा मिलता हैं।
  • साँस में बदबू आती हो तो ऐसे लोगों को नीम की दातून नियमित करनी चाहिए। इसके अलावा खाने के बाद मुँह अच्छी तरह साफ रखें।
  • दो चम्मच शहद को गिलास पानी में घोलकर गरारा करने से हफ्ते भर में मुँह की दुर्गन्‍्ध से आसानी से छुटकारा मिल जाता हैं। इसके साथ दाँत की सफाई और खान-पान पर भी ध्यान दें तो उत्तम हैं।
  • मुँह की दुर्गंध दूर करने के लिए दोनों समय भोजन के बाद अथवा यदा-कदा सौंफ चबाना चाहिए। इससे हाज़मा भी दुरुस्त होता हैं।
  • नींबू को कच्चे दूध में नियोड़ कर, इसका लेप करके नहाये, पसीने की दुर्गन्‍ध दूर होगी।
कुछ नुस्खे हाथ-पैरों की देखभाल के लिए

  • एड़ियाँ फटती हों तो अरंडी का तेल, गुलाबजल तथा नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर एड़ियों पर दिन में दो-तीन बार मलें।
  • रात को सोने से पहले नारियल का तेल गुनगुना करके बिवाइयों में लगाए तथा मोजे पहनकर सो जाएं। सबेरे गर्म पानी में पैरों को 15 मिनट तक डुबोएं तथा किसी ब्रश से हल्के-हल्के रगड़कर एड़ियाँ साफ करें। इसके उपरांत भीगेै पैरों को कपड़े से सुखाकर कोई तैलीय चीज लगा लें।
  • एक चम्मच देशी मोम तथा एक चम्मच देशी घी गर्म करें। दोनों एकसार हो जाएं तो इस मिश्रण की गर्म-गर्म बूँदें बिवाइयों में टपकाएं। यह प्रयोग प्रतिदिन तब तक करें जब बिवाइयों से छुटकारा न मिल जाए। 
  • जैतून का तेल सहने योग्य गर्म करके नाखूनों को कुछ दूर तक उसमें डुबाए रहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से आपके नाखून मजबूत होंगे।
  • 100 ग्राम सरसों के तेल में 25 ग्राम मौम डालकर गर्म करें तथा एक उबाल आने के बाद उतारकर ठण्डा होने से पूर्व ही किसी चौड़े मुँह के पात्र में रख लें।
  • इसे वैसलीन की करह इस्तेमाल करें, त्वचा नहीं फटेगी। यदि फट रही हो तो ठीक हो जाएगी।
  • सर्दी के मौसम में या पानी में काम करने से हाथ-पैरों की त्वचा फटती हो तो ग्लिसरीन में नींबू का रस मिलाकर मलना चाहिए।
  • नींबू के छिलके नाखूनों पर मलने से नाखून चमकदार होते हैं।
  • हथेलियों, कोहनी और एड़ियों का कालापन मिटाने और मैल हटाने के लिए नींबू के छिलकों को प्रभावित हिस्सों पर घिसकर गुनगुने पानी में धोन चाहिए।
कुछ अन्य उपचार
हाथ पैर में कम्पन ➧ लहसुन की कली का पेस्ट, तिल का तेल और सेधां नमक मित्राकर दिन में दो बार सेवन करे।मुँहासे दूर करने के लिए - संतरे के छिलको को धूप में सुखाकर बारीक पीस लें। इसके एक चम्मच में गुलाबजल मिलाकर चेहरे पर 5 मिनट के लिए लगाएं तथा बाद में चेहरा धो लें।
दस्तों के लिए मोटी सौंफ तथा जीरा बराबर मात्रा में लेकर हल्का सा भून कर पीस ले, दिन में तीन बार सादे पानी के साथ सेवन करे।
गले की खराश एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच सिरका व थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर गरारे करे।
सर्दी - जुकाम, खांसी ठीक करने के लिए 2 चम्मच शहद और उसके बराबर मात्रा में अदरक रस मिलाकर बार बार चाट्टें।
हिचकी आने पर थोड़ा सा गर्म घी पी लेने से तुरन्त राहत
मुहँ से दुर्गेध भुना जीरा मुहँ में डाले।
स्मरण शक्ति के लिए दो अखरोट की गिरी के साथ दस किशमिश का सेवन
जोड़ो मे दर्द  प्याज के रस को सरसों के तेलत्र में मिलाकर मालिश करना ।
तैलीय त्वचा के लिए नींबू का रस तथा गुलाब जल मिलाकर चेहरे पर लगाएँ।
पेट के कीड़ो के लिए ➧अजवायन के चूर्ण को छाछ के साथ सेवन।
मुंह का बिगड़ा स्वाद ठीक करने के लिए लौंग को मुंह में रखकर चूसें।
फोड़े - फुन्सियों हेतु उपचार बेल की ताजी पत्तियों को अच्छी तरह धोकर पीसकर, फोड़े - फुन्सियों पर ल्रगाकर पट्टी बाँधे।
बदन दर् 200 ग्राम सरसों के तेत्र में त्रअभग दस ग्राम कपूर मिलाकर एक कांच की शीशी में भरकर धूप में रख दें। जब उसमें कपूर पूरी तरह घुत्र जाए तो इस तेल की माल्रिश से शरीर के हर प्रकार के दर्द में राहत मिलती है। 
चीटी के लिए  चीनी के डब्बे में तीन या चार लौंग डालने से चीटी नहीं आती ।
बालो के लिए मेथी के बीज को उबालकर नारियल्र तेल मैं रात भर के लिए भिगों दे, इस तेल से रोजाना सुबह बालों की मसाज करे, यह बालों को पतला होने और टूटने से बचाता है।
पानी पिने का सही वक्‍त 3 गिलास सुबह उठने के बाद ऊर्जा बढाने के लिए, गिलास नहाने के बाद...... ब्लड़ प्रेशर का खत्मा करता है, 2 गिलास खाने से 40 मिनट पहले ...... हाजमे को दुरूस्त रखता है, आधा गिलास सोने से पहले...... हार्ट अटैक से बचाता है।
मोटापा के लिए - गर्म पानी मेँ शहद के साथ दालचीनी का मिश्रण वचन घटाने में फायदेमंद होता है।
शरीर का दर्द रात को सोते समय आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण गर्म दूध के साथ सेवन करने से शरीर के सारे दर्द ठीक होते है।
कान का बहना सरसों के तेल में लौंग अथवा लहसुन अच्छी प्रकार से जलाकर कान में डालने से दर्द, मवाद बहना तथा सामान्य घाव ठीक हो जाता है ।