रविवार, 7 अप्रैल 2019

वेदों का महत्व

✍️ संकलक ➩  शुभंकर मण्डल

 ओ३म्


वेदों का महत्व

                       
जैसे दही में मक्खन, मनुष्यों में ब्राह्मण, ओषधियों में अमृत, नदियों में गङ्गा और पशुओं में गौ श्रेष्ठ है, ठीक इसी प्रकार समस्त ग्रंथ में वेद सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

वेद शब्द 'विद्' धातु से करण वा अधिकरण में 'घञ्' प्रत्यय लगाने से बनता है। इस धातु के बहुत-से अर्थ हैं जैसे 'विद ज्ञाने','विद सत्तायाम्','विद विचारणे','विद्लृ लाभे,'विद चेतनाख्याननिवासेषु'(१.अदादि,२.दिवादि, ३.रुधादि, ४.तुदादि,५.चुरादिगण।)―अर्थात् जिनके पठन, मनन और और निदिध्यासन से यथार्थ विद्या का विज्ञान होता है, जिनके कारण मनुष्य विद्या में पारङ्त होता है, जिनसे कर्त्तव्याकर्त्तव्य,सत्यासत्य,पापपुण्य,धर्माधर्म का विवेक होता है, जिनसे सब सुखों का लाभ होता है और जिनमें सर्वविद्याएँ बीजरुप में विद्यमान हैं―वे पुस्तक वेद कहाती हैं।

See also: वेद स्वत:प्रमाण हैं?

वेद ईश्वरीय ज्ञान है। यह ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में मानवमात्र के कल्याण के लिए दिया गया था।वेद वैदिक-संस्कृति के मूलाधार हैं। वे शिक्षाओं के आगार और ज्ञान के भण्डार हैं। वेद संसाररुपी सागर से पार उतरने के लिए नौकारुप हैं। वेद में मनुष्यजीवन की सभी प्रमुख समस्याओं का समाधान है। अज्ञानान्धकार में पड़े हुए मनुष्यों के लिए वे प्रकाशस्तम्भ हैं, भूले भटके लोगों को वे सन्मार्ग दिखाते हैं। पथभ्रष्टों को कर्त्तव्य का ज्ञान प्रदान करते हैं,अध्यात्मपथ के पथिकों को प्रभु-प्राप्ति के साधनों का उपदेश देते हैं। सक्षेप में वेद अमूल्य रत्नों के भण्डार हैं।
वेद मानवजाति के सर्वस्व हैं।
महर्षि अत्रि कहते हैं➨
“नास्ति वेदात् परं शास्त्रम्।” (अत्रिस्मृति १५१)
अर्थात वेद से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है।

इसलिए महर्षि मनु के अनुसार ➨
“योऽनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरुते श्रमम् ।
स जीवनन्नेव शूद्रत्वमाशु गच्छति सान्वयः ।।”(मनुस्मृति २.१६८)
अर्थात जो द्विज (ब्राह्मण,क्षत्रीय और वैश्य) वेद न पढ़कर अन्य किसी शास्त्र वा कार्य में परिश्रम करता है, वह जीते-जी अपने कुलसहित शीघ्र शूद्र हो जाता है।

वेद के मर्मज्ञ और रहस्यवेत्ता महर्षि मनु ने अपने ग्रन्थ में स्थान-स्थान पर वेद की गौरव-गरिमा का गान किया है। वे लिखते हैं ➨
“सर्वज्ञानमयो हि सः।”(मनुस्मृति २.७)
अर्थात वेद सब विद्याओं के भण्डार हैं।
मनुजी ने तो यहाँ तक लिखा है ➨
“तप करना हो तो ब्राह्मण सदा वेद का ही अभ्यास करे, वेदाभ्यास ही ब्राह्मण का परम तप है” (मनुस्मृति २/१६६)।

महर्षि याज्ञवल्क्य कहते हैं ➨
“यज्ञानां तपसाञ्चैव शुभानां चैव कर्मणाम् ।
वेद एव द्विजातीनां निःश्रेयसकरः परः ।।”(याज्ञ० स्मृ० १/४०)
अर्थात यज्ञ के विषय में, तप के सम्बन्ध में और शुभ-कर्मों के ज्ञानार्थ द्विजों के लिए वेद ही परम कल्याण का साधन है।

अत्रिस्मृति श्लोक ३५१ ➨
“श्रुतिः स्मृतिश्च विप्राणां नयने द्वे प्रकीर्तिते ।
काणःस्यादेकहीनोऽपि द्वाभ्यामन्धः प्रकीर्तितः ।।”
अर्थात श्रुति=वेद और स्मृति―ये ब्राह्मणों के दो नेत्र कहे गये हैं। यदि ब्राह्मण इनमें से एक से हीन हो तो वह काणा होता है और दोनों से हीन होने पर अन्धा होता है।

बृहस्पतिस्मृति ७९ में वेद की प्रशंसा इस प्रकार की गई है ➨
“अधीत्य सर्ववेदान्वै सद्यो दुःखात् प्रमुच्यते।
पावनं चरते धर्मं स्वर्गलोके महीयते।।”
अर्थात वेदों का अध्ययन करके मनुष्य शीघ्र ही दुःखों से छूट जाता है वह पवित्र धर्म का आचरण करता है और स्वर्गलोक में महिमा को प्राप्त होता है।

प्राचीन समस्त स्मृतिकार, दर्शन शास्त्रकार,उपनिषत्कार तथा रामायण, महाभारत, श्रौत-सूत्र,गृह्यसूत्रादि के लेखक यहां तक कि पुराणकार स्पष्टतया वेदों को ईश्वरीय तथा स्वत: प्रमाण और अन्य सब ग्रंथों को परत: प्रमाण मानते हैं। उदाहरणार्थ मनु महाराज ने अपनी मनुस्मृति में कहा है ➨
“वेदोऽखिलो धर्ममूलम्।”
अर्थात ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद नामक सम्पूर्ण वेद धर्म का मूल है।वही धर्म के विषय में स्वत: प्रमाण है।
मनुस्मृति २.१३ में लिखा है ➨
धर्म जिज्ञासमानानां, प्रमाणं परमं श्रुति:।।
अर्थात जो धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए परम प्रमाण वेद ही है।
मनु महाराज ने वेदों का महत्व बताते हुए यहां तक कह दिया है ➨
पितृदेव मनुष्याणां, वेदश्वक्षु: सनातनम्।अशक्यं चाप्रमेयं च,वेदशास्त्रमिति व्यवस्थिति:।।१२.९४।।
चातुर्वर्ण्य त्रयो लोका:,चत्वारश्चाश्रमा: पृथक्।भूतं भव्यं भविष्यच्च,सर्वं वेदात्प्रसिद्ध्यति।।१२.९७।।
विभर्ति सर्वभूतानि,वेदशास्त्रं सनातनम्। तस्मादेतत्परं मन्ये,यजन्तोरस्य साधनम्।।१२.९९।।

सारांश यह है कि वेद पितर,देव, मनुष्य सबके लिये सनातन मार्ग दर्शक नेत्र के समान है। उसकी महिमा का पूर्णतया प्रतिपादन करना अथवा उसको पूर्णतया समझ लेना बड़ा कठिन है। चारों वर्ण,तीन लोक,चार आश्रम,भूत,भविष्यत, और वर्तमान विषयक ज्ञान वेद से ही प्रसिद्ध होता है। सनातन (नित्य) वेद सभी प्राणियों को धारण करता है,यही सब मनुष्यों के लिए भवसागर से पार होने का साधन है।
 
➽ ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों का महत्व➧
ब्राह्मण ग्रंथों में और उपनिषदों में भी वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानने का स्पष्ट प्रतिपादन है।
यथा शतपथ ब्राह्मण तथा तदन्तर्गत वृहदारण्यकोपनिषद् में स्पष्ट कहा है कि ➨
एतस्य वा महतो भूतस्य निश्वसितमेतत्।
यत् ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽथर्ववेद:।।(वृहदार० ४.५.११)
अर्थात ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद उस महान परमेश्वर के नि:श्वास रूप है।
शतपथ ब्राह्मण में कहा है कि ➨
स(प्रजापति:) श्रान्तस्तेपानो ब्रह्मैव प्रथममसृजत त्रयीमेव विद्याम्।।
अर्थात प्रजापति परमेश्वर ने अपने तप वा पूर्णज्ञान से वेदों का निर्माण किया जिसे त्रयीविद्या के नाम से भी कहा जाता है क्योंकि उनमें ज्ञान,कर्म और उपासना का प्रतिपादन है।
मुण्डकोपनिषद में वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानने का स्पष्ट प्रतिपादन इस प्रकार के शब्दों में है ➨
अग्निर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यो,
दिश: श्रोत्रे वाग् विवृताश्च वेदा:।।(मु० २.१.४)
तस्मादृच: सामयजुंषि दीक्षा:।।(मु० २.१.७)
अर्थात उस ईश्वर का मस्तक मानो अग्नि है, सूर्य और चन्द्र उसके नेत्रों के समान है। दिशाएं उनके कानों के तुल्य है।वेद मानो उसकी वाणी से निकले अर्थात ईश्वरीय है।
तण्ड्य ब्राह्मण तथा तदन्तर्गत छान्दोग्योपनिषद् में छन्दों के नाम से वेदों की महिमा इन शब्दों में बताई गई है ➨
"देवा वै मृत्योर्बिभ्यतस्त्रयीं विद्यां प्राविशन् ते छन्दोभिरच्छादयन्,यदेभिरच्छादयन,तच्छन्दसां छन्दस्त्वम्।(छान्दोग्य० १.४.२)
अर्थात देवों (सत्यनिष्ठ विद्वानों) ने मृत्यु से भयभीत होकर त्रयी विद्या(ज्ञान, कर्म, उपासना का प्रतिपादन करते वाले वेद)का आश्रय लिया। उन्होंने वेद-मन्त्रों से अपने को आच्छादित कर लिया इसलिये इन्हें छन्द के नाम से कहा जाता है। इससे भी ब्राह्मणों और उपनिषदों के लेखकों की वेदों के विषयों में अत्यधिक श्रद्धा सूचित होता है इसमें कोई संदेह नहीं।

➽ महाभारत में वेदों का महत्व➧
महाभारत में महर्षि वेदव्यास जी ने वेद को नित्य और ईश्वरकृत अनेक स्थानों पर बताया है और उनके अर्थसहित अध्ययन पर बड़ा बल दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि ऋषियों तथा पदार्थों के नाम, वेदों से ही लेकर रखे गये, महाभारत के निम्न श्लोक इस विषय में उल्लेखनीय हैं।
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा ।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।”(महा० शान्ति० २३२/२४)
अर्थात सृष्टि के आरम्भ में स्वयम्भू परमेश्वर ने वेदरुप नित्य दिव्यवाणी का प्रकाश किया, जिससे मनुष्यों की प्रवृत्तियाँ होती हैं।
इसी अध्याय में आगे कहा है ➨
नानारुपं च भूतानां,कर्मणां च प्रवर्तनम्।
वेदशब्देभ्य एवादौ, निर्मितीते स ईश्वर:।।
नामधेयानि चर्षीणां,याश्च वेदेषु दृष्टय:।
शर्वर्यन्ते सुजातानां,तान्येवैभ्यो ददात्यज:।।
(म० भा० शान्तिपर्व मोक्ष धर्मपर्व अ० २३२.२५.२७)
अर्थात ईश्वर ने वस्तुओं के नाम और कर्म वेदों के शव्दों से निर्माण किये। ऋषियों के नाम पर और ज्ञान भी प्रलय के अन्त अर्थात सृष्टि के प्रारम्भ में वेदों के द्वारा दिये गये। वेदों के अर्थ सहित अध्ययन पर बल देते हुए महर्षि व्यास ने कहा है कि ➨
यो वेदे च शस्त्रे च, ग्रन्थधारणतत्पर:।।
न च ग्रन्थार्यतत्वज्ञ:,तस्य तद्धारणं वृथा।।
भारं स वहते तस्य ग्रन्थस्यार्थ न वेत्ति य:।
यस्तु ग्रन्थार्थतत्त्वज्ञो नास्य ग्रन्थागमो वृथा।।
(म० भा० शान्तिपर्व मो० प० अ० ३०५.१३.१४)
अर्थात जो वेद को केवल पढ़ लेता है किन्तु उनके अर्थ और तत्त्व को नहीं जानता उसका इस प्रकार उस-उस ग्रन्थ को धारण कर लेना वा केवल पढ़ लेना केवल भार रुप और निष्फल हो जाता है।अत: वेदादि शास्त्रों को अर्थ और तत्त्व सहित समझने का ही सबको प्रयत्न करना चाहिए।

➽ दर्शन शास्त्रों में वेद का महत्व➧
न्याय,वैशेषिक,सांख्य,योग, मीमांसा और वेदान्त ये छः दर्शन शास्त्र जिन्हें गौतम, कणाद, कपिल, पतंजलि, जैमिनी और वेद व्यास इन ऋषि यों ने बनाया। इन सब दर्शनों में वेदों के महत्व को स्पष्टतया स्वीकार किया गया है। उदाहरणार्थ न्याय दर्शन के "मन्त्रायुर्वेद प्रामाणयवच्च तत्पामाण्यमाप्तप्रामाण्यात्।"(२.१.६७) इत्यादि सूत्रों में परम पिता परमेश्वर का वचन होने और असत्य, परस्पर विरोध और पुनरुक्ति आदि होने से वेद को परम प्रमाण सिद्ध किया गया है।

वैशेषिक शास्त्रकार कणाद मुनि ने ➣
तद् वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम्।(१.१.३)
इस सूत्र द्वारा परमेश्वर का वचन होने से आम्नाय अर्थात वेद की प्रमाणिकता का प्रतिपादन किया है।

सांख्यकार कपिल मुनि ने ➣
“निजशक्त्यभिव्यक्तेः स्वतःप्रामाण्यम्।।”(सांख्य० ५/५१)
अर्थात वेद अपौरुषेयशक्ति से, जगदीश्वर की निज शक्ति से अभिव्यक्त(प्रकट) होने के कारण स्वतःप्रमाण माना हैं।
“न पौरुषेयत्वं तत्कर्तुः पुरुषस्याभावात्।।”(सांख्य ५/४६)
अर्थात वेद पौरुषेय-पुरुषकृत नहीं हैं, क्योंकि उनका रचयिता कोई पुरुष नहीं है। जीव अल्पज्ञ और अल्पशक्ति होने से समस्त विद्याओं के भण्डार वेद की रचना में असमर्थ है। वेद मनुष्य की रचना न होने से उनका अपौरुषेयत्व सिद्ध ही है।

योगदर्शनकार महर्षि पतञ्जलि का कथन है ➣
“स एष पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्।”(योग० १/२६)
अर्थात वह ईश्वर नित्य वेद-ज्ञान को देने के कारण सब पूर्वजों का भी गुरु है।
अन्य गुरु काल के मुख में चले जाते हैं, परन्तु वह काल के बन्धन से रहित है।

वेदांत शास्त्र के करता वेदव्यास जी ने ➣ ”शास्त्रयोनित्वात्।”(वेदान्त० १/१/३) सूत्रों द्वारा परमेश्वर को ऋग्वेदादि रूप सर्वज्ञान भण्डार शास्त्र का कर्ता मानते हुए वेद की नित्यता का प्रतिपादन किया है।
“शास्त्रयोनित्वात्”(१/१/३)
इस सूत्र के भाषाओं में सुप्रसिद्ध श्री शंकराचार्य जी ने जो लिखा है वह इस प्रसंग में महत्वपूर्ण होने के कारण उल्लेखनीय है वह लिखते हैं ➣
ऋग्वेदादे: शास्त्रस्यानेकविद्या स्थानोपबृंहितस्य प्रदीपवत् सर्वार्थावधोतिन: सर्वज्ञकल्पस्य योनि: कारणं ब्रह्म। नहीदृशस्यर्ग्वदादि लक्षणस्य सर्वज्ञगुणाचितस्य सर्वज्ञादन्यत: संभवोऽस्ति।
अर्थात “ऋग्वेदादि जो चारों वेद हैं, वे अनेक विद्याओं से युक्त हैं। सूर्यादि के समान सब सत्यार्थों का प्रकाश करने वाले हैं। उनको बनाने वाला सर्वज्ञत्वादि गुणों से युक्त सर्वज्ञ-ब्रह्म ही है, क्योंकि ब्रह्म से भिन्न कोई जीव सर्वगुणयुक्त इन वेदों की रचना कर सके ऐसा सम्भव नहीं है।”

मीमांसा शास्त्र के कर्ता जैमिनी मुनि तो धर्म का लक्षण ही यह कहते हैं कि ➣
“चोदनालक्षणोऽर्थो धर्म:।”
अर्थात जिसके लिए वेद की आज्ञा है वह धर्म और जो वेद विरुद्ध है वह अधर्म कहलाता है। इस प्रकार समस्त शास्त्र एक स्वर से वेदो की नित्यता और स्वत: प्रमाणता का प्रतिपादन करते हैं।
सिर्फ सनातन वैदिक धर्म में ही नहीं बल्कि और भी बहुत सारे मत संप्रदाय के प्रवर्तक ने वेदों का महत्व स्वीकार किया।

➽ गौतम बुद्ध द्वारा वेद का महत्व➧
वेदों और सच्चे धर्मात्मा वेदज्ञों कि उन्होंने अनेक वचनों में प्रशंसा की है। उदाहरणार्थ सूत्तनिपात २९२ में गौतम बुद्ध ने कहा है ➤
विछा च वेदेहि समेच्चधम्मं।
न उच्चावचं गच्छति भूरिपञ्यो।।
इसका संस्कृत अनुवाद है--
विद्वांश्च वेदै: समेत्य धर्म,
नोच्चावचं गच्छति भूरि प्रज्ञ:।
अर्थात जो विद्वान वेदों के द्वारा धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है उसकी डांवाडोल अवस्था नहीं रहती।
सुत्तनिपात श्लो० १०५९ में वुद्ध की निम्न उक्ति पाली में पाई जाती है ➤
यं ब्राह्मणं वेदगुं अभिजञ्ना,
अकिंचनं कामभवे असत्तं।
श्रद्धा हि सो ओघमिमं अतादि,
निण्णो च पारं अखिलो अकंखो।।
इसका संस्कृत अनुवाद है---
यं ब्राह्मणं वेदज्ञम् अभिज्ञातवान्
अकिंचनं कामभवे असक्तम्।
श्रद्धा हि स ओघमिमम् आतारीत्
तीर्णश्च पारम् अखिल: अकांक्ष:।।
अर्थात जिसने उस वेदज्ञ ब्राह्मण को जान लिया जिसके पास कुछ धन नू और जो सांसारिक कामनाओं में आसक्त नहीं, वह आकांक्षारहित सचमुच इस संसार सागर से तर जाता है। इसमें सच्चे वेदज्ञ ब्राह्मणों की प्रशंसा की गई है।
 
➽ सिक्ख गुरुओं की वाणी में वेदों का महत्व➧
सिक्ख मत के प्रर्वतक गुरु नानक तथा अन्य गुरुओं की वाणी में वेदों का महत्व अनेक स्थानों पर स्पष्टतया वर्णित है-- उदाहरणार्थ गुरु ग्रन्थ साहेब के निम्नलिखित वचनों को पढ़िए ➤
१. ओंकार वेद निरमाये।(राग रामकली महला १ ओंकार शब्द १)
अर्थात ईश्वर ने वेद वनाए।
२. हरिआज्ञा होए वेद, पाप पुण्य विचारिआ।।(महला ५ शब्द १)
अर्थात ईश्वर की आज्ञा से वेद हुए जिससे मनुष्य पाप-पुण्य का विचार कर सके।
३. सामवेद,ऋग्,यजुर,अथर्वण,
ब्रह्म मुख माइया है त्रैगुण।
ताकी कीमत कीत कह न सकै,
को तिड़ बोले जिउ बोलाइदा।।(महला १ शब्द १७)
यहां चार वेदों का नाम लेकर कहा है कि उनकी कीमत (महत्त्व) कोई नहीं बता सकता।वे अमूल्य और अनन्त है।
४. चार वेद चार खानी।।(महला ५ शब्द १७)
अर्थात चार वेद चार खानों के समान (ज्ञान कोष) है।
५. वेद बखान कहहि इक कहिये।
ओह बेअन्त अन्त किन लहिये।।(महला १ अ०३)
अर्थात वेदों की महिमा का क्या वर्णन किया जाये?वे बेअन्त है उनका अन्त किस प्रकार पा सकते हैं?
६. दीवा तले अन्धेरा जाई।
वेद पाठ मति पापा खाई।
उगवे सूरज न जापे चन्द,
जहां गियान (ज्ञान) प्रगास अज्ञान मिटन्त।।
अर्थात वेद के ज्ञान से अज्ञान मिट जाता है उनके पाठ से वुद्धि शुद्ध होकर पापों का नाश हो जाता है।
७. असंख्य ग्रन्थों के होते हुए भी वेद का पाठ सबसे मुख्य है।
८. वेद बखियान करत साधुजन,
भागहीन समझत नांही।।(टोडी महला ५ शब्द १७)
अर्थात साधु-सज्जन वेद का व्याखान करते हैं किन्तु भाग्यहीन मनुष्य कुछ समझता नहीं।
९. कहत वेदा गुणन्त गुणिया,
सुणत् बाला वह विधि प्रकारा।
दृढन्त सुविद्या हरि-हरि कृपाला।।(महला ५.१४)
अर्थात वेदों के पढ़ने से उत्तम विद्या ईश्वर की कृपा से बढ़ती है।

➽ अरब देश के विद्वान लाबी द्वारा वेदों का गुणगान ➧
अफताब के पुत्र और तुर्फा के पौत्र लाबि नामक एक अरबवासी कवि ने जो मोहम्मद साहेब की जन्म के लगभग 2400 वर्ष पूर्व विद्यमान था वेदों का वेदों का गुणगान अरबी भाषा में एक कविता द्वारा किया जिसका हिंदी भाषा में अनुवाद निम्न है  ➤
१. ऐ हिंदुस्तान की धन्य भूमे! तू आदर करने योग्य है क्योंकि तुम में ही ईश्वर ने अपने सत्य ज्ञान का प्रकाश किया है।
२. ईश्वरीय ज्ञान रूप ये चारों पुस्तके (वेद) हमारे मानसिक नेत्रों को किस आकर्षक और शीतल उषा की ज्योति को देते हैं। परमेश्वर ने हिंदुस्तान में अपने ऋषियों के हृदयों में इन चारों वेदों का प्रकाश किया।
३. और वह पृथ्वी पर रहने वाली सब जातियों को उपदेश देता है कि मैंने वेदों में जिस जान को प्रकाशित किया है उसको तुम अपने जीवन में क्रियान्वित करो, उनके अनुसार आचरण करो। निश्चय से परमेश्वर ने ही वेद का ज्ञान दिया है।
४. शाम और यजुर्वेद खजाने हैं जिन्हें परमेश्वर ने दिया है। ऐ मेरे भाइयों ! इनका तुम आदर करो क्योंकि वे मुक्ति का शुभ संदेश देते हैं।
५. इन चारों में से शेष दो ऋक् और अथर्व हमें विश्वभ्रातृत्व का पाठ पढ़ाते हैं। ये दो ज्योति: स्तम्भ हैं जो हमें उस लक्ष्य की ओर अपना मुंह मोड़ने की चेतावनी देती है।

➽ सुप्रसिद्ध पारसी विद्वान द्वारा वेद महिमा गान ➧
सुप्रसिद्ध पारसी विद्वान फर्दून दादा चान जी B.A.LL.B.D.Tg ने “Philosophy of Zoroastrianism and comparative Study of Religions” नामक अपने विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ में वेद के विषय में लिखा है  ➤
“The Veda is a book of knowledge and wisdom, comprising the book of nature,the book of Religion,the Book of prayers,the Book of morals and so on. The word 'Veda'means wit, wisdom, knowledge and truly the Veda is condensed wit,wisdom and knowledge.”(P.100)
अर्थात वेदज्ञान की पुस्तक है जिसमें प्रकृति, धर्म, प्रार्थना, सदाचार इत्यादि विषयक पुस्तकें सम्मिलित है। वेद का अर्थ ज्ञान है और वास्तव में वेद में सारे ज्ञान विज्ञान का तत्व भरा हुआ है।

➽ Prof. Heeren नामक ईसाई विद्वान द्वारा वेद का महत्व➧
Professor Heeren नामक एक सुप्रसिद्ध अनुसंधान विद्वान ऐतिहासिक ने वेदों के विषय में लिखा है कि  ➤
The Vedas stand alone in their solitary splendour serving as beacon of Divine Light for the onword march of humanity. -(Historical Researches Vol. Il P. 127)
अर्थात इसमें सन्देह नहीं कि वेद संस्कृत के प्राचीनतम ग्रन्थ है।उपलभ्यमान सर्व अधिक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में भी उनकी विद्यमानता का स्पष्ट निर्देश पाया जाता है।वे मनुष्यमात्र की उन्नति के लिए अपनी अद्भुत शान में दिव्य प्रकाश स्तम्भ का काम देते हैं।

➽ Leon Delos द्वारा वेद का महत्व➧
१४ जुलाई १८८४ को पेरिस आयोजित (International Literary Association) में निबन्ध पढ़ते हुए Leon Delos नामक France के सुप्रसिद्ध विद्वान ने घोषणा की ➤
“The Rigveda is the most sublime conception of the great high ways of humanity.”
अर्थात ऋग्वेद मनुष्य मात्र की उच्च प्रगति और आदर्श की उच्चतम कल्पना है।

➽ थोरियो द्वारा वेद का महत्व➧
थोरियो नामक अमरीका के सुप्रसिद्ध विद्वान् लेखक ने वेदों के विषय में निम्न उदाहरण प्रकट किया ➤
“What extracts from the Vedas I have read fall on me like the light of a higher and purer luminary which describes a loftier course through a purer stratum—free from particulars,simple, universal;the Vedas contain a sensible account of God.”(quoted here from “Mother America” by Swami Omkar P.9)
इसका भाव यह है कि मेंने वेदों के जो उद्धरण पढ़ें है वे मुझ पर एक उच्च और पवित्र ज्योति: पुञ्ज के प्रकाश की तरह पड़ते हैं जो एक उत्कृष्ट मार्ग का वर्णन करता है। वेदों के उपदेश सरल, देश वा जाति विशेष के इतिहास से रहित और सार्वभौम है तथा उनमें ईश्वर विषयक युक्तियुक्त विचार दिये गये हैं।

➽ Mr. Brown द्वारा वेद का महत्व➧
Mr. W. D. Brown नामक एक अंग्रेज विद्वान ने अपने “Superiority of the Vedic Religion” नामक ग्रन्थ में वैदिक धर्म के विषय में जो लिखा है वह स्वर्णक्षरों में उल्लेख करने योग्य है। वे लिखते हैं ➤
“It (Vedic Religion) recognizes one god. It is a thoroughly scientific religion where religion and science meet hand in hand. Here theology is based upon science and philosophy.”
अर्थात वैदिक धर्म केवल एक ईश्वर का प्रतिपादन करता है।यह एक पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म है जहां धर्म और विज्ञान हाथ में हाथ मिलाकर चलते हैं। यहां धार्मिक सिद्धांत, विज्ञान और philosophy पर अवलम्बित हैं।

➽ आयर के डां. जेम्स कजिन्स की श्रद्धांजलि➧
डां. जेम्स कजिन्स नामक आयर के सुप्रसिद्ध कवि, कलाकार, और दार्शनिक कवि ने “Path of Peace” नामक पुस्तक में वैदिक आदर्श की उच्चता का वर्णन करते हुए लिखा ➨
“On that (Vedic) ideal alone, with its inclusiveness which absorbs and annihilates the causes of antagonism,its sympathy which wins hatred away from itself,it is possible to rear a new earth in the image and from itself,it is possible to rear a new earth in the image and likeness of the eternal heavens.”('Path to peace' by Dr. James Cousins P.66)
➽ रुस के जगद्विख्यात् Tolstoy की वेदों पर श्रद्धा ➧
रुस निवासी Leo Tolstoy जगत्प्रसिद्ध विचारक और लेखक थे जिनकी शताब्दी इस वर्ष संसार के सब प्रदेशों में श्रद्धापूर्वक मनाई गई। अलेक्जेंडर शिफमान नामक ताल्स्ताय संग्रहालय के अनुसंधान विद्वान् ने “Leo Tolstoy and the Indian Epics” शीर्षक का जो लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपवाया है उसके निम्नलिखित उद्धरणों से Leo Tolstoy की वेदों पर श्रद्धा प्रकट होता है।शिफमान ने लिखा है ➠
“Leo Tolstoy was deeply interested in ancient Indian literature and its great epics. The themes of the Vedas were the first to attract his attention.”
“Appreciating the profoundity of the Vedas, Tolstoy gave particular attention to those cantos which deal with the problems of ethics, a subject which interested in deeply. He subscribed to the idea of human love which pervades the Vedas,with their humanism and praise of peaceful labour. Tolstoy the artist was moreover delighted with the poetic treasure and artistic imagery which distinguish those outstanding Indian epics.”
“He (Tolstoy) ranked the Vedas and their later interpretation—the Upanishads—with those perfected works of world art which have never failed to appeal to all nationalities in all epochs and which therefore represent true art.”
“Tolstoy not only read the Vedas,but also spread their teachings in Russia. He included many of the sayings of the Vedas and the Upanishads in his collections 'Range of Reading', through of wise men's and others.”

इस तरह बहुत सारी लेखकों ने वेदों का महत्व का वर्णन किया।

इस पोस्ट को लिखने के लिए सहायताकारी ग्रन्थ है-
१. वेदों का महत्व
२. वेद रहस्य
३. वेदों का महत्व और उनके प्रचार का उपाय
४. वेदों का यथार्थ स्वरूप


🙏🙏🙏🌷🌷🌷 नमस्ते 🌷🌷🌷🙏🙏🙏

1 टिप्पणी:

  1. भाई जी मैं चारों वेदों की पुस्तकें काफी समय पहले हरिद्वार से लाया था किन्तु अब तक पढ नहीं सका काफी बार कोशिश की किन्तु समझ नहीं सका । अब आप जैसे भाई के वाट्सएप पर कुछ आता है पढ लेता हूँ असली सरल शब्दों में क्या ये प्राप्त हो सकता है

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