Books लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Books लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

स्वाध्याय का महत्व

लेखक 👉 स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती


स्वाध्याय का महत्व

मनुस्मृति में स्वाध्याय का महत्व


स्वाध्यायेन व्रतैर्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः। 
मनुस्मृति 2/28
अर्थ (स्वाध्यायेन) सकल विद्या पढने-पढ़ाने (व्रतैः) ब्रह्मचर्यसत्यभाषणादि नियम पालने (होमैः) अग्निहोत्रादि होम, सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग और सब विद्याओं का दान देने (त्रेविद्येन) वेदस्थ कर्म-उपासना-ज्ञान विद्या के ग्रहण (इज्यया) पक्षेष्टयादि करने (सुतैः) सुसन्तानोत्पत्ति (महायज्ञैः) ब्रह्म, देव, पितृ, वैश्वदेव और अतिथियों के सेवन रूप पंचमहायज्ञ और (यज्ञैः) अग्निष्टोमादि तथा शिल्पविद्याविज्ञानादि यज्ञों के सेवन से (इयं तनुः) इस शरीर को (ब्राह्मीः क्रियते) ब्राह्मी अर्थात् वेद और परमेश्वर की भक्ति का आधार रूप ब्राह्मण का शरीर बनता है । इतने साधनों के बिना ब्राह्मण - शरीर नहीं बन सकता ।’’
नैत्यके नास्त्यनध्यायो ब्रह्मसत्त्रं हि तत्स्मृतम्।
ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यं अनध्यायवषट्कृतम् ।
 मनुस्मृति 2/106
अर्थ (नैत्यके अनध्यायः न+अस्ति) नित्यकर्म में अनध्याय नहीं होता जैसे श्वास-प्रश्वास सदा लिये जाते हैं, बन्ध नहीं किये जाते, वैसे नित्यकर्म प्रतिदिन करना चाहिये, न किसी दिन छोड़ना (हि) क्यों कि (अनध्यायवषट्कृतं ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यम्) अनध्याय में भी अग्निहोत्रादि उत्तम कर्म किया हुआ पुण्यरूप होता है ।
यः स्वाध्यायं अधीतेऽब्दं विधिना नियतः शुचिः।
तस्य नित्यं क्षरत्येष पयो दधि घृतं मधु । 
मनुस्मृति 2/107
अर्थ (यः) जो व्यक्ति (स्वाध्यायम्) जल वर्षक मेघस्वरूप स्वाध्याय को वेदों का अध्ययन एवं गायत्री का जप, यज्ञ, उपासना आदि (शुचिः) स्वच्छ-पवित्र होकर (नियतः) एकाग्रचित्त होकर (विधिना) विधि-पूर्वक अधीते करता है (तस्य एषः) उसके लिए यह स्वाध्याय (नित्यं सदा पयः दधि घृतं मधु क्षरति) दूध, दही, घी और मधु को बरसाता है ।
वेदमेव सदाभ्यस्येत्तपस्तप्स्यन्द्विजोत्त्मः।
वेदाभ्यासो हि विप्रस्य तपः परमिहोच्यते।।  
मनुस्मृति 2/166
अर्थ (द्विजोत्तमः) द्विजोत्तम अर्थात् ब्राह्मणादिकों में उत्तम सज्जन पुरुष (सदा तपः तप्स्यन्) सर्वकाल तपश्चर्या करता हुआ (वेदम्+एव अभ्यस्येत्) वेद का भी अभ्यास करें (हि) जिस कारण (विप्रस्य) ब्राह्मण वा बुद्धिमान् जन को (वेदाभ्यांसः) वेदाभ्यास करना (इह) इस संसार में (परं तपः उच्यते) परम तप कहा है।
आ हैव स नखाग्रेभ्यः परमं तप्यते तपः।
यः स्रग्व्यपि द्विजोऽधीते स्वाध्यायः शक्तितोऽन्वहम्।।
मनुस्मृति 2/167
अर्थ (यः द्विजः) जो द्विज (स्रग्वी-अपि) माला धारण करके अर्थात् गृहस्थी होकर भी (अनु+अहम्) प्रतिदिन (शक्तितः स्वाध्यायम् अधीते) पूर्ण शक्ति से अर्थात् अधिक से अधिक प्रयत्नपूर्वक वेदों का अध्ययन करता रहता है (सः) वह (आ नखाग्रेभ्यः ह+एव्) निश्चय ही पैरों के नाखून के अग्रभाग तक अर्थात् पूर्णतः (परमं तपः तप्यते) श्रेष्ठ तप करता है।
योऽनधीत्य द्विजो वेदं अन्यत्र कुरुते श्रमम् ।
स जीवन्नेव शूद्रत्वं आशु गच्छति सान्वयः । 
मनुस्मृति 2/168
अर्थ (यः द्विजः) जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य (वेदम् अनधीत्य) वेद को न पढ़कर (अन्यत्र श्रमं कुरूते) अन्य शास्त्र में श्रम करता है (सः) वह (जीवन्+एव) जीवता ही (सान्वयः) अपने वंश के सहित (शूद्रत्वं गच्छति) शूद्रपन को प्राप्त हो जाता है ।
सर्वान्परित्यजेदर्थान्स्वाध्यायस्य विरोधिनः ।
यथा तथाध्यापयंस्तु सा ह्यस्य कृतकृत्यता ।।  
मनुस्मृति 4/17
जो स्वाध्याय और धर्मविरोधी व्यवहार वा पदार्थ हैं उन सब को छोड़ देवे जिस किसी प्रकार से विद्या को पढ़ाते रहना ही गृहस्थ को कृतकृत्य होना है ।
वेदं एवाभ्यसेन्नित्यं यथाकालं अतन्द्रितः ।
तं ह्यस्याहुः परं धर्मं उपधर्मोऽन्य उच्यते ।। 
मनुस्मृति 4/147
अर्थ द्विज (नित्यम्) सदा (यथाकालम्) जितना भी अधिक समय लगा सके उसके अनुसार (अतन्द्रितः) आलस्य रहित होकर (वेदम्+एक+अभ्यसेत्) वेद का ही अभ्यास करे (हि) क्योंकि (तम् अस्य परं धर्मम् आहुः) उस वेदाभ्यास को इस द्विज का सर्वोत्तम कर्तव्य कहा है (अन्यः उपघर्म: उच्यते) अन्य सब कर्तव्य गौण हैं ॥
वेदाभ्यासेन सततं शौचेन तपसैव च ।
अद्रोहेण च भूतानां जातिं स्मरति पौर्विकीम् । 
मनुस्मृति 4/148
भावार्थ मनुष्य निरन्तर वेद का अभ्यास करने से आत्मिक तथा शारीरिक पवित्रता से तथा तपस्या से और प्राणियों के साथ द्रोहभावना न रखते हुए अर्थात् अहिंसाभावना रखते हुए पूर्वजन्म की अवस्था को स्मरण कर लेता है ।
पौर्विकीं संस्मरन्जातिं ब्रह्मैवाभ्यस्यते पुनः । 
ब्रह्माभ्यासेन चाजस्रं अनन्तं सुखं अश्नुते ।। 
मनुस्मृति 4/149
भावार्थ पूर्वजन्म की अवस्था का स्मरण करते हुए फिर भी यदि वेद के अभ्यास में लगा रहता है तो निरन्तर वेद का अभ्यास करने से मोक्ष - सुख को प्राप्त कर लेता है ।
सर्वेषां एव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते ।
वार्यन्नगोमहीवासस् तिलकाञ्चनसर्पिषाम् ।। 
मनुस्मृति 4/233
भावार्थ वारि अर्थात् जल, अन्न, गौ, भूमि, कपड़ा, तिल, सोना तथा घी इन सब दानों में ब्रह्मदान श्रेष्ठ है।   ब्रह्मदान का अर्थ है विद्यादान। विद्यादान में दुरुपयोग का भय नहीं है। इसलिये यह दान न तो देने वाले को दुःख देता है न लेने वाले को। इसलिये इसको सब से श्रेष्ठ दान कहा है।

शतपथ ब्राह्मण में स्वाध्याय का महत्व

अथ ब्रह्मयज्ञ । स्वाध्यायो वै ब्रह्मयज्ञस्तस्य वाऽएतस्य ब्रह्मयज्ञस्य वागेव जुहूमैनऽउपभृच्चक्ष र्ध्रुवा मेधा स्रुवः सत्यमवभृथ स्वर्गो लोकऽउदयन यावन्त हवाइमा पृथिवी वित्तेन पूर्णां ददल्लोक जयति त्रिस्तावन्त जयति भूयांस चाक्षय्यं यऽएवं विद्वानहरह स्वाध्यायमधीते तस्मात्स्वाध्यायोऽध्येतव्य॥
 शतपथ 11/5/6/3
भावार्थ अब ब्रह्मयज्ञ । स्वाध्याय ही ब्रह्मयज्ञ है । इस ब्रह्मयज्ञ की जुहू वाणी है। मन उपभृत है। चक्षु ध्रुवा है, मेधा स्रुवा, सत्य यवभृथ स्नान है। स्वर्ग लोक इमारत है। इस पृथिवी को चाहे कितना ही धन से भर कर दक्षिणा मे देकर इस लोक को जीते उतने से तिगुना या इससे भी अधिक अधक्ष्य नोक को वह विद्वान प्राप्त होता है जो स्वाध्याय करता है। इसलिये स्वाध्याय अवश्य करे।।
"य एवं विद्वान् ऋच: अहरह: स्वाध्यायमधीते पयआहुतिभिरेव तद्देवांस्तर्पयति त ऽ एनं तृप्तास्तर्पयन्ति योगक्षेमेण, प्राणेन, रेतसा, सर्वात्मना, सर्वाभि: पुण्याभि: सम्पद्भिः, घृतकुल्या मधुकुल्या: पितृन् स्वधा अभिवहन्ति ।" 
शतपथ 11/5/6/4
भावार्थ वह विद्वान् जो इस प्रकार वेदचतुष्टय की ऋचारूप हवि का दान करता रहता है, उससे तृप्त होकर देव स्वाध्यायशील व्यक्ति को योगक्षेम, प्राणशक्ति, वीर्यशक्ति, सम्पूर्ण आत्मलाभ, समस्त पुण्यों और सम्पत्ति से युक्त करते हैं और (वानप्रस्थ में) पितरों को भी घृत और मधु की धाराएं पहुंचाते हैं।
तस्माद् अपि ऋचं वा यजुर्वा साम वा गाथां वा कुंब्यां वा अभिव्याहरेद् व्रतस्य अव्यवच्छेदा य" 
शतपथ 11/5/6/9
भावार्थ ऋचा ही सही एक यजुर्मन्त्र ही सही, एक साममन्त्र ही सही, एक गाथा ही सही, व्रत की अखण्डता के लिए कोई एक श्लोक ही दोहरा ले, परन्तु स्वाध्याय में नाग़ा न आने दे । स्वाध्याय-सत्र की अखंडता बनी रहनी चाहिए।
प्रिये स्वाध्याय प्रवचने भवतो युक्तमना भवत्य पराधीनोऽहरह रर्थन्त्साधयते सुख स्वपिति परमचिकित्सक आत्मनो भवतीन्द्रियसंयमश्चकारामता च प्रज्ञावृद्धिर्यशोलोस्पक्तिः प्रज्ञा वर्धमाना चतुरो धर्मान्ब्राह्मणमभिनिष्पादयति। व्राह्मण्यं प्रतिरूपचर्या यशोलोकपक्तिं लोकः पच्यमानश्चतुभिर्धर्मैब्राह्मणं भुनक्ति, अर्चया च दानेन चाज्येयतया चावध्यतया च।।
शतपथ 11/5/7/1
भावार्थ स्वाध्याय और प्रबचन (पढ़ाना) प्रिय होते हैं। यह मननशील, और स्वाधीन हो जाता है, प्रति दिन धन कमाता है सुख से सोता है, अपना परम चिकित्सक है। उस की इंन्द्रिया संयम मे रहती है, एक रस रहता है, उसकी प्रज्ञा बढ़ती है, यश बढ़ता है, और उसके लोग उन्नति करते हैं । प्रज्ञा के बढ़ने से ब्राह्मण सम्बन्धी चार धर्मों को जानता है अर्थात ब्रह्मकुल की नीति, अनुकूल आचरण, यश और स्वजन-वृद्धि । स्वजन वृद्ध होकर भी बाह्मण को चार धर्मों से युक्त करते हैं अर्थात् सत्कार, दान, कोई उसको सताता नहीं। कोई उसको मारता नहीं।।
ये ह वै के च श्रमा: । इमे द्यावा पृथिवोऽअन्तरेण स्वाध्यायो हैव तेषां परमताकाष्ठा यऽएव विद्वान् तस्वाध्यायमधोते तस्मात् सर्व ध्ययोऽध्येतव्य: ।।
 शतपथ 11/5/7/2
भावार्थ इस द्यो और पृथिवी के बीच में जो कुछ श्रम है, स्वाध्याय उन सब का पराकष्ठा है। जो इस रहस्य को जानकर स्वाध्याय करता है उसका यही अन्त है। इसलिए स्वाध्याय करना चाहिए।
यद्यद्ध वाऽअयं च्छन्दसः । स्वाध्यायमधीते तेन तेन हैवास्य यज्ञक्रतुनेष्टं भवति य एवं विद्वान्स्वाध्यायमधीते तस्मात्स्वाध्यायोऽध्येतत्यः ॥
 शतपथ 11/5/7/3
भावार्थ छन्द के जिस जिस भाग का स्वाध्याय करता है, उस उस दृष्टि का उसको फल मिलता है जो इस रहस्य को जान कर यज्ञ करता है । इसलिये स्वाध्याय करना चाहिये ।।

उपनिषदों में स्वाध्याय का महत्व

त्रयो धर्मस्कन्धा यज्ञोऽध्ययनं दानमिति प्रथम।
 (छान्दोग्य उपनिषद 2/23/1)
अर्थ (धर्मस्कन्धाः त्रयः) धर्म के तीन स्कन्ध भाग हैं । (यज्ञः, अध्ययनम्, दानम् इति प्रथमः) यज्ञ, स्वाध्याय और दान यह मिलकर पहला स्कन्ध है ।
एषां भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपो रसः । अपामोषधयो रस ओषधीनां पुरुषो रसः पुरुषस्य वाग्रसो वाच ऋग्रस ऋचः साम रसः साम्न उद्गीथो रसः।।
 (छान्दोग्य उपनिषद 1/1/2)
अर्थ (एषाम्) इन (भूतानाम्) पंच्चभूतों का (पृथिवी रसः) समस्त भूतों का सारमय होने से, पृथिवी रस है। (पृथिव्या) पृथिवी का (आपः) जल (रसः) रस-सार है। (अपाम्) जल का (ओषधयः रसः) ओषधि-अन्नादि रस हैं (ओषधीनाम्) औषधियों का (पुरूषः रसः) पुरूष रस है (पुरूषस्य) पुरूष का (वाग् रसः) रस वाणी है (वाचः) वाणी का (ऋग् रसः) ऋचाएँ रस हैं। ऋचः ऋचा का (साम रसः) रस सामगान है। (साम्नः) साम का (उद्गीथः रसः) रस ओंकार है।
वेदमनूच्याचार्योऽन्तेवासिनमनुशास्ति । सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः । सत्यान्न प्रमदितव्यम् । धर्मान्न प्रमदितव्यम् । कुशलान्न प्रमदितव्यम् । भूत्यै न प्रमदितव्यम् । स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् ॥ 
(तैत्तिरीय उपनिषद शीक्षा० 11/1)
अर्थ (आचार्यः वेदम् अनूच्य अन्तेवासिनम् अनुशास्ति) आचार्य वेद पढ़ाकर, समीप रहने वाले शिष्य को उपदेश करता है। (सत्यं वद) सच बोलो। (धर्म चर) धर्म का आचरण करो। (स्वाध्यायात् मा प्रमदः) स्वाध्याय में प्रसाद न कर। (आचार्याय प्रियम् धनम् आहृत्य) आचार्य के लिए प्रिय धन को लाकर अर्थात् शिक्षा समाप्ति के बाद उचित दक्षिणा देकर (प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः) प्रजा के सूत्र को मत तोड़ अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रम को समाप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर। (सत्यात् न प्रमदितव्यम्) सच बोलने में प्रमाद न कर। (धर्मात् न प्रमदितव्यम्) धर्म में अर्थात् धर्माचरण करने में आलस्य न कर। (कुशलात् न प्रमदितव्यम्) कुशल जो कुछ उपयोगी और कल्याणप्रद है उस में प्रमाद न कर। (भूत्यै न प्रमदितव्यम्) ऐश्वर्य के बढ़ाने में प्रमाद न कर। (स्वाध्यायप्रवचनाभ्याम् न प्रमदितव्यम्) पढ़ने और पढ़ाने में प्रमाद न कर ।

योग दर्शन में स्वाध्याय का महत्व

शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥ 
योग दर्शन 2/32
अर्थ(शौचसन्तोष) शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, यह (नियमा:) नियम है।।

स्वाध्यायादिष्टदेवता संप्रयोगः ॥
योग दर्शन 2/44
अर्थ (स्वाध्यायात्) स्वाध्याय के सिद्ध होने से (इष्टदेंवतासंप्रयोग:) इष्टदेव परमात्मा का दर्शन होता है।।

विद्या ह वै ब्राह्मणमाजगाम गोपाय मां शेवधिष्टेऽहमस्मि । असूयकायानृजवे । शठाय मा मा ब्रूया वीर्यवती तथा स्याम्॥
 निरुक्त 2/1/4
विद्या ह वै ब्राह्मणमा जगाम'-विद्या ब्राह्मण के पास आकर बोली-'गोपाय मां शेविधिष्टेऽहमस्मि' मेरी रक्षा कर मैं तेरी निधि हूं 'मा ब्रूहि'- मत कहना, मत बताना, मत सुनाना 'असूय काय'-जो डांस करता हो, जिसमें तेजोद्वेष भरा हो; 'अनृज'- जिसमें ऋजुता न हो = सरलता न हो, विनम्रता न हो। कुटिल को मत देना। 'अयताय न मा बूया:"-जो संयमी नहीं है अथवा प्रयत्नशील नहीं है उसे भी मत देना। इसलिये स्वाध्याय परम-निधि है, स्वाध्याय परम-श्रम है, परम-तप है, परम-धर्म है, परम-स्कन्ध है, परम-योग है, परम-यज्ञ है, परम-रस है, परम-दीक्षा है, परम-निधि है।

आश्वलायन-गृह्यसूत्र (३/३/१) ने स्वाध्याय के लिए निम्न ग्रंथों के नाम लिखे हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, कल्प, गाथा, नाराशंसी, इतिहास एवं पुराण। किन्तु मनोयोगपूर्वक जितना स्वाध्याय किया जा सके उतना ही करे । बस, स्वाध्याय-सत्र को अटूट रखे, उसमें व्यवधान न आने पाए ।शांखायन-गृह्यसूत्र (१/४) में ब्रह्म यज्ञ के लिए ऋग्वेद के बहुत-से सूक्तों एवं मंत्रों के पाठ की बात कही है । अन्य गृह्यसूत्रों ने भी शाखा-वेद के अनुसार ब्रह्म यज्ञ के लिए विभिन्न मंत्रों के पाठ व स्वाध्याय की बात कही है । याज्ञवल्क्य स्मृति (१/१०/१) में लिखा है कि समय एवं योग्यता के अनुसार ब्रह्म यज्ञ में वेदों के साथ इतिहास एवं दर्शनग्रंथ भी पढ़े जा सकते हैं।
                                  उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि वेद के अध्ययन के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों का अध्ययन भी स्वाध्याय है । समय के अनुसार स्वाध्याय के नियमों में शिथिलता लायी गयी और एकमात्र वेदाध्ययन को ही स्वाध्याय न कहकर अन्य ग्रन्थों को भी समाविष्ट कर लिया गया। यहां तक कि उसमें छ: वेदांगों, आश्वलायनादि-श्रौतसूत्रों, निरुक्त, छन्द,निघण्टु, ज्योतिष, शिक्षा, पाणिनि-व्याकरण के प्रथम सूत्र, यज्ञ-वल्क्य स्मृति (१/१) के प्रथमश्लोकार्ध, महाभारत (१/१/१) के प्रथम श्लोकार्ध, न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा के प्रथम सूत्र आदि को भी समाविष्ट कर लिया गया। इस ढील देने का यही प्रयोजन दीखता है कि किसी भी अवस्था में स्वाध्याय-सत्र की अखण्डता में अन्तर न आने पाये, इसमें व्यवधान न हो।

महाराज धृतराष्ट्र ने अपने इसी रोग की दुहाई देकर विदुर से पूछा था कि मुझे नींद नहीं आती । सञ्जय ने मुझे अभी तक महाराज युधिष्ठिर का कोई सन्देश नहीं सुनाया, जिससे मेरे शरीर का प्रत्येक अंग जल रहा है, और मुझे उन्निद्र रोग हो गया है । मुझ सन्तप्त और जागरण से पीड़ित व्यक्ति के लिए आप कोई कल्याणकर उपदेश दें। इस पर महामति विदुर ने कुछ दोष गिनवाए और सान्त्वना भरे शब्दों में कहा, "राजन् ! कहीं इन दोषों से आप पीड़ित तो नहीं है ? यदि इसमें से एक भी दोष आप में आया हुआ है तो निश्चय जानो आप इस रोग से पीड़ित रहोगे। क्या कहीं अपने से बलवान के साथ आपका मुकाबिला तो नहीं हो गया है?

आपका बल तो क्षीण नहीं हो गया है? आपके सेना आदि साधन हीन कोटि के तो नहीं हैं ? आपकी संपत्ति तो छिन नहीं गई? काम ने तो नहीं धर दबाया है? कभी भूले-चूके चोरी की इच्छा तो नहीं की? अथवा कहीं पराये धन पर तो गृधदृष्टि नहीं जा टिकी? जिसमें ये लक्षण हों प्राय: उन्हीं का उन्निद्र रोग सताया है ।" विदुर ने यह स्वर्णिम उक्ति कही- अभियुक्तं बलवता दुर्बलं हीनसाधनम्। हतस्वं कामिनं चौरमाविशन्ति प्रजागरा: ॥ कच्चिदेतैर्महादोषैर्न स्पृष्टोसि नराधिप । कच्चिन्न पवित्तेषु गृध्यन् विपरितप्यसे ॥ * (उद्योग पर्व ३३/११-१४)
विदुर द्वारा कहे इन महादोषों का प्रक्षालन स्वाध्यायशील व्यक्ति बहुत आसानी से कर लेता है । फलत: उन्निद्र रोग का कारण हट जाने से अब वास्तविक सुख की नींद सो सकता है।

सहायक ग्रंथ 👉 स्वाध्याय सर्वस्व(दीक्षानन्द सरस्वती)


स्वाध्याय का महत्व

ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका ➤

https://drive.google.com/file/d/1GRGdPkuZKjZPaUwh1K6tS07HNz6_k6zP/view?usp=drivesdk

आर्याभिविनय ➤

https://drive.google.com/file/d/1Ataa2WKBf8hQ_r_CFmmYbXF3Jdx1USGR/view?usp=drivesdk

वैदिक विनय(तृतीय भाग) ➤

https://drive.google.com/file/d/105yXiXIX0SQv8sgC8S6hSdmugB2GOvSb/view?usp=drivesdk

वेद का राष्ट्रीय गीत ➤

https://drive.google.com/file/d/1W8d4hVZh-AwD5gtRPwcP5FPti9ftyio5/view?usp=drivesdk

वेदामृत ➤

https://drive.google.com/file/d/1aWboyBlaxpUNF8emO9iIilnsPZPfM_cK/view?usp=drivesdk

स्वाध्याय सन्दोह ➤

https://drive.google.com/file/d/1tTMIOE6ARsk11LSo8PzJMGvp970VL_lv/view?usp=drivesdk

सोम सरोवर ➤

https://drive.google.com/file/d/1rQSDh-NpYmTHeA1J-p8SVwnvUpTKi9lV/view?usp=drivesdk

वैदिक ब्रह्मचर्य गीत ➤

https://drive.google.com/file/d/1KYpxhd84Gtiq70mXf5jIIjosSeS1VKkJ/view?usp=drivesdk

वेदों का यथार्थ स्वरूप ➤

https://drive.google.com/file/d/104mwhuHQQyMpdSOte1eAzcXSnnzPbkVY/view?usp=drivesdk

वैदिक सम्पत्ति ➤

https://drive.google.com/file/d/0B1giLrdkKjfRU29jVkVNRW9tQTA/view?usp=drivesdk

संध्या सुमन ➤

https://drive.google.com/file/d/18_ttvNc7Kw_M2pkR1yShh8t6qAEb76id/view?usp=drivesdk

संध्या रहस्य ➤

https://drive.google.com/file/d/1FeHtkVF9VW6tuZiTIgLXIpu20Un95z3T/view?usp=drivesdk

एकादशोपनिषद ➤

https://drive.google.com/file/d/1yTjd8Rt1UDzx1adOYyXdGU08SJCiC0-e/view?usp=drivesdk

उपनिषद मन्दाकिनी ➤

https://drive.google.com/file/d/0B1giLrdkKjfRMFBUSnJHWGZQNHc/view?usp=drivesdk

आत्मदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/12OxLMlz7pMX6voZHW4CCh1Sr11m8beZS/view?usp=drivesdk

धर्म इतिहास रहस्य ➤

https://drive.google.com/file/d/1NUUwy0ICnF7dp5sI7iFDbXbb-ZLw5ek_/view?usp=drivesdk

उरू ज्योति ➤

https://drive.google.com/file/d/1LA9RQeOdUKRxc6Ve4XUl9fNZahHxQNkt/view?usp=drivesdk

अध्यात्मप्रसाद ➤

https://drive.google.com/file/d/1opV9GRrPcpqg3q-7D1PLO9780HlAciV0/view?usp=drivesdk

कायाकल्प ➤

https://drive.google.com/file/d/1dQbeHDk3b0D1sIC5CE7keF9uFg577gsu/view?usp=drivesdk

धर्म सुधा सार ➤

https://drive.google.com/file/d/1xQAE7-qXJGZS-ZsVU4V11-NmHSbkxLZi/view?usp=drivesdk

गृहस्थ धर्म आर्य जीवन ➤

https://drive.google.com/file/d/1KBbpm2nFfsTFqUhLikT1j-hmnqowH4DM/view?usp=drivesdk

धर्म का आदि स्तोत्र ➤

https://drive.google.com/file/d/1yvJyPGeVBosl5yDwebkrrCP8YG0hyP2u/view?usp=drivesdk

आनन्द संग्रह ➤

https://drive.google.com/file/d/1-0NZxoiT6ZeaYmQ4VB-J09G4gI9vt-WP/view?usp=drivesdk

मैं और मेरा भगवान ➤

https://drive.google.com/file/d/1OGcEKw72I9S1eR19VKEpLStj_YPA1B1J/view?usp=drivesdk

मनु की देन ➤

https://drive.google.com/file/d/1808m23FpOqStdlT4ADTqeH6OA603Nmom/view?usp=drivesdk

ईश्वर बहिष्कार का प्रयत्न ➤

https://drive.google.com/file/d/1bxZdiGSJv1dOyp6DbaJM9og6MaUwz8hm/view?usp=drivesdk

आर्य दर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1fMd3rO8GkGRA5pOipwDoLCcUeTb7sKIV/view?usp=drivesdk

धर्म शिक्षा ➤

https://drive.google.com/file/d/1ZC8pT5ihZGztLxYXsb0KwPxLw9b7kEQu/view?usp=drivesdk

तत्वज्ञान ➤

https://drive.google.com/file/d/16wAGnPHIk4TiMbQM0ivW1prFqbLBRqCT/view?usp=drivesdk

अपने भाग्य निर्माता आप ➤

https://drive.google.com/file/d/1UGCqBIgRxbxyUK30IRepSkjU5eyPCB39/view?usp=drivesdk

मनुस्मृति गर्जना ➤

https://drive.google.com/file/d/14ry0BjuCc03Ex-5MoZ4WbaE-C2qrPw-H/view?usp=drivesdk

प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार ➤

https://drive.google.com/file/d/11nKunC3J3fbxXi2lQChVxWMDYqcATVNP/view?usp=drivesdk

प्राचीन भारत में रसायनिक विकास ➤

https://drive.google.com/file/d/11dGNSPkDf4Lc57DcjD_b9lea9bdmQGrS/view?usp=drivesdk

यज्ञविधि ➤

https://drive.google.com/file/d/12NVD3TPN3p7PSljTU_IzY-XybJ1oCLRV/view?usp=drivesdk

आर्षविज्ञान ➤

https://drive.google.com/file/d/13RHGXvtcUuEngM3zLe4_hnB9oI39gLF-/view?usp=drivesdk

संध्यालोक ➤

https://drive.google.com/file/d/1SrJ9C7rS3_lLu_ThcE8KzK5jWRvJkUJH/view?usp=drivesdk

देव यज्ञ पर अध्यात्मिक दृष्टि ➤

https://drive.google.com/file/d/1EIq7Xw6phrHJu6kxG32vNCvBuC-QVLzl/view?usp=drivesdk

मेरा धर्म ➤

https://drive.google.com/file/d/17S-1kcEKT0YHdpDVmDPOmZ6jPshB5d8X/view?usp=drivesdk

आत्मदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/12OxLMlz7pMX6voZHW4CCh1Sr11m8beZS/view?usp=drivesdk

मौलिक भेद ➤

https://drive.google.com/file/d/1fsKieP0aFdlntvPeJAVDX46iwAGF3nJS/view?usp=drivesdk

सृष्टि की कथा ➤

https://drive.google.com/file/d/1rqNkvP_IEJgQ3jQ_ZRR7nuyv-pgEiqvJ/view?usp=drivesdk

वेद स्वाध्याय प्रदीपिका ➤

https://drive.google.com/file/d/1IolALPQfhcRLiuzuDYMQ3rrpW5wU7DUR/view?usp=drivesdk

वेद विद्या निदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1I_MOrrsVwQvi569eiC-x8xQkOrgzSnyY/view?usp=drivesdk

आर्य दर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1fMd3rO8GkGRA5pOipwDoLCcUeTb7sKIV/view?usp=drivesdk

ब्राह्मण की गौ ➤

https://drive.google.com/file/d/1paQab6sZ4HIt10tzct-HzLRpvo_YiNhB/view?usp=drivesdk

वैदिक सिद्धान्त ➤

https://drive.google.com/file/d/1xCVvpuWOGEbuKBL522FkPxT-SHYBUi6V/view?usp=drivesdk

 

🌷🌷🌷🙏🙏🙏 नमस्ते 🙏🙏🙏🌷🌷🌷

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

कुरान समीक्षा (भाग ३)- जिहाद

संकलक 👉 शुभंकर मण्डल

जिहाद

इस्लामी जिहाद क्या ?
➦"जिहाद शब्द अरबी भाषा के 'जिहाद' शब्द से बना है जिसका अर्थ है-प्रयास करना, कोशिश करना। मगर इस्लाम के धार्मिक अर्थ में जो शब्द प्रयोग होता है वह है - " जिहाद फी सबी लिल्लाह" यानी 'अल्लाह के लिए' या अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना"
                               जिहाद मुसलमानों के लिए एक सर्वोच्च व महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। जिहाद का अर्थ है गैर-मुसलमानों पर आक्रमण करना, उनका वध करना, दास बना लेना, धर्मान्तरण कर देना, भले ही उन्होंने मुसलमानों की कोई, कैसी भी हानि नहीं की हो। और भले ही वे निहत्थे हों ।
                                जिहाद अल्लाह के लिए किया जाता है । अल्लाह की सेवा के लिए पूजा और युद्ध एक समान हैं। जिहाद से बचना सबसे बड़ा पाप व अपराध है; जिहाद के माध्यम से महिमा व बड़प्पन प्राप्त कर लेना सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस्लाम में विश्व विजय कर लेने सम्बन्धी अंहकार एक भीषण रोग है। इस्लाम कहता है कि उसे दूसरे पन्थों पर विजय प्राप्त कर लेनी है क्योंकि वह ही अकेला अन्तिम सच है। शेष सारे पन्थ पूरी तरह झूठे हैं। और उसमें कोई त्रुटि नहीं है। इस्लाम में यह रूढ़िवादिता आकस्मिक न होकर एक अनिवार्यता है। इस्लाम में ज्ञान का आशय पान्थिक ज्ञान से है जो पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह द्वारा प्रगटीकरण से उपलब्ध कराया गया था वह ही एक मात्र सच है। वह परिवर्तनशीलता के अभाव को ही शक्ति मानता है। यही कारण है कि इस्लामी धार्मिक नेताओं व विचारकों को सुधार शब्द से असीमित घृणा है। इस्लामी धर्म ग्रन्थ जिहाद के आदेशों, निर्देशों व आज्ञाओं से भरे पड़े हैं और इसमें विचार विनियम, एवं पारस्परिक सहमति के लिए कोई/कैसा भी स्थान नहीं है।
                          इस्लामी धर्म ग्रन्थों के अनुसार गैर मुसलमातनों के विरूद्ध युद्ध करना जिहाद है। जिहाद अल्लाह की सेवा के लिए ही किया जाता है। कुरान मजीद (4 : 95, पृ. 217 ) में कहा गया
है, " अन-निसा (An-Nisa'):95 - ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है।" कुरान ने प्रतिपादित कर रखा है कि सारे युद्धों का केन्द्र बिन्दु अल्लाह के उद्देश्य की पूर्ति है- इस उदेश्य की पूर्ति के लिए सर्वप्रथम अल्लाह ने मुसलमानों को युद्ध के लिए अनुमति देना ही तय किया था किन्तु बाद में अल्लाह ने इसे धार्मिक कर्तव्य व दायित्व के रूप में आदेश निश्चित कर दिया।
                         'जिहाद' की नीतियों में शत्रुओं के हृदयों में भय स्थापित कर देने का काम एक महत्वपूर्ण व्यवस्था थी। बदर के युद्ध के सम्बन्ध में अल्लाह ने पैगम्बर मुहम्मद से इस प्रकार कहा था, "8:12 ➤ याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!" उहुद के युद्ध में अल्लाह ने युद्ध में हुई इस्लामी हार की समीक्षा की थी; दैवीय़ मार्गदर्शन किया था, और एक बचन दिया था,
"3:151 ➤ हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है।
 3:26-27 ➤ "और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे, और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।"

 
➢ जिहाद का उद्देश्य
  • 2:193 ➤ तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं।"
  • 8:39 ➤ उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है"
उपलिखित विश्लेषण में से तीन निष्कर्ष निकलते हैं, (1) प्रथम- सारे युद्धों में से मुसलमानों द्वारा प्रारम्भ किये गये युद्ध ही अल्लाह की सेवा के लिए होते हैं। परिणामस्वरूप इस्लाम का धर्मयुद्धोन्माद, व आंतकवाद ईश्वरीय आदेशानुसार कार्य हो जाता है। (2) मूर्ति पूजा अशांति है और अत्याचार की श्रेणी में है और इस्लामी न्याय अल्लाह के विश्वास में रूपान्तरित हो जाता है और यही मुसलमानों को सिखाया जाता है। (3) इस ईश्वरीय युद्ध में भाग लेना मुसलमानों के लिए अनिवार्य है और युद्ध में जो लोग भाग लेते हैं उन्हें पुरस्कार, और जो लोग भाग नहीं लेते हैं उन्हें, दण्ड दिया जाता है ।
                         जिहाद एक सम्पर्ण युद्ध है। अरब साम्राज्य के विस्तार तथा इस्लाम को पहले सारे अरब में और फिर सारे विश्व में विस्तार की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए ही जिहाद का प्रारम्भ हुआ था। मुहम्मद जानता था कि उसके व्यक्ति सम्पूर्ण विश्वभर पर तब तक शासन नहीं कर सकेंगे जब तक उन्हें एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में ढ़ाला नहीं जाता। ताकि इससे वे मूर्ति पूजकों के देशों, उनकी व्यक्तिगत सम्पत्तियों, व महिलाओं पर अधिकार जमा सकें और उन्हें अरब शक्ति के प्रभाव में ला सकें और उन्हें दास बना सकें। जिहाद चूंकि अविश्वासियों के प्रति किया जाता है, अतः मुहम्मद ने अन्य पन्थों को झूठा व अल्लाह का विरोधी घोषित कर धर्म युद्धों के लिए असीमित अवसर उत्पन्न कर दिये। इस प्रकार जिहाद मुसलमानों के लिए अल्लाह का आदेश है कि गैर-मुसलमानों का विनाश कर दें।
जिहाद प्रारम्भ करने के लिए यह बिल्कुल भी आवश्यक. नहीं कि मुसलमानेतर लोगों ने मुसलमानों के प्रति कोई कैसा भी अपराथ किया हो, उनका इस्लाम में विश्वास न करना ही पर्याप्त व बड़ा अपराध है। तलवार के बल पर इनके द्वारा इस्लाम स्वीकार करा लेना जिहाद का उद्देश्य है।
                                  इस्लामी शब्द कोष के आधार पर जिहाद शब्द का अर्थ है, "एक प्रयास या कोशिश पैगम्बर मुहम्मद के मिशन में आस्था न रखने वाले लोगों के विरूद्ध एक धार्मिक युद्ध। कुरान और हृदीसों के अनुसार यह एक आवश्यक धार्मिक कर्त्तव्य है जिसे विशेष रूप से इस्लाम के प्रसार के लिए तथा मुसलमानों में बुराइयों को दूर करने के लिए नभाया जाता है।

जब किसी मुस्लिम शासक द्वारा किसी गैर इस्लामी देश को जीत लिया जाता है तो उसके निवासियों के सामने तीन विकल्प रखे जाते हैं : पहला इस्लाम स्वीकारना, या ज़ज़िया (टैक्स) देना और दोनों को न मानने पर तलवार द्वारा हत्या करनी।" (डिक्शनरी ऑफ इस्लाम टी.पी. ह्यूज़िस, पृ. 243)

यही आदेश नीचे की आयतों में दिया गया है ➩
  • 69:30-32 ➤ "पकड़ो उसे और उसकी गरदन में तौक़ डाल दो, फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो, फिर उसे एक ऐसी जंजीर में जकड़ दो जिसकी माप सत्तर हाथ है।"
  • 47:12-13 ➤ निश्चय ही अल्लाह उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए ऐसे बागों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, वे कुछ दिनों का सुख भोग रहे है और खा रहे है, जिसे चौपाए खाते है। और आग उनका ठिकाना है, कितनी ही बस्तियाँ थी जो शक्ति में तुम्हारी उस बस्ती से, जिसने तुम्हें निकाल दिया, बढ़-चढ़कर थीं। हमने उन्हे विनष्टम कर दिया! फिर कोई उनका सहायक न हुआ"
  • 8:12 ➤ याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!"
  • 9:5 ➤ फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।"
                           इस्लामी धर्मग्रन्थों- में इस प्रकार की आज्ञायें बार-बार दी गई हैं। यह जिहाद ही था जिसके माध्यम से इन आदेशों का पालन किया जा सकता था। जिहाद एक बहु आयामी अवधारणा है। जिहाद की आधारेभूत अवधारणा के विषय में कोई भी दो मुसलमान, भिन्न मत वाले नहीं हो सकते। इसका स्पष्ट अर्थ है। अल्लाह के लिए युद्ध करना; इस्लाम के उद्देश्यों की पूर्ति व प्रसार के लिए युद्ध करना; सच्चे पन्थ (इस्लाम) के लिए लोंगों को बलात धर्मान्तरित करना; यदि वे प्रतिरोध करें तो उनका वध कर देना; उनकी सम्पत्तियों, महिलाओं व बच्चों को अधिकार में ले लेना और उनके पूजा घरों व मन्दिरों को विनष्ट कर देना, मूर्तिभंजन और दूसरों के मन्दिरों को ढहा देना इस्लाम का प्रमुख उद्देश्य है; पैगम्बर मुहम्मद के व्यवहार को उदाहरण मान वे इसे न्यायोचित मानते हैं। स्वयं मुहम्मद ने अरब में मूर्ति पूजकों के मन्दिर ढहाये थे और वह ही तभी से उनके अनुयायियों के लिए आदर्श बन गया है। जिहाद के अभाव में इस्लाम का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अत: जिहाद प्रत्येक मुसलमान का एक अनिवार्य धार्मिक कर्त्तव्य व दायित्व है।

➢जिहाद के लिए प्रोत्साहक पुरस्कार
कुरान में आदेश है कि मुजाहिद (धर्म योद्धा) के लिए आगामी दुनिया में जन्नत मिलेगी गैर-मुसलमानों के विरूद्ध युद्ध करते हुए मुजाहिद चाहे बच जाऐँ, घायल हो जाए, अथवा मर जाए उसके लिए मरणोपरान्त जन्नत हर दशा में मिलेगी ही, यह निश्चित है। जिहाद में भाग लेने का धार्मिक महत्व अन्य धार्मिक कर्त्तव्यों व क्रियाओं जैसे रोज़ा रखना, निरन्तर नमाज के लिए खड़े होना, और कुरान में लिखे अल्लाह के आदेशों का पालन करना, आदि सभी के बराबर ही है। जन्नत प्राप्ति के लिए इस्लाम के विस्तार के लिए जिहाद में भाग लेना
सर्वाधिक गुण युक्त व महत्व का है। पैगम्बर ने अपने अनुयायियों को बताया था कि 'जन्नत तलवारों के साये में है।' (बुखारी 4:73)
  • 37:40-49 ➤ अलबत्ता अल्लाह के उन बन्दों की बात और है, जिनको उसने चुन लिया है, वही लोग है जिनके लिए जानी-बूझी रोज़ी है, स्वादिष्ट फल। और वे नेमत भरी जन्नतों, में सम्मानपूर्वक होंगे, तख़्तों पर आमने-सामने विराजमान होंगे; उनके बीच विशुद्ध पेय का पात्र फिराया जाएगा, बिलकुल साफ़, उज्जवल, पीनेवालों के लिए सर्वथा सुस्वादु, न उसमें कोई ख़ुमार होगा और न वे उससे निढाल और मदहोश होंगे। और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली, सुन्दर आँखोंवाली स्त्रियाँ होंगी, वे सुरक्षित अंडे है।
  • 43:69-73 ➤ वह जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और आज्ञाकारी रहे; "प्रवेश करो जन्नत में, तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी, हर्षित होकर!" उनके आगे सोने की तशतरियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज़्ज़त पाएँ। "और तुम उसमें सदैव रहोगे, यह वह जन्नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे।, तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे।"
  • 55:47-77 ➤ तो तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? घनी डालियोंवाले; अतः तुम दोनों अपने रब के उपकारों में से किस-किस को झुठलाओगे? उन दोनो (बाग़ो) में दो प्रवाहित स्रोत है। अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? उन दोनों (बाग़ो) मे हर स्वादिष्ट फल की दो-दो किस्में हैं; अतः तुम दोनो रब के चमत्कारों में से किस-किस को झुठलाओगे? वे ऐसे बिछौनो पर तकिया लगाए हुए होंगे जिनके अस्तर गाढे रेशम के होंगे, और दोनों बाग़ो के फल झुके हुए निकट ही होंगे। अतः तुम अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस को झुठलाओगे? उन (अनुकम्पाओं) में निगाह बचाए रखनेवाली (सुन्दर) स्त्रियाँ होंगी, जिन्हें उनसे पहले न किसी मनुष्य ने हाथ लगाया और न किसी जिन्न ने, फिर तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? मानो वे लाल (याकूत) और प्रवाल (मूँगा) है। अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? अच्छाई का बदला अच्छाई के सिवा और क्या हो सकता है? अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? उन दोनों से हटकर दो और बाग़ है। फिर तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे, अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? उन दोनों (बाग़ो) में दो स्रोत है जोश मारते हुए, अतः तुम दोनों अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस को झुठलाओगे? उनमें है स्वादिष्ट फल और खजूर और अनार; अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? उनमें भली और सुन्दर स्त्रियाँ होंगी। तो तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? हूरें (परम रूपवती स्त्रियाँ) ख़ेमों में रहनेवाली; अतः तुम दोनों अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस को झुठलाओगे? जिन्हें उससे पहले न किसी मनुष्य ने हाथ लगाया होगा और न किसी जिन्न ने। अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? वे हरे रेशमी गद्दो और उत्कृष्ट् और असाधारण क़ालीनों पर तकिया लगाए होंगे; अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे?
                         इस्लाम ने जिहाद की आवधारणा को अल्लाह के उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्म-युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया है। जिहाद का वास्तविक अर्थ कुरान के ही शब्दों में इस प्रकार है-"9:29 ➤  वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते है और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते है और न सत्यधर्म का अनुपालन करते है, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगे।"
कुरान कहता है-(1) "9:41 ➤ हलके और बोझिल निकल पड़ो और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करो! यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।"
(2) "2:216 ➤ तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।"

➢ स्थायी युद्ध की अवधारणा
अल्लाह के शब्दों में, जिसने कुरान में कहा है-"9:5 ➤ फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है और भी, "8:39 ➤ उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है"
9:123 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट है और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।

➢जिहाद गैर-मुसलमानों के विरुद्ध एक युद्ध है
कुरान के आदेश हैं-"8:12-13 ➤ याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!, यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है।"
यदि पिता-"गैर-मूसलमान" है, तो "पुत्र पिता से मैत्री न करे। इस संदर्भ में कुरान का आदेश है, "9:23 - ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे।"

➢शान्ति स्थापना की रणनीतियाँ
"गैर-मुसलमानों" के साथ जब यह मुसलमानों के हित में हो तभी केवल अस्थाई शांति कर लेने की स्थिति को छोड़कर कभी भी "मुसलमानों" को अविश्वासियों के साथ तो मित्रता नहीं करना चाहिए। इस सन्दर्भ में कुरान का आदेश है-"3:118 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं।"

➢युद्ध बन्दियों के साथ इस्लामी व्यवहार
इस सम्बन्ध में कुरान कहता है -" 8:67 ➤ किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" "33:26-27 ➤ और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे। और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।"
 
see also: बाइबल की अश्लीलता(भाग १)

कुरान में गैर-मुसलमानों के विरुद्ध जिहाद और भेदभाव के आदेश

➢ अल्लाह के अलावा किसी अन्य को न पूजो
  • 8:46 ➤ और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और आपस में न झगड़ो, अन्यथा हिम्मत हार बैठोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और धैर्य से काम लो। निश्चय ही, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है।
  • 4:79-80 ➤ तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त" होती है, वह अल्लाह को ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है, जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर कोई रखवाला बनाकर तो नहीं भेजा है।
  • 47:33 ➤ ऐ ईमान लानेवालों! अल्लाह का आज्ञापालन करो और रसूल का आज्ञापालन करो और अपने कर्मों को विनष्ट न करो।
  • 9:33 ➤ वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा ताकि उसे तमाम दीन (धर्म) पर प्रभावी कर दे, चाहे मुशरिकों को बुरा लगे।

➢ मुसलमान आपस में भाई-भाई
  • 49:9 ➤ यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है।
  • 49:10 ➤ मोमिन तो भाई-भाई ही है। अतः अपने दो भाईयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए।
  • 9:11 ➤ अतः यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो वे धर्म के भाई हैं। और हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर बयान करते हैं, जो जानना चाहें।

➢ गैर-मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण आदेश
  • 9:24 ➤ ऐ ईमान लानेवाले! अल्लाह और रसूल की बात मानो, जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है, और जान रखो कि अल्लाह आदमी और उसके दिल के बीच आड़े आ जाता है और यह कि वही है जिसकी ओर (पलटकर) तुम एकत्र होगे।
  • 9:37 ➤ ताकि अल्लाह नापाक को पाक से छाँटकर अलग करे और नापाकों को आपस में एक-दूसरे पर रखकर ढेर बनाए, फिर उसे जहन्नम में डाल दे। यही लोग घाटे में पड़नेवाले है।
  • 2:19 ➤ या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा हैं।
  • 2:26 ➤ निस्संदेह अल्लाह नहीं शरमाता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए है वे तो जानते है कि वह उनके रब की ओर से सत्य हैं; रहे इनकार करनेवाले तो वे कहते है, "इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है।
  • 2:142 ➤ मूर्ख लोग अब कहेंगे, "उन्हें उनके उस क़िबले (उपासना-दिशा) से, जिस पर वे थे किस ची़ज़ ने फेर दिया?" कहो, "पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, वह जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है।"
  • 2:195 ➤ और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपकोतबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है।
  • 2:197 ➤ हज के महीने जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे, को हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता होगा। और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और समझवालो! मेरा डर रखो।
  • 2:258 ➤ क्या तुमने उनको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके 'रब' के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, "मेरा 'रब' वह है जो जिलाता और मारता है।" उसने कहा, "मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।" इबराहीम ने कहा, "अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।" इसपर वह अधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।
  • 2:284 ➤ अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओं, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
  • 3:85 ➤ जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा।
  • 5:73 ➤ निश्चय ही उन्होंने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में का एक है।" हालाँकि अकेले पूज्य के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। जो कुछ वे कहते है यदि इससे बाज़ न आएँ तो उनमें से जिन्होंने इनकार किया है, उन्हें दुखद यातना पहुँचकर रहेगी।
  • 22:1 ➤ ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो! निश्चय ही क़ियामत की घड़ी का भूकम्प बड़ी भयानक चीज़ है।
  • 7:186 ➤ जिसे अल्लाह मार्ग से वंचित रखे उसके लिए कोई मार्गदर्शक नहीं। वह तो तो उन्हें उनकी सरकशी ही में भटकता हुआ छोड़ रहा है।
  • 10:99 ➤ यदि तुम्हारा रब चाहता तो धरती में जितने लोग है वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मोमिन हो जाएँ?
  • 10:106 ➤ और अल्लाह से हटकर उसे न पुकारो जो न तुम्हें लाभ पहुँचाए और न तुम्हें हानि पहुँचा सके और न तुम्हारा बुरा कर सके, क्योंकि यदि तुमने ऐसा किया तो उस समय तुम अत्याचारी होगे।
  • 13:13 ➤ बादल की गरज उसका गुणगान करती है और उसके भय से काँपते हुए फ़रिश्ते भी। वही कड़कती बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है उन्हें गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के विषय में झगड़ रहे होते है। निश्चय ही उसकी चाल बड़ी सख़्त है।
  • 14:7 ➤ जब तुम्हारे रब ने सचेत कर दिया था कि 'यदि तुम कृतज्ञ हुए तो मैं तुम्हें और अधिक दूँगा, परन्तु यदि तुम अकृतज्ञ सिद्ध हुए तो निश्चय ही मेरी यातना भी अत्यन्त कठोर है।'

➢ गैर मुसलमान शत्रु के समान
  • 2:98 ➤ जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।"
  • 2:254 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही है, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है।
  • 3:32 ➤ कह दो, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता।
  • 4:101 ➤ और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है।
  • 4:102 ➤ और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है।
  • 8:13 ➤ यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है।
  • 8:55 ➤ निश्चय ही, सबसे बुरे प्राणी अल्लाह की स्पष्ट में वे लोग है, जिन्होंने इनकार किया। फिर वे ईमान नहीं लाते।
  • 9:28 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही है। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है।
  • 33:8 ➤ ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे। और इनकार करनेवालों के लिए तो उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है।
  • 47:34 ➤ निश्चय ही जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका और इनकार करनेवाले ही रहकर मर गए, अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा न करेगा।
see also: बाइबल में परस्पर विरोधी वचन (अन्तिम भाग)

➢ गैर-मुसलमानों से मित्रता न करों
  • 3:28 ➤ ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है।
  • 3:118 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं।
  • 4:144 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्टा तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ?
  • 5:14 ➤ और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे।
  • 5:51 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता।
  • 5:57 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवाले हो।
  • 9:23 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे।
  • 29:41 ➤ जिन लोगों ने अल्लाह से हटकर अपने दूसरे संरक्षक बना लिए है उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जिसने अपना एक घर बनाया, और यह सच है कि सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का घर ही होता है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते!
  • 60:1 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम मेरे मार्ग में जिहाद के लिए और मेरी प्रसन्नता की तलाश में निकले हो तो मेरे शत्रुओं और अपने शत्रुओं को मित्र न बनाओ कि उनके प्रति प्रेम दिखाओं, जबकि तुम्हारे पास जो सत्य आया है उसका वे इनकार कर चुके है। वे रसूल को और तुम्हें इसलिए निर्वासित करते है कि तुम अपने रब - अल्लाह पर ईमान लाए हो। तुम गुप्त रूप से उनसे मित्रता की बातें करते हो। हालाँकि मैं भली-भाँति जानता हूँ जो कुछ तुम छिपाते हो और व्यक्त करते हो। और जो कोई भी तुममें से भटक गया।

➢ गैर-मुसलमानों के लिए जहन्नम की आग
  • 2:90 ➤ क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए है। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है।
  • 3:12 ➤ इनकार करनेवालों से कह दो, "शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगं। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।"
  • 4:14 ➤ परन्तु जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा उसे अल्लाह आग में डालेगा, जिसमें वह सदैव रहेगा। और उसके लिए अपमानजनक यातना है।
  • 4:56 ➤ जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 4:161 ➤ और उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि उन्हें इससे रोका गया था। और उनके अवैध रूप से लोगों के माल खाने के कारण ऐसा किया गया और हमने उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए दुखद यातना तैयार कर रखी है।
  • 98:6 ➤ निस्संदेह किताबवालों और मुशरिकों (बहुदेववादियों) में से जिन लोगों ने इनकार किया है, वे जहन्नम की आग में पड़ेगे; उसमें सदैव रहने के लिए। वही पैदा किए गए प्राणियों में सबसे बुरे है।
  • 41:28 ➤ वह है अल्लाह के शत्रुओं का बदला - आग। उसी में उसका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।
  • 37:22 ➤ (कहा जाएगा) "एकत्र करो उन लोगों को जिन्होंने ज़ुल्म किया और उनके जोड़ीदारों को भी और उनको भी जिनकी अल्लाह से हटकर वे बन्दगी करते रहे है।
  • 37:23 ➤ फिर उन सबको भड़कती हुई आग की राह दिखाओ!"
  • 2:39 ➤ और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वहीं आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे।
  • 8:14 ➤ यह तो तुम चखो! और यह कि इनकार करनेवालों के लिए आग की यातना है।
  • 21:98 ➤ "निश्चय ही तुम और वह कुछ जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो सब जहन्नम के ईधन हो। तुम उसके घाट उतरोगे।"
  • 22:19 ➤ ये दो विवादी हैं, जो अपने रब के विषय में आपस में झगड़े। अतः जिन लोगों ने कुफ्र किया उनके लिए आग के वस्त्र काटे जा चुके है। उनके सिरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा।
  • 38:55 ➤ एक और यह है, किन्तु सरकशों के लिए बहुत बुरा ठिकाना है; जहन्नम, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है! यह है, अब उन्हें इसे चखना है - खौलता हुआ पानी और रक्तयुक्त पीप, और इसी प्रकार की दूसरी और भी चीज़ें, "यह एक भीड़ है जो तुम्हारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आवभगत उनके लिए नहीं। वे तो आग में पड़नेवाले है।"
  • 9:68 ➤ अल्लाह ने मुनाफ़िक़ पुरुषों और मुनाफ़िक़ स्त्रियों और इनकार करनेवालों से जहन्नम की आग का वादा किया है, जिसमें वे सदैव ही रहेंगे। वही उनके लिए काफ़ी है और अल्लाह ने उनपर लानत की, और उनके लिए स्थाई यातना है।
  • 5:10 ➤ रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही भड़कती आग में पड़नेवाले है।
  • 5:37 ➤ वे चाहेंगे कि आग (जहन्नम) से निकल जाएँ, परन्तु वे उससे न निकल सकेंगे। उनके लिए चिरस्थायी यातना है।
  • 6:49 ➤ रहे वे लोग, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें यातना पहुँचकर रहेगी, क्योंकि वे अवज्ञा करते रहे है।
  • 8:36 ➤ निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे।
  • 8:37 ➤ ताकि अल्लाह नापाक को पाक से छाँटकर अलग करे और नापाकों को आपस में एक-दूसरे पर रखकर ढेर बनाए, फिर उसे जहन्नम में डाल दे। यही लोग घाटे में पड़नेवाले है।
  • 8:67 ➤ किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 24:57 ➤ यह कदापि न समझो कि इनकार की नीति अपनानेवाले धरती में क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले है। उनका ठिकाना आग है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।
  • 48:6 ➤ और कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को, जो अल्लाह के बारे में बुरा गुमान रखते है, यातना दे। उन्हीं पर बुराई की गर्दिश है। उनपर अल्लाह का क्रोध हुआ और उसने उनपर लानत की, और उसने उनके लिए जहन्नम तैयार कर रखा है, और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है!
  • 69:30-33 ➤ "पकड़ो उसे और उसकी गरदन में तौक़ डाल दो, फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो, "फिर उसे एक ऐसी जंजीर में जकड़ दो जिसकी माप सत्तर हाथ है, वह न तो महिमावान अल्लाह पर ईमान रखता था।"
see also: कुरान समीक्षा (भाग १)- विज्ञान
 
➢ मुसलमानो से प्रेम और काफिरों को जहन्नम का दण्ड
  • 8:13 ➤ यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है।
  • 5:72 ➤ निश्चय ही उन्होंने (सत्य का) इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है।" जब मसीह ने कहा था, "ऐ इसराईल की सन्तान! अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। जो कोई अल्लाह का साझी ठहराएगा, उसपर तो अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना आग है। अत्याचारियों को कोई सहायक नहीं।"
  • 2:89 ➤ और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे है - फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर!
  • 2:213 ➤ सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है।
  • 2:221 ➤ और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें।
  • 22:49-51 ➤ कह दो, "ऐ लोगों! मैं तो तुम्हारे लिए बस एक साफ़-साफ़ सचेत करनेवाला हूँ। फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमादान और सम्मानपूर्वक आजीविका है, किन्तु जिन लोगों ने हमारी आयतों को नीचा दिखाने की कोशिश की, वही भड़कती आगवाले है।
  • 22:56-57 ➤ उस दिन बादशाही अल्लाह ही की होगी। वह उनके बीच फ़ैसला कर देगा। अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे नेमत भरी जन्नतों में होंगे, और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, उनके लिए अपमानजनक यातना है।
  • 24:56 ➤ नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
  • 25:24 ➤ उस दिन जन्नतवाले ठिकाने की दृष्टि से अच्छे होगे और आरामगाह की दृष्टि से भी अच्छे होंगे।
  • 25:25 ➤ उस दिन आकाश एक बादल के साथ फटेगा और फ़रिश्ते भली प्रकार उतारे जाएँगे।
  • 25:26 ➤ उस दिन वास्तविक राज्य रहमान का होगा और वह दिन इनकार करनेवालों के लिए बड़ा ही मुश्किल होगा।
  • 40:84 ➤ फिर जब उन्होंने हमारी यातना देखी तो कहने लगे, "हम ईमान लाए अल्लाह पर जो अकेला है और उसका इनकार किया जिसे हम उसका साझी ठहराते थे।"
  • 40:85 ➤ किन्तु उनका ईमान उनको कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकता था जबकि उन्होंने हमारी यातना को देख लिया - यही अल्लाह की रीति है, जो उसके बन्दों में पहले से चली आई है - और उस समय इनकार करनेवाले घाटे में पड़कर रहे।
  • 43:69-73 ➤ वह जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और आज्ञाकारी रहे; प्रवेश करो जन्नत में, तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी, हर्षित होकर! उनके आगे सोने की तशतरियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज़्ज़त पाएँ। और तुम उसमें सदैव रहोगे, यह वह जन्नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे। तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे।"
  • 47:12 ➤ निश्चय ही अल्लाह उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए ऐसे बागों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, वे कुछ दिनों का सुख भोग रहे है और खा रहे है, जिसे चौपाए खाते है। और आग उनका ठिकाना है‌।
  • 47:23 ➤ ये वे लोग है जिनपर अल्लाह ने लानत की और उन्हें बहरा और उनकी आँखों को अन्धा कर दिया।
  • 48:17 ➤ न अन्धे के लिए कोई हरज है, न लँगडे के लिए कोई हरज है और न बीमार के लिए कोई हरज है। जो भी अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करके, जिनके नीचे नहरे बह रही होगी, किन्तु जो मुँह फेरेगा उसे वह दुखद यातना देगा।
  • 48:29 ➤ अल्लाह के रसूल मुहम्मद और जो लोग उनके साथ हैं, वे इनकार करनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु है। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे। वे अपने चहरों से पहचाने जाते हैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का भी जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है।
  • 72:14 ➤ "और यह कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) है और हममें से कुछ हक़ से हटे हुए है। तो जिन्होंने आज्ञापालन का मार्ग ग्रहण कर लिया उन्होंने भलाई और सूझ-बूझ की राह ढूँढ़ ली।
  • 72:15 ➤ "रहे वे लोग जो हक़ से हटे हुए है, तो वे जहन्नम का ईधन होकर रहे।"
  • 60:4 ➤ तुम लोगों के लिए इबराहीम में और उन लोगों में जो उसके साथ थे अच्छा आदर्श है, जबकि उन्होंने अपनी क़ौम के लोगों से कह दिया कि "हम तुमसे और अल्लाह से हटकर जिन्हें तुम पूजते हो उनसे विरक्त है। हमने तुम्हारा इनकार किया और हमारे और तुम्हारे बीच सदैव के लिए वैर और विद्वेष प्रकट हो चुका जब तक अकेले अल्लाह पर तुम ईमान न लाओ।" इूबराहीम का अपने बाप से यह कहना अपवाद है कि "मैं आपके लिए क्षमा की प्रार्थना अवश्य करूँगा, यद्यपि अल्लाह के मुक़ाबले में आपके लिए मैं किसी चीज़ पर अधिकार नहीं रखता।" "ऐ हमारे रब! हमने तुझी पर भरोसा किया और तेरी ही ओर रुजू हुए और तेरी ही ओर अन्त में लौटना हैं।

➢ गैर-मुसलमानों से लड़ो और जान से मारो
  • 9:5 ➤ फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  • 9:14 ➤ उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा। और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा।
  • 9:39 ➤ यदि तुम निकालोगे तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा और वह तुम्हारी जगह दूसरे गिरोह को ले आएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। और अल्लाह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है।
  • 9:123 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट है और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।
  • 2:216 ➤ तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।"
  • 8:12 ➤ याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!"
  • 8:15 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! जब एक सेना के रूप में तुम्हारा इनकार करनेवालों से मुक़ाबला हो तो पीठ न फेरो।
  • 8:18 ➤ यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है।
  • 8:39 ➤ उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है।
  • 8:57 ➤ अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
  • 8:59 ➤ इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।
  • 8:60 ➤ और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा।
  • 8:65 ➤ ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुमसे से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग है।
  • 8:66 ➤ अब अल्लाह ने तुम्हारे बोझ हल्का कर दिया और उसे मालूम हुआ कि तुममें कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुम्हारे सौ आदमी जमे रहनेवाले होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी रहेंगे और यदि तुममें से ऐसे हजार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से वे दो हज़ार पर प्रभावी रहेंगे। अल्लाह तो उन्ही लोगों के साथ है जो जमे रहते है।
  • 9:7 ➤ इन मुशरिकों को किसी संधि की कोई ज़िम्मेदारी अल्लाह और उसके रसूल पर कैसे बाक़ी रह सकती है? - उन लोगों का मामला इससे अलग है, जिनसे तुमने मस्जिदे हराम (काबा) के पास संधि की थी, तो जब तक वे तुम्हारे साथ सीधे रहें, तब तक तुम भी उनके साथ सीधे रहो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है।
  • 9:29 ➤ वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते है और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते है और न सत्यधर्म का अनुपालन करते है, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगे।
  • 17:10 ➤ और यह कि जो आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है।
  • 17:16 ➤ और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते है तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते है तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते है, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेकते है।
  • 2:190 ➤ और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता।
  • 2:193 ➤ तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं।
  • 2:244 ➤ और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाले है।
  • 3:157 ➤ और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है।
  • 3:158 ➤ हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे।
  • 4:74 ➤ तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे।
  • 4:76 ➤ ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है।
  • 4:89 ➤ वे तो चाहते है कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी है, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घरबार न छोड़े। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कही भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक।
  • 5:33 ➤ जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है।
  • 8:17 ➤ तुमने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ही ने उन्हें क़त्ल किया और जब तुमने (उनकी ओर मिट्टी और कंकड़) फेंक, तो तुमने नहीं फेंका बल्कि अल्लाह ने फेंका (कि अल्लाह अपनी गुण-गरिमा दिखाए) और ताकि अपनी ओर से ईमानवालों के गुण प्रकट करे। निस्संदेह अल्लाह सुनता, जानता है।
  • 19:86 ➤ और अपराधियों को जहन्नम के घाट की ओर प्यासा हाँक ले जाएँगे।
  • 21:95 ➤ और किसी बस्ती के लिए असम्भव है जिसे हमने विनष्ट कर दिया कि उसके लोग (क़ियामत के दिन दंड पाने हेतु) न लौटें।
  • 31:13 ➤ याद करो जब लुकमान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहा, "ऐ मेरे बेटे! अल्लाह का साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।"
  • 32:22 ➤ और उस व्यक्ति से बढकर अत्याचारी कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा याद दिलाया जाए,फिर वह उनसे मुँह फेर ले? निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेकर रहेंगे।
  • 33:61 ➤ फिटकारे हुए होंगे। जहाँ कही पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे।
  • 33:73 ➤ ताकि अल्लाह कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को यातना दे, और ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों पर अल्लाह कृपा-स्पष्ट करे। वास्तव में अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  • 41:27 ➤ अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मजा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे, जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे है।
  • 47:4 ➤ अतः जब इनकार करनेवालो से तुम्हारी मुठभेड़ हो तो (उनकी) गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह कुचल दो तो बन्धनों में जकड़ो, फिर बाद में या तो एहसान करो या फ़िदया (अर्थ-दंड) का मामला करो, यहाँ तक कि युद्ध अपने बोझ उतारकर रख दे। यह भली-भाँति समझ लो, यदि अल्लाह चाहे तो स्वयं उनसे निपट ले। किन्तु (उसने या आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे की परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते है उनके कर्म वह कदापि अकारथ न करेगा।
  • 58:5 ➤ जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं, वे अपमानित और तिरस्कृत होकर रहेंगे, जैसे उनसे पहले के लोग अपमानित और तिरस्कृत हो चुके है। हमने स्पष्ट आयतें अवतरित कर दी है और इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है।
  • 61:4 ➤ अल्लाह तो उन लोगों से प्रेम रखता है जो उसके मार्ग में पंक्तिबद्ध होकर लड़ते है मानो वे सीसा पिलाई हुए दीवार है।
➢ गैर मुसलमानों के विरुद्ध लड़ो और जिहाद करो
  • 25:52 ➤ अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
  • 9:41 ➤ हलके और बोझिल निकल पड़ो और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करो! यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
  • 29:69 ➤ रहे वे लोग जिन्होंने हमारे मार्ग में मिलकर प्रयास किया, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएँगे। निस्संदेह अल्लाह सुकर्मियों के साथ है।
  • 66:9 ➤ ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है।
  • 2:111 ➤ और उनका कहना है, "कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करता सिवाय उससे जो यहूदी है या ईसाई है।" ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ है। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।"
  • 2:154 ➤ और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता।
  • 5:35 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और उसका सामीप्य प्राप्त करो और उसके मार्ग में जी-तोड़ संघर्ष करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
  • 22:50 ➤ फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमादान और सम्मानपूर्वक आजीविका है।
  • 49:15 ➤ मोमिन तो बस वही लोग है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देह नहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्चे है।
  • 61:10 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! क्या मैं तुम्हें एक ऐसा व्यापार बताऊँ जो तुम्हें दुखद यातना से बचा ले?
  • 61:11 ➤ तुम्हें ईमान लाना है अल्लाह और उसके रसूल पर, और जिहाद करना है अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
  • 61:12 ➤ वह तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा और तुम्हें ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होगी और उन अच्छे घरों में भी जो सदाबहार बाग़ों में होंगे। यही बड़ी सफलता है।
  • 25:55 ➤ अल्लाह से इतर वे उनको पूजते है जो न उन्हें लाभ पहुँचा सकते है और न ही उन्हें हानि पहुँचा सकते है। और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब का विरोधी और उसके मुक़ाबले में दूसरों का सहायक बना हुआ है।
  • 4:95 ➤ ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है।
  • 4:84 ➤ अतः अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो - तुमपर तो बस तुम्हारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है - और ईमानवालों की कमज़ोरियो को दूर करो और उन्हें (युद्ध के लिए) उभारो। इसकी बहुत सम्भावना है कि अल्लाह इनकार करनेवालों के ज़ोर को रोक लगा दे। अल्लाह बड़ा ज़ोरवाला और कठोर दंड देनेवाला है
  • 4:100 ➤ जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा, और जो कोई अपने घर में सब कुछ छोड़कर अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका प्रतिदान अल्लाह के ज़िम्मे हो गया। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है।
  • 8:41 ➤ और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है।
  • 8:72 ➤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही लोग परस्पर एक-दूसरे के संरक्षक मित्र है। रहे वे लोग जो ईमान लाए, किन्तु उन्होंने हिजरत नहीं की, उनसे तुम्हारा संरक्षण और मित्रता का कोई सम्बन्ध नहीं है, जब तक कि वे हिजरत न करें, किन्तु यदि वे धर्म के मामले में तुमसे सहायता माँगे तो तुमपर अनिवार्य है कि सहायता करो, सिवाय इसके कि सहायता किसी ऐसी क़ौम के मुक़ाबले में हो जिससे तुम्हारी कोई संधि हो। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे देखता है।
  • 9:2 ➤ "अतः इस धरती में चार महीने और चल-फिर लो और यह बात जान लो कि अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और यह कि अल्लाह इनकार करनेवालों को अपमानित करता है।"
  • 9:3 ➤ सार्वजनिक उद्घॊषणा है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, बड़े हज के दिन लोगों के लिए, कि "अल्लाह मुशरिकों के प्रति जिम्मेदार से बरी है और उसका रसूल भी। अब यदि तुम तौबा कर लो, तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, किन्तु यदि तुम मुह मोड़ते हो, तो जान लो कि तुम अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।" और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो।
  • 9:20 ➤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ दर्जे में वे बहुत बड़े है और वही सफल है।
  • 9:21 ➤ उन्हें उनका रब अपना दयालुता और प्रसन्नता और ऐसे बाग़ों की शुभ-सूचना देता है, जिनमें उनके लिए स्थायी सुख-सामग्री है।
  • 9:22 ➤ उनमें वे सदैव रहेंगे। निस्संदेह अल्लाह के पास बड़ा बदला है।
  • 9:36 ➤ निस्संदेह महीनों की संख्या - अल्लाह के अध्यादेश में उस दिन से जब उसने आकाशों और धरती को पैदा किया - अल्लाह की दृष्टि में बारह महीने है। उनमें चार आदर के है, यही सीधा दीन (धर्म) है। अतः तुम उन (महीनों) में अपने ऊपर अत्याचार न करो। और मुशरिकों से तुम सबके सब लड़ो, जिस प्रकार वे सब मिलकर तुमसे लड़ते है। और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।
  • 9:37 ➤ (आदर के महीनों का) हटाना तो बस कुफ़्र में एक बृद्धि है, जिससे इनकार करनेवाले गुमराही में पड़ते है। किसी वर्ष वे उसे हलाल (वैध) ठहरा लेते है और किसी वर्ष उसको हराम ठहरा लेते है, ताकि अल्लाह के आदृत (महीनों) की संख्या पूरी कर लें, और इस प्रकार अल्लाह के हराम किए हुए को वैध ठहरा ले। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए है और अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।
  • 9:44 ➤ जो लोग अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते है, वे तुमसे कभी यह नहीं चाहेंगे कि उन्हें अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करने से माफ़ रखा जाए। और अल्लाह डर रखनेवालों को भली-भाँति जानता है।
  • 9:73 ➤ ऐ नबी! इनकार करनेवालों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। अन्ततः उनका ठिकाना जहन्नम है और वह जा पहुँचने की बहुत बुरी जगह है!
  • 15:2 ➤ ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते!
  • 44:51 ➤ निस्संदेह डर रखनेवाले निश्चिन्तता की जगह होंगे, बाग़ों और स्रोतों में बारीक और गाढ़े रेशम के वस्त्र पहने हुए, एक-दूसरे के आमने-सामने उपस्थित होंगे, ऐसा ही उनके साथ मामला होगा। और हम साफ़ गोरी, बड़ी नेत्रोवाली स्त्रियों से उनका विवाह कर देंगे, वे वहाँ निश्चिन्तता के साथ हर प्रकार के स्वादिष्ट फल मँगवाते होंगे, वहाँ वे मृत्यु का मज़ा कभी न चखेगे। बस पहली मृत्यु जो हुई, सो हुई। और उसने उन्हें भड़कती हुई आग की यातना से बचा लिया यह सब तुम्हारे रब के विशेष उदार अनुग्रह के कारण होगा, वही बड़ी सफलता है।
 see also: बाइबल के परस्पर विरोधी वचन (भाग २)

अल्लाह ने जन्नत के भोग-विलास आदि के सुख चाहने वाले मुसलमानों के लिए एक समाधान सुझाया है, और सशर्त एक सौदा किया है कि यदि वे अल्लाह के मार्ग में गैर-मुसलमानों के विरूद्ध अपनी जान व माल सहित 'जिहाद' यानी 'युद्ध करें ' और यदि उसमें वे मारे जाएँ तो निश्चित ही उनको जन्नत मिलेगा और यदि वे जीवित रहे तो वे विजितों के स्त्री धन, संपत्ति आदि से संसार में सुख भोगेंगे। यह अल्लाह का उनसे वादा है। देखिए अल्लाह का सौदा-
  • 9:111 ➤ निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में खरीद लिए है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते है, तो वे मारते भी है और मारे भी जाते है। यह उनके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। और यही सबसे बड़ी सफलता है।
  • 3:157 ➤ और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है।
  • 3:158 ➤ हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे।
अल्लाह स्वंय घोषणा करता है कि जन्नत पाने के लिए घर पर बैठे एक सदाचारी मुसलमान की अपेक्षा 'अल्लाह के लिए जिहाद' करने वाले का स्थान जन्नत में कहीं अधिक ऊँचा है, जैसे-
  • 4:74 ➤ तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे।
  • 4:95 ➤ ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है।
  • 61:10 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! क्या मैं तुम्हें एक ऐसा व्यापार बताऊँ जो तुम्हें दुखद यातना से बचा ले?
  • 61:11 ➤ तुम्हें ईमान लाना है अल्लाह और उसके रसूल पर, और जिहाद करना है अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
  • 61:12 ➤ वह तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा और तुम्हें ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होगी और उन अच्छे घरों में भी जो सदाबहार बाग़ों में होंगे। यही बड़ी सफलता है।
➢अल्लाह कुरान में जिहादियों को पुरस्कारों का आश्वासन देता है
  • 4:74 ➤ तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे।
  • 4:95 ➤ ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है।
  • 4:100 ➤ जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा, और जो कोई अपने घर में सब कुछ छोड़कर अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका प्रतिदान अल्लाह के ज़िम्मे हो गया। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है।
  • 9:20 ➤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ दर्जे में वे बहुत बड़े है और वही सफल है।
  • 9:21 ➤ उन्हें उनका रब अपना दयालुता और प्रसन्नता और ऐसे बाग़ों की शुभ-सूचना देता है, जिनमें उनके लिए स्थायी सुख-सामग्री है।
  • 9:22 ➤ उनमें वे सदैव रहेंगे। निस्संदेह अल्लाह के पास बड़ा बदला है।
  • 22:58 ➤ और जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़ा, फिर मारे गए या मर गए, अल्लाह अवश्य उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान करेगा। और निस्संदेह अल्लाह ही उत्तम आजीविका प्रदान करनेवाला है।
  • 78:31-34 ➤ निस्सदेह डर रखनेवालों के लिए एक बड़ी सफलता है, बाग़ है और अंगूर, और नवयौवना समान उम्रवाली, और छलक़ता जाम।
  • इन्द्रिय सुख के अतिरिक्त, जिहाद के लिए दुसरा प्रोत्साहन है, लुट का माल।
  • 8:69 ➤ अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
जिहाद के उपरोक्त पुरस्कारों का विश्वास कर यदि नई पीढ़ी-शिक्षित या अशिक्षित, सभी एक अच्छा सदाचारी मुसलमान बनने की अपेक्षा 'जिहादी' गतिविधियों की ओर आकर्षित होती है तो इसमें आश्चर्य क्या है ? वास्तविक स्थिति यह है कि इस्लाम में जिहाद द्वारा जन्नत की गारंटी और वहाँ सैक्स और लूट के प्रलोभन इस्लाम के प्रसार के सबसे बड़े कारण रहे हैं। जिहाद' इस्लाम का अभिन्न अंग है या यूं कहें कि 'जिहाद' ही इस्लाम है, और इस्लाम ही जिहाद है, तो अनुचित न होगा। जिहाद और जन्नत की जोड़ी के बिना इस्लाम का कोई अस्तित्व नहीं है।
 
see also: कुरान समीक्षा (भाग ४)

कुरान के जेहादी आयातें

जिहाद

  • 2:178 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है।
  • 2:179 ➤ ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो।
  • 2:190 ➤ और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता।
  • 2:191 ➤ और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है।
  • 2:193 ➤ तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं।
  • 2:194 ➤ प्रतिष्ठित महीना बराबर है प्रतिष्ठित महिने के, और समस्त प्रतिष्ठाओं का भी बराबरी का बदला है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो जैसी ज़्यादती वह तुम पर के, तुम भी उसी प्रकार उससे ज़्यादती का बदला लो। और अल्लाह का डर रखो और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।
  • 2:216 ➤ तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।"
  • 2:217 ➤ वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, "उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।" और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे।
  • 2:218 ➤ रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घर-बार छोड़ा और जिहाद किया, वहीं अल्लाह की दयालुता की आशा रखते है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।
  • 2:244 ➤ और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाले है।
  • 3:121 ➤ याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है।
  • 3:122 ➤ जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
  • 3:123 ➤ और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
  • 3:124 ➤ जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, "क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?"
  • 3:125 ➤ हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा।
  • 3:126 ➤ अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 3:140 ➤ यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है।
  • 3:141 ➤ और ताकि अल्लाह ईमानवालों को निखार दे और इनकार करनेवालों को मिटा दे।
  • 3:142 ➤ क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में यूँ ही प्रवेश करोगे, जबकि अल्लाह ने अभी उन्हें परखा ही नहीं जो तुममें जिहाद (सत्य-मार्ग में जानतोड़ कोशिश) करनेवाले है। - और दृढ़तापूर्वक जमें रहनेवाले है।
  • 3:143 ➤ और तुम तो मृत्यु की कामनाएँ कर रहे थे, जब तक कि वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब तो वह तुम्हारे सामने आ गई और तुमने उसे अपनी आँखों से देख लिया।
  • 3:156 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, "यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।" (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है।
  • 3:157 ➤ और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है।
  • 3:158 ➤ हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे।
  • 3:165 ➤ यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, "यह कहाँ से आ गई?" कह दो, "यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।"
  • 3:166 ➤ और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है।
  • 3:167 ➤ और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि "आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।" उन्होंने कहा, "यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।" उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
  • 3:169 ➤ तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं।
  • 3:172 ➤ जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया, इसके पश्चात कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। इन सत्कर्मी और (अल्लाह का) डर रखनेवालों के लिए बड़ा प्रतिदान है।
  • 3:173 ➤ ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, "तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।" तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, "हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है।"
  • 3:195 ➤ तो उनके रब ने उनकी पुकार सुन ली कि "मैं तुममें से किसी कर्म करनेवाले के कर्म को अकारथ नहीं करूँगा, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। तुम सब आपस में एक-दूसरे से हो। अतः जिन लोगों ने (अल्लाह के मार्ग में) घरबार छोड़ा और अपने घरों से निकाले गए और मेरे मार्ग में सताए गए, और लड़े और मारे गए, मैं उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दूँगा और उन्हें ऐसे बाग़ों में प्रवेश कराऊँगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।" यह अल्लाह के पास से उनका बदला होगा और सबसे अच्छा बदला अल्लाह ही के पास है।

see also: बाइबल के परस्पर विरोधी वचन (भाग १)

  • 4:71 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अपने बचाव की साम्रगी (हथियार आदि) सँभालो। फिर या तो अलग-अलग टुकड़ियों में निकलो या इकट्ठे होकर निकलो।
  • 4:72 ➤ तुमसे से कोई ऐसा भी है जो ढीला पड़ जाता है, फिर यदि तुमपर कोई मुसीबत आए तो कहने लगता है कि अल्लाह ने मुझपर कृपा की कि मैं इन लोगों के साथ न गया।
  • 4:74 ➤ तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे।
  • 4:75 ➤ तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि "हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।"
  • 4:76 ➤ ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है।
  • 4:77 ➤ क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो? फिर जब उन्हें युद्ध का आदेश दिया गया तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोगों का हाल यह है कि वे लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे अल्लाह का डर हो या यह डर उससे भी बढ़कर हो। कहने लगे, "हमारे रब! तूने हमपर युद्ध क्यों अनिवार्य कर दिया? क्यों न थोड़ी मुहलत हमें और दी?" कह दो, "दुनिया की पूँजी बहुत थोड़ी है, जबकि आख़िरत उस व्यक्ति के अधिक अच्छी है जो अल्लाह का डर रखता हो और तुम्हारे साथ तनिक भी अन्याय न किया जाएगा।
  • 4:84 ➤ अतः अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो - तुमपर तो बस तुम्हारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है - और ईमानवालों की कमज़ोरियो को दूर करो और उन्हें (युद्ध के लिए) उभारो। इसकी बहुत सम्भावना है कि अल्लाह इनकार करनेवालों के ज़ोर को रोक लगा दे। अल्लाह बड़ा ज़ोरवाला और कठोर दंड देनेवाला है।
  • 4:89 ➤ वे तो चाहते है कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी है, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घरबार न छोड़े। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कही भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक।
  • 4:90 ➤ सिवाय उन लोगों के जो ऐसे लोगों से सम्बन्ध रखते हों, जिनसे तुम्हारे और उनकी बीच कोई समझौता हो या वे तुम्हारे पास इस दशा में आएँ कि उनके दिल इससे तंग हो रहे हों कि वे तुमसे लड़े या अपने लोगों से लड़ाई करें। यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें तुमपर क़ाबू दे देता। फिर तो वे तुमसे अवश्य लड़ते; तो यदि वे तुमसे अलग रहें और तुमसे न लड़ें और संधि के लिए तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाएँ तो उनके विरुद्ध अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई रास्ता नहीं रखा है।
  • 4:91 ➤ अब तुम कुछ ऐसे लोगों को भी पाओगे, जो चाहते है कि तुम्हारी ओर से निश्चिन्त होकर रहें और अपने लोगों की ओर से भी निश्चिन्त होकर रहे। परन्तु जब भी वे फ़साद और उपद्रव की ओर फेरे गए तो वे उसी में औधे जो गिरे। तो यदि वे तुमसे अलग-थलग न रहें और तुम्हारी ओर सुलह का हाथ न बढ़ाएँ, और अपने हाथ न रोकें, तो तुम उन्हें पकड़ो और क़त्ल करो, जहाँ कहीं भी तुम उन्हें पाओ। उनके विरुद्ध हमने तुम्हें खुला अधिकार दे रखा है।
  • 4:103 ➤ फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तो विधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है।
  • 4:104 ➤ और उन लोगों का पीछा करने में सुस्ती न दिखाओ। यदि तुम्हें दुख पहुँचता है; तो उन्हें भी दुख पहुँचता है, जिस तरह तुमको दुख पहुँचता है। और तुम अल्लाह से उस चीज़ की आशा करते हो, जिस चीज़ की वे आशा नहीं करते। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है।
  • 4:141 ➤ जो तुम्हारे मामले में प्रतीक्षा करते है, यदि अल्लाह की ओर से तुम्हारी विजय़ हुई तो कहते है, "क्या हम तुम्हार साथ न थे?" और यदि विधर्मियों के हाथ कुछ लगा तो कहते है, "क्या हमने तुम्हें घेर नहीं लिया था और ईमानवालों से बचाया नहीं?" अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच फ़ैसला कर देगा, और अल्लाह विधर्मियों को ईमानवालों के मुक़ाबले में कोई राह नहीं देगा।
  • 5:33 ➤ जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है।
  • 5:35 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और उसका सामीप्य प्राप्त करो और उसके मार्ग में जी-तोड़ संघर्ष करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
  • 5:82 ➤ तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालो के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते।
  • 8:1 ➤ वे तुमसे ग़नीमतों के विषय में पूछते है। कहो, "ग़नीमतें अल्लाह और रसूल की है। अतः अल्लाह का डर रखों और आपस के सम्बन्धों को ठीक रखो। और, अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो, यदि तुम ईमानवाले हो।
  • 8:5 ➤ (यह बिल्कुल वैसी ही परिस्थित है) जैसे तुम्हारे ने तुम्हें तुम्हारे घर से एक उद्देश्य के साथ निकाला, किन्तु ईमानवालों में से एक गिरोह को यह अप्रिय लगा था।
  • 8:7 ➤ और याद करो जब अल्लाह तुमसे वादा कर रहा था कि दो गिरोहों में से एक तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि तुम्हें वह हाथ आए, जो निःशस्त्र था, हालाँकि अल्लाह चाहता था कि अपने वचनों से सत्य को सत्य कर दिखाए और इनकार करनेवालों की जड़ काट दे।
  • 8:9 ➤ याद करो जब तुम अपने रब से फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी पुकार सुन ली। (उसने कहा,) "मैं एक हजार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करूँगा जो तुम्हारे साथी होंगे।"
  • 8:10 ➤ अल्लाह ने यह केवल इसलिए किया कि यह एक शुभ-सूचना हो और ताकि इससे तुम्हारे हृदय संतुष्ट हो जाएँ। सहायता अल्लाह ही के यहाँ से होती है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 8:12 ➤ याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!"
  • 8:15 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! जब एक सेना के रूप में तुम्हारा इनकार करनेवालों से मुक़ाबला हो तो पीठ न फेरो।
  • 8:16 ➤ जिस किसी ने भी उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरी - यह और बात है कि युद्ध-चाल के रूप में या दूसरी टुकड़ी से मिलने के लिए ऐसा करे - तो वह अल्लाह के प्रकोप का भागी हुआ और उसका ठिकाना जहन्नम है, और क्या ही बुरा जगह है वह पहुँचने की!
  • 8:17 ➤ तुमने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ही ने उन्हें क़त्ल किया और जब तुमने (उनकी ओर मिट्टी और कंकड़) फेंक, तो तुमने नहीं फेंका बल्कि अल्लाह ने फेंका (कि अल्लाह अपनी गुण-गरिमा दिखाए) और ताकि अपनी ओर से ईमानवालों के गुण प्रकट करे। निस्संदेह अल्लाह सुनता, जानता है।
  • 8:39 ➤ उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है।
  • 8:40 ➤ किन्तु यदि वे मुँह मोड़े तो जान रखो कि अल्लाह संरक्षक है। क्या ही अच्छा संरक्षक है वह, और क्या ही अच्छा सहायक!
  • 8:41 ➤ और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है।
  • 8:42 ➤ याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है।
  • 8:43 ➤ और याद करो जब अल्लाह उनको तुम्हारे स्वप्न में थोड़ा करके तुम्हें दिखा रहा था और यदि वह उन्हें ज़्यादा करके तुम्हें दिखा देता तो अवश्य ही तुम हिम्मत हार बैठते और असल मामले में झगड़ने लग जाते, किन्तु अल्लाह ने इससे बचा लिया। निश्चय ही वह तो जो कुछ दिलों में होता है उसे भी जानता है।
  • 8:57 ➤ अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
  • 8:58 ➤ और यदि तुम्हें किसी क़ौम से विश्वासघात की आशंका हो, तो तुम भी उसी प्रकार ऐसे लोगों के साथ हुई संधि को खुल्लम-खुल्ला उनके आगे फेंक दो। निश्चय ही अल्लाह को विश्वासघात करनेवाले प्रिय नहीं।
  • 8:59 ➤ इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।
  • 8:60 ➤ और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा।
  • 8:65 ➤ ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुमसे से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग है।
  • 8:66 ➤ अब अल्लाह ने तुम्हारे बोझ हल्का कर दिया और उसे मालूम हुआ कि तुममें कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुम्हारे सौ आदमी जमे रहनेवाले होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी रहेंगे और यदि तुममें से ऐसे हजार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से वे दो हज़ार पर प्रभावी रहेंगे। अल्लाह तो उन्ही लोगों के साथ है जो जमे रहते है।
  • 8:67 ➤ किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 8:68 ➤ यदि अल्लाह का लिखा पहले से मौजूद न होता, तो जो कुछ नीति तुमने अपनाई है उसपर तुम्हें कोई बड़ी यातना आ लेती।
  • 8:69 ➤ अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
  • 8:70 ➤ ऐ नबी! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्जें में है, उनसे कह दो, "यदि अल्लाह ने यह जान लिया कि तुम्हारे दिलों में कुछ भलाई है तो वह तुम्हें उससे कहीं उत्तम प्रदान करेगा, जो तुम से छिन गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।"
  • 8:71 ➤ किन्तुम यदि वे तुम्हारे साथ विश्वासघात करना चाहेंगे, तो इससे पहले वे अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके है। तो उसने तुम्हें उनपर अधिकार दे दिया। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, बड़ा तत्वदर्शी है।
  • 8:72 ➤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही लोग परस्पर एक-दूसरे के संरक्षक मित्र है। रहे वे लोग जो ईमान लाए, किन्तु उन्होंने हिजरत नहीं की, उनसे तुम्हारा संरक्षण और मित्रता का कोई सम्बन्ध नहीं है, जब तक कि वे हिजरत न करें, किन्तु यदि वे धर्म के मामले में तुमसे सहायता माँगे तो तुमपर अनिवार्य है कि सहायता करो, सिवाय इसके कि सहायता किसी ऐसी क़ौम के मुक़ाबले में हो जिससे तुम्हारी कोई संधि हो। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे देखता है।
  • 8:73 ➤ जो इनकार करनेवाले लोग है, वे आपस में एक-दूसरे के मित्र और सहायक है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो धरती में फ़ितना और बड़ा फ़साद फैलेगा।
  • 8:74 ➤ और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की वही सच्चे मोमिन हैं। उनके क्षमा और सम्मानित - उत्तम आजीविका है।
  • 8:75 ➤ और जो लोग बाद में ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया तो ऐसे लोग भी तुम में ही से हैं। किन्तु अल्लाह की किताब मे ख़ून के रिश्तेदार एक-दूसरे के ज़्यादा हक़दार है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।
  • 9:5 ➤ फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  • 9:12 ➤ और यदि अपने अभिवचन के पश्चात वे अपनी क़समॊं कॊ तॊड़ डालॆं और तुम्हारॆ दीन (धर्म) पर चॊटें करनॆ लगॆं, तॊ फिर कुफ़्र (अधर्म) कॆ सरदारों सॆ युद्ध करॊ, उनकी क़समॆं कुछ नहीं, ताकि वॆ बाज़ आ जाऐं।
  • 9:13 ➤ क्या तुम ऐसॆ लॊगॊं सॆ नहीं लड़ॊगॆ जिन्हॊंनॆ अपनी क़समों को तोड़ डालीं और रसूल को निकाल देना चाहा और वही हैं जिन्होंने तुमसे छेड़ में पहल की? क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम मोमिन हो तो इसका ज़्यादा हक़दार अल्लाह है कि तुम उससे डरो।
  • 9:14 ➤ उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा। और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा;
  • 9:16 ➤ क्या तुमने यह समझ रखा है कि तुम ऐसे ही छोड़ दिए जाओगे, हालाँकि अल्लाह ने अभी उन लोगों को छाँटा ही नहीं, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया और अल्लाह और उसके रसूल और मोमिनों को छोड़कर किसी को घनिष्ठ मित्र नहीं बनाया? तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।
  • 9:19 ➤ क्या तुमने हाजियों को पानी पिलाने और मस्जिदे हराम (काबा) के प्रबंध को उस क्यक्ति के काम के बराबर ठहरा लिया है, जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया और उसने अल्लाह के मार्ग में संघर्ष किया?अल्लाह की दृष्टि में वे बराबर नहीं। और अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।
  • 9:20 ➤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ दर्जे में वे बहुत बड़े है और वही सफल है।
  • 9:24 ➤ कह दो, "यदि तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी पत्नि यों और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और माल, जो तुमने कमाए है और कारोबार जिसके मन्दा पड़ जाने का तुम्हें भय है और घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल और उसके मार्ग में जिहाद करने से अधिक प्रिय है तो प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला ले आए। औऱ अल्लाह अवज्ञाकारियों को मार्ग नहीं दिखाता।"
  • 9:25 ➤ अल्लाह बहुत-से अवसरों पर तुम्हारी सहायता कर चुका है और हुनैन (की लड़ाई) के दिन भी, जब तुम अपनी अधिकता पर फूल गए, तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और धरती अपनी विशालता के बावजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ फेरकर भाग खड़े हुए।
  • 9:26 ➤ अन्ततः अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनों पर अपनी सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और ऐसी सेनाएँ उतारी जिनको तुमने नहीं देखा। और इनकार करनेवालों को यातना दी, और यही इनकार करनेवालों का बदला है।
  • 9:29 ➤ वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते है और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते है और न सत्यधर्म का अनुपालन करते है, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगे।
  • 9:36 ➤ निस्संदेह महीनों की संख्या - अल्लाह के अध्यादेश में उस दिन से जब उसने आकाशों और धरती को पैदा किया - अल्लाह की दृष्टि में बारह महीने है। उनमें चार आदर के है, यही सीधा दीन (धर्म) है। अतः तुम उन (महीनों) में अपने ऊपर अत्याचार न करो। और मुशरिकों से तुम सबके सब लड़ो, जिस प्रकार वे सब मिलकर तुमसे लड़ते है। और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।
  • 9:38 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है, "अल्लाह के मार्ग में निकलो" तो तुम धरती पर ढहे जाते हो? क्या तुम आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन पर राज़ी हो गए? सांसारिक जीवन की सुख-सामग्री तो आख़िरत के हिसाब में है कुछ थोड़ी ही!
  • 9:39 ➤ यदि तुम निकालोगे तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा और वह तुम्हारी जगह दूसरे गिरोह को ले आएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। और अल्लाह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है।
  • 9:41 ➤ हलके और बोझिल निकल पड़ो और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करो! यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
  • 9:44 ➤ जो लोग अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते है, वे तुमसे कभी यह नहीं चाहेंगे कि उन्हें अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करने से माफ़ रखा जाए। और अल्लाह डर रखनेवालों को भली-भाँति जानता है।
  • 9:52 ➤ कहो, "तुम हमारे लिए दो भलाईयों में से किसी एक भलाई के सिवा किसकी प्रतीक्षा कर सकते है? जबकि हमें तुम्हारे हक़ में इसी की प्रतिक्षा है कि अल्लाह अपनी ओर से तुम्हें कोई यातना देता है या हमारे हाथों दिलाता है। अच्छा तो तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहे है।"
  • 9:73 ➤ ऐ नबी! इनकार करनेवालों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। अन्ततः उनका ठिकाना जहन्नम है और वह जा पहुँचने की बहुत बुरी जगह है!
  • 9:81 ➤ पीछे रह जानेवाले अल्लाह के रसूल के पीछे अपने बैठ रहने पर प्रसन्न हुए। उन्हें यह नापसन्द हुआ कि अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करें। और उन्होंने कहा, "इस गर्मी में न निकलो।" कह दो, "जहन्नम की आग इससे कहीं अधिक गर्म है," यदि वे समझ पाते (तो ऐसा न कहते)।
  • 9:83 ➤ अव यदि अल्लाह तुम्हें उनके किसी गिरोह की ओर रुजू कर दे और भविष्य में वे तुमसे साथ निकलने की अनुमति चाहें तो कह देना, "तुम मेरे साथ कभी भी नहीं निकल सकते और न मेरे साथ होकर किसी शत्रु से लड़ सकते हो। तुम पहली बार बैठ रहने पर ही राज़ी हुए, तो अब पीछे रहनेवालों के साथ बैठे रहो।"
  • 9:86 ➤ और जब कोई सूरा उतरती है कि "अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ होकर जिहाद करो।" तो उनके सामर्थ्यवान लोग तुमसे छुट्टी माँगने लगते है और कहते है कि "हमें छोड़ दो कि हम बैठनेवालों के साथ रह जाएँ।"
  • 9:88 ➤ किन्तु, रसूल और उसके ईमानवाले साथियों ने अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया, और वही लोग है जिनके लिए भलाइयाँ है और वही लोग है जो सफल है।
  • 9:92 ➤ और न उन लोगों पर आक्षेप करने की कोई गुंजाइश है जिनका हाल यह है कि जब वे तुम्हारे पास आते है, कि तुम उनके लिए सवारी का प्रबन्ध कर दो, तुम कहते हो, "मुझे ऐसा कुछ प्राप्त नहीं जिसपर तुम्हें सवार करूँ।" वे इस दशा में लौटते है कि इस ग़म में उनकी आँखे आँसू बहा रही होती है कि वे अपने पास ख़र्च करने को कुछ नहीं पाते।
  • 9:111 ➤ निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में खरीद लिए है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते है, तो वे मारते भी है और मारे भी जाते है। यह उनके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। और यही सबसे बड़ी सफलता है।
  • 9:120 ➤ मदीनावालों और उसके आसपास के बद्दूहओं को ऐसा नहीं चाहिए था कि अल्लाह के रसूल को छोड़कर पीछे रह जाएँ और न यह कि उसकी जान के मुक़ाबले में उन्हें अपनी जान अधिक प्रिय हो, क्योंकि वह अल्लाह के मार्ग में प्यास या थकान या भूख की कोई भी तकलीफ़ उठाएँ या किसी ऐसी जगह क़दम रखें, जिससे काफ़िरों का क्रोध भड़के या जो चरका भी वे शत्रु को लगाएँ, उसपर उनके हक में अनिवार्यतः एक सुकर्म लिख लिया जाता है। निस्संदेह अल्लाह उत्तमकार का कर्मफल अकारथ नहीं जाने देता।
  • 9:122 ➤ यह तो नहीं कि ईमानवाले सब के सब निकल खड़े हों, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि उनके हर गिरोह में से कुछ लोग निकलते, ताकि वे धर्म में समझ प्राप्ति करते और ताकि वे अपने लोगों को सचेत करते, जब वे उनकी ओर लौटते, ताकि वे (बुरे कर्मों से) बचते?
  • 9:123 ➤ ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट है और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है।
  • 16:110 ➤ फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने इसके उपरान्त कि वे आज़माइश में पड़ चुके थे घर-बार छोड़ा, फिर जिहाद (संघर्ष) किया और जमे रहे तो इन बातों के पश्चात तो निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
  • 22:39 ➤ अनुमति दी गई उन लोगों को जिनके विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है, क्योंकि उनपर ज़ुल्म किया गया - और निश्चय ही अल्लाह उनकी सहायता की पूरी सामर्थ्य रखता है।
  • 22:58 ➤ और जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़ा, फिर मारे गए या मर गए, अल्लाह अवश्य उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान करेगा। और निस्संदेह अल्लाह ही उत्तम आजीविका प्रदान करनेवाला है।
  • 22:78 ➤ और परस्पर मिलकर जिहाद करो अल्लाह के मार्ग में, जैसा कि जिहाद का हक़ है। उसने तुम्हें चुन लिया है - और धर्म के मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नहीं रखी। तुम्हारे बाप इबराहीम के पंथ को तुम्हारे लिए पसन्द किया। उसने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था और इस ध्येय से - ताकि रसूल तुमपर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह हो। अतः नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और अल्लाह को मज़बूती से पकड़े रहो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो क्या ही अच्छा संरक्षक है और क्या ही अच्छा सहायक!
  • 24:53 ➤ वे अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते है कि यदि तुम उन्हें हुक्म दो तो वे अवश्य निकल खड़े होंगे। कह दो, "क़समें न खाओ। सामान्य नियम के अनुसार आज्ञापालन ही वास्तकिव चीज़ है। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।"
  • 24:55 ➤ अल्लाह ने उन लोगों से जो तुममें से ईमान लाए और उन्होने अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य सत्ताधिकार प्रदान करेगा, जैसे उसने उनसे पहले के लोगों को सत्ताधिकार प्रदान किया था। औऱ उनके लिए अवश्य उनके उस धर्म को जमाव प्रदान करेगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चय ही उनके वर्तमान भय के पश्चात उसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते है, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते। और जो कोई इसके पश्चात इनकार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है।
  • 25:52 ➤ अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
  • 29:6 ➤ और जो व्यक्ति (अल्लाह के मार्ग में) संघर्ष करता है वह तो स्वयं अपने ही लिए संघर्ष करता है। निश्चय ही अल्लाह सारे संसार से निस्पृह है।
  • 29:69 ➤ रहे वे लोग जिन्होंने हमारे मार्ग में मिलकर प्रयास किया, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएँगे। निस्संदेह अल्लाह सुकर्मियों के साथ है।
  • 33:15 ➤ यद्यपि वे इससे पहले अल्लाह को वचन दे चुके थे कि वे पीठ न फेरेंगे, और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के विषय में तो पूछा जाना ही है।
  • 33:18 ➤ अल्लाह तुममें से उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो (युद्ध से) रोकते है और अपने भाइयों से कहते है, "हमारे पास आ जाओ।" और वे लड़ाई में थोड़े ही आते है, (क्योंकि वे)।
  • 33:20 ➤ वे समझ रहे है कि (शत्रु के) सैन्य दल अभी गए नहीं हैं, और यदि वे गिरोह फिर आ जाएँ तो वे चाहेंगे कि किसी प्रकार बाहर (मरुस्थल में) बद्दु ओं के साथ हो रहें और वहीं से तुम्हारे बारे में समाचार पूछते रहे। और यदि वे तुम्हारे साथ होते भी तो लड़ाई में हिस्सा थोड़े ही लेते।
  • 33:23 ➤ ईमानवालों के रूप में ऐसे पुरुष मौजूद है कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने अल्लाह से की थी उसे उन्होंने सच्चा कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण पूरा कर चुके और उनमें से कुछ प्रतीक्षा में है। और उन्होंने अपनी बात तनिक भी नहीं बदली।
  • 33:25 ➤ अल्लाह ने इनकार करनेवालों को उनके अपने क्रोध के साथ फेर दिया। वे कोई भलाई प्राप्त न कर सके। अल्लाह ने मोमिनों को युद्ध करने से बचा लिया। अल्लाह तो है ही बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली।
  • 33:26 ➤ और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे।
  • 33:27 ➤ और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
  • 33:50 ➤ ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियों वैध कर दी है जिनके मह्रक तुम दे चुके हो, और उन स्त्रियों को भी जो तुम्हारी मिल्कियत में आई, जिन्हें अल्लाह ने ग़नीमत के रूप में तुम्हें दी और तुम्हारी चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामुओं की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। ईमानवालों से हटकर यह केवल तुम्हारे ही लिए है, हमें मालूम है जो कुछ हमने उनकी पत्ऩियों और उनकी लौड़ियों के बारे में उनपर अनिवार्य किया है - ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है।
  • 42:39 ➤ और जो ऐसे है कि जब उनपर ज़्यादती होती है तो वे प्रतिशोध करते है।
  • 47:4 ➤ अतः जब इनकार करनेवालो से तुम्हारी मुठभेड़ हो तो (उनकी) गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह कुचल दो तो बन्धनों में जकड़ो, फिर बाद में या तो एहसान करो या फ़िदया (अर्थ-दंड) का मामला करो, यहाँ तक कि युद्ध अपने बोझ उतारकर रख दे। यह भली-भाँति समझ लो, यदि अल्लाह चाहे तो स्वयं उनसे निपट ले। किन्तु (उसने या आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे की परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते है उनके कर्म वह कदापि अकारथ न करेगा।
  • 47:20 ➤ जो लोग ईमान लाए वे कहते है, "कोई सूरा क्यों नहीं उतरी?" किन्तु जब एक पक्की सूरा अवतरित की जाती है, जिसमें युद्ध का उल्लेख होता है, तो तुम उन लोगों को देखते हो जिनके दिलों में रोग है कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार देखते है जैसे किसी पर मृत्यु की बेहोशी छा गई हो। तो अफ़सोस है उनके हाल पर!
  • 47:35 ➤ अतः ऐसा न हो कि तुम हिम्मत हार जाओ और सुलह का निमंत्रण देने लगो, जबकि तुम ही प्रभावी हो। अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह तुम्हारे कर्मों (के फल) में तुम्हें कदापि हानि न पहुँचाएगा।
  • 48:15 ➤ जब तुम ग़नीमतों को प्राप्त करने के लिए उनकी ओर चलोगे तो पीछे रहनेवाले कहेंगे, "हमें भी अनुमति दी जाए कि हम तुम्हारे साथ चले।" वे चाहते है कि अल्लाह का कथन को बदल दे। कह देना, "तुम हमारे साथ कदापि नहीं चल सकते। अल्लाह ने पहले ही ऐसा कह दिया है।" इसपर वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम हमसे ईर्ष्या कर रहे हो।" नहीं, बल्कि वे लोग समझते थोड़े ही है।
  • 48:16 ➤ पीछे रह जानेवाले बद्‌दूओं से कहना, "शीघ्र ही तुम्हें ऐसे लोगों की ओर बुलाया जाएगा जो बड़े युद्धवीर है कि तुम उनसे लड़ो या वे आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञापालन करोगे तो अल्लाह तुम्हें अच्छा बदला प्रदान करेगा। किन्तु यदि तुम फिर गए, जैसे पहले फिर गए थे, तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा।"
  • 48:17 ➤ न अन्धे के लिए कोई हरज है, न लँगडे के लिए कोई हरज है और न बीमार के लिए कोई हरज है। जो भी अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करके, जिनके नीचे नहरे बह रही होगी, किन्तु जो मुँह फेरेगा उसे वह दुखद यातना देगा।
  • 48:18 ➤ निश्चय ही अल्लाह मोमिनों से प्रसन्न हुआ, जब वे वृक्ष के नीचे तुमसे बैअत कर रहे थे। उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर उसने सकीना (प्रशान्ति) उतारी और बदले में उन्हें मिलनेवाली विजय निश्चित कर दी;।
  • 48:19 ➤ और बहुत-सी ग़नीमतें भी, जिन्हें वे प्राप्त करेंगे। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  • 48:20 ➤ अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गंनीमतों का वादा किया हैं, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी। और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) और ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो। और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे।
  • 48:21 ➤ इसके अतिरिक्त दूसरी और विजय का भी वादा है, जिसकी सामर्थ्य अभी तुम्हे प्राप्त नहीं, उन्हें अल्लाह ने घेर रखा है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
  • 48:22 ➤ यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक।
  • 48:23 ➤ यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे।
  • 48:24 ➤ वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे।
  • 49:15 ➤ मोमिन तो बस वही लोग है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देह नहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्चे है।
  • 59:2 ➤ वही है जिसने किताबवालों में से उन लोगों को जिन्होंने इनकार किया, उनके घरों से पहले ही जमावड़े में निकल बाहर किया। तुम्हें गुमान न था कि उनकी गढ़ियाँ अल्लाह से उन्हें बचा लेंगी। किन्तु अल्लाह उनपर वहाँ से आया जिसका उन्हें गुमान भी न था। और उसने उनके दिलों में रोब डाल दिया कि वे अपने घरों को स्वयं अपने हाथों और ईमानवालों के हाथों भी उजाड़ने लगे। अतः शिक्षा ग्रहण करो, ऐ दृष्टि रखनेवालो!
  • 59:5 ➤ तुमने खजूर के जो वृक्ष काटे या उन्हें उनकी जड़ों पर खड़ा छोड़ दिया तो यह अल्लाह ही की अनुज्ञा से हुआ (ताकि ईमानवालों के लिए आसानी पैदा करे) और इसलिए कि वह अवज्ञाकारियों को रुसवा करे।
  • 59:6 ➤ और अल्लाह ने उनसे लेकर अपने रसूल की ओर जो कुछ पलटाया, उसके लिए न तो तुमने घोड़े दौड़ाए और न ऊँट। किन्तु अल्लाह अपने रसूलों को जिसपर चाहता है प्रभुत्व प्रदान कर देता है। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्ति है।
  • 59:7 ➤ जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल की ओर बस्तियोंवालों से लेकर पलटाया वह अल्लाह और रसूल और (मुहताज) नातेदार और अनाथों और मुहताजों और मुसाफ़िर के लिए है, ताकि वह (माल) तुम्हारे मालदारों ही के बीच चक्कर न लगाता रहे - रसूल जो कुछ तुम्हें दे उसे ले लो और जिस चीज़ से तुम्हें रोक दे उससे रुक जाओ, और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह की यातना बहुत कठोर है।
  • 59:8 ➤ वह ग़रीब मुहाजिरों के लिए है, जो अपने घरों और अपने मालों से इस हालत में निकाल बाहर किए गए है कि वे अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की तलाश में है और अल्लाह और उसके रसूल की सहायता कर रहे है, और वही वास्तव में सच्चे है।
  • 59:14 ➤ वे इकट्ठे होकर भी तुमसे (खुले मैदान में) नहीं लड़ेगे, क़िलाबन्द बस्तियों या दीवारों के पीछ हों तो यह और बात है। उनकी आपस में सख़्त लड़ाई है। तुम उन्हें इकट्ठा समझते हो! हालाँकि उनके दिल फटे हुए है। यह इसलिए कि वे ऐसे लोग है जो बुद्धि से काम नहीं लेते।
  • 60:9 ➤ अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम है।
  • 61:4 ➤ अल्लाह तो उन लोगों से प्रेम रखता है जो उसके मार्ग में पंक्तिबद्ध होकर लड़ते है मानो वे सीसा पिलाई हुए दीवार है।
  • 61:11 ➤ तुम्हें ईमान लाना है अल्लाह और उसके रसूल पर, और जिहाद करना है अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
  • 61:13 ➤ और दूसरी चीज़ भी जो तुम्हें प्रिय है (प्रदान करेगा), "अल्लाह की ओर से सहायता और निकट प्राप्त होनेवाली विजय," ईमानवालों को शुभसूचना दे दो!
  • 63:4 ➤ तुम उन्हें देखते हो तो उनके शरीर (बाह्य रूप) तुम्हें अच्छे लगते है, औरयदि वे बात करें तो उनकी बात तुम सुनते रह जाओ। किन्तु यह ऐसा ही है मानो वे लकड़ी के कुंदे है, जिन्हें (दीवार के सहारे) खड़ा कर दिया गया हो। हर ज़ोर की आवाज़ को वे अपने ही विरुद्ध समझते है। वही वास्तविक शत्रु हैं, अतः उनसे बचकर रहो। अल्लाह की मार उनपर। वे कहाँ उल्टे फिरे जा रहे है!
  • 64:14 ➤ ऐ ईमान लानेवालो, तुम्हारी पत्नियों और तुम्हारी सन्तान में से कुछ ऐसे भी है जो तुम्हारे शत्रु है। अतः उनसे होशियार रहो। और यदि तुम माफ़ कर दो और टाल जाओ और क्षमा कर दो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
  • 66:9 ➤ ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है।
  • 73:20 ➤ निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़े रहते हो, और एक गिरोंह उन लोगों में से भी जो तुम्हारे साथ है, खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अब जितना क़ुरआन आसानी से हो सके पढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममे से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढ़ते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरे लोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को ऋण दो, अच्छा ऋण। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगे उसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।
  • 76:8 ➤ और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते है,।

🔥🔥🔥सहायक ग्रंथो के नाम और pdf link🔥🔥🔥

An intro to Real Islam & Jihad

History of Jihad

Islamic Jihad

This is Jihad

Sword Verses and Jihad in Quran

Jihad: The Islamic Doctrine of Permanent War

An Exegesis on Jihad in Islam

Two Faces of Jihad

भारत में जिहाद

जिहाद के प्रलोभन: सैक्स और लूट

जिहाद के नाम पर कल्लेआम

जिहादियों को जन्नत कयामत के बाद