सोमवार, 2 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवत पुराण समीक्षा

✍️ संकलक ➩  शुभंकर मण्डल

श्रीमद्भागवत पुराण समीक्षा



🌲🌲🌲 विचित्र मानव उत्पत्ति 🌲🌲🌲


🌺 क्षुवतस्त मनोर्जज्ञे इक्ष्वाकुघ्राणत: सुत:। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय ६, श्लोक ४)🌷
🌻🌻 परीक्षित! एकबार मनुजीके छींकनेपर उनकी नासिका से इक्ष्वाकु नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. छींकनेपर पुत्र जन्म होता है?? यह कैसे संभव है??🤔🤔🤔
२. यह कैसा विज्ञान है?? जरुर लीला विज्ञान या फिर वैष्णव लोगों का विज्ञान होगा 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 विचित्र योगी 🌲🌲🌲


🌺 शशबिन्दुर्महायोगी महाभोजो महानभूत्।
तस्य पत्नीसहस्राणां दशानां सुमहायशा:।
दशलक्षसहस्राणि पुत्राणां तास्वजीजनत्। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय २३, श्लोक ३१,३२,३३) 🌷
🌻🌻 शशबिन्दु नाम का एक महान योगी, महान् भोगैश्वर्यसम्पन्न, अत्यन्त पराक्रमी था। उसके दश हजार पत्नियां थीं। उनमें से एक-एकके लाख-लाख सन्तान हुई थीं। इस प्रकार उसके सौ करोड़—एक अरब संतानें उत्पन्न हुई। 🌻🌻
समीक्षा👉 १. एक सन्तान के जन्म होने में समय लगता है १० महीने १० दिन। अभी आप लोग विचार किजिए एक एक स्त्री के एक लाख सन्तान जन्म होने में कितना समय लगेगा??  जब last संतान जन्म हुआ तब पहले जो संतान जन्म हुआ था उसका उम्र क्या था? राजा और उनके स्त्रीयों का उम्र कितनी थी?? 🤔🤔🤔
२. एक तरफ कहा गया है योगी, दुसरे तरह कहा गया है सौ करोड़ सन्तान के पिता!! यह दिमाग के उपर से चला गया!! 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 रासलीला 🌲🌲🌲


रासलीला

🌺 बाहुप्रसारपरिरम्भकरालकोरु-
नीवीस्तनालभननर्मनखाग्रपातैः ।
क्ष्वेल्यावलोकहसितैर्व्रसुन्दरीणा-
मुत्तम्भयन् रतिपतिं रमयाञ्चकार।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय २९ , श्लोक ४६) 🌷
🌻🌻 हाथ फैलाना, आलिंगन करना, गोपियोंके हाथ दबाना, उनकी चोटी , जाँघ, नीवी और स्तन आदिका स्पर्श करना, विनोद करना, नखक्षत करना, विनोदपूर्ण चितवनसे देखना और मुसकाना-इन क्रियाओंके द्वारा
गोपियोंके दिव्य कामरसको, परमोज्ज्वल प्रेमभावको उत्तेजित करते हुए भगवान् श्रीकृष्ण उन्हें क्रीडाद्वारा आन्दित करने लगे। 🌻🌻
🌺 कस्याश्चिन्नाट्यविक्षिप्तकुण्डलत्विषमण्डितम् ।
गण्डं गण्डे सन्दधत्या अदात्ताम्बूलचर्वितम् ।।
नृत्यन्ती गायती काचित् कूजननपुरमेखला ।
पा्श्वस्थाच्युतहस्ताब्जं श्रान्ताधात् स्तनयोः शिवम् ।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय ३३, श्लोक १३,१४) 🌷
🌻🌻 एक गोपी नृत्य कर रही थी। नाचनेके कारण उसके कुण्डल हिल रहे थे, उनकी छटासे उसके कपोल और भी चमक रहे थे। उसने अपने कपोलोंको भगवान् श्रीकृष्णके कपोलसे सटा दिया और भगवान्ने उसके मुँहमें अपना चबाया हुआ पान दे दिया। कोई गोपी नूपुर और करधनीके घुँघरुओंको झनकारती हुई नाच और गा रही थी। वह जब बहुत थक गयी, तब उसने अपने बगलमें ही खड़े श्यामसुन्दरके शीतल करकमलको अपने दोनों स्तनोंपर रख लिया। 🌻
समीक्षा 👉 १. वाह वाह, क्या खूब कृष्ण जी का अवतार धर्म स्थापना, सज्जनों की रक्षा के लिए हुआ था या फिर नारियों के साथ विषय भोग करने के लिए हुआ था? कौन सी बात सच मानें? 🤔🤔🤔
२. एक तरफ कहते हो कि श्री कृष्ण ईश्वर थे, 16 कला के पूर्णावतार थे, दुसरे तरह कहते हो

🌲🌲🌲 अवतार 🌲🌲🌲


अवतार
🌺 ततः सप्तदशे जातः सत्यवत्यां पराशरात् ।
चक्रे वेदतरोः शाखा दृष्ट्वा पुंसोऽल्पमेधसः
नरदेवत्वमापन्नः सुरकार्यचिकीर्षया।
समुद्रनिग्रहादीनि चक्रे वीर्याण्यतः परम् ।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, प्रथम स्कंध, अध्याय ३, श्लोक २१,२२) 🌷
🌻🌻 इसके बाद सत्रहवें अवतारमें सत्यवतीके गर्भसे पराशरजीके द्वारा वे व्यासके रूपमें अवतीर्ण हुए, उस समय लोगोंकी समझ और धारणाशत्ति कम देखकर आपने वेदरूप वृक्षकी कई शाखाएँ बना दीं। अठारहवीं बार देवताओंका कार्य सम्पन्न करनेकी इच्छासे उन्होंने राजाके रूपमें रामावतार ग्रहण किया और सेतुबन्धन, रावणवध आदि वीरतापूर्ण बहुत-सी लीलाएँ कीं। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. भागवत के अनुसार सत्रहवें अवतार व्यासदेव और अठारहवें अवतार श्री राम, इस बात में कितनी सच्चाई है?? 🤔🤔🤔
२. श्री राम त्रेता युग में थे, तो फिर व्यासदेव के बाद कैसे आया?? 🤔🤔🤔

🌺 एकोनविंशे विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी
रामकृष्णाविति भुवो भगवानहरद्भरम् ।।
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम् ।
बुद्धों नाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति ।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, प्रथम स्कंध, अध्याय ३, श्लोक २३,२४) 🌷
🌻🌻 उन्नीसवें और बीसवें अवतारोंमें उन्होंने यदुवंशमें बलराम और श्रीकृष्णके नामसे प्रकट होकर पृथ्वीका भार उतारा। उसके बाद कलियुग आ जानेपर मगधदेश (बिहार)-में देवताओंके द्वेषी दैत्योंको मोहित करनेके लिये अजनके पुत्ररूपमें आपका बुद्धावतार होगा। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. वैष्णव लोगों के शास्त्र के list में पहले आता है गीता उसके बाद ही आता है भागवत। भागवत में श्री चैतन्य के बारे में कुछ नहीं लिखा है, फिर भी वह अवतार कैसे हुआ?? 🤔🤔🤔
२. अगर व्यासजी भागवत लिखा है तो क्या २४ अवतारों के नाम याद रखना उनके लिए बहुत कठिन था?? 🤔🤔🤔

🌺 सोऽनुध्यातस्ततो राज्ञा प्रादुरासीन्महार्णवे ।
एकशृङ्गधरो मत्स्यो हैमो नियुतयोजनः।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय २४, श्लोक ४४) 🌷
🌻🌻 उनकी आज्ञासे राजाने भगवान का ध्यान किया। उसी समय उस महान् समुद्रमें मत्स्यके रूपमें भगवान् प्रकट हुए। मत्स्यभगवान्का शरीर सोनेके समान देदीप्यमान था और शरीरका विस्तार था चार लाख कोस। उनके शरीरमें एक बड़ा भारी सींग भी था। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. 1 kos=3 k.m or 1.91 miles
मत्स्य का विस्तार=400000 kos=400000×3 k.m=1,200,000 k.m or 745645.4307 miles.
Circumference of earth=40,075 k.m or 24,901 miles.
भागवतकार calculation ठीक से जानते भी नहीं था।🤪🤪🤪
२. If Circumference of earth=40,075 k.m or 24,901 miles, than how it possible that the height of the fish is 745645.4307miles or 1,200,000k.m?? 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 असुरों ने ब्रह्माके साथ मैथुन करने के लिए दौड़े 🌲🌲🌲


 🌺 देवोऽदेवाञ्जघनतः सृजति स्मातिलोलुपान् ।
त एनं लोलुपतया मैथुनायाभिपेदिरे ।।२३
ततो हसन् स भगवानसुरैर्निरपत्रपैः ।
अन्वीयमानस्तरसा दक्रुद्धो भीतः परापतत् ।।२४
स उपव्रज्य वरदं प्रपन्नार्तिहरं हरिम् ।
अनुग्रहाय भक्तानामनुरूपात्मदर्शनम् ।।२५
पाहि मां परमात्मंस्ते प्रेषणेनासृजं प्रजाः ।
ता इमा यभितुं पापा उपाक्रामन्ति मां प्रभो ।।२६
त्वमेकः किल लोकानां क्लिष्टानां क्लेशनाशनः ।
त्वमेकः क्लेशदस्तेषामनासन्नपदां तव ।।२७
सोऽवधार्यास्य कार्पण्यं विवित्ताध्यात्मदर्शनः ।
विमुञ्चात्मतनुं घोरामित्युक्तो विमुमोच ह ।।२८
तां क्वणच्चरणाम्भोजां मदविह्वललोचनाम् ।
कांचीकलापविलसद्दुकूलच्छन्नरोधसम् ।।२९
अन्योन्यश्लेषयोत्तुंगनिरन्तरपयोधराम् ।
सुनासां सुद्विजां स्निग्धहासलीलावलोकनाम् ।।३०
गृहन्तीं व्रीडयाऽऽत्मानं नीलालकवरूथिनीम् ।
उपलभ्यासुरा धर्म सर्व सम्मुमुहुः स्त्रियम् ।।३१
अहो रूपमहो धैर्यमहो अस्या नवं वयः ।
मध्ये कामयमानानामकामेव विसर्पति ।।३२
वितर्कयन्तो बहुधा तां सन्ध्यां प्रमदाकृतिम् ।
अभिसम्भाव्य विश्रम्भात्पर्यपृच्छन् कुमेधसः ।।३३
कासि कस्यासि रम्भोरु को वार्थस्तेऽत्र भामिनि ।
रूपद्रविणपण्येन दुर्भगान्नो विबाधसे ।।३४
या वा काचित्त्वमबले दिष्टया सन्दर्शनं तव ।
उत्सुनोषीक्षमाणानां कन्दुकक्रीडया मनः ।।३५
नैकत्र ते जयति शालिनि पादपद्मं
घ्नन्त्या मुहुः करतलेन पतत्पतंगम् ।
मध्यं विषीदति बृहत्स्तनभारभीतं
शान्तेव दृष्टिरमला सुशिखासमूहः ।।३६ 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कंध, अध्याय २०, श्लोक २३—३६) 🌷
🌻🌻 इसके पश्चात् ब्रह्माजीने अपने जघनदेशसे कामासक्त असुरोंको उत्पन्न किया। वे अत्यन्त कामलोलुप होनेके कारण उत्पन्न होते ही मैथुनके लिये ब्रह्माजीकी ओर चले। यह देखकर पहले तो वे हँसे; किन्तु फिर उन निर्लज्ज असुरोंको अपने पीछे लगा देख भयभीत और क्रोधित होकर बड़े जोरसे भागे। तब उन्होंने भक्तोंपर कृपा करनेके लिये उनकी भावनाके अनुसार दर्शन देनेवाले, शरणागतवत्सल वरदायक श्रीहरिके पास जाकर कहा– 'परमात्मन्! मेरी रक्षा कीजिये; मैंने तो आपकी ही आज्ञासे प्रजा उत्पन्न की थी, किन्तु यह तो पापमें प्रवृत्त होकर मुझको ही तंग करने चली है। नाथ! एकमात्र आप ही दुःखी जीवोंका दुःख दूर करनेवाले हैं और जो आपकी चरणशरणमें नहीं आते, उन्हें दुःख देनेवाले भी एकमात्र आप ही हैं। प्रभु तो प्रत्यक्षवत् सबके हृदयकी जाननेवाले हैं। उन्होंने ब्रह्माजीकी आतुरता देखकर कहा-'तुम अपने इस कामकलुषित शरीरको त्याग दो।' भगवान्के यों कहते ही उन्होंने वह शरीर भी छोड़ दिया। ( ब्रह्माजीका छोड़ा हुआ वह शरीर एक सुन्दरी स्त्री- संध्यादेवीके रूपमें परिणत हो गया।) उसके चरणकमलोंके पायजेब झंकृत हो रहे थे। उसकी आँखें मतवाली हो रही थीं और कमर करधनीकी लड़ोंसे सुशोभित सजीली साड़ीसे ढकी हुई
थी। उसके उभरे हुए स्तन इस प्रकार एक-दूसरेसे सटे हुए थे कि उनके बीचमें कोई अन्तर ही नहीं रह गया था। उसकी नासिका और दन्तावली बड़ी ही सुघड़ थी तथा वह मधुर-मधुर मुसकराती हुई असुरोंकी ओर हाव-भावपूर्ण दृष्टिसे देख रही थी। वह नीली-नीली अलकावलीसे सुशोभित सुकुमारी मानो लज्जाके मारे अपने अंचलमें ही सिमिटी जाती थी। विदुरजी! उस सुन्दरीको देखकर सब-के- सब असुर मोहित हो गये। 'अहो! इसका कैसा विचित्र रूप, कैसा अलौकिक धैर्य और कैसी नयी अवस्था है। देखो, हम कामपीड़ितोंके बीचमें यह कैसी बेपरवाह-सी विचर रही है'।
इस प्रकार उन कुबुद्धि दैत्योंने स्त्रीरूपिणी संध्याके विषयमें तरह-तरहके तर्क-वितर्क करके फिर उसका बहुत आदर करते हुए प्रेमपूर्वक पूछा– 'सुन्दरि! तुम कौन हो और किसकी पुत्री हो? भामिनि! यहाँ तुम्हारे आनेका क्या प्रयोजन है? तुम अपने अनूप रूपका यह बेमोल सौदा दिखाकर हम अभागोंको क्यों तरसा रही हो। अबले! तुम कोई भी क्यों न हो, हमें तुम्हारा दर्शन हुआ- यह बड़े सौभाग्यकी बात है। तुम अपनी गेंद उछाल-उछालकर तो हम दर्शकोंके मनको मथे डालती हो। सुन्दरि! जब तुम उछलती हुई गेंदपर अपनी हथेलीकी थपकी मारती हो, तब तुम्हारा चरण-कमल एक जगह नहीं ठहरता; तुम्हारा कटिप्रदेश स्थूल स्तनोंके भारसे थक-सा जाता है और तुम्हारी निर्मल दृष्टिसे भी थकावट झलकने लगती है। अहो! तुम्हारा केशपाश कैसा सुन्दर है। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 जिसने सृष्टि किया उसी से मैथुन करने को दौड़ा, बहुत अच्छा गप्प लिखा है भागवतकार ने। नारी का सौन्दर्य भी बड़ा अच्छा से दिया है भागवतकार ने। एकबार जोरदार तालियां (👏) हो जाएं। इसी को कुछ लोग कहते हैं सनातन धर्म का शास्त्र। हंसी भी आती है और क्रोध भी।

🌲🌲🌲 सौ योजन के वृक्ष 🌲🌲🌲

🌺 स योजनशतोत्सेधः पादोनविटपायतः ।
पर्यक्कृताचलच्छायो निर्नीडस्तापवर्जितः।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, चतुर्थ स्कंध, अध्याय ६, श्लोक ३२) 🌷
🌻🌻 वह वृक्ष सौ योजन ऊँचा था तथा उसकी शाखाएँ पचहत्तर योजनतक फैली हुई थीं। उसके चारों ओर सर्वदा अविचल छाया बनी रहती थी, इसलिये घामका कष्ट कभी नहीं होता था; तथा उसमें कोई घोंसला भी न था। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. १ योजन=१२,३०० मीटर, १०० योजन=१,२३०,००० मीटर। कैलाश का उंचाई=६६३८ मीटर। वायुमंडल में सर्वोच्च स्तर है बाहृामंडल जो कि समुद्रपृष्ठ से ७०० किलोमीटर उपर है, जहां satellite रहता है। तो क्या वह वृक्ष बाहृामंडल तक था? भागवत कार ने बहुत अच्छा गप्प लिखा है। 🤣🤣🤣
२. अगर कैलाश का उंचाई ६६३८ मीटर है, तो फिर कैलाश के उस वृक्ष का उंचाई १२३०००० मीटर कैसे हुआ?? अगर वह वृक्ष कैलाश पर्वत से बड़ा है तो फिर कोई भी पौराणिक पुस्तक से प्रमाण दिजिए अभी वह वृक्ष कहां है?? 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 भागवत में विरोधाभास 🌲🌲🌲


🌺 एतन्मतं समातिष्ठ परमेण समाधिना ।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति क्हिचित्।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, द्वितीय स्कंध, अध्याय ९, श्लोक ३६) 🌷
🌻🌻 ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधिके द्वारा मेरे इस
सिद्धान्तमें पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्पमें विविध प्रकारकी सृष्टिरचना करते रहनेपर भी कभी मोह नहीं होगा।🌻🌻
🌺 एवं सम्मोहयन् विष्णुं विमोहं विश्वमोहनम् ।
स्वयैव माययाजोऽपि स्वयमेव विमोहितः ।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय १३, श्लोक ४४) 🌷
🌻🌻 भगवान् श्रीकृष्णकी मायामें तो सभी मुग्ध हो रहे हैं, परन्तु कोई भी माया- मोह भगवान्का स्पर्श नहीं कर सकता। ब्रह्माजी उन्हीं भगवान् श्रीकृष्णको अपनी मायासे मोहित करने चले थे। किन्तु उनको मोहित करना तो दूर रहा, वे अजन्मा होनेपर भी अपनी ही मायासे अपने-आप मोहित हो गये। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 १. अगर एक ही मनुष्य ने भागवत लिखा है तो फिर विरोधाभास कहां से आया??🤔🤔🤔
२. यहां तो वैष्णव लोगों के भगवान का वरदान झूठ और मिथ्या सिद्ध हो गया!! 😅😅😅

🌺कदाचिद् ध्यायतः स्रष्टुवेदा आसंश्चतुर्मुखात् ।
कथं स्रक्ष्याम्यहं लोकान् समवेतान् यथा पुरा।।
चातुह्होत्रं कर्मतन्त्रमुपवेदनयैः सह।
धर्मस्य पादाश्चत्वारस्तथैवाश्रमवृत्तयः।।
स वै विश्वसृजामीशो वेदादीन् मुखतोऽसृजत् ।
यद् यद् येनासृजद् देवस्तन्मे ब्रूहि तपोधन।।
ऋग्यजुः सामाधर्वाख्यान् वेदान् पूर्वादिभिर्मुखैः ।
शस्त्रमिज्यां स्तुतिस्तोमं प्रायश्चित्तं व्यधात्क्रमात् ।।
आयुर्वेदं धनुर्वेदं गान्धर्वं वेदमात्मनः।
स्थापत्यं चासृजद् वेदं क्रमात्पूर्वादिभिर्मुखैः ।।🌺
 🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कंध, अध्याय १२, श्लोक ३४–३८) 🌷
🌻🌻 एक बार ब्रह्माजी यह सोच रहे थे कि 'मैं पहलेकी तरह सुव्यवस्थित रूपसे सब लोकोंकी रचना किस प्रकार करू?' इसी समय उनके चार मुखोंसे चार वेद प्रकट हुए।
इनके सिवा उपवेद, न्यायशास्त्र, होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा- इन चार ऋत्विजोंके कर्म, यज्ञोंका विस्तार, धर्मके चार चरण और चारों आश्रम तथा उनकी वृत्तियाँ- ये ब्रह्माजीके मुखोंसे ही उत्पन्न हुए।विदुरजीने पूछा-तपोधन! विश्वरचयिताओंके स्वामी श्रीब्रह्माजीने जब अपने मुखोंसे इन वेदादिको रचा, तो उन्होंने अपने किस मुखसे कौन वस्तु उत्पन्न की- यह आप कृपा करके मुझे बतलाइये। श्रीमैत्रेयजीने कहा-विदुरजी! ब्रह्माने अपने पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तरके मुखसे क्रमशः ऋक्, यजुः, साम और अथर्ववेदोंको रचा तथा इसी क्रमसे शस्त्र (होताका कर्म), इज्या (अध्वर्युका कर्म), स्तुतिस्तोम (उद्गाताका कर्म) और प्रायश्चित्त (ब्रह्माका कर्म)- इन चारोंकी रचना की। इसी प्रकार आयुर्वेद (चिकित्साशास्त्र), धनुर्वेद (शसत्रविद्या), गान्धर्ववेद (संगीतशास्त्र) और स्थापत्यवेद (शिल्पविद्या)- इन चार उपवेदोंको भी क्रमशः उन पूर्वादि मुखोंसे ही उत्पन्न किया। फिर सर्वदर्शी भगवान् ब्रह्माने अपने चारों मुखोंसे इतिहास-पुराणरूप पाँचवाँ वेद बनाया। इसी क्रमसे षोडशी और उक्थ, चयन और अग्निष्टोम, आप्तो्याम और अतिरात्र तथा वाजपेय और गोसव- ये दो-दो याग भी उनके पूर्वादि मुखोंसे ही उत्पन्न हुए।🌻🌻
🌺 चातुर्होत्रं कर्म शुद्धं प्रजानां वीक्ष्य वैदिकम् ।
व्यदधाद्यज्ञसन्तत्यै वेदमेकं चतुर्विधम् ।।
ऋग्यजुः सामाथर्वाख्या वेदाश्वत्वार उद्धृताः
इतिहासपुराणं च पञ्चमो वेद उच्यते ।।🌺
 🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, प्रथम स्कंध, अध्याय ४, श्लोक १९,२०) 🌷
🌻🌻उन्होंने सोचा कि वेदोत्त चातुहोत्र कर्म लोगोंका हृदय शुद्ध करनेवाला है। इस दृष्टिसे यज्ञोंका विस्तार करनेके लिये उन्होंने एक ही वेदके चार विभाग कर दिये। व्यासजीके द्धारा ऋक्, यजुः, साम और अथर्व-इन चार वेदोंका उद्धार (पृथक्करण) हुआ। इतिहास और पुराणोंको पाँचवाँ वेद कहा जाता है।🌻🌻 समीक्षा 👉 १. अगर ब्रह्मा के चार मुखोंसे ऋक्, यजुः, साम और अथर्व चारों वेद प्रकट हुए थे, तो व्यासजी एक ही वेदके चार विभाग कैसे कर दिये? व्यासजीके द्धारा ऋक्, यजुः, साम और अथर्व-इन चार वेदोंका उद्धार (पृथक्करण) कैसे हुआ?
२. पहले ब्रह्माने चार वेदों को उत्पन्न किया या फिर पहले व्यासजी एक ही वेद को चारों वेदों में पृथक किए?

🌺 दन्दशूकादयः सर्पा राजन् क्रोधवशात्मजाः ।🌺
 🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय ६, श्लोक २८) 🌷
🌻🌻क्रोधवशाके पुत्र हुए-साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तु।🌻🌻
🌺 देहेन वै भोगवता शयानो बहुचिन्तया ।
सर्गेऽनुपचिते क्रोधादुत्ससर्ज ह तद्वपुः ।।४७
येऽहीयन्तामुतः केशा अहयस्तेऽङ्ग जज्ञिरे ।
सर्पा: प्रसर्पतः क्रूरा नागा भोगोरुकन्धराः ।।४८🌺
 🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कंध, अध्याय २०, श्लोक ४७,४८) 🌷
🌻🌻एक बार ब्रह्माजी सृष्टिकी वृद्धि न होनेके कारण बहुत चिन्तित होकर हाथ-पैर आदि
अवयवोंको फैलाकर लेट गये और फिर क्रोधवश उस भोगमय शरीरको त्याग दिया ।।४७।।
उससे जो बाल झड़कर गिरे, वे अहि हुए तथा उसके हाथ-पैर सिकोड़कर चलनेसे क्रूरस्वभाव
सर्प और नाग हुए, जिनका शरीर फणरूपसे कंधेके पास बहुत फैला होता है ।।४८।।🌻🌻
समीक्षा 👉 १. एकवार लिखा है कश्यप की पत्नी क्रोधवशा के गर्व से सर्पों की उत्पत्ति हुई है। और एक तरफ लिखा है ब्रह्मा जी का त्याग किया हुआ शरीर से सर्पों का उत्पन्न हुआ। इनमें से कौन सी बात को सच माने?? भागवत में ऐसा बहुत सी जगह है जहां ब्रह्मा बार-बार मरते हैं, परंतु उनके बार-बार जन्म लेने का कोई वर्णन नहीं मिलता, ऐसा क्यों?? 🤔🤔🤔
२. भागवत सिर्फ एक मनुष्य ने नहीं लिखा, अगर एक ही मनुष्य भागवत लिखा है तो विरोधाभास क्यों?? नशा करके पुस्तक लिखने बैठेंगे तो यही होता है। क्या व्यासजी यह गलती कर सकता है?? 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 भागवत में पशुवध का वर्णन 🌲🌲🌲

🌺 चरन्तं मृगयां क्वापि हयमारुह्य सैन्धवम् ।
घ्नन्तं ततः पशून् मेध्यान् परीतं यदुपुंगवैः।। 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय ३९, श्लोक ३५) 🌷
🌻🌻 कहीं श्रेष्ठ यादवोंसे घिरे हुए सिन्धुदेशीय घोड़ेपर चढ़कर मृगया कर रहे हैं, इस प्रकार यज्ञके लिये मेध्य पशुओंका संग्रह कर रहे हैं। 🌻🌻
🌺स एकदाष्टकाश्राद्धे इक्ष्वाकुः सुतमादिशत् ।
मांसमानीयतां मेध्यं विकुक्षे गच्छ माचिरम् ।।६
तथेति स वनं गत्वा मृगान् हत्वा क्रियार्हणान् ।
श्रान्तो बुभुक्षितो वीरः शशं चाददपस्मृतिः ।।७
शेषं निवेदयामास पित्रे तेन च तद्गुरुः ।
चोदितः प्रोक्षणायाह दुष्टमेतदकर्मकम् ।।८ 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय ६, श्लोक ६,७,८) 🌷
🌻🌻 एक बार राजा इक्ष्वाकुने अष्टका-श्राद्धके समय अपने बड़े पुत्रको आज्ञा दी -'विकुक्षे! शीघ्र ही जाकर श्राद्धके योग्य पवित्र पशुओंका मांस लाओ'। वीर विकुक्षिने 'बहुत अच्छा' कहकर वनकी यात्रा की। वहाँ उसने श्राद्धके योग्य बहुत-से पशुओंका शिकार किया। वह थक तो गया ही था, भूख भी लग आयी थी; इसलिये यह बात भूल गया कि श्राद्धके लिये मारे हुए पशुको स्वयं न खाना चाहिये। उसने एक खरगोश खा लिया। विकुक्षिने बचा हुआ मांस लाकर अपने पिताको दिया। इक्ष्वाकुने अब अपने गुरुसे उसे प्रोक्षण करनेके लिये कहा, तब गुरुजीने बताया कि यह मांस तो दूषित एवं श्राद्धके अयोग्य है। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 पशुवध का वर्णन है, फिर भी वैष्णव लोगों के पास यह शास्त्र है 😶😶😶

🌲🌲🌲 वराह अवतार की सृष्टि 🌲🌲🌲

वराह अवतार की सृष्टि

🌺 इत्यभिध्यायतो नासाविवरात्सहसानघ ।
वराहतोको निरगादङ्कुष्ठपरिमाणकः ।।१८
तस्याभिपश्यतः खस्थः क्षणेन किल भारत ।
गजमात्रः प्रववृधे तदद्भुतमभून्महत् ।।१९ 🌺
🌷 (श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कंध, अध्याय ९, श्लोक ३६) 🌷
🌻🌻 निष्पाप विदुरजी! ब्रह्माजी इस प्रकार विचार कर ही रहे थे कि उनके नासाछिद्रसे अकस्मात् अँगूठेके बराबर आकारका एक वराह-शिशु निकला। भारत! बड़े आश्चर्यकी बात तो यही हुई कि आकाशमें खड़ा हुआ वह वराह-शिशु ब्रह्माजीके देखते-ही- देखते बड़ा होकर क्षणभरमें हाथीके बराबर हो गया। 🌻🌻
⁉️ समीक्षा 👉 जादू बहुत अच्छा था, नाक से जीव सृष्टि, मस्त जोक मारा रे बाबा, कौनसा विज्ञान है यह, मुझे भी जानना है। 😀😃😁😄😆😅😂🤣🤪😜😝😛

🌲🌲🌲 कुब्जा से समागम 🌲🌲🌲



 🌺आहूय कान्तां नवसंगमह्रिया
विशंकितां कंकणभूषिते करे ।
प्रगृह्य शय्यामधिवेश्य रामया
रेमेऽनुलेपार्पणपुण्यलेशया ।।६
सानंगतप्तकुचयोरुरसस्तथाक्ष्णो-
र्जिघ्रन्त्यनन्तचरणेन रुजो मृजन्ती ।
दोभ्यां स्तनान्तरगतं परिरभ्य कान्त-
मानन्दमूर्तिमजहादतिदीर्घतापम् ।।७ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय ४८, श्लोक ६,७)🌷
🌻🌻कुब्जा नवीन मिलनके संकोचसे कुछ झिझक रही थी। तब श्याम-सुन्दर श्रीकृष्णने उसे अपने पास बुला लिया और उसकी कंकणसे सुशोभित कलाई पकड़कर अपने पास बैठा लिया और उसके साथ क्रीडा करने लगे। परीक्षित्! कुब्जाने इस जन्में केवल भगवान्को अंगराग अर्पित किया था, उसी एक शुभकर्मके फलस्वरूप उसे ऐसा अनुपम अवसर मिला ।।६।। कुब्जा भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंको अपने काम-संतप्त हृदय, वक्ष:ःस्थल और नेत्रोंपर रखकर उनकी दिव्य सुगन्ध लेने लगी और इस प्रकार उसने अपने हृदयकी सारी आधि-व्याधि शान्त कर ली। वक्षःस्थलसे सटे हुए आनन्दमूर्ति प्रियतम श्यामसुन्दरका अपनी दोनों भुजाओंसे गाढ़ आलिंगन करके कुब्जाने दीर्घकालसे बढ़े हुए विरहतापको शान्त किया।🌻🌻
समीक्षा 👉 श्री कृष्ण को बदनाम करने के लिए भागवतकार ने बहुत अच्छा प्रयास किया। श्रीकृष्ण को व्याभिचार बना दिया ओर ऊपर से यह भी कहता है कि वह भगवान है 🤨😡😠

🌲🌲🌲 स्त्रियों के गर्भ से जड़ जंगम की रचना 🌲🌲🌲


 🌺 पुन: प्रसाद्य तं सोमः कला लेभे क्षये दिताः ।
शृणु नामानि लोकानां मातृणां शङ्कराणि च।।२४
अथ कश्यपपत्नीनां यत्प्रसूतमिदं जगत् ।
अदितिर्दितिर्दनुः काष्ठा अरिष्टा सुरसा इला ।।२५
मनिः कोधतशा तामा सरभि: सरमा तिगिः
मुनिः क्रोधवशा ताम्रा सुरभिः सरमा तिमिः ।
तिमेर्यादोगणा आसन् श्वापदाः सरमासुताः ।।२६
सुरभेर्महिषागावो ये चान्ये द्विशफा नृप ।
ताम्रायाः श्येनगृध्राद्या मुनेरप्सरसां गणाः ।|२७
दन्दशूकादयः सर्पा राजन् क्रोधवशात्मजाः ।
इलाहा भूरुहाः सर्व यातुधानाश्च सौरसाः ।।२८
अरिष्टायाश्च गन्धर्वाः काष्ठाया द्विशफेतराः ।
सुता दनोरेकरषष्टिस्तेषां प्राधानिकान् शृणु ।।२९
द्विमूर्धा शम्बरोऽरिष्टो हयग्रीवो विभावसुः ।
अयोमुखः शङ्कुशिराः स्वर्भानुः कपिलोऽरुणः ।।३० 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय ६, श्लोक २४,२५,२६,२७,२८,२९)🌷
🌻🌻 उन्होंने दक्षको फिरसे प्रसन्न करके कृष्णपक्षकी क्षीण कलाओंके शुक्लपक्षमें पूर्ण होनेका वर तो प्राप्त कर लिया, (परन्तु नक्षत्राभिमानी देवियोंसे उन्हें कोई सन्तान न हुई) अब तुम कश्यपपत्नियोंके मंगलमय नाम सुनो। वे लोकमाताएँ हैं। उन्हींसे यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है। उनके नाम हैं-अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि। इनमें तिमिके पुत्र हैं-जलचर जन्तु और सरमाके बाघ आदि हिंसक जीव ।।२४-२६॥। सुरभिके पुत्र हैं-भैंस, गाय तथा दूसरे दो खुरवाले पशु। ताम्राकी
सन्तान हैं-बाज, गीध आदि शिकारी पक्षी। मुनिसे अप्सराएँ उत्पन्न हुईं ।।२७।। क्रोधवशाके पुत्र हुए-साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तु। इलासे वृक्ष, लता आदि पृथ्वीमें उत्पन्न होनेवाली वनस्पतियाँ और सुरसासे यातुधान (राक्षस) ।।२८।। अरिष्टासे गन्धर्व और काष्ठासे घोड़े आदि एक खुरवाले पशु उत्पन्न हुए। दनुके इकसठ पुत्र हुए। उनमें प्रधान-प्रधानके नाम सुनो ।।२९।।🌻🌻
समीक्षा 👉 १. एक स्त्री के गर्भ से पेड़ पौधे कैसे उत्पन्न हो सकते हैं? स्त्रियों से बाघ, हाथी, घोड़े, सांप आदि का पैदा होना कितनी मूर्खतापूर्ण है!!🤔🤔🤔
२. कितनी अजीब सी बात है, इस गप्पे के पुस्तक को सनातन धर्म के शास्त्र कहते हैं कुछ लोग, मैं यही सोचता हूं उन्हें दिमाग नाम की कोई चीज है या नहीं 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲सौ वर्ष तक गर्भ धारण🌲🌲🌲


 🌺 प्राजापत्यं तु त्तेजः परतेजोहनं दितिः ।
दधार वर्षाणि शतं शङ्कमाना सुरार्दनात् ।।१
लोके तेन हतालोके' लोकपाला हतौजसः ।२ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कंध, अध्याय १५, श्लोक १,२)🌷
🌻🌻श्रीमैत्रेयजीने कहा-विदुरजी! दितिको अपने पुत्रोंसे देवताओंको कष्ट पहुँचनेकी आशंका थी, इसलिये उसने दूसरोंके तेजका नाश करनेवाले उस कश्यपजीके तेज (वीर्य)-को सौ वर्षोंतक अपने उदरमें ही रखा ।।१
उस गर्भस्थ तेजसे ही लोकोंमें सूर्यादिका प्रकाश क्षीण होने लगा तथा इन्द्रादि लोकपाल भी तेजोहीन हो गये।🌻🌻
समीक्षा 👉 क्या 100 वर्ष तक गर्भ को रोकना संभव है गर्भ को रोकना स्त्री के अपने हाथ में नहीं है 100 वर्ष तो क्या 1 दिन भी अपनी इच्छा से नहीं रोक सकती 100 वर्षों में तो व्यक्ति बूढ़ा होकर मर जाता है सूर्य के तेज को क्षीण नहीं किया जा सकता। यह पुराणकार तो शेखचिल्ली का भी बाप है।
श्रीमद्भागवत पुराण समीक्षा


🌲🌲🌲मरे हुए बालकों को वापस लाना🌲🌲🌲


 🌺 आसन् मरीचेः षट् पुत्रा ऊर्णायां प्रथमेऽन्तरे ।
देवाः कं जहसुर्वीक्ष्य सुतां यभितुमुद्यतम् ।।४७
तेनासुरीमगन् योनिमधुनावद्यकर्मणा ।
हिरण्यकशिपोज्जाता नीतास्ते योगमायया ।।४८
देवक्या उदरे जाता राजन् कंसविहिंसिताः ।
सा ताञ्छोचत्यात्मजान् स्वांस्त इमेऽध्यासतेऽन्तिके ।।४९
इत एतान् प्रणेष्यामो मातृशोकापनुत्तये ।
ततः शापाद् विनिर्मुक्ता लोकं यास्यन्ति विज्वराः ।।५०
स्मरोद्गीथः परिष्वंगः पतंगः क्षुद्रभृद् घृणी ।
षडिमे मत्प्रसादेन पुनरय्यास्यन्ति सद्गतिम् ।।५१
इत्युक्त्वा तान् समादाय इन्द्रसेनेन पूजितौ।
पुनद्द्वारवतीमेत्य मातुः पुत्रानयच्छताम् ।।५२
तान् दृष्ट्वा बालकान् देवी पुत्रस्नेहस्नुतस्तनी ।
परिष्वज्यांकमारोप्य मूर्ध्यजिघ्रदरभीक्ष्णशः ।।५३ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय ८५, श्लोक ४७,४८,४९,५०,५१,५२,५३)🌷
🌻🌻भगवान् श्रीकृष्णने कहा-'दैत्यराज! स्वायम्भुव मन्वन्तरमें प्रजापति मरीचिकी पत्नी ऊर्णाके गर्भसे छः पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे सभी देवता थे। वे यह देखकर कि ब्रह्माजी अपनी पुत्रीसे समागम करनेके लिये उद्यत हैं, हँसने लगे ।।४७।। इस परिहासरूप अपराधके कारण उन्हें ब्रह्माजीने शाप दे दिया और वे असुर-योनिमें हिरण्यकशिपुके पुत्ररूपसे उत्पन्न हुए। अब योगमायाने उन्हें वहाँसे लाकर देवकीके गर्भमें रख दिया और उनको उत्पन्न होते ही कंसने मार डाला। दैत्यराज! माता देवकीजी अपने उन पुत्रोंके लिये अत्यन्त शोकातुर हो रही हैं और वे तुम्हारे पास हैं ।।४८-४९।। अतः हम अपनी माताका शोक करनेके लिये इन्हें यहाँसे ले जायँगे। इसके बाद ये शापसे मुक्त हो जायँगे और आनन्दपूर्वक अपने लोकमें चले जायँगे ।।५०।। इनके छः नाम हैं-स्मर, उद्गीथ, परिष्वंग, पतंग, क्षुद्रभृत् और घृणि। इन्हें मेरी कृपासे पुनः सद्गति प्राप्त होगी' ।।५१।। परीक्षित्! इतना कहकर भगवान् श्रीकृष्ण चुप हो गये। दैत्यराज बलिने उनकी पूजा की; इसके बाद श्रीकृष्ण और बलरामजी बालकोंको
लेकर फिर द्वारका लौट आये तथा माता देवकीको उनके पुत्र सौंप दिये ।।५२।| उन बालकोंको देखकर देवी देवकीके हृदयमें वात्सल्य-स्नेहकी बाढ़ आ गयी। उनके स्तनोंसे दूध बहने लगा। वे बार-बार उन्हें गोदमें लेकर छातीसे लगातीं और उनका सिर सूँघतीं ।।५३।।🌻🌻
समीक्षा 👉 १.क्या सच में मरे हुए बालकों को वापस लाया जा सकता है? अगर हां तो फिर बहुत से माता इस पृथ्वी पर है जिनके संतान मर गया, उन माताओं ने भी तो भगवान से उनका बेटा मांगा है तो फिर क्यु नहीं मिला?🤔🤔🤔
२. भागवतकार श्री कृष्ण को ईश्वर बनाने की बहुत कोशिश किया, श्रीकृष्ण द्वारा कुछ जादू भी करवाया लेकिन अफसोस, तर्क के आगे अंधभक्ति, अंधविश्वास नहीं टिक पाया।😶😶😶

🌲🌲🌲नारी देखते ही वीर्य गिरना और संतान जन्म होना🌲🌲🌲


🌺 तस्य सत्यधृतिः पुत्रो धनुर्वेदविशारदः ।
शरद्वांस्तत्सुतो यस्मादुर्वशीदर्शनात् किल ।।३५
शरस्तम्बेऽपतद् रेतो मिथुनं तदभूच्छुभम् ।
तद् दृष्ट्वा कृपयागृह्णाच्छन्तनुर्मृगयां चरन् ।
कृपः कुमारः कन्या च द्रोणपत्न्यभवत् कृपी ।।३६🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय २१, श्लोक ३५,३६)🌷
🌻🌻शतानन्दका पुत्र सत्यधृति था, वह धनुर्विद्यामें अत्यन्त निपुण था। सत्यधृतिके पुत्रका नाम था शरद्वान्। एक दिन उर्वशीको देखनेसे शरद्वान्का वीर्य मूँजके झाड़पर गिर पड़ा, उससे एक शुभ लक्षणवाले पुत्र और पुत्रीका जन्म हुआ। महाराज शन्तनुकी उसपर दृष्टि पड़ गयी, क्योंकि वे उधर शिकार खेलनेके लिये गये हुए थे। उन्होंने दयावश दोनोंको उठा लिया। उनमें जो पुत्र था, उसका नाम कृपाचार्य हुआ और जो कन्या थी, उसका नाम हुआ कृपी। यही कृपी द्रोणाचार्यकी पत्नी हुई ।।३५-३६।🌻🌻
🌺वाल्मीकिश्च महायोगी वर्मीकादभवत्किल ।
 अगस्त्यश्च वसिष्ठश्च मित्रावरुणयोर्षी ।।५
रेतः सिषिचतुः कुम्भे उर्वश्याः सन्निधौ ट्रुतम् ।
रेवत्यां मित्र उत्सर्गमरिष्टं पिप्पलं व्यधात् ।।६🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय १८, श्लोक ५,६)🌷
🌻🌻महायोगी वाल्मीकिजी भी वरुणके पुत्र थे। वर्मीकसे पैदा होनेके कारण ही उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया था। उर्वशीको देखकर मित्र और वरुण दोनोंका वीर्य स्खलित हो गया था। उसे उन लोगोंने घड़ेमें रख दिया। उसीसे मुनिवर अगस्त्य और वसिष्ठजीका जन्म हुआ। मित्रकी पत्नी थी रेवती। उसके तीन पुत्र हुए- उत्सर्ग, अरिष्ट और पिप्पल ।।५-६।।🌻🌻
समीक्षा 👉 १. भागवतकार यह नहीं जानता था ऋषि किसे कहते हैं, इसलिए मन में जो भी आया लिख डाला। पाठक गण आप जरा विचार कीजिए क्या नारी को देखते ही आपका वीर्य स्खलन होता है? अगर आप का वीर्य स्खलन नहीं होता तो ऋषियों का कैसे हो सकता है? 😡😠🤨
२. क्या जहां वीर्य गिरता है वहां ही संतान उत्पन्न हो जाता है? नारी के गर्भ में संतान जन्म होना जरूरी नहीं? यह कौन सा विज्ञान है? 🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 भुवन कोष का वर्णन 🌲🌲🌲


🌺 उक्तस्त्वया भूमण्डलायामविशेषो यावदादित्यस्तपति यत्र चासौ ज्योतिषां गणैश्चन्द्रमा वा सह दृश्यते ।।१।। तत्रापि प्रियव्रतरथचरणपरिखातैः सप्तभिः सप्त सिन्धव उपक्लृप्ता यत एतस्याः सप्तद्वीपविशेष विकल्पस्त्वया भगवन् खलु सूचित एतदेवाखिलमहं मानतो लक्षणतश्च सर्वं विजिज्ञासामि ॥२॥ भगवतो गुणमये स्थूलरूप आवेशितं मनो ह्यगुणेऽपि सूक्ष्मतम आत्मज्योतिषि परे ब्रह्मणि भगवति वासुदेवाख्ये क्षममावेशितुं तदु हेतद् गुरोऽर्हस्यनुवर्णयितुमिति ।।३।। न वै महाराज भगवतो मायागुणविभूतेः काष्ठां मनसा वचसा वाधिगन्तुमलं विबुधायुषापि पुरुषस्तस्मात्प्राधान्येनैव भूगोलकविशेषं नामरूपमानलक्षणतो
व्याख्यास्यामः ।।४।। यो वायं द्वीपः कुवलयकमलकोशाभ्यन्तरकोशो नियुत-योजनविशालः समवर्तुलो यथा पुष्करपत्रम् ।।५।। यस्मिन्नव वर्षाणि नवयोजनसहस्रायामानि अष्टभिर्मयर्यादागिरिभिः सुविभक्तानि भवन्ति ।।६।। एषां मध्ये इलावृतं नामाभ्यन्तरवर्ष यस्य नाभ्यामवस्थितः सर्वतः सौवर्णः कुलगिरिराजो मेरुद्वीपायामसमुन्नाहः कर्णिकाभूतःकुवलय-कमलस्य मूर्धनि द्वात्रिंशत्स हस्रयोजनविततो मूले षोडशसहस्रं तावतान्तर्भूम्यां प्रविष्टः ।।७।। उत्तरोत्तरेणेलावृतं नीलः श्वेतः शृङ्गवानिति त्रयो रम्यकहिरण्मयकुरूणां वर्षाणां मर्यादागिरयः प्रागायता उभयतः क्षारोदावधयो द्विसहस्रपृथव एकैकशः पूर्वस्मात्पूर्वस्मादुत्तर उत्तरो दरांशाधिकांशेन दैर्घ्य एव हसन्ति ।।८।। एवं दक्षिणेनेलावृतं निषधो हेमकूटो हिमालय इति प्रागायता यथा
नीलादयोऽयुतयोजनोत्सेधा हरिवर्षकिम्पुरुषभारतानां यथासंख्यम् ॥९।। तथैवेलावृतमपरेण पूर्वेण च माल्यवद्गन्ध-मादनावानीलनिषधायतौ द्विसहस्रं पप्रथतु: केतुमालभद्राश्वयोः सीमानं विदधाते ॥१०।। मन्दरो मेरुमन्दरः सुपार्श्वः कुमुद इत्ययुतयोजन-विस्तारोन्नाहा मेरोश्चतुर्दिशमवष्टम्भगिरय उपक्लृप्ताः ।।११।। चतुष्वेतेषु चूतजम्बू-कदम्बन्यग्रोधाश्चत्वारः पादपप्रवराः पर्वत-केतव इवाधिसहस्रयोजनोन्नाहास्तावद् विटप-विततयः शतयोजनपरिणाहाः।।१२।। हृदाश्चत्वारः पर्योमध्विक्षुरसमृष्टजला यद् उपस्पर्शिन उपदेवगणा योगैश्वर्याणि स्वाभावि-कानि भरतर्षभ धारयन्ति ।।१३।। देवोद्यानानि च भवन्ति चत्वारि नन्दनं चैत्ररथं वैभ्राजकं सर्वतोभद्रमिति।।१४।। येष्वमरपरिवृढाः सह सुरललनाललामयूथपतय उपदेवगणैरुपगीय-मानमहिमानः किल विहरन्ति ।।१५।। मन्दरोत्सङ्ग एकादशशतयोजनोत्तुङ्देवचूत शिरसो गिरिशिखरस्थूलानि फलान्यमृतकल्पानि पतन्ति।।१६।। तेषां विशीर्यमाणानामतिमधुर सुरभिसुगन्धिबहुलारुणरसोदेनारुणोदा नाम नदी मन्दरगिरिशिखरान्निपतन्ती पूर्वेणेलावृत-मुपप्लावयति।।१७।। यदुपजोषणाद्भवान्या अनुचरीणां पुण्यजनवधूनामवयवस्पर्शसुगन्धवातो दशयोजनं समन्तादनुवासयति ।|१८।| एवं जम्बूफलानामत्युच्चनिपातविशीर्णानाम् अनस्थि-प्रायाणामिभकारयनिभानां रसेन जम्बू नाम नदी मेरुमन्दरशिखरादयुतयोजनादवनितले निपतन्ती दक्षिणेनात्मानं यावदिलावृत-मुपस्यन्दयति।।१९॥तावदुभयोरपि रोधसोर्या मृत्तिका तद्रसेनानुविध्यमाना वाय्वर्कसंयोग-विपावकेन सदामरलोकाभरणं जाम्बूनदं नाम सुवर्ण भवति।।२०।। यदु ह वाव विबुधादयः सह युवतिभिर्मुकुटकटककटिसूत्राद्याभरणरूपेण खलु धारयन्ति ।।२१।। यस्तु महाकदम्बः सुपा्श्वनिरूढे यास्तस्य कोटरेभ्यो विनिःसृताः पञ्चायामपरिणाहाः पञ्च मधुधाराः सुपार्श्वशिखरात्पतन्त्योऽपरेणात्मान मिलावृतमनुमोदयन्ति ।।२२।। या ह्युपयुञ्जानानां मुखनिर्वासितोवायुः समन्ताच्छतयोजनमनुवासयति ।।२३।। एवं कुमुदनिरूढो यः शतवल्शो नाम वटस्तस्य स्कन्धेभ्यो नीचीनाः पयोदधिमधुघृत-गुडान्नाद्यम्बरशय्यासनाभरणादयः सर्व एव कामदुघा नदाः
कुमुदाग्रात्पतन्तस्तमुकत्तरे-णेलावृतमुपयोजयन्ति।।२४।। यानुपजूषाणानां न कदाचिदपि प्रजानां वलीपलितक्लमस्वेद-दौर्गन्ध्यजरामयमृत्युशीतोष्णवैवण्ण्योपसर्गादय-स्तापविशेषा भवन्ति यावज्जीवं सुखं निरतिशयमेव।।२५।। कुरङ्गकूररकुसुम्भवैकडङ्कत्रिकूटशिशिर-पतङ्गरुचकनिषधशिनीवासकपिलशङ्खवैदूर्य-जारुधिहंसर्षभनागकालञ्जरनारदादयो विंशति-गिरयो मेरोः कर्णिकाया इव केसरभूता मूलदेशे परित उपक्लृप्ताः॥२६।। जठरदेवकूटी मेरुं पूर्वेणाध्टादशयोजनसहस्रमुदगायतौ द्विसहस्रं पृथुतुङ्गो भवतः। एवमपरेण पवनपारियात्रौ दक्षिणेन केलासकरवीरो प्रागायतावेवमुत्तरतस्त्रिशृङ्गमकरावष्टभिरेतैः परिस्तृतोऽग्निरिव परितश्चकास्ति काञ्चनगिरिः ।।२७॥ मेरोर्मूर्धनि भगवत आत्म-योनेर्मध्यत उपक्लृप्तां पुरीमयुतयोजनसाहस्रीं समचतुरस्रां शातकौम्भीं वदन्ति ।।२८।। तामनु परितो लोकपालानामष्टानां यथादिशं यथारूपं तुरीयमानेन पुरोऽष्टावुपक्लृप्ताः ।२९।। 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, पंचम स्कंध, अध्याय १६)🌷
🌻🌻 राजा परीक्षित्ने कहा- मुनिवर! जहाँतक सूर्यका प्रकाश है और जहाँतक तारागणके सहित चन्द्रदेव दीख पड़ते हैं, वहाँतक आपने भूमण्डलका विस्तार बतलाया है ।।१।। उसमें भी आपने बतलाया कि महाराज प्रियव्रतके रथके पहियोंकी सात लीकोंसे सात समुद्र बन गये थे, जिनके कारण इस भूमण्डलमें सात द्वीपोंका विभाग हुआ। अतः भगवन्! अब मैं इन सबका परिमाण और लक्षणोंके सहित पूरा विवरण जानना चाहता हूँ ।।२।। क्योंकि जो मन भगवान्के इस गुणमय स्थूल विग्रहमें लग सकता है, उसीका उनके वासुदेवसंज्ञक स्वयंप्रकाश निर्गुण ब्रह्मरूप सूक्ष्मतम स्वरूपमें भी लगना सम्भव है। अतः गुरुवर! इस विषयका विशदरूपसे वर्णन करनेकी कृपा कीजिये ।।३।। श्रीशुकदेवजी बोले-महाराज! भगवान्की मायाके गुणोंका इतना विस्तार है कि यदि कोई पुरुष देवताओंके समान आयु पा ले, तो भी मन या वाणीसे इसका अन्त नहीं पा सकता। इसलिये हम नाम, रूप, परिमाण और लक्षणोंके द्वारा मुख्य-मुख्य बातोंको लेकर ही इस भूमण्डलकी विशेषताओंका वर्णन करेंगे ।।४।। यह जम्बूद्वीप-जिसमें हम रहते हैं, भूमण्डलरूप कमलके कोशस्थानीय जो सात द्वीप हैं, उनमें सबसे भीतरका कोश है। इसका विस्तार एक लाख योजन है और यह कमलपत्रके समान गोलाकार है ।।५।। इसमें नौ-नौ हजार योजन विस्तारवाले नौ वर्ष हैं, जो इनकी सीमाओंका विभाग करनेवाले आठ पर्वतोंसे बँटे हुए हैं ।।६।। इनके बीचो-बीच इलावृत नामका दसवाँ वर्ष है, जिसके मध्यमें कुलपर्वतोंका राजा मेरुपर्वत है। वह मानो भूमण्डलरूप कमलकी कर्णिका ही है। वह ऊपरसे नीचेतक सारा-का-सारा सुवर्णमय है और एक लाख योजन ऊँचा है। उसका विस्तार शिखरपर बत्तीस हजार और तलैटीमें सोलह हजार योजन है तथा सोलह हजार योजन ही वह भूमिके भीतर घुसा हुआ है अर्थात् भूमिके बाहर उसकी ऊँचाई चौरासी हजार योजन है।।७।।इलावृतवर्षके उत्तरमें क्रमशः नील, श्वेत और शृंगवान् नामके तीन पर्वत हैं-जो रम्यक, हिरण्मय और कुरु नामके वर्षोंकी सीमा बाँधते हैं। वे पूर्वसे पश्चिमतक खारे पानीके समुद्रतक फैले हुए हैं। उनमेंसे प्रत्येककी चौड़ाई दो हजार योजन है तथा लम्बाईमें पहलेकी अपेक्षा पिछला क्रमशः दशरमांशसे कुछ अधिक कम है, चौड़ाई और ऊँचाई तो सभीकी समान है ।।८।।इसी प्रकार इलावृतके दक्षिणकी ओर एकके बाद एक निषध, हेमकूट और हिमालय नामके तीन पर्वत हैं। नीलादि पर्वतोंके समान ये भी पूर्व-पश्चिमकी ओर फैले हुए हैं और दस- दस हजार योजन ऊँचे हैं। इनसे क्रमशः हरिवर्ष, किम्पुरुष और भारतवर्षकी सीमाओंका विभाग होता है ।।९।। इलावृतके पूर्व और पश्चिमकी ओर-उत्तरमें नील पर्वत और दक्षिणमें निषध पर्वततक फैले हुए गन्धमादन और माल्यवान् नामके दो पर्वत हैं। इनकी चौड़ाई दो-दो हजार योजन है और ये भद्राश्व एवं केतुमाल नामक दो वर्षोंकी सीमा निश्चित करते हैं ।। १०।। इनके सिवा मन्दर, मेरुमन्दर, सुपार्श्व और कुमुद-ये चार दस-दस हजार योजन ऊँचे और उतने ही चौड़े पर्वत मेरु पर्वतकी आधारभूता थूनियोंके समान बने हुए हैं।।११॥ इन चारोंके ऊपर इनकी ध्वजाओंके समान क्रमश: आम, जामुन, कदम्ब और बड़के चार पेड़ हैं। इनमेंसे प्रत्येक ग्यारह सौ योजन ऊँचा है और इतना ही इनकी शाखाओंका विस्तार है। इनकी मोटाई सौ-सौ योजन है ।।१२।। भरतश्रेष्ठ! इन पर्वतोंपर चार सरोवर भी हैं-जो क्रमशः दूध, मधु, ईखके रस और मीठे जलसे भरे हुए हैं। इनका सेवन करनेवाले यक्ष-किन्नरादि उपदेवोंको स्वभावसे ही योगसिद्धियाँ प्राप्त है ।।१३।। इनपर क्रमशः नन्दन, चैत्ररथ, वैभ्राजक और सर्वतोभद्र नामके चार दिव्य उपवन भी हैं ।।१४।। इनमें प्रधान-प्रधान देवगण अनेकों सुरसुन्दरियोंके नायक बनकर साथ-साथ विहार करते हैं। उस समय गन्धर्वादि उपदेवगण इनकी महिमाका बखान किया करते हैं।।१५।।मन्दराचलकी गोदमें जो ग्यारह सौ योजन ऊँचा देवताओंका आम्रवृक्ष है, उससे गिरिशिखरके समान बड़े-बड़े और अमृतके समान स्वादिष्ट फल गिरते हैं ।।१६॥ वे जब फटते हैं, तब उनसे बड़ा सुगन्धित और मीठा लाल-लाल रस बहने लगता है। वही अरुणोदा नामकी नदीमें परिणत हो जाता है। यह नदी मन्दराचलके शिखरसे गिरकर अपने जलसे इलावृत वर्षके पूर्वी-भागको सींचती है ।।१७।। श्रीपार्वतीजीकी अनुचरी यक्षपत्नियाँ इस जलका सेवन करती हैं। इससे उनके अंगोंसे ऐसी सुगन्ध निकलती है कि उन्हें स्पर्श करके बहनेवाली वायु उनके चारों ओर दस-दस योजनतक सारे देशको सुगन्धसे भर देती है ।।१८।। इसी प्रकार जामुनके वृक्षसे हाथीवके समान बड़े-बड़े प्रायः बिना गुठलीके फल गिरते हैं। बहुत ऊँचेसे गिरनेके कारण वे फट जाते हैं। उनके रससे जम्बू नामकी नदी प्रकट होती है, जो मेरुमन्दर पर्वतके दस हजार योजन ऊँचे
शिखरसे गिरकर इलावृतके दक्षिण भू-भागको सींचती है ।।१९।। उस नदीके दोनों किनारोंकी मिट्टी सूख जाती है, तब वही देवलोकको विभूषित करनेवाला जाम्बूनद नामका सोना बन जाती है ।।२०।। इसे देवता और गन्धर्वादि अपनी तरुणी स्त्रियोंके सहित मुकुट, कंकण और करधनी आदि आभूषणोंके रूपमें धारण करते हैं ।।२१।।सुपार्श्व पर्वतपर जो विशाल कदम्बवृक्ष है, उसके पाँच कोटरोंसे मधुकी पाँच धाराएँ निकलती हैं; उनकी मोटाई पाँच पुरसे जितनी है। ये सुपाश्श्वके शिखरसे गिरकर इलावृतवर्षके पश्चिमी भागको अपनी सुगन्धसे सुवासित करती हैं ।।२२ ।। जो लोग इनका मधुपान करते हैं, उनके मुखसे निकली हुई वायु अपने चारों ओर सौ-सौ योजनतक इसकी महक फैला देती है ।।२३।। इसी प्रकार कुमुद पर्वतपर जो शतवल्श नामका वटवृक्ष है, उसकी जटाओंसे नीचेकी ओर बहनेवाले अनेक नद निकलते हैं, वे सब इच्छानुसार भोग देनेवाले हैं। उनसे दूध, दही,मधु, घृत, गुड़, अन्न, वस्त्र, शय्या, आसन और आभूषण आदि सभी पदार्थ मिल सकते हैं। ये सब कुमुदके शिखरसे गिरकर इलावृतके उत्तरी भागको सींचते हैं ।।२४।। इनके दिये हुए पदार्थोंका उपभोग करनेसे वहाँकी प्रजाकी त्वचामें झुर्रियाँ पड़ जाना, बाल पक जाना, थकान होना, शरीरमें पसीना आना तथा दुर्गन्ध निकलना, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु, सर्दी-गरमीकी पीड़ा, शरीरका कान्तिहीन हो जाना तथा अंगोंका टूटना आदि कष्ट कभी नहीं सताते और उन्हें जीवनपर्यन्त पूरा-पूरा सुख प्राप्त होता है ।।२५।। राजन्! कमलकी कर्णिकाके चारों ओर जैसे केसर होता है- उसी प्रकार मेरुके मूलदेशमें उसके चारों ओर कुरंग, कुर, कुसुम्भ, वैकंक, त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक, निषध, शिनीवास, कपिल, शंख, वैदूर्य, जारुधि, हंस, ऋषभ, नाग, कालंजर और नारद आदि बीस पर्वत और हैं ।।२६।। इनके सिवा मेरुके पूर्वकी ओर जठर और देवकूट नामके दो पर्वत है, जो अठारह-अठारह हजार योजन लंबे तथा दो-दो हजार योजन चौड़े और ऊँचे हैं। इसी प्रकार पश्चिमकी ओर पवन और पारियात्र, दक्षिणकी ओर कैलास और करवीर तथा उत्तरकी ओर त्रिशृंग और मकर नामके पर्वत हैं। इन आठ पहाड़ोंसे चारों ओर घिरा हुआ सुवर्णगिरि मेरु अग्निके समान जगमगाता रहता है ।।२७।। कहते हैं, मेरुके शिखरपर बीचोबीच भगवान् ब्रह्माजीकी सुवर्णमयी पुरी है- जो आकारमें समचौरस तथा करोड़ योजन विस्तारवाली है ।।२८।। उसके नीचे पूर्वादि आठ दिशा और उपदिशाओंमें उनके अधिपति इन्द्रादि आठ लोकपालोंकी आठ पुरियाँ हैं । वे अपने-अपने स्वामीके अनुरूप उन्हीं- उन्हीं दिशाओंमें हैं तथा परिमाणमें ब्रह्माजीकी पुरीसे चौथाई हैं ।।२९।।🌻🌻
समीक्षा 👉 १.क्या बात है, भागवत कार भूगोल जानता ही नहीं था अगर जानता तो यह सब गप्प नहीं लिखता। रथ के पहियोंकी सात लीकोंसे सात समुद्र बन कैसे सकता है?🤔🤔🤔
आजकल जो लोग भागवत प्रचार करते हैं उन लोगों को मैं यह प्रश्न पूछना चाहता हूं, क्या ऐसा भुवन कोष संभव है अगर है तो वह कहां है?🤔🤔🤔
२. भागवतकार तो कल्पना करने में प्रधान निकला🤨🤨🤨

🌲🌲🌲 कर्ण का जन्म 🌲🌲🌲


कर्ण का जन्म
🌺 साऽऽप दुर्वाससो विद्यां देवहूतीं प्रतोषितात् ।
तस्या वीर्यपरीक्षार्थमाजुहाव रविं शुचिम् ।।३२
तदैवोपागतं देवं वीक्ष्य विस्मितमानसा ।
प्रत्ययार्थं प्रयुक्ता मे याहि देव क्षमस्व मे ।।३३
अमोघं दर्शनं देवि आधित्से त्वयि चात्मजम् ।
योनिर्यथा न दुष्येत कर्ताहं ते सुमध्यमे ।|३४
इति तस्यां स आधाय गर्भं सूर्यो दिवं गतः ।
सद्यः कुमारः संजज्ञे द्वितीय इव भास्करः ।।३५
तं सात्यजन्नदीतोये कृच्छ्राल्लोकस्य बिभ्यती ।
प्रपितामहस्तामुवाह पाण्डुर्वै सत्यविक्रमः ।।३६ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय २४, श्लोक ३२-३६)🌷
🌻🌻पृथाने दुर्वासा ऋषिको प्रसन्न करके उनसे देवताओंको बुलानेकी विद्या सीख ली। एक दिन उस विद्याके प्रभावकी परीक्षा लेनेके लिये पृथाने परम पवित्र भगवान् सूर्यका आवाहन किया ।।३२।। उसी समय भगवान् सूर्य वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखकर कुन्तीका हृदय विस्मयसेभर गया। उसने कहा- 'भगवन्! मुझे क्षमा कीजिये। मैंने तो परीक्षा करनेके लिये ही इस विद्याका प्रयोग किया था। अब आप पधार सकते हैं ।।३३॥। सूर्यदेवने कहा- 'देवि! मेरा दर्शन निष्फल नहीं हो सकता। इसलिये हे सुन्दरी! अब मैं तुझसे एक पुत्र उत्पन्न करना चाहता हूँ। हाँ, अवश्य ही तुम्हारी योनि दूषित न हो, इसका उपाय मैं कर दूँगा' ।।३४।। यह कहकर भगवान् सूर्यने गर्भ स्थापित कर दिया और इसके बाद वे स्वर्ग चले गये। उसी समय उससे एक बड़ा सुन्दर एवं तेजस्वी शिशु उत्पन्न हुआ। वह देखनेमें दूसरे सूर्यके समान जान पड़ता था ।।३५।। पृथा लोकनिन्दासे डर गयी। इसलिये उसने बड़े दुःखसे उस बालकको नदीके जलमें छोड़ दिया। परीक्षित्! उसी पृथाका विवाह तुम्हारे परदादा पाण्डुसे
हुआ था, जो वास्तवमें बड़े सच्चे वीर थे ।।३६।।🌻🌻
समीक्षा 👉 भागवतकार ने इस कथा को गढ़ कर कुन्ती को व्यभिचारणी और सूर्य को व्यभिचारी घोषित किया है संभोग से योनि से दूषित हो जाने पर सूर्य देव ने तो कोई दवा तो लगायी नहीं जब पुरुष संग से गया तो योनि तो दूषित हो ही जाती है फिर कुमारीपना कहां रह जाता है। भागवतकार कुन्ती को पुरूषगामी भी बताता है और शुद्ध भी रखना चाहता है। यह सूर्य तो आग का गोला है जो इस पृथ्वी से लाखों गुणा बड़ा है भला किसी के बुलाने पर वह कैसे आ सकता है वह जड़ पदार्थ है किसी स्त्री से संभोग सर्वथा असंभव है।

🌲🌲🌲 भारद्वाज का जन्म 🌲🌲🌲


🌺 तस्यासन् नृप वैदभ्भ्: पत्न्यस्तिस्रः सुसम्मता:
जघ्नुस्त्यागभयात् पुत्रान् नानुरूपा इतीरिते ।।३४
तस्यैवं वितथे वंशे तदर्थं यजतः सुतम् ।
मरुत्स्तोमेन मरुतो भरद्वाजमुपाददुः ।।३५
अन्तर्वत्न्यां भ्रातृपत्न्यां मैथुनाय बृहस्पतिः ।
प्रवृत्तो वारितो गर्भ शप्त्वा वीर्यमवासृजत् ।।३६
तं त्यक्तुकामां ममतां भर्तृत्यागविशंकिताम् ।
नामनिर्वचनं तस्य श्लोकमेनं सुरा जगुः ।।३७
मूढे भर द्वाजमिमं भर द्वाजं बृहस्पते ।
यातौ यदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् ।।३८ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय २०, श्लोक ३४-३८)🌷
🌻🌻 परीक्षित्! विदर्भराजकी तीन कन्याएँ सम्राट् भरतकी पत्नियाँ थीं। वे उनका बड़ा आदर भी करते थे। परन्तु जब भरतने उनसे कह दिया कि तुम्हारे पुत्र मेरे अनुरूप नहीं हैं, तब वे डर गयीं कि कहीं सम्राट् हमें त्याग न दें। इसलिये उन्होंने अपने बच्चोंको मार डाला ।।३४।। इस प्रकार सम्राट् भरतका वंश वितथ अर्थात् विच्छिन्न होने लगा। तब उन्होंने सन्तानके लिये 'मरुत्स्तोम' नामका यज्ञ किया। इससे मरुद्गणोंने प्रसन्न होकर भरतको भरद्वाज नामका पुत्र दिया ।।३५।। भरद्वाजकी उत्पत्तिका प्रसंग यह है कि एक बार बृहस्पतिजीने अपने भाई
उतथ्यकी गर्भवती पत्नीसे मैथुन करना चाहा। उस समय गर्भमें जो बालक (दीर्घतमा) था, उसने मना किया। किन्तु बृहस्पतिजीने उसकी बातपर ध्यान न दिया और उसे 'तू अंधा हो जा' यह शाप देकर बलपूर्वक गर्भाधान कर दिया।।३६।। उतथ्यकी पत्नी ममता इस बातसे डर गयी कि कहीं मेरे पति मेरा त्याग न कर दें । इसलिये उसने बृहस्पतिजीके द्वारा होनेवाले लड़केको त्याग देना चाहा। उस समय देवताओंने गर्भस्थ शिशुके नामका निर्वचन करते हुए यह कहा ।।३७।। बृहस्पतिजी कहते हैं कि ' अरी मूढे! यह मेरा औरस और मेरे भाईका क्षेत्रज
इस प्रकार दोनोंका पुत्र (द्वाज) है; इसलिये तू डर मत, इसका भरण-पोषण कर (भर)।' इसपर ममताने कहा--'बृहस्पते! यह मेरे पतिका नहीं, हम दोनोंका ही पुत्र है; इसलिये तुम्हीं इसका भरण-पोषण करो।' इस प्रकार आपसमें विवाद करते हुए माता-पिता दोनों ही इसको छोड़कर चले गये। इसलिये इस लड़केका नाम 'भरद्वाज' हुआ ।।३८।।🌻🌻
समीक्षा 👉 गर्भ से बालक कैसे मना किया?🤔🤔🤔

🌲🌲🌲 अजीब चमत्कार 🌲🌲🌲


🌺 देवक्या जठरे गर्भं शेषाख्यं धाम मामकम् ।
तत् संनिकृष्य रोहिण्या उदरे संनिवेशय ।।८
अथाहमंशभागेन देवक्याः पुत्रता शुभे ।
प्राप्स्यामि त्वं यशोदायां नन्दपत्न्यां भविष्यसि ।।९
अर्चिष्यन्ति मनुष्यास्त्वां सर्वकामवरेश्वरीम्ं ।
धूपोपहारबलिभिः सर्वकामवरप्रदाम् ।।१०
नामधेयानि कुर्वन्ति स्थानानि च नरा भुवि ।
दुर्गेति भद्रकालीति विजया वैष्णवीति च ।।११
कुमुदा चण्डिका कृष्णा माधवी कन्यकेति च ।
माया नारायणीशानी शारदेत्यम्बिकेति च ।।१२
गर्भसंकर्षणात् तं वै प्राहुः संकर्षणं भुवि ।
रामेति लोकरमणाद् बलं बलवदुच्छ्रयात् ।।१३
सन्दिष्टैवं भगवता तथेत्योमिति तद्वचः ।
प्रतिगृह्य परिक्रम्य गां गता तत् तथाकरोत् ।।१४ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, दशम स्कंध, अध्याय २, श्लोक ८-१४)🌷
🌻🌻 इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं, देवकीके उदरमें गर्भ रूपसे स्थित है। उसे वहाँसे निकालकर तुम रोहिणीके पेटमें रख दो ।।८।। कल्याणी! अब मैं अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशोंके साथ देवकीका पुत्र बनूँगा
और तुम नन्दबाबाकी पत्नी यशोदाके गर्भसे जन्म लेना ।।९।। तुम लोगोंको मुँहमाँगे वरदान देनेमें समर्थ होओगी। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओंको पूर्ण करनेवाली जानकर धूप-दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकारकी सामग्रियोंसे तुम्हारी पूजा करेंगे ।।१०।। पृथ्वीमें लोग तुम्हारे लिये बहुत-से स्थान बनायेंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका , कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत-से नामोंसे पुकारेंगे ।।११-१२।। देवकीके गर्भमेंसे खींचे जानेके कारण शेषजीको लोग संसारमें 'संकर्षण' कहेंगे, लोकरंजन करनेके कारण 'राम' कहेंगे और बलवानोंमें श्रेष्ठ होनेके कारण
'बलभद्र' भी कहेंगे ।।१३।। जब भगवान्ने इस प्रकार आदेश दिया, तब योगमायाने 'जो आज्ञा'-ऐसा कहकर
उनकी बात शिरोधार्य की और उनकी परिक्रमा करके वे पृथ्वी-लोकमें चली आयीं तथा भगवान्ने जैसा कहा था, वैसे ही किया ।।१४।।🌻🌻
समीक्षा 👉 एक स्त्री के पेट से बिना आपरेशन के गर्भ निकाल कर दूसरी स्त्री के दूर स्थान पर ले जाकर गर्भ में प्रविष्ट किया जा सके, ओर दोनों में से किसी भी स्त्री को पता भी न चले कि गर्भ कब निकाल लिया और कब अन्दर घुसेड़ दिया गया। यह गपोड़ा नहीं तो और क्या है?


🌲🌲🌲 स्त्रियां पापी और दुराचारिणी होती हैं 🌲🌲🌲


🌺 शरत्पद्मोत्सवं वक्त्रं वचश्च श्रवणामृतम् ।
हृदयं क्षुरधाराभं स्त्रीणां को वेद चेष्टितम् ।।४१
न हि कश्चित्प्रियः स्त्रीणामञ्जसा स्वाशिषात्मनाम् ।
पतिं पुत्रं भ्रातरं वा घ्नन्त्यर्थे घातयन्ति च ।।४२ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय १८, श्लोक ४१,४२)🌷
🌻🌻 सच है, स्त्रियोंके चरित्रको कौन जानता है। इनका मुंह तो ऐसा होता है जैसे शरद्ऋतुका खिला हुआ कमल। बातें सुननेमें ऐसी मीठी होती हैं, मानो अमृत घोल रखा हो। परन्तु हृदय, वह तो इतना तीखा होता है कि मानो छुरेकी पैनी धार हो ।।४१।। इसमें सन्देह नहीं कि स्त्रियाँ अपनी लालसाओंकी कठपुतली होती हैं। सच पूछो तो वे
किसीसे प्यार नहीं करतीं। स्वार्थवश वे अपने पति, पुत्र और भाईतकको मार डालती हैं या मरवा डालती हैं ।४२।।🌻🌻
समीक्षा 👉 स्त्रियां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि में साधन रूप होती हैं। उनकी रचना का उद्देश्य महान है भागवतकार की पत्नी ने शायद उसकी एक दो बार पिटाई कर दी होगी इससे उसका अनुभव दुर्भाग्य पूर्ण रहा होगा। वह भी इसलिए कि भागवतकार स्वयं स्त्री गामी रहा होगा। जैसा कि उसकी लिखी हुई भागवत से उसके स्वभाव का पता चलता है। नारी जाति की निन्दा करना भी भागवतकार का उद्देश्य रहा है।

🌲🌲🌲देवताओं और असुरों की विचित्र सवारियां🌲🌲🌲


🌺 रथिनो रथिभिस्तत्र पत्तिभिः सह पत्तयः ।
हयैरिभाश्चेभैः समसज्जन्त संयुगे।।८।।
उषट्टैः केचिदिभैः केचिेदपरे युयुधुः खरेः ।
केचिद् गोरमृगेरक्षेद्दीवीपभिर्हीरिभिर्भटाः ।।९
गृष्टैः कङ्कैर्बकैरन्ये श्येनभासैस्तिमिङ्गिलैः ।
शरभैर्महिषैः खड्गैर्गोवृषैर्गवयारुणैः ।।१०
शिवाभिराखुभिः केचित् कृकलासैः शशैनरैः' ।
बस्तैरेके कृष्णसारैरहसेरन्ये च सूकरैः ।।११ 🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय १०, श्लोक ८-११)🌷
🌻🌻 रणभूमिमें रथियोंके साथ रथी, पैदलके साथ पैदल, घुड़सवारोंके साथ घुड़सवार एवं हाथीवालोंके साथ हाथीवाले भिड़ गये ।|८।| उनमेंसे कोई-कोई वीर ऊँटोंपर, हाथियोंपर और गधोंपर चढ़कर लड़ रहे थे तो कोई-कोई गौरमृग, भालू, बाघ और सिंहोंपर ।।९।|| कोई-कोई सैनिक गिद्ध, कंक, बगुले, बाज और भास पक्षियोंपर चढ़े हुए थे तो बहुत-से तिमिङ्गिल मच्छ, शरभ, भेंसे, गैंड़े, बैल, नीलगाय और जंगली साँड़ोंपर सवार थे ।।१०।। प्रबल शत्रु हो रहे थे, दोनों ही क्रोधसे भरे हुए थे। एक-दूसरेको बड़े जोरसे बजने लगे; किसी-किसीने सियारिन, चूहे, गिरगिट और खरहोंपर ही सवारी कर ली थी तो बहुत-से मनुष्य, बकरे, कृष्णसार मृग, हंस और सूअरोंपर चढ़े थे ।।११।|🌻🌻
समीक्षा 👉 क्या मनुष्यों की सवारी चूहा, गिरगिट, मछली, खरगोश, बगुला, गिद्ध,बाज आदि भी हो सकते हैं??🤔🤔🤔
इन सवारियों पर चढ़कर युद्ध लड़े जा सकते हैं??🤔🤔🤔

🌲🌲🌲गज और ग्राह का एक हजार वर्ष तक युद्ध चला🌲🌲🌲


🌺 नियुध्यतोरेवमिभेन्द्रनक्रयो-
र्विकर्षतोरन्तरतो बहिर्मिथः ।
समाः सहस्रं व्यगमन् महीपते
सप्राणयोश्चित्रममंसतामराः ।।२९🌺
🌷(श्रीमद्भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय २, श्लोक २९)🌷
🌻🌻 गजेन्द्र और ग्राह अपनी-अपनी पूरी शक्ति लगाकर भिड़े हुए थे। कभी गजेन्द्र ग्राहको बाहर खींच लाता तो कभी ग्राह गजेन्द्रको भीतर खींच ले जाता। परीक्षित्! इस प्रकार उनको लड़ते-लड़ते एक हजार वर्ष बीत गये और दोनों ही जीते रहे। यह घटना देखकर देवता भी आश्चर्यचकित हो गये ।।२९।।🌻🌻
समीक्षा 👉 एक हजार साल तक बिना भोजन-पानी में निरन्तर लड़ते रहे और जिन्दा बने रहे 🤨😨🤔
एक गज और एक ग्राह का आयु १०० साल से ज्यादा नहीं होता, फिर भी यहां तो भागवतकार ने १००० साल तक युद्ध करवाया, भागवतकार तो एकदम ....... निकला🤪😝😛

🌲🌲🌲 काल्पनिक समुद्र🌲🌲🌲


 श्रीमद्भागवत पुराण पंचम स्कंध, अध्याय २०, श्लोक २,७,१३,१८,२४,२९ में भी है, जहां कहा गया है पृथ्वी में सुमेरु और कुछ पर्वत के बीच में क्षारसमुद्र, इक्षुरसके समुद्र, मदिराके समुद्र, घृतके समुद्र, दूधके समुद्र, क्षीरसमुद्र, मट्ठके समुद्र जो कि पृथ्वी पर है ही नहीं। और इनका विस्तार इतनी दूर तक बताया गया है कि वह पृथ्वी पर सम्भव नहीं।😝😝😝

भागवत प्रचारकों से प्रश्न👉
भागवत १०/७०/४ से ६ में कृष्णजी की प्रात: कालीन दिनचर्या लिखी है । कृष्णजी प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त में उठकर परमात्मा का ध्यान करते थे। स्नानादि प्रातर्विधि के पश्चात् ब्रह्मयज्ञ, संध्यावंदन फिर अग्निहोत्र कर मौन होकर गायत्री का जाप करते थे। भागवत १०/४५/२६ के अनुसार पिता वसुदेव ने अपने दोनों पुत्रों का यज्ञोपवीत/जनेऊ संस्कार अपने पुरोहित गार्गाचार्य से कराया था । भागवत १०/४५/३१ से ३६ के अनुसार बलराम और कृष्ण दोनों भाइयों ने कश्यप गोत्रोत्पन्न अवन्तीपुरी / उज्जैन में सन्दीपनि मुनि के गुरुकुल में चारों वेद, धनुर्वेद, धर्मशास्त्र, तक्कादिशास्त्र की शिक्षा पूर्ण की थी । भागवत ६ / १ / ४० में लिखा है - वेद प्रणहितो धर्म : , हि अधर्म: तत् विपर्यय: । भागवत ७/१/६-७-८ में परमात्मा को निगुर्ण अजन्मा अव्यक्त और प्रकृति से परे माना है। अब पण्डित जी बताइये ( १) क्या आप वेद मन्त्रानुसार ब्रह्मयज्ञ /संध्या करते और कराते हो? पौराणिक संध्या में कृष्णाय नम:, गोवि-य नमः, माधवाय  नमः, केशवाय नम:, अच्युताय नम: इस प्रकार कृष्ण जी के नामों का उल्लेख कर नमन करते हैं, क्या कृष्ण जी अपने ही नामों से अपने आप को ही नमन करते थे? कृष्ण जी ( वैदिक) वेद मन्त्रों से संध्या/ वन्दन करते थे, जो आप स्वयं न करते हो न कराते हो। (२) कितने भागवतकार प्रतिदिन नित्य अग्निहोत्र करते हैं और भक्तों से कराते हैं? (३) कितने पण्डित गायत्री मन्त्र
भक्तों को विशेषत: स्त्री वर्ग को सिखाते हैं ? अरे आपने तो स्त्री वर्ग पर गायत्री जपने का प्रतिबन्ध लगाया है, ऐसा क्यों ? (४) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों वर्णों को जनेऊ धारण कर द्विज कहलाने का अधिकार है जैसा कि कृष्णजी का हुआ था। क्या आप इन वर्णों का उनका अधिकार प्रदान करते हो? आप तो यजमान के हाथ में मौली/रंगीन धागा बांधकर उसे जनेऊ से वंचित करते हो । मौली (कलावा) बांधना किस शास्त्र के आधार पर चल रहा है? (५) क्या आप वेद धर्म स्वयं जानते हो और यदि जानते हो तो भक्तों को जनाते क्यों नहीं ? क्या आप भक्तों का, महिला वर्ग का, उद्धार और उनके आत्मोन्नति और कल्याण का वैदिक धर्म उन्हें बताते हो? ध्यान रहे वेदों में ऋषि हैं वैसे ही ऋषिकायें भी हुई हैं, वेदों से स्त्री वर्ग वंचित नहीं, स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ ऐसा वेदमन्त्र में कहा है। अपने आप से पूछो, मनन चिन्तन से जानो कि भागवत पढ़कर हम क्या कर रहे हैं और हमें क्या करना चाहिये?

सहायक ग्रंथ 👉 १. भागवत हटाओ
                       २. भागवत की असलियत


🌷🌷🌷🙏🙏🙏 नमस्ते 🙏🙏🙏🌷🌷🌷

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