Other लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Other लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

स्वाध्याय का महत्व

लेखक 👉 स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती


स्वाध्याय का महत्व

मनुस्मृति में स्वाध्याय का महत्व


स्वाध्यायेन व्रतैर्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः। 
मनुस्मृति 2/28
अर्थ (स्वाध्यायेन) सकल विद्या पढने-पढ़ाने (व्रतैः) ब्रह्मचर्यसत्यभाषणादि नियम पालने (होमैः) अग्निहोत्रादि होम, सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग और सब विद्याओं का दान देने (त्रेविद्येन) वेदस्थ कर्म-उपासना-ज्ञान विद्या के ग्रहण (इज्यया) पक्षेष्टयादि करने (सुतैः) सुसन्तानोत्पत्ति (महायज्ञैः) ब्रह्म, देव, पितृ, वैश्वदेव और अतिथियों के सेवन रूप पंचमहायज्ञ और (यज्ञैः) अग्निष्टोमादि तथा शिल्पविद्याविज्ञानादि यज्ञों के सेवन से (इयं तनुः) इस शरीर को (ब्राह्मीः क्रियते) ब्राह्मी अर्थात् वेद और परमेश्वर की भक्ति का आधार रूप ब्राह्मण का शरीर बनता है । इतने साधनों के बिना ब्राह्मण - शरीर नहीं बन सकता ।’’
नैत्यके नास्त्यनध्यायो ब्रह्मसत्त्रं हि तत्स्मृतम्।
ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यं अनध्यायवषट्कृतम् ।
 मनुस्मृति 2/106
अर्थ (नैत्यके अनध्यायः न+अस्ति) नित्यकर्म में अनध्याय नहीं होता जैसे श्वास-प्रश्वास सदा लिये जाते हैं, बन्ध नहीं किये जाते, वैसे नित्यकर्म प्रतिदिन करना चाहिये, न किसी दिन छोड़ना (हि) क्यों कि (अनध्यायवषट्कृतं ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यम्) अनध्याय में भी अग्निहोत्रादि उत्तम कर्म किया हुआ पुण्यरूप होता है ।
यः स्वाध्यायं अधीतेऽब्दं विधिना नियतः शुचिः।
तस्य नित्यं क्षरत्येष पयो दधि घृतं मधु । 
मनुस्मृति 2/107
अर्थ (यः) जो व्यक्ति (स्वाध्यायम्) जल वर्षक मेघस्वरूप स्वाध्याय को वेदों का अध्ययन एवं गायत्री का जप, यज्ञ, उपासना आदि (शुचिः) स्वच्छ-पवित्र होकर (नियतः) एकाग्रचित्त होकर (विधिना) विधि-पूर्वक अधीते करता है (तस्य एषः) उसके लिए यह स्वाध्याय (नित्यं सदा पयः दधि घृतं मधु क्षरति) दूध, दही, घी और मधु को बरसाता है ।
वेदमेव सदाभ्यस्येत्तपस्तप्स्यन्द्विजोत्त्मः।
वेदाभ्यासो हि विप्रस्य तपः परमिहोच्यते।।  
मनुस्मृति 2/166
अर्थ (द्विजोत्तमः) द्विजोत्तम अर्थात् ब्राह्मणादिकों में उत्तम सज्जन पुरुष (सदा तपः तप्स्यन्) सर्वकाल तपश्चर्या करता हुआ (वेदम्+एव अभ्यस्येत्) वेद का भी अभ्यास करें (हि) जिस कारण (विप्रस्य) ब्राह्मण वा बुद्धिमान् जन को (वेदाभ्यांसः) वेदाभ्यास करना (इह) इस संसार में (परं तपः उच्यते) परम तप कहा है।
आ हैव स नखाग्रेभ्यः परमं तप्यते तपः।
यः स्रग्व्यपि द्विजोऽधीते स्वाध्यायः शक्तितोऽन्वहम्।।
मनुस्मृति 2/167
अर्थ (यः द्विजः) जो द्विज (स्रग्वी-अपि) माला धारण करके अर्थात् गृहस्थी होकर भी (अनु+अहम्) प्रतिदिन (शक्तितः स्वाध्यायम् अधीते) पूर्ण शक्ति से अर्थात् अधिक से अधिक प्रयत्नपूर्वक वेदों का अध्ययन करता रहता है (सः) वह (आ नखाग्रेभ्यः ह+एव्) निश्चय ही पैरों के नाखून के अग्रभाग तक अर्थात् पूर्णतः (परमं तपः तप्यते) श्रेष्ठ तप करता है।
योऽनधीत्य द्विजो वेदं अन्यत्र कुरुते श्रमम् ।
स जीवन्नेव शूद्रत्वं आशु गच्छति सान्वयः । 
मनुस्मृति 2/168
अर्थ (यः द्विजः) जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य (वेदम् अनधीत्य) वेद को न पढ़कर (अन्यत्र श्रमं कुरूते) अन्य शास्त्र में श्रम करता है (सः) वह (जीवन्+एव) जीवता ही (सान्वयः) अपने वंश के सहित (शूद्रत्वं गच्छति) शूद्रपन को प्राप्त हो जाता है ।
सर्वान्परित्यजेदर्थान्स्वाध्यायस्य विरोधिनः ।
यथा तथाध्यापयंस्तु सा ह्यस्य कृतकृत्यता ।।  
मनुस्मृति 4/17
जो स्वाध्याय और धर्मविरोधी व्यवहार वा पदार्थ हैं उन सब को छोड़ देवे जिस किसी प्रकार से विद्या को पढ़ाते रहना ही गृहस्थ को कृतकृत्य होना है ।
वेदं एवाभ्यसेन्नित्यं यथाकालं अतन्द्रितः ।
तं ह्यस्याहुः परं धर्मं उपधर्मोऽन्य उच्यते ।। 
मनुस्मृति 4/147
अर्थ द्विज (नित्यम्) सदा (यथाकालम्) जितना भी अधिक समय लगा सके उसके अनुसार (अतन्द्रितः) आलस्य रहित होकर (वेदम्+एक+अभ्यसेत्) वेद का ही अभ्यास करे (हि) क्योंकि (तम् अस्य परं धर्मम् आहुः) उस वेदाभ्यास को इस द्विज का सर्वोत्तम कर्तव्य कहा है (अन्यः उपघर्म: उच्यते) अन्य सब कर्तव्य गौण हैं ॥
वेदाभ्यासेन सततं शौचेन तपसैव च ।
अद्रोहेण च भूतानां जातिं स्मरति पौर्विकीम् । 
मनुस्मृति 4/148
भावार्थ मनुष्य निरन्तर वेद का अभ्यास करने से आत्मिक तथा शारीरिक पवित्रता से तथा तपस्या से और प्राणियों के साथ द्रोहभावना न रखते हुए अर्थात् अहिंसाभावना रखते हुए पूर्वजन्म की अवस्था को स्मरण कर लेता है ।
पौर्विकीं संस्मरन्जातिं ब्रह्मैवाभ्यस्यते पुनः । 
ब्रह्माभ्यासेन चाजस्रं अनन्तं सुखं अश्नुते ।। 
मनुस्मृति 4/149
भावार्थ पूर्वजन्म की अवस्था का स्मरण करते हुए फिर भी यदि वेद के अभ्यास में लगा रहता है तो निरन्तर वेद का अभ्यास करने से मोक्ष - सुख को प्राप्त कर लेता है ।
सर्वेषां एव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते ।
वार्यन्नगोमहीवासस् तिलकाञ्चनसर्पिषाम् ।। 
मनुस्मृति 4/233
भावार्थ वारि अर्थात् जल, अन्न, गौ, भूमि, कपड़ा, तिल, सोना तथा घी इन सब दानों में ब्रह्मदान श्रेष्ठ है।   ब्रह्मदान का अर्थ है विद्यादान। विद्यादान में दुरुपयोग का भय नहीं है। इसलिये यह दान न तो देने वाले को दुःख देता है न लेने वाले को। इसलिये इसको सब से श्रेष्ठ दान कहा है।

शतपथ ब्राह्मण में स्वाध्याय का महत्व

अथ ब्रह्मयज्ञ । स्वाध्यायो वै ब्रह्मयज्ञस्तस्य वाऽएतस्य ब्रह्मयज्ञस्य वागेव जुहूमैनऽउपभृच्चक्ष र्ध्रुवा मेधा स्रुवः सत्यमवभृथ स्वर्गो लोकऽउदयन यावन्त हवाइमा पृथिवी वित्तेन पूर्णां ददल्लोक जयति त्रिस्तावन्त जयति भूयांस चाक्षय्यं यऽएवं विद्वानहरह स्वाध्यायमधीते तस्मात्स्वाध्यायोऽध्येतव्य॥
 शतपथ 11/5/6/3
भावार्थ अब ब्रह्मयज्ञ । स्वाध्याय ही ब्रह्मयज्ञ है । इस ब्रह्मयज्ञ की जुहू वाणी है। मन उपभृत है। चक्षु ध्रुवा है, मेधा स्रुवा, सत्य यवभृथ स्नान है। स्वर्ग लोक इमारत है। इस पृथिवी को चाहे कितना ही धन से भर कर दक्षिणा मे देकर इस लोक को जीते उतने से तिगुना या इससे भी अधिक अधक्ष्य नोक को वह विद्वान प्राप्त होता है जो स्वाध्याय करता है। इसलिये स्वाध्याय अवश्य करे।।
"य एवं विद्वान् ऋच: अहरह: स्वाध्यायमधीते पयआहुतिभिरेव तद्देवांस्तर्पयति त ऽ एनं तृप्तास्तर्पयन्ति योगक्षेमेण, प्राणेन, रेतसा, सर्वात्मना, सर्वाभि: पुण्याभि: सम्पद्भिः, घृतकुल्या मधुकुल्या: पितृन् स्वधा अभिवहन्ति ।" 
शतपथ 11/5/6/4
भावार्थ वह विद्वान् जो इस प्रकार वेदचतुष्टय की ऋचारूप हवि का दान करता रहता है, उससे तृप्त होकर देव स्वाध्यायशील व्यक्ति को योगक्षेम, प्राणशक्ति, वीर्यशक्ति, सम्पूर्ण आत्मलाभ, समस्त पुण्यों और सम्पत्ति से युक्त करते हैं और (वानप्रस्थ में) पितरों को भी घृत और मधु की धाराएं पहुंचाते हैं।
तस्माद् अपि ऋचं वा यजुर्वा साम वा गाथां वा कुंब्यां वा अभिव्याहरेद् व्रतस्य अव्यवच्छेदा य" 
शतपथ 11/5/6/9
भावार्थ ऋचा ही सही एक यजुर्मन्त्र ही सही, एक साममन्त्र ही सही, एक गाथा ही सही, व्रत की अखण्डता के लिए कोई एक श्लोक ही दोहरा ले, परन्तु स्वाध्याय में नाग़ा न आने दे । स्वाध्याय-सत्र की अखंडता बनी रहनी चाहिए।
प्रिये स्वाध्याय प्रवचने भवतो युक्तमना भवत्य पराधीनोऽहरह रर्थन्त्साधयते सुख स्वपिति परमचिकित्सक आत्मनो भवतीन्द्रियसंयमश्चकारामता च प्रज्ञावृद्धिर्यशोलोस्पक्तिः प्रज्ञा वर्धमाना चतुरो धर्मान्ब्राह्मणमभिनिष्पादयति। व्राह्मण्यं प्रतिरूपचर्या यशोलोकपक्तिं लोकः पच्यमानश्चतुभिर्धर्मैब्राह्मणं भुनक्ति, अर्चया च दानेन चाज्येयतया चावध्यतया च।।
शतपथ 11/5/7/1
भावार्थ स्वाध्याय और प्रबचन (पढ़ाना) प्रिय होते हैं। यह मननशील, और स्वाधीन हो जाता है, प्रति दिन धन कमाता है सुख से सोता है, अपना परम चिकित्सक है। उस की इंन्द्रिया संयम मे रहती है, एक रस रहता है, उसकी प्रज्ञा बढ़ती है, यश बढ़ता है, और उसके लोग उन्नति करते हैं । प्रज्ञा के बढ़ने से ब्राह्मण सम्बन्धी चार धर्मों को जानता है अर्थात ब्रह्मकुल की नीति, अनुकूल आचरण, यश और स्वजन-वृद्धि । स्वजन वृद्ध होकर भी बाह्मण को चार धर्मों से युक्त करते हैं अर्थात् सत्कार, दान, कोई उसको सताता नहीं। कोई उसको मारता नहीं।।
ये ह वै के च श्रमा: । इमे द्यावा पृथिवोऽअन्तरेण स्वाध्यायो हैव तेषां परमताकाष्ठा यऽएव विद्वान् तस्वाध्यायमधोते तस्मात् सर्व ध्ययोऽध्येतव्य: ।।
 शतपथ 11/5/7/2
भावार्थ इस द्यो और पृथिवी के बीच में जो कुछ श्रम है, स्वाध्याय उन सब का पराकष्ठा है। जो इस रहस्य को जानकर स्वाध्याय करता है उसका यही अन्त है। इसलिए स्वाध्याय करना चाहिए।
यद्यद्ध वाऽअयं च्छन्दसः । स्वाध्यायमधीते तेन तेन हैवास्य यज्ञक्रतुनेष्टं भवति य एवं विद्वान्स्वाध्यायमधीते तस्मात्स्वाध्यायोऽध्येतत्यः ॥
 शतपथ 11/5/7/3
भावार्थ छन्द के जिस जिस भाग का स्वाध्याय करता है, उस उस दृष्टि का उसको फल मिलता है जो इस रहस्य को जान कर यज्ञ करता है । इसलिये स्वाध्याय करना चाहिये ।।

उपनिषदों में स्वाध्याय का महत्व

त्रयो धर्मस्कन्धा यज्ञोऽध्ययनं दानमिति प्रथम।
 (छान्दोग्य उपनिषद 2/23/1)
अर्थ (धर्मस्कन्धाः त्रयः) धर्म के तीन स्कन्ध भाग हैं । (यज्ञः, अध्ययनम्, दानम् इति प्रथमः) यज्ञ, स्वाध्याय और दान यह मिलकर पहला स्कन्ध है ।
एषां भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपो रसः । अपामोषधयो रस ओषधीनां पुरुषो रसः पुरुषस्य वाग्रसो वाच ऋग्रस ऋचः साम रसः साम्न उद्गीथो रसः।।
 (छान्दोग्य उपनिषद 1/1/2)
अर्थ (एषाम्) इन (भूतानाम्) पंच्चभूतों का (पृथिवी रसः) समस्त भूतों का सारमय होने से, पृथिवी रस है। (पृथिव्या) पृथिवी का (आपः) जल (रसः) रस-सार है। (अपाम्) जल का (ओषधयः रसः) ओषधि-अन्नादि रस हैं (ओषधीनाम्) औषधियों का (पुरूषः रसः) पुरूष रस है (पुरूषस्य) पुरूष का (वाग् रसः) रस वाणी है (वाचः) वाणी का (ऋग् रसः) ऋचाएँ रस हैं। ऋचः ऋचा का (साम रसः) रस सामगान है। (साम्नः) साम का (उद्गीथः रसः) रस ओंकार है।
वेदमनूच्याचार्योऽन्तेवासिनमनुशास्ति । सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः । सत्यान्न प्रमदितव्यम् । धर्मान्न प्रमदितव्यम् । कुशलान्न प्रमदितव्यम् । भूत्यै न प्रमदितव्यम् । स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् ॥ 
(तैत्तिरीय उपनिषद शीक्षा० 11/1)
अर्थ (आचार्यः वेदम् अनूच्य अन्तेवासिनम् अनुशास्ति) आचार्य वेद पढ़ाकर, समीप रहने वाले शिष्य को उपदेश करता है। (सत्यं वद) सच बोलो। (धर्म चर) धर्म का आचरण करो। (स्वाध्यायात् मा प्रमदः) स्वाध्याय में प्रसाद न कर। (आचार्याय प्रियम् धनम् आहृत्य) आचार्य के लिए प्रिय धन को लाकर अर्थात् शिक्षा समाप्ति के बाद उचित दक्षिणा देकर (प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः) प्रजा के सूत्र को मत तोड़ अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रम को समाप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर। (सत्यात् न प्रमदितव्यम्) सच बोलने में प्रमाद न कर। (धर्मात् न प्रमदितव्यम्) धर्म में अर्थात् धर्माचरण करने में आलस्य न कर। (कुशलात् न प्रमदितव्यम्) कुशल जो कुछ उपयोगी और कल्याणप्रद है उस में प्रमाद न कर। (भूत्यै न प्रमदितव्यम्) ऐश्वर्य के बढ़ाने में प्रमाद न कर। (स्वाध्यायप्रवचनाभ्याम् न प्रमदितव्यम्) पढ़ने और पढ़ाने में प्रमाद न कर ।

योग दर्शन में स्वाध्याय का महत्व

शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥ 
योग दर्शन 2/32
अर्थ(शौचसन्तोष) शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, यह (नियमा:) नियम है।।

स्वाध्यायादिष्टदेवता संप्रयोगः ॥
योग दर्शन 2/44
अर्थ (स्वाध्यायात्) स्वाध्याय के सिद्ध होने से (इष्टदेंवतासंप्रयोग:) इष्टदेव परमात्मा का दर्शन होता है।।

विद्या ह वै ब्राह्मणमाजगाम गोपाय मां शेवधिष्टेऽहमस्मि । असूयकायानृजवे । शठाय मा मा ब्रूया वीर्यवती तथा स्याम्॥
 निरुक्त 2/1/4
विद्या ह वै ब्राह्मणमा जगाम'-विद्या ब्राह्मण के पास आकर बोली-'गोपाय मां शेविधिष्टेऽहमस्मि' मेरी रक्षा कर मैं तेरी निधि हूं 'मा ब्रूहि'- मत कहना, मत बताना, मत सुनाना 'असूय काय'-जो डांस करता हो, जिसमें तेजोद्वेष भरा हो; 'अनृज'- जिसमें ऋजुता न हो = सरलता न हो, विनम्रता न हो। कुटिल को मत देना। 'अयताय न मा बूया:"-जो संयमी नहीं है अथवा प्रयत्नशील नहीं है उसे भी मत देना। इसलिये स्वाध्याय परम-निधि है, स्वाध्याय परम-श्रम है, परम-तप है, परम-धर्म है, परम-स्कन्ध है, परम-योग है, परम-यज्ञ है, परम-रस है, परम-दीक्षा है, परम-निधि है।

आश्वलायन-गृह्यसूत्र (३/३/१) ने स्वाध्याय के लिए निम्न ग्रंथों के नाम लिखे हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, कल्प, गाथा, नाराशंसी, इतिहास एवं पुराण। किन्तु मनोयोगपूर्वक जितना स्वाध्याय किया जा सके उतना ही करे । बस, स्वाध्याय-सत्र को अटूट रखे, उसमें व्यवधान न आने पाए ।शांखायन-गृह्यसूत्र (१/४) में ब्रह्म यज्ञ के लिए ऋग्वेद के बहुत-से सूक्तों एवं मंत्रों के पाठ की बात कही है । अन्य गृह्यसूत्रों ने भी शाखा-वेद के अनुसार ब्रह्म यज्ञ के लिए विभिन्न मंत्रों के पाठ व स्वाध्याय की बात कही है । याज्ञवल्क्य स्मृति (१/१०/१) में लिखा है कि समय एवं योग्यता के अनुसार ब्रह्म यज्ञ में वेदों के साथ इतिहास एवं दर्शनग्रंथ भी पढ़े जा सकते हैं।
                                  उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि वेद के अध्ययन के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों का अध्ययन भी स्वाध्याय है । समय के अनुसार स्वाध्याय के नियमों में शिथिलता लायी गयी और एकमात्र वेदाध्ययन को ही स्वाध्याय न कहकर अन्य ग्रन्थों को भी समाविष्ट कर लिया गया। यहां तक कि उसमें छ: वेदांगों, आश्वलायनादि-श्रौतसूत्रों, निरुक्त, छन्द,निघण्टु, ज्योतिष, शिक्षा, पाणिनि-व्याकरण के प्रथम सूत्र, यज्ञ-वल्क्य स्मृति (१/१) के प्रथमश्लोकार्ध, महाभारत (१/१/१) के प्रथम श्लोकार्ध, न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा के प्रथम सूत्र आदि को भी समाविष्ट कर लिया गया। इस ढील देने का यही प्रयोजन दीखता है कि किसी भी अवस्था में स्वाध्याय-सत्र की अखण्डता में अन्तर न आने पाये, इसमें व्यवधान न हो।

महाराज धृतराष्ट्र ने अपने इसी रोग की दुहाई देकर विदुर से पूछा था कि मुझे नींद नहीं आती । सञ्जय ने मुझे अभी तक महाराज युधिष्ठिर का कोई सन्देश नहीं सुनाया, जिससे मेरे शरीर का प्रत्येक अंग जल रहा है, और मुझे उन्निद्र रोग हो गया है । मुझ सन्तप्त और जागरण से पीड़ित व्यक्ति के लिए आप कोई कल्याणकर उपदेश दें। इस पर महामति विदुर ने कुछ दोष गिनवाए और सान्त्वना भरे शब्दों में कहा, "राजन् ! कहीं इन दोषों से आप पीड़ित तो नहीं है ? यदि इसमें से एक भी दोष आप में आया हुआ है तो निश्चय जानो आप इस रोग से पीड़ित रहोगे। क्या कहीं अपने से बलवान के साथ आपका मुकाबिला तो नहीं हो गया है?

आपका बल तो क्षीण नहीं हो गया है? आपके सेना आदि साधन हीन कोटि के तो नहीं हैं ? आपकी संपत्ति तो छिन नहीं गई? काम ने तो नहीं धर दबाया है? कभी भूले-चूके चोरी की इच्छा तो नहीं की? अथवा कहीं पराये धन पर तो गृधदृष्टि नहीं जा टिकी? जिसमें ये लक्षण हों प्राय: उन्हीं का उन्निद्र रोग सताया है ।" विदुर ने यह स्वर्णिम उक्ति कही- अभियुक्तं बलवता दुर्बलं हीनसाधनम्। हतस्वं कामिनं चौरमाविशन्ति प्रजागरा: ॥ कच्चिदेतैर्महादोषैर्न स्पृष्टोसि नराधिप । कच्चिन्न पवित्तेषु गृध्यन् विपरितप्यसे ॥ * (उद्योग पर्व ३३/११-१४)
विदुर द्वारा कहे इन महादोषों का प्रक्षालन स्वाध्यायशील व्यक्ति बहुत आसानी से कर लेता है । फलत: उन्निद्र रोग का कारण हट जाने से अब वास्तविक सुख की नींद सो सकता है।

सहायक ग्रंथ 👉 स्वाध्याय सर्वस्व(दीक्षानन्द सरस्वती)


स्वाध्याय का महत्व

ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका ➤

https://drive.google.com/file/d/1GRGdPkuZKjZPaUwh1K6tS07HNz6_k6zP/view?usp=drivesdk

आर्याभिविनय ➤

https://drive.google.com/file/d/1Ataa2WKBf8hQ_r_CFmmYbXF3Jdx1USGR/view?usp=drivesdk

वैदिक विनय(तृतीय भाग) ➤

https://drive.google.com/file/d/105yXiXIX0SQv8sgC8S6hSdmugB2GOvSb/view?usp=drivesdk

वेद का राष्ट्रीय गीत ➤

https://drive.google.com/file/d/1W8d4hVZh-AwD5gtRPwcP5FPti9ftyio5/view?usp=drivesdk

वेदामृत ➤

https://drive.google.com/file/d/1aWboyBlaxpUNF8emO9iIilnsPZPfM_cK/view?usp=drivesdk

स्वाध्याय सन्दोह ➤

https://drive.google.com/file/d/1tTMIOE6ARsk11LSo8PzJMGvp970VL_lv/view?usp=drivesdk

सोम सरोवर ➤

https://drive.google.com/file/d/1rQSDh-NpYmTHeA1J-p8SVwnvUpTKi9lV/view?usp=drivesdk

वैदिक ब्रह्मचर्य गीत ➤

https://drive.google.com/file/d/1KYpxhd84Gtiq70mXf5jIIjosSeS1VKkJ/view?usp=drivesdk

वेदों का यथार्थ स्वरूप ➤

https://drive.google.com/file/d/104mwhuHQQyMpdSOte1eAzcXSnnzPbkVY/view?usp=drivesdk

वैदिक सम्पत्ति ➤

https://drive.google.com/file/d/0B1giLrdkKjfRU29jVkVNRW9tQTA/view?usp=drivesdk

संध्या सुमन ➤

https://drive.google.com/file/d/18_ttvNc7Kw_M2pkR1yShh8t6qAEb76id/view?usp=drivesdk

संध्या रहस्य ➤

https://drive.google.com/file/d/1FeHtkVF9VW6tuZiTIgLXIpu20Un95z3T/view?usp=drivesdk

एकादशोपनिषद ➤

https://drive.google.com/file/d/1yTjd8Rt1UDzx1adOYyXdGU08SJCiC0-e/view?usp=drivesdk

उपनिषद मन्दाकिनी ➤

https://drive.google.com/file/d/0B1giLrdkKjfRMFBUSnJHWGZQNHc/view?usp=drivesdk

आत्मदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/12OxLMlz7pMX6voZHW4CCh1Sr11m8beZS/view?usp=drivesdk

धर्म इतिहास रहस्य ➤

https://drive.google.com/file/d/1NUUwy0ICnF7dp5sI7iFDbXbb-ZLw5ek_/view?usp=drivesdk

उरू ज्योति ➤

https://drive.google.com/file/d/1LA9RQeOdUKRxc6Ve4XUl9fNZahHxQNkt/view?usp=drivesdk

अध्यात्मप्रसाद ➤

https://drive.google.com/file/d/1opV9GRrPcpqg3q-7D1PLO9780HlAciV0/view?usp=drivesdk

कायाकल्प ➤

https://drive.google.com/file/d/1dQbeHDk3b0D1sIC5CE7keF9uFg577gsu/view?usp=drivesdk

धर्म सुधा सार ➤

https://drive.google.com/file/d/1xQAE7-qXJGZS-ZsVU4V11-NmHSbkxLZi/view?usp=drivesdk

गृहस्थ धर्म आर्य जीवन ➤

https://drive.google.com/file/d/1KBbpm2nFfsTFqUhLikT1j-hmnqowH4DM/view?usp=drivesdk

धर्म का आदि स्तोत्र ➤

https://drive.google.com/file/d/1yvJyPGeVBosl5yDwebkrrCP8YG0hyP2u/view?usp=drivesdk

आनन्द संग्रह ➤

https://drive.google.com/file/d/1-0NZxoiT6ZeaYmQ4VB-J09G4gI9vt-WP/view?usp=drivesdk

मैं और मेरा भगवान ➤

https://drive.google.com/file/d/1OGcEKw72I9S1eR19VKEpLStj_YPA1B1J/view?usp=drivesdk

मनु की देन ➤

https://drive.google.com/file/d/1808m23FpOqStdlT4ADTqeH6OA603Nmom/view?usp=drivesdk

ईश्वर बहिष्कार का प्रयत्न ➤

https://drive.google.com/file/d/1bxZdiGSJv1dOyp6DbaJM9og6MaUwz8hm/view?usp=drivesdk

आर्य दर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1fMd3rO8GkGRA5pOipwDoLCcUeTb7sKIV/view?usp=drivesdk

धर्म शिक्षा ➤

https://drive.google.com/file/d/1ZC8pT5ihZGztLxYXsb0KwPxLw9b7kEQu/view?usp=drivesdk

तत्वज्ञान ➤

https://drive.google.com/file/d/16wAGnPHIk4TiMbQM0ivW1prFqbLBRqCT/view?usp=drivesdk

अपने भाग्य निर्माता आप ➤

https://drive.google.com/file/d/1UGCqBIgRxbxyUK30IRepSkjU5eyPCB39/view?usp=drivesdk

मनुस्मृति गर्जना ➤

https://drive.google.com/file/d/14ry0BjuCc03Ex-5MoZ4WbaE-C2qrPw-H/view?usp=drivesdk

प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार ➤

https://drive.google.com/file/d/11nKunC3J3fbxXi2lQChVxWMDYqcATVNP/view?usp=drivesdk

प्राचीन भारत में रसायनिक विकास ➤

https://drive.google.com/file/d/11dGNSPkDf4Lc57DcjD_b9lea9bdmQGrS/view?usp=drivesdk

यज्ञविधि ➤

https://drive.google.com/file/d/12NVD3TPN3p7PSljTU_IzY-XybJ1oCLRV/view?usp=drivesdk

आर्षविज्ञान ➤

https://drive.google.com/file/d/13RHGXvtcUuEngM3zLe4_hnB9oI39gLF-/view?usp=drivesdk

संध्यालोक ➤

https://drive.google.com/file/d/1SrJ9C7rS3_lLu_ThcE8KzK5jWRvJkUJH/view?usp=drivesdk

देव यज्ञ पर अध्यात्मिक दृष्टि ➤

https://drive.google.com/file/d/1EIq7Xw6phrHJu6kxG32vNCvBuC-QVLzl/view?usp=drivesdk

मेरा धर्म ➤

https://drive.google.com/file/d/17S-1kcEKT0YHdpDVmDPOmZ6jPshB5d8X/view?usp=drivesdk

आत्मदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/12OxLMlz7pMX6voZHW4CCh1Sr11m8beZS/view?usp=drivesdk

मौलिक भेद ➤

https://drive.google.com/file/d/1fsKieP0aFdlntvPeJAVDX46iwAGF3nJS/view?usp=drivesdk

सृष्टि की कथा ➤

https://drive.google.com/file/d/1rqNkvP_IEJgQ3jQ_ZRR7nuyv-pgEiqvJ/view?usp=drivesdk

वेद स्वाध्याय प्रदीपिका ➤

https://drive.google.com/file/d/1IolALPQfhcRLiuzuDYMQ3rrpW5wU7DUR/view?usp=drivesdk

वेद विद्या निदर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1I_MOrrsVwQvi569eiC-x8xQkOrgzSnyY/view?usp=drivesdk

आर्य दर्शन ➤

https://drive.google.com/file/d/1fMd3rO8GkGRA5pOipwDoLCcUeTb7sKIV/view?usp=drivesdk

ब्राह्मण की गौ ➤

https://drive.google.com/file/d/1paQab6sZ4HIt10tzct-HzLRpvo_YiNhB/view?usp=drivesdk

वैदिक सिद्धान्त ➤

https://drive.google.com/file/d/1xCVvpuWOGEbuKBL522FkPxT-SHYBUi6V/view?usp=drivesdk

 

🌷🌷🌷🙏🙏🙏 नमस्ते 🙏🙏🙏🌷🌷🌷

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

क्या गीता धर्म निरपेक्षता सिखाती है❓

© सनातन धर्म & दीपांकर आर्यवंशी अंकित

क्या गीता धर्म निरपेक्षता सिखाती है❓

मित्रों २८ सेप्टम्बर २०१२ को हमारे देश में एक फ़िल्म को रिलीज़ की गई नाम थी OMG अर्थात् ओ माई गॉड जिसके मुख्य पात्र परेश रावल जी एवम् सहायक पात्र राजीव हरिओम भाटिया जी थे जिन्हें अक्षय कुमार जी के नाम से जाना जाता है। फ़िल्म का विषय था सनातन धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्डों पर कुठाराघात करना साथ ही ईसाइयत और इस्लाम के सम्प्रदायाधिकारी जनों के साथ साथ तथाकथित सनातन धर्माधिकारी जन जो पाखण्डी हो उनके गलत मन्तव्यों पर प्रहार करना जिसका हम हृदय से स्वागत करते हैं पर फ़िल्म में कुछ ऐसी बातों को दिखाया गया जिसने मुझे लेखनी उठाने हेतु विवश कर ही दिया। मैंने यह फ़िल्म एक बार नहीं अपितु कई बार देखा है और मैंने फ़िल्म में दिखाए गए प्रसंगों पर यदि कोई ध्यान दे तो वह अवश्य व निःसंदेह नास्तिक बनेगा। फ़िल्म में धर्म और मज़हब अर्थात् मतपन्थ सम्प्रदाय को एक ही दर्शाया गया है जो कि पूर्णरूपेण मिथ्या वा गलत है। फ़िल्म के अनुसार धर्म केवल लोगों को बाँटती है और यही संदेश बॉलीवुड वर्षों से देता आया है जबकि बॉलीवुड के विद्वानों ने कभी धर्म को जानने की चेष्टा नहीं कि “धर्म” एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत अत्यधिक व्यापक है  “ध + र् + म” = धर्म। ध देवनागरी वर्णमाला १९वां अक्षर और तवर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दन्त्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण ध्वनि है। संस्कृत धातु  धा + ड विशेषण- धारण करने वाला, पकड़ने वाला होता है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। जैसे हम किसी नियम को, व्यवहार को धारण करते हैं इत्यादि। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण किए हुए है अर्थात “धारयति- इति धर्म:”अर्थात् जो सबको सम्भाले हुए है पर वह क्या है जो धारण करने योग्य है?
धृति क्षमा दमोऽस्तेयम् शौचमिन्द्रिय निग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकम् धर्म लक्षणम्।। (मनुस्मृति ६/९२)
१ - धृति (धैर्य रखना, संतोष रत्न को प्राप्त करना) २ - क्षमा (दया,उदारता) ३ - दम (अपनी इच्छाओं को काबू करना, निग्रह) ४ - अस्तेय (चोरी न करना, छल से किसी चीज को प्राप्त न करना एवम् ऐसा विचार भी ना करना) ५ - शौच (सफाई रखना , पवित्रता रखना) ६ - इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना) ७ - धी (बुद्धि) ८ - विद्या (ज्ञान) ९ - सत्य (सत्य का पालन करना , सत्य बोलना) १० - अक्रोध (क्रोध न करना) ये दस धर्म के गुण हैं जिसका बखान मनु महर्षिदेव जी ने मनुस्मृति में किया है अर्थात् ऐसी अवस्था को प्राप्त करना जिसमें किसी भी प्रकार की बुराई न रहे वही धर्म है यदि साधारण शब्दों में कहा जाय कि धर्म क्या है? तो हम यह कह सकते हैं कि वेद को आत्मसात कर वेद मार्ग पर चलना ही धर्म है क्योंकि वेदोऽखिलो धर्ममूलम् अर्थात् वेद ही समग्र धर्म का मूल है। और धर्म को पालन करना मनुष्य मात्र का परमकर्त्तव्य है तभी हम मनुष्य कहला सकते हैं अन्यथा नहीं क्योंकि जब मनुष्य ही मनुष्य धर्म का त्याग करता है तो वह जन्तु अर्थात् जानवर बन जाता है सनातन धर्म ही मनुष्य धर्म है “मनुष्य” शब्द की अर्थ ही है मनु के वंशज और वेद स्वयम् कहती है  “मनुर्भवः” - ऋग्वेद १०/५३/६ अर्थात् मनुष्य बनो वेद, उपनिषदादि ग्रन्थों में कहीं नहीं लिखा कि हिन्दू बनो, मुस्लिम बनो, ईसाई बनो अथवा यहूदी बनो क्योंकि इस्लाम, ईसाइयत अथवा यहूदियत आदि मतपन्थ सम्प्रदाय है जिसे Religion अथवा मज़हब कहते हैं और Religion ( मज़हब/सम्प्रदाय ) होने की एक विशिष्ट मापदंड है जिसमें एक साम्प्रदायिक पुस्तक एक सम्प्रदाय संस्थापक जिसे पैगम्बर अथवा Prophet कहते हैं और एक साम्प्रदायिक देवता जिसे God अथवा खुदा कहते हैं पर सनातन धर्म में तो ४ वेद, ६ वेदांग, ६ उपांग, ११ आर्ष उपनिषद, ४ मुख्य ब्राह्मण ग्रंथ आदि अनेकों ग्रन्थ हैं और सनातन धर्म का कोई संस्थापक भी नहीं और सनातन धर्म में देवता ३३ कोटि हैं और उन देवताओं के देवता महादेव हैं जो परमपिता परमेश्वर हैं तो आप ही सोचिए क्या धर्म और मतपंथ सम्प्रदाय अर्थात् Religion एक कैसे हो सकता है? आज के लोग Secularism का अर्थ धर्मनिरपेक्षता से लेते हैं जो कि गलत है क्योंकि “Secularism” शब्द लैटिन भाषा के “Seculo” शब्द से निकला है।जिसका अंग्रेजी में अर्थ है “इन द वर्ल्ड (in the world)”। इसके पीछे की कथा यह है कि ‘कैथोलिक ईसाइयों’ में Monkship लेने की परम्परा प्रचलित है। इसके अनुसार Monk पुरुषों को और महिलाओं को नन Nun कहा जाता है। परन्तु जो व्यक्ति Monkship लिए बिना समाज में रहते हुए Monk लोगों के साम्प्रदायिक कामों में मदद करते थे, उन्हें “Secular” कहा जाता था पर अब लोग Secularism का अर्थ धर्मनिरपेक्षता से लेते हैं जो कि बिल्कुल अप्रासंगिक है क्योंकि जिस प्रसंग में इसका अर्थ लिया जाता है उसके अनुसार इसका अर्थ मतनिरपेक्षता या पन्थनिरपेक्षता होनी चाहिए जैसे भारतीय संविधान में भी लिखा है कि भारत एक पन्थनिरपेक्ष राष्ट्र है अर्थात् समग्र मतपन्थों से मुक्त और देखा जाए तो एक धार्मिक व्यक्ति अर्थात् धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति पन्थनिरपेक्ष ही होता है अर्थात् वह मतपन्थ सम्प्रदाय के जाल में नहीं फँसता है। अब यदि योगिराज योगेश्वर श्री कृष्ण जो कि समग्र वेद, उपनिषदादि ग्रन्थ समेत समस्त आर्ष शास्त्रों के विद्वान हैं वो यदि धर्म त्याग धर्मनिरपेक्ष होने को कहें तो यह कथन ही अटपटा सा लगता है जैसा कि फ़िल्म में बतलाया गया है पर मित्रों यह फ़िल्म की प्रसङ्ग ही धर्म और भगवान् श्री कृष्ण के मन्तव्यों के विरुद्ध है महाभारतम् के भीष्मपर्व में तो स्वयम् पितामह भीष्म कहते हैं -
राजन्सत्त्वमयो ह्येष तमोरागविवर्जितः।
यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः।।
अर्थात् रजगुण व तमगुण से रहित सतगुण से युक्त धर्म जहाँ स्थित है वहीं श्री कृष्ण भगवान् जी है और जहाँ भगवान् जी हैं वहीं विजय है। आइये बन्धुओं अब जानते हैं की श्री कृष्ण और उनकी श्रीमद्भगवद्गीता धर्म के बारे में क्या बताते हैं?
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।। (गीता १८/४८)
अतएव दोष युक्त होने पर भी स्वधर्म कर्म को नहीं त्यागना चाहिए ,क्यों कि धुएं से अग्नि की भांति सभी धर्म कर्म किसी न किसी दोष से युक्त हैं।
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिम् च हित्वा पापमवाप्स्यसि।। (गीता २/३३)
हे अर्जुन ❗ यदि आप इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेंगे तो स्वधर्म और कीर्ति का नाश कर पाप को प्राप्त कर जाएंगे।
दोषैरेतैः कुलघ्नानानंवर्णसंकर कारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।। (गीता १/४३)
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणाम् जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।। (गीता १/४४)
हे जनार्दन ❗ वर्णसंकरता के करने वाले इन कुलघातकों के कुलों में उत्पन्न हुये व्यभिचारादि दोषों से आर्य लोगों के सामुदायिक धर्म और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवम् शुद्र के कुल के धर्म का नाश होता है। और जब गर्भाधानादि संस्कार कुल के धर्म और वेद का पढ़ाना, प्रजा रक्षण, दानादि, ब्राह्मण क्षत्रियों के सामुदायिक धर्म नष्ट हो जाते हैं तो निश्चय करके सब मनुष्य जाति का नर्क में वास हो जाता है यह हमनें विद्वतजनों से जाना।
और अन्त में
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकम् शरणम् व्रज।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।। (गीता १८/६६)
भगवान् श्री कृष्ण जी ने स्पष्ट कहा कि सम्पूर्ण धर्मों को ईश्वर पर त्यागकर केवल एकमात्र सच्चिदानन्द सर्वशक्तिमान ,सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण मैं आ जाओ। ईश्वर ही आपको सम्पूर्ण दोष से मुक्त कर देंगे अतएव आप दुःख को त्याग दें।
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि श्री कृष्ण भगवान् जी ने अठारहवें अध्याय के छियासठवें श्लोक में अपने सभी धर्मों को त्याग परमात्मा में ध्यान लगाने को कहा है यह इस परियोजन से की व्यक्ति सन्यासी बने और वैराग्य को प्राप्त हो जाए।
अतएव गीता के इन श्लोकसूत्रों से यह सिद्ध होता है कि योगेश्वर कृष्ण भगवान् जी धर्मनिरपेक्ष अर्थात् धर्म विहीन होने को नहीं अपितु धर्मयुक्त धर्मवान धर्मात्मा होने को उपदेश कर रहे हैं और हम सभी मनुष्यों का कर्तव्य भी यही होता है कि हम वेदमार्गी धार्मिक मनुष्य बने।
अतः गीता धर्मनिरपेक्षता नहीं सिखाती है।
🙏।। इतिसिद्धम् ।।🙏


मंगलवार, 26 नवंबर 2019

आर्य संस्कृति | वैदिक ज्ञान

🛑 वैदिक साहित्य

वैदिक साहित्य

🛡 वेद किसे कहते हैं ?
ईश्वर के उपदेश को वेद कहते हैं।
🛡 वेद का ज्ञान कब दिया गया था ?
वेद का ज्ञान सृष्टि के आरंभ में दिया गया था।
🛡 ईश्वर ने वेद का ज्ञान किसे दिया था ?
ईश्वर ने वेद का ज्ञान चार ऋषियों को दिया था।
🛡 हमारा धर्मिक ग्रन्थ कौन सा है?
हमारा धर्मिक ग्रन्थ वेद है।
🛡 हमें वेद को ही क्यों मानना चाहिए ?
वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेद में सब सत्य बातें हैं, इसलिए वेद को ही मानना चाहिए।
🛡 वेद किस भाषा में है ?
वेद संस्कृत भाषा में है
🛡 क्या वेद ऋषियों ने नहीं लिखा है ?
नहीं, वेद ऋषियों ने नहीं लिखा है।
🛡 उन ऋषियों के नाम बताइए जिन्हें वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ ?
उन ऋषियों के नाम हैं - अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा।
🛡 वेद पढ़नें का अधिकार किसे है ?
सभी मनुष्यों को वेद पढ़ने का अधिकार है।
🛡 वेद ज्ञान किसने दिया ?
ईश्वर ने दिया।
🛡 ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए।
🛡 वेद कितने है ?
चार प्रकार के : ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
🛡 वेदों के ब्राह्मण कौन है ?
*वेद ब्राह्मण*
*ऋग्वेद - ऐतरेय,*
*यजुर्वेद - शतपथ,*
*सामवेद - तांड्य,*
*अथर्ववेद - गोपथ ।*
🛡 वेदों के उपवेद कितने है ?
📌 *वेदों के चार उप वेद है।*
*वेद उपवेद*
*ऋग्वेद - आयुर्वेद,*
*यजुर्वेद - धनुर्वेद,*
*सामवेद - गंधर्ववेद,*
*अथर्ववेद - अर्थवेद ।*
🛡 वेदों के अंग कितने होते है ?
📌 *वेदों के छः अंग होते है।*
*शिक्षा,*
*कल्प,*
*निरूक्त,*
*व्याकरण,*
*छंद,*
*ज्योतिष ।*
🛡 वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
📌 वेदों का ज्ञान चार ऋषियों को दिया।
*वेद ऋषि*
*ऋग्वेद - अग्नि,*
*यजुर्वेद - वायु,*
*सामवेद - आदित्य,*
*अथर्ववेद - अंगिरा ।*
🛡 वेदों का ज्ञान ईश्वर ने कैसे दिया ?
वेदों का ज्ञान ऋषियों को समाधि की अवस्था में दिया ।
🛡 वेदों में कैसे ज्ञान है ?
वेदों मै सत्य विद्याओं का ज्ञान विज्ञान ह
🛡 वेदो के विषय कौन कौन से हैं ?
📌 *वेदों के चार विषय है।
*वेद विषय*
*ऋग्वेद - ज्ञान,*
*यजुर्वेद - कर्म,*
*सामवेद - उपासना,*
*अथर्ववेद - विज्ञान ।*
🛡 किस वेद में क्या है ?
📌 *ऋग्वेद में...*
*मंडल - १०,*
*अष्टक - ०८,*
*सूक्त - १,०२८,*
*अनुवाक - ८५,*
*ऋचाएं (मंत्र)- १०,५८९ ।*
📌 *यजुर्वेद में...*
*अध्याय - ४०,*
*मंत्र - १,९७५ ।*
📌 *सामवेद में...*
*आरचिक - ०६,*
*अध्याय - ०६,*
*ऋचाएं - १,८७५ ।*
📌 *अथर्ववेद में...*
*कांड - २०,*
*सूक्त - ७३१,*
*मंत्र - ५,९७७ ।*
🛡 वेद पढ़ने का अधिकार किसको है?
मनुष्य मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
🛡 क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
मूर्ति पूजा का विधान नहीं।
🛡 क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
वेदों मै अवतारवाद का प्रमाण नहीं है।
🛡 सबसे बड़ा वेद कौनसा है ?
सबसे बड़ा वेद ऋग्वेद है।
🛡 वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात १ अरब ९६ करोड़ ८ लाख ४३ हजार १२० वर्ष पूर्व ।
🛡 वेद के सहायक दर्शन शास्त्र(उपअंग) कितने हैं और लेखकों का क्या नाम है ?
📌 ६ है।
*दर्शनशास्त्र लेखक*
*न्याय दर्शन : गौतम मुनि*
*वैशेषिक दर्शन : कणाद मुनि*
*योगदर्शन : पतंजलि मुनि*
*मीमांसा दर्शन : जैमिनी मुनि*
*सांख्य दर्शन : कपिल मुनि*
*वेदांत दर्शन : व्यास मुनि*
🛡 शास्त्रों के विषय क्या है ?
आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान विज्ञान आदि।
🛡 प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
प्रामाणिक उपनिषदे केवल ग्यारह है।
🛡 उपनिषदों के नाम बतावे ?
*ईश (ईशावास्य),*
*केन,*
*कठो,*
*प्रश्न,*
*मुंडक,*
*मांडूक्य,*
*ऐतरेय,*
*तैत्तिरीय,*
*छांदोग्य,*
*वृहदारण्यक,*
*श्वेताश्वतर ।*
🛡 उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उपनिषदों के विषय वेदों से लिए गए है
🛡 चार वर्ण कौन कौन से होते हैं ?
*ब्राह्मण,*
*क्षत्रिय,*
*वैश्य,*
*शूद्र।*
*जो कर्म आधारित हैं|
🛡 चार युग कोन कोनसे होते है और कितने वर्षों के ?
*सतयुग : १७,२८,००० वर्षों का है।*
*त्रेतायुग : १२,९६,००० वर्षों का है।*
*द्वापरयुग : ८,६४,००० वर्षों का है।*
*कलयुग : ४,३२,००० वर्षों का है।*
📌 *कलयुग के ४,९७७ वर्षों का भोग हो चुका है अभी ४,२७,०२३ वर्षों का भोग होना बाकी है।
🛡 पंच महायज्ञ कोन कोनसे होते है ?
*ब्रह्म यज्ञ,*
*देव यज्ञ,*
*पितृ यज्ञ,*
*बलिवैश्वदेव यज्ञ,*
*अतिथि यज्ञ।*
🛡 स्वर्ग और नरक कहां है ?
*स्वर्ग : जहाँ सुख है।
*नरक : जहाँ दुःख है।
🛡 ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना किसने की थी ?
*‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना महर्षि दयानन्द ने की थी।

🛑 ईश्वर

ईश्वर

🛡 ईश्वर का मुख्य नाम क्या है ?
ईश्वर का मुख्य नाम ‘ओ३म्’ है।
🛡 ईश्वर के कुल कितने नाम हैं
ईश्वर के असंख्य नाम हैं।
🛡 ईश्वर के नामों से हमें क्या पता चलता है ?
ईश्वर के नामों से हमें उसके गुण, कर्म और स्वभाव का पता चलता है
🛡 ईश्वर एक है या अनेक ?
ईश्वर एक ही है उसके नाम अनेक हैं।
🛡 क्या ईश्वर कभी जन्म लेता है ?
नहीं, ईश्वर कभी जन्म नहीं लेता। वह अजन्मा है
🛡 स्तुति, प्रार्थना, उपासना किसकी करनी चाहिए ?
स्तुति, प्रार्थना, उपासना केवल ईश्वर की ही करनी चाहिए।
🛡 ईश्वर से अध्कि सामर्थ्यशाली कौन है ?
ईश्वर से अध्कि सामर्थ्यशाली और कोई नहीं है। वह सर्वशक्तिमान् है।
🛡 ‘इन्द्र’ नाम किसका है ?
जिसमें सबसे अधिक ऐश्वर्य होता है उसे इन्द्र कहते हैं अर्थात् ‘इन्द्र’ ईश्वर का नाम है।
🛡 दुःख कितने प्रकार के और कौन-कौन से होते हैं ?
📌 दुःख तीन प्रकार के होते हैं -
*(१) आध्यात्मिक, (२) आधिभौतिक, (३) आधिदैविक दुःख।
🛡 आध्यात्मिक दुःख किसे कहते हैं ?
अविद्या, राग-द्वेष, रोग इत्यादि से होने वाले दुःख को आध्यात्मिक दुःख कहते हैं।
🛡 आधिभौतिक दुःख किसे कहते हैं ?
मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग, मक्खी-मच्छर, साप इत्यादि से होने वाले दुःख को आधिभौतिक दुःख कहते हैं।
🛡 आधिदैविक दुःख किसे कहते हैं ?
अधिक सर्दी-गर्मी-वर्षा, भूख-प्यास, मन की अशान्ति से होने वाले दुःख को आधिदैविक दुःख कहते हैं।
🛡 ईश्वर के कोई दस नाम बताइए।
(१) विष्णु, (२) वरुण, (३) परमात्मा, (४) पिता, (५) अनन्त, (६) शुद्ध, (७) निराकार, (८) सरस्वती, (९) न्यायकारी, (१०) भगवान्।
🛡 ईश्वर के तीन गुण बताइए।
ईश्वर के तीन गुण हैं - न्याय, दया और ज्ञान। 
🛡 ईश्वर के तीन कर्म बताइए।
*(१) ईश्वर संसार को बनाता है।*
*(२) ईश्वर वेदों का उपदेश करता है।*
*(३) ईश्वर कर्मों का फल देता है।*
🛡 ‘अनन्त’ का अर्थ क्या है ?*
जिसका कभी अन्त नहीं होता उसे अनन्त कहते हैं। ईश्वर अनन्त है।
🛡 क्या ‘गणेश’ ईश्वर का नाम है? क्यों ?
हाँ, क्योंकि वह पूरे संसार का स्वामी है और सबका पालन करता है
🛡 ‘सरस्वती’ से आप क्या समझते हैं ?
‘सरस्वती’ ईश्वर का एक नाम है। संसार का पूर्ण ज्ञान जिसे होता है, उसे सरस्वती कहते हैं।
🛡 ईश्वर को ‘निराकार’ क्यों कहते हैं ?
ईश्वर का कोई आकार, रुप, रंग, मूर्ति नहीं है। अतः उसे निराकार कहते हैं ।
🛡 क्या राहु और केतु ग्रहों के नाम हैं?
नहीं, इस नाम के कोई ग्रह नहीं होते। ये दोनों नाम ईश्वर के हैं
🛡 ईश्वर के किन्हीं दो नामों की व्याख्या कीजिए।
(क) ब्रह्मा - ईश्वर जगत् को बनाता है इसलिए उसे ब्रह्मा कहते हैं
(ख) शुद्ध - राग-द्वेष, छल-कपट, झूठ इत्यादि समस्त बुराइयों से वह दूर है। उसका स्वभाव पवित्र है।
🛡 नास्तिक किसे कहते हैं ?
जो व्यक्ति ईश्वर को ठीक से नहीं जानता, नहीं मानता और उसका ध्यान नहीं करता है उसे नास्तिक कहते हैं।
🛡 मनुष्य के समस्त दुःखों का कारण क्या है ?
ईश्वर को न मानना ही मनुष्य के समस्त दुःखों का कारण है।
🛡 जड़ और चेतन मे अंतर बताइए ?
📌 *जड*
*इच्छा नहीं होती है।*
*सुख आदि की अनुभूति नही होती है।*
*परिवर्तन सड़ना, गलना होता है ।*
*ज्ञान नहीं होता है।*
*लंबाई, चौडाई, रूप रंग होते हैं ।*
📌 *चेतन*
*इच्छा होती है।*
*सुखादि की अनुभूति होती है।*
*परिवर्तन सड़ना गलना नहीं होता है।*
*ज्ञान होता है।*
*निराकार होता है।*
🛡 जड़ और चेतन के उदाहरण दीजिए।
जड़ के उदाहरण -पत्थर, लकड़ी, लोहा, अग्नि, वायु, कार, कम्प्यूटर, मोबाइल।
चेतन के उदाहरण - आत्मा और परमात्मा।
🛡 क्या ईश्वर सर्वव्यापक है ?
हाँ, ईश्वर सर्वव्यापक है। ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ पर ईश्वर न हो।
🛡 यदि ईश्वर सब जगह है तो वह दिखाई क्यों नहीं देता है ?
निराकार होने के कारण ईश्वर दिखाई नही देता है।
🛡 न्याय किसे कहते हैं ?
कर्मों के अनुसार पफल देने को न्याय कहते हैं।
🛡 बुरे कर्मों का पफल माफ होता है अथवा नहीं ?
नहीं, बुरे कर्मों का फल माफ नहीं होता है।
🛡 क्या दण्ड से बचने के लिए पूजा, प्रार्थना, यज्ञ करना चाहिए ?
एक बार अपराध कर लेने पर उस कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। यह ईश्वर का नियम है। अतः दण्ड से बचने के लिए पूजा, प्रार्थना, यज्ञ, करना व्यर्थ है।
🛡 दया किसे कहते हैं ?
दूसरों के दुःखों को दूर करने की इच्छा को दया कहते हैं।
🛡 ईश्वर दयालु है तो हमारे पापों को क्षमा क्यों नहीं करता ?
पाप क्षमा होने से सुधार नहीं होता बल्कि व्यक्ति पहले से और अधिक पाप करने लग जाता है। ईश्वर की इच्छा है कि हमारा सुधार हो । जिससे हम भविष्य में बुरे कर्म न करें । इसलिए ईश्वर हमारे पापों को क्षमा नही करता है।
🛡 सर्वशक्तिमान् शब्द का क्या अर्थ है?
जो अपने किसी भी कार्य को करने में दूसरों की सहायता नही लेता उसे सर्वशक्तिमान् कहते हैं ।
🛡 ईश्वर ने संसार क्यों बनाया है ?
ईश्वर ने इस संसार को हमारे सुख, कल्याण, और शान्ति के लिए बनाया है।
🛡 हमें ईश्वर से क्या मांगना चाहिए ?
हमें ईश्वर से विद्या, बल, बुद्धि, शक्ति और समृद्धि मांगना चाहिए।
🛡 क्या प्रार्थना करने से सब चीजें मिल जाती हैं ?
केवल प्रार्थना करने से कुछ प्राप्त नहीं होता। प्रार्थना के साथ पूर्ण पुरुषार्थ करना चाहिए।
🛡 उपासना शब्द का क्या अर्थ है ?
उपासना शब्द का अर्थ है मन से शुद्ध होकर ईश्वर के गुणों की अनुभूति करना।
🛡 उपासना करने से क्या लाभ हैं ?
उपासना करने से हमारा आत्मिक बल बढता है, दुःख दूर होते हैं, विद्या, बल, और आनंद की प्राप्ति होती है।
🛡 ईश्वर निराकार है तो बिना हाथ-पैर के संसार को कैसे बना लेता है ?
जैसे चुम्बक बिना हाथ के लोहे को खींच लेता है, सूर्य की किरणें जिस प्रकार बिना पैर के गति करती हैं, वैसे ईश्वर भी अपने शक्ति सामर्थ्य से बिना हाथ - पैर के ही संसार की रचना कर लेता है।
🛡 क्या ईश्वर अवतार लेता है ?
नहीं, ईश्वर अवतार नहीं लेता है।
🛡 ईश्वर का अवतार मानने में क्या दोष है ?
📌 ईश्वर का अवतार मानने में निम्न दोष हैं -
*अवतार लेने के लिए जन्म लेना होगा।*
*जो सर्वव्यापक है उसका जन्म लेना असंभव है।*
*जो जन्म लेगा उसे सुख-दुःख, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी की अनुभूति होगी।*
*ईश्वर निराकर है अतः उसका अवतार नहीं हो सकता।*
🛡 क्या आत्मा और परमात्मा एक ही है ?
नहीं, आत्मा और परमात्मा एक नहीं है।
🛡 हम अपनी इच्छा से कर्म करते हैं अथवा परमात्मा की ?
हम अपनी इच्छा से ही कर्म करते हैं, परमात्मा की इच्छा से नहीं।
🛡 परमात्मा की इच्छा से कर्म करना मानने में क्या दोष है ?
हम परमात्मा की इच्छा से ही कर्म करना मानेंगे तो संसार में बुराई नहीं रहनी चाहिए। क्योंकि ईश्वर की इच्छा कभी बुरी नहीं हो सकती है।
🛡 ईश्वर के साथ हमारा क्या संबंध है ?
ईश्वर हमारा पालक, रक्षक, बन्धु, गुरु, आचार्य, स्वामी, राजा और न्यायाधीश है।

🛑 बाल शिक्षा

🛡 शिक्षक कितने और कौन-कौन से होते हैं ?
शिक्षक तीन होते हैं - (१) माता (२) पिता (३) गुरु।
🛡 माता को सबसे उत्तम शिक्षक क्यों कहते हैं ?
संतानों के लिए प्रेम, हित की भावना सबसे अध्कि माता में होती है । इसलिए वह सर्वोत्तम शिक्षक है।*
🛡 संतानों के प्रति माता के क्या कर्त्तव्य हैं ?
📌 संतानों के प्रति माता के निम्न कर्त्तव्य हैं-
*(१) शुद्ध उच्चारण सिखलाना,*
*(२) संतानों को उत्तम गुणों से युक्त करना,*
*(३) छोटे-बड़ों से व्यवहार करना सिखलाना,*
*(४) धर्म की शिक्षा देना।*
🛡 क्या भूत-प्रेत वास्तव में होते हैं ?
नहीं, भूत-प्रेत नहीं होते, उनको मानना अंध्विश्वास है।
🛡 संसार में बहुत से लोग भूत-प्रेत क्यों मानते हैं ?
अविद्या, कुसंस्कार, भय, आशंका, मानसिक रोग, ध्ूर्तों के बहकाने से लोग भूत-प्रेत मानने लग जाते हैं।
🛡 हम मरने के बाद कहाँ जाते हैं ?
मरने के बाद हम पाप-पुण्य का फल भोगने के लिए पिफर से जन्म लेते हैं।
🛡 हमें दूसरे जन्म में कौन भेजता है ?
हमें दूसरे जन्म में ईश्वर भेजता है।
🛡 क्या मन्त्र-फूंकने से किसी रोग की चिकित्सा होती है ?
✒  नहीं, मन्त्र फुंकने से किसी रोग की चिकित्सा नहीं होती है।
🛡 हमारे जीवन में सुख-दुःख क्या ग्रहों के कारण हैं?
नहीं, हमारे जीवन में सुख-दुःख ग्रहों के कारण नहीं है।
🛡 मंगल, शनि आदि ग्रहों का हमारे कर्मों पर कोई प्रभाव पड़ता है ?
नहीं, हमारे कर्मों पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
🛡 जन्म-पत्रा में लिखी गई बातें क्या सच होती है ?
हमारे भविष्य की बातें कोई नहीं जान सकता, इसलिए जन्म-पत्रा की बातें सच नहीं होती हैं।
🛡 छल-कपट किसे कहते हैं ?
दूसरों की हानि पर ध्यान न देकर केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना छल-कपट कहलाता है।
🛡 विद्यार्थी का मुख्य कर्त्तव्य क्या है ?
विद्यार्थी को अपनी विद्या और शरीर का बल सदैव बढाते रहना चाहिए।
🛡 माता-पिता, गुरु हमें दण्ड क्यों देते हैं ?
हमारे जीवन से बुराइयों को हटाने के लिए माता-पिता, गुरु हमें दण्ड देते हैं।
🛡 दण्ड प्राप्त होने पर क्या विचारना चाहिए ?
दण्ड प्राप्त होने पर हमें विचारना चाहिए कि मेरे सुधर के लिए दण्ड दिया गया है। क्रोध न करते हुए सुधरने का प्रयास करना चाहिए।
🛡 सदाचार के तीन उदाहरण दीजिए ?
(१) शान्त, मधुर और सत्य बोलना,
*(२) बड़ों को नमस्ते करना,*
*(३) माता, पिता, गुरु की सेवा करना।*
🛡 माता-पिता का परम कर्त्तव्य क्या है ?
अपने संतानों को विद्या, धर्म, श्रेष्ठ आचरण, उत्तम संस्कारों से युक्त करना ही माता-पिता का परम धर्म है ।

🛑 अध्ययन-अध्यापन

अध्ययन-अध्यापन

किन बातों से मनुष्य सुशोभित होता है ?
विद्या, संस्कार, उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव से मनुष्य सुशोभित होता है।
श्रेष्ठ मनुष्य बनने के लिए क्या आवश्यक है ?
श्रेष्ठ मनुष्य बनने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है -
(१) विद्या प्राप्ति (२) अभिमान न होना (३) दूसरों का सहयोग।
अध्यापक कैसे होने चाहिए ?
अध्यापक पूर्ण विद्वान् व धर्मिक होने चाहिए।
➤: वैदिक नियम के अनुसार शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ?
वैदिक नियम के अनुसार शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए -
(१) विद्यालय नगर से दूर, शान्त, एकान्त स्थान में होने चाहिए।
(२) लड़के व लड़कियों के विद्यालय अलग-अलग होने चाहिए।
(३) विद्यार्थी का जीवन तपस्वी, संयमी होना चाहिए।
(४) सभी विद्यार्थियों की सुविधएँ एक समान होनी चाहिए।
गायत्री मंत्र कौन सा है ?
गायत्री मंत्र निम्न है -
ओऽम् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री मन्त्र का संक्षिप्त अर्थ बताइए
गायत्री मन्त्र का संक्षिप्त अर्थ इस प्रकार है -
हे संपूर्ण जगत् के निर्माता, शुद्धस्वरुप, सुखों को प्रदान करने वाले परमपिता परमेश्वर! कृपा करके हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग में प्रेरित करें।
प्रतिदिन स्नान क्यों करना चाहिए ?
स्नान करने से शरीर शुद्ध तथा स्वस्थ रहता है, इसलिए प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।
मन की शुद्धि कैसे होती है ?
मन की शुद्धि सत्य के आचरण से होती है।
प्राणायाम के क्या लाभ हैं ?
प्राणायाम के निम्न लाभ हैं -
(1) स्मृति शक्ति का बढ़ना, (2) ज्ञान की प्राप्ति, (3) बल का बढ़ना, (4) सूक्ष्म बुद्धि की प्राप्ति।
ईश्वर का ध्यान कब करना चाहिए ?
ईश्वर का ध्यान प्रतिदिन प्रातः व सायंकाल करना चाहिए।
क्या ईश्वर का ध्यान करना आवश्यक है ?
हाँ, ईश्वर का ध्यान करना आवश्यक है।
वायु की शुद्धि का क्या उपाय है ?
वायु की शुद्धि के लिए प्रतिदिन हवन करना चाहिए।
हवन करना क्यों आवश्यक है ?
हवन करने से अनेक प्राणियों का उपकार, वायु-जल-अन्न की शुद्धि, रोगों का दूर होना इत्यादि अनेक लाभ होते हैं।
ब्रह्मचर्य के पालन से क्या लाभ हैं ?
ब्रह्मचर्य के पालन से शारीरिक व मानसिक विकास, शुभ गुणों की प्राप्ति, दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ, कुशाग्र बुद्धि की प्राप्ति होती है।
यम कितने प्रकार के व कौन-कौन से हैं ?
यम पाँच प्रकार के होते हैं । वे निम्न हैं -
*(1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य, (5) अपरिग्रह।
आयु, विद्या, यश और बल बढ़ाने का उपाय क्या है ?
माता-पिता, गुरु, वृद्धजनों की सेवा, आदर और उनकी आज्ञाओं का पालन करने से आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं।
विद्यार्थी को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए ?
➨  विद्यार्थी को निम्न कार्य नहीं करने चाहिए -
*(1) ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, झूठ बोलना।
*(2) अंडे, मांस का सेवन।
*(3) आलस्य, प्रमाद।
*(4) दूसरों की हानि करना।
संपूर्ण सुख किसे प्राप्त होता है ?
जो व्यक्ति विद्या प्राप्त कर धर्म कर आचरण करता है वही संपूर्ण सुख को प्राप्त करता है ।
धर्म किसे कहते हैं ?
श्रेष्ठ कर्मों के आचरण को धर्म कहते हैं ।
धर्म का ज्ञान कहाँ से होता है ?
धर्म का ज्ञान वेद, ऋषियों के ग्रन्थ, महापुरुषों के आचरण से होता है।
सत्य-असत्य की परीक्षा किस प्रकार की जाती है ?
सत्य वह होता है जो -**(1) वेद के अनुकूल हो, (2) सृष्टि नियम से विपरीत न हो, (3) धर्मिक विद्वानों द्वारा कहा गया हो, (4) आत्मा के अनुकूल हो, (5) प्रमाणों से जांचा गया हो।
प्रमाण कितने प्रकार के होते हैं ?
प्रमाण 8 प्रकार के होते हैं।
किन्हीं 4 प्रमाणों के नाम बताइए ।
ये चार प्रकार के प्रमाण हैं - (1) प्रत्यक्ष, (2) अनुमान, (3) शब्द, (4) उपमान प्रमाण।
प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?
देखने, सुनने, गंध लेने, स्पर्श व स्वाद की अनुभूति से जो वास्तविक ज्ञान होता है, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं।
असंभव बातों के 5 उदाहरण दीजिए ।
असंभव बातों के 5 उदाहरण निम्न हैं -
*(1) पहाड़ उठाना, (2) समुद्र में पत्थर तैराना, (3) चन्द्रमा के टुकड़े करना,
*(4) परमेश्वर का अवतार लेना, (5) मनुष्य के सींग होना।
आत्मा के गुण कौन-कौन से हैं ?
इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान आत्मा के गुण हैं।
➤ 6 दर्शन शास्त्रों के नाम बताइए।
6 दर्शन शास्त्रों के नाम इस प्रकार हैं
*(1) योग दर्शन, (2) सांख्य दर्शन, (3) वैशेषिक दर्शन, (4) न्याय दर्शन, (5) मीमांसा दर्शन, (6) वेदान्त दर्शन।
सर्वश्रेष्ठ दान कौन सा है ?
विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान है।
वेद पढ़ने का अध्किार किसे है ?
➨  सभी मनुष्यों को वेद पढ़ने का अधिकार है।
देश की उन्नति के लिए तीन उपाय बताइए।
देश की उन्नति के लिए (1) ब्रह्मचर्य, (2) विद्या और (3) धर्म का प्रचार आवश्यक है।

🛑 गृहस्थ आश्रम

गृहस्थ आश्रम

विवाह करने का अधिकार किसे है ?
धर्मिक, विद्वान्, सदाचारी और ब्रह्मचारी व्यक्ति को विवाह करने का अधिकार है।
विवाह करने का मुख्य आधर क्या है ?
विवाह करने का मुख्य आधर है - अनुकूल गुण-कर्म-स्वभाव का मेल होना।
जन्म-कुंडली के आधर पर विवाह करना क्या उचित नहीं है ?
जन्म-कुंडली देखकर विवाह करना उचित नहीं है क्योंकि हमारे भविष्य और परस्पर मेल का जन्म-कुंडली से कोई संबंध नहीं है।
वर्ण व्यवस्था किसे कहते है ?
वर्ण व्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है। जिसमें योग्यता के आधर पर समाज को चार वर्णों में बांटा जाता है।*
वर्ण कितने होते हैं ? उनके नाम बताइए।
वर्ण चार होते हैं । उनके नाम हैं - 1.ब्राह्मण; 2. क्षत्रिय; 3. वैश्य; 4. शूद्र।
क्या वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं मानी जाती है ?
नहीं, वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं मानी जाती है। उसका आधर गुण-कर्म और स्वभाव है।
क्या कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है ?
शास्त्रों में ब्राह्मण बनने के लिए कुछ कर्म निश्चित किए हैं। उन कर्मों को करने वाला कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है।
ब्राह्मण बनने के लिए ब्राह्मण परिवार में जन्म लेना आवश्यक है ?
नहीं, ब्राह्मण बनने के लिए ब्राह्मण परिवार में जन्म लेना आवश्यक नहीं है।
किन कर्मों को करने से व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है ?
ब्राह्मण बनने के लिए इन कर्मों को करना आवश्यक है -
*(1) पढ़ना व पढ़ाना, (2) यज्ञ करना व कराना, (3) धर्म का आचरण करना, (4) वेदों को मानना।
क्षत्रिय किसे कहते हैं ?
जो व्यक्ति प्रजा की रक्षा और पालन करता है उसे क्षत्रिय कहते हैं।
वैश्य का मुख्य कर्म क्या है ?
वैश्य का मुख्य कर्म व्यापार करना है।
शूद्र किसे कहते हैं ?
जो व्यक्ति पढ़ाने पर भी नहीं पढ़ सकता उसे शूद्र कहते हैं।
शूद्र का मुख्य कार्य क्या है ?
शूद्र का मुख्य कार्य सेवा करना है।
क्या शूद्र की संताने ब्राह्मण बन सकती हैं ?
हाँ, शूद्र की संताने ब्राह्मण बन सकती हैं।
विवाह कितने प्रकार के होते हैं ?
विवाह आठ प्रकार के होते हैं।
सबसे उत्तम विवाह कौन सा है ?
सबसे उत्तम विवाह ब्राह्म विवाह है।
ब्राह्म विवाह किसे कहते हैं ?
पूर्ण विद्वान, धर्मिक, सुशील वर-वधू का परस्पर प्रसन्नता के साथ विवाह होना ब्राह्म विवाह है।
वाणी की चार विशेषताएँ बताइए ?
वाणी की चार विशेषताएँ हैं - (1) वाणी सुमधुर हो, (2) सदैव सत्य बोलना, (3) हितकारी बोलना, (4) प्रिय बोलना।
निंदा किसे कहते हैं ?
अच्छे को बुरा कहना और बुरे को अच्छा कहना निंदा कहलाती है।
श्राद्ध क्या होता है ?
जीवित माता-पिता, विद्वान्, वृद्धजनों की श्रद्धा से सेवा करने को श्राद्ध कहते हैं।
तर्पण का क्या अर्थ है ?
जीवित माता-पिता, विद्वान् आदि को अपने व्यवहार से प्रसन्न रखना तर्पण है।
क्या मृत पितरों का श्राद्ध व तर्पण नहीं हो सकता?
नहीं, मृत पितरों का श्राद्ध व तर्पण संभव नहीं है। ऐसा करना वेद आदि शास्त्रों से विरुद्ध है।
पंचमहायज्ञ कौन से हैं ?
(1) ब्रह्मयज्ञ, (2) देवयज्ञ, (3) पितृयज्ञ, (4) बलिवैश्वदेव यज्ञ, (5) अतिथियज्ञ।
अतिथियज्ञ किसे कहते हैं ?
धर्मिक, विद्वान्, सत्य के उपदेशक व्यक्ति की सेवा, सत्कार और सम्मान करना अतिथियज्ञ है।
पाप किसे कहते हैं।
अधर्म के आचरण को पाप कहते हैं।
अधर्म के आचरण से क्या हानि होती है ?
जैसे जड़ से काटा हुआ वृक्ष नष्ट हो जाता है वैसे ही अधर्मिक व्यक्ति भी पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
किसे दान नहीं देना चाहिए ?
तप से रहित, अधर्मिक, अविद्वान् व्यक्ति को दान नहीं देना चाहिए।
पाखण्डी के लक्षण क्या हैं ?
जो व्यक्ति धर्म के नाम पर दूसरों को ठगता हो, अपनी प्रशंसा स्वंय करे, अच्छे-बुरे सब लोगों से मित्राता करे, स्वार्थ के लिए दूसरों की हानि करता हो वह पाखण्डी होता हैं।
बुद्धिमान् किसे कहते हैं ?
ईश्वर, वेद पर श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति बुद्धिमान् होता है।

🛑 वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम

🛡 वानप्रस्थ का अर्थ क्या है ?
एकांत स्थान में जाकर स्वाध्याय-साधना करना वानप्रस्थ कहलाता है।
🛡 वानप्रस्थ लेने का अधिकार किसे है ?
वानप्रस्थ लेने का अधिकार गृहस्थी को है।
🛡 वानप्रस्थ कब लिया जाता है ?
परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्य पूरे हो जाने पर वानप्रस्थ लिया जाता है।
🛡 वानप्रस्थ के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं ?
स्वाध्याय करना, पंचमहायज्ञ, धर्म का आचरण और योगाभ्यास करना वानप्रस्थ के प्रमुख कर्त्तव्य हैं।
🛡 वानप्रस्थ के बाद अगला आश्रम कौन सा है ?
वानप्रस्थ के बाद अगला आश्रम संन्यास है।
🛡 संन्यास ग्रहण क्यों किया जाता है ?
ईश्वर को प्राप्त करने के लिए संन्यास ग्रहण किया जाता है।
🛡 *किन्हीं तीन संन्यासियों के नाम बताइए।
📌 *तीन संन्यासियों के नाम हैं -
*स्वामी दयानन्द सरस्वती,*
*स्वामी श्रद्धानन्द,*
*स्वामी दर्शनानन्द*
🛡 संन्यास ग्रहण करने के लिए सबसे अनिवार्य योग्यता क्या है ?
संन्यास ग्रहण के लिए वैराग्य होना अनिवार्य है।
🛡 संन्यासी का मुख्य कार्य क्या है?
संन्यासी का मुख्य कार्य सत्योपदेश और राष्ट्र में वेद का प्रचार करना है।
🛡 क्या दण्ड, कमण्डल, काषाय वस्त्र धरण करने वाले को ही संन्यासी कहते है ?
नहीं, दण्ड, कमण्डल, काषाय वस्त्र धरण करने मात्र से कोई संन्यासी नहीं होता, उसके लिए संन्यासी के कर्म करने आवश्यक हैं।
🛡 समाज में अंधविश्वास क्यों फैलता है ?
योग्य संन्यासी के न होने से समाज में अंधविश्वास फैलता है ।
🛡 संन्यास ग्रहण करने का अधिकार किसे है ?
संन्यास ग्रहण करने का अधिकार पूर्ण विद्वान् को है।
🛡 हमारे देश में लाखों की संख्या में संन्यासी हैं, फिर भी इतना अंध्विश्वास क्यों है ?
अधिकांश संन्यासी विद्या और वैराग्य से रहित हैं। उनमें अंधविश्वास को दूर करने की न तो इच्छा है और न सामर्थ्य। अतः अंधविश्वास, पाखण्ड फैल रहा है।
🛡 धर्म के लक्षण कितने हैं ?
धर्म के दस लक्षण हैं।
🛡 धर्म के दस लक्षण कौन से हैं ?
📌 *धर्म के दस लक्षण हैं -
*धैर्य,*
*क्षमा,*
*मन को धर्म में लगाना,*
*चोरी न करना,*
*शुद्धि,*
*इन्द्रियों पर नियंत्रण,*
*बुद्धि बढ़ाना,*
*विद्या,*
*सत्य,*
*क्रोध न करना।*
🛡 योग्य संन्यासी का परीक्षण कैसे होता है ?
सत्योपदेश, वेद, धर्म का प्रचार करने वाला संन्यासी योग्य संन्यासी कहलाता है।
🛡 योग के कितने अंग होते हैं ?
योग के आठ अंग होते हैं।
🛡 योग के किन्हीं चार अंगों के नाम बताइए ?
*यम,*
*नियम,*
*आसन,*
*प्राणायाम।*
🛡 परिव्राजक किसे कहते हैं ?
संन्यासी को ही परिव्राजक कहते हैं।
🛡 वैराग्य का अर्थ क्या होता हैं ?
संसार के विषयों को भोगने की इच्छा न होना वैराग्य कहलाता है।

🛑 राजधर्म

राजधर्म

🛡 राजधर्म का अर्थ क्या है ?
प्रजा के प्रति राजा के कर्त्तव्य को राजधर्म कहते हैं।
🛡 राज्य करने का अधिकार किसे है ?
✒ उत्तर: राज्य करने का अधिकार न्यायप्रिय, वेद को मानने वाले क्षत्रिय को है।
🛡 राज्य के अंतर्गत कितनी सभाएँ होती हैं ? उनके नाम बताइए
📌 *राज्य के अंतर्गत तीन सभाएँ होती हैं । उनके नाम हैं -
*विद्या सभा,
*धर्म सभा और राज सभा।
🛡 तीनों सभाएँ किसके अधीन होती हैं ?
तीनों सभाएँ राजा के अधीन होती हैं।
🛡 क्या राजा स्वतंत्र होता है ?
नही, राजा तीनों सभाओं के अधीन होता है
🛡 विद्यासभा के अधिकारी कौन होते हैं ?
वेद के विद्वान् विद्यासभा के अधिकारी होते हैं।
🛡 पधर्म सभा में अधिकारी बनने की योग्यता क्या है ?
धर्म सभा का अधिकारी धार्मिक और विद्वान् होना चाहिए।
🛡 राज सभा का अधिकारी कौन बन सकता है ?
धार्मिक व्यक्ति जो दण्डनीति और न्याय की नीति को जानता हो वह राज सभा का अधिकारी बन सकता है।
🛡 राजा में कौन से गुण होने चाहिए ?
राजा वेद का विद्वान्, शूरवीर, पक्षपात रहित, दुष्टों का नाश करने वाला, श्रेष्ठ पुरुषों का सम्मान करने वाला और प्रजा को संतान के समान समझने वाला होना चाहिए।
🛡 धर्म की स्थापना के लिए क्या आवश्यक है
धर्म की स्थापना के लिए दण्ड व्यवस्था आवश्यक है।
🛡 किन व्यक्तियों को सभा में नियुक्त नहीं करना चाहिए ?
वेद विद्या से रहित मूर्ख, अधर्मिक व्यक्तियों को सभा में नियुक्त नहीं करना चाहिए।
🛡 राजा को किन बुराइयों से दूर रहना चाहिए ?
📌 *राजा को ५ बुराइयों से दूर रहना चाहिए:
*जुआ खेलना,*
*नशा करना,*
*अधर्म,*
*निंदा,*
*बिना अपराध के दण्ड देना।
🛡 मन्त्री किसे बनाना चाहिए?
वेद आदि शास्त्रों को जानने वाला, अपने देश में उत्पन्न उत्तम धार्मिक व्यक्ति को मन्त्री बनाना चाहिए।
🛡 राजदूत में कौन से गुण होने चाहिए ?
राजदूत निर्भीक, कुशल वक्ता, छल-कपट से रहित और विद्वान् होना चाहिए।
🛡 किन व्यक्तियों को युद्ध में नहीं मारना चाहिए ?
अत्यन्त घायल, दुःखी, शस्त्र से रहित, भागने वाला योद्धा, हार स्वीकार करने वाले को युद्ध में नही मारना चाहिए।
🛡 उपरोक्त व्यक्तियों के साथ क्या करें ?
उन्हें बंदी बनाकर जेल में डाल देना चाहिए।
🛡 पराजित शत्रुओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ?
पराजित शुत्रुओं को भोजन, वस्त्र व औषधि देनी चाहिए। जिनसे भविष्य में हानि की संभावना हो उन्हें जीवन भर जेल में ही रखना चाहिए। उनके परिवार की सुरक्षा करनी चाहिए।
🛡 राजा का परम धर्म क्या है ?
राजा का परम धर्म प्रजा का पालन करना है।
🛡 किन से शत्रुता नहीं करनी चाहिए ?
बुद्धिमान्, कुलीन, शूरवीर, धैर्यवान् व्यक्ति से शत्रुता नहीं करनी चाहिए।
🛡 क्या राजनीति का धर्म से कोई संबंध नहीं है ?
राजधर्म को ही राजनीति कहते हैं इसलिए राजनीति धर्म से अलग नहीं है।


📌 *जयतु वैदिक विज्ञान...*
*जयतु सनातन वैदिक धर्म...*

📌 *वैदिक धर्म...विश्व धर्म...*

*🙏🙏🙏 नमस्ते 🙏🙏🙏*