✍️ लेखक ➩ अरुण कुमार आर्यवीर
१. परमेश्वर अपने कार्यों से संतुष्ट है
- तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया। (उत्पत्ति १:३१)
- मैं तुझे न छोड़ूंगा, न तुझ पर तरस खऊंगा न पछताऊंगा; तेरे चालचलन और कामों ही के अनुसार तेरा न्याय किया जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है। (यहेजकेल २४:१४)
- और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। (उत्पत्ति ६:६)
२. परमेश्वर चुने हुए मंदिरों में निवास करता है
- यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उसने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ। (२ इतिहास ७:११)
- परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा। (प्रेरितों के काम ७:४८)
३. परमेश्वर प्रकाश में रहता है
- और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, (१ तीमुथियुस ६:१६)
- तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा। (१ राजा ८:१२)
४. परमेश्वर को देखा और सुना जा सकता है
- फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा। (निर्गमण ३३:२३)
- और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने-साम्हने बातें करता था, जिस प्रकार कोई अपने भाई से बातें करे। (निर्गमण ३३:११)
- तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। (उत्पत्ति ३:८)
- तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है। (उत्पत्ति ३२:३०)
- जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा। (यशायाह ६:१)
- तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए, और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया। (निर्गमण २४:९,१०)
- परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया। (युहन्ना १:१८)
- और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है। (युहन्ना ५:३७)
- फिर उसने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता। (निर्गमण ३३:२०)
- और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है। (१ तीमुथियुस ६:१६)
५. परमात्मा थक जाता है और विश्राम करता है
- क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया। (निर्गमण ३१:१७)
- इसलिये मैं तुझ पर हाथ बढ़ाकर तेरा नाश करूंगा; क्योंकि, मैं तरस खाते खाते उकता गया हूँ। (यिर्मयाह १५:६)
- परन्तु तू ने अपने पापों के कारण मुझ पर बोझ लाट दिया है। (यशायाह ४३:२४)
- यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है। (यशायाह ४०:२८)
see also: बाइबल Vs वेद (भाग १)
६. ईश्वर सर्वव्यापक है और सब वस्तुओं को देखता जानता है
७. ईश्वर मनुष्य के हृदय को जानता है
- यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं, तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा। (भजन संहिता १३९:९,१०)
- क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है। (अय्युब ३४:२१)
- जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया। (उत्पत्ति ११:५)
- इसलिये मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा। (उत्पत्ति १८:२१)
- तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। (उत्पत्ति ३:८)
७. ईश्वर मनुष्य के हृदय को जानता है
- हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दानों में से तू ने किस को चुना है। (प्रेरितों के काम १:२४)
- क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है। (भजन संहिता ४४:२१)
- तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। (भजन संहिता १३९:२,३)
- और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं। (व्यवस्थाविवरण ८:२)
- क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी परीक्षा लेगा, जिस से यह जान ले, कि ये मुझ से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम रखते हैं वा नहीं? (व्यवस्थाविवरण १३:३)
८. ईश्वर सर्वशक्तिमान है
९. ईश्वर अपरिवर्तनशील है
१०. ईश्वर न्यायी और पक्षपातरहित है
- हे प्रभु यहोवा, तू ने बड़े सामर्थ और बढ़ाई हुई भुजा से आकाश और पृथ्वी को बनाया है! तेरे लिये कोई काम कठिन नहीं है। (यिर्मयाह ३२:१७)
- क्या मेरे लिये कोई भी काम कठिन है? (यिर्मयाह ३२:२७)
- यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है। (मत्ती १९:२६)
- और यहोवा यहूदा के साथ रहा, इसलिये उसने पहाड़ी देश के निवासियों निकाल दिया; परन्तु तराई के निवासियों के पास लोहे के रथ थे, इसलिये वह उन्हें न निकाल सका। (न्यायियों १:१९)
९. ईश्वर अपरिवर्तनशील है
- क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है। (याकुब १:१७)
- क्योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्तान तुम नाश नहीं हुए। (मलाकी ३:६)
- ईश्वर मनुष्य नहीं, कि झूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपनी इच्छा बदले। क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उस पूरा न करे? (गिनती २३:१९)
- और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। (उत्पत्ति ६:६)
- जब परमेश्वर ने उनके कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया। (योना ३:१०)
- इसलिये इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैं ने कहा तो था, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरूष का घराना मेरे साम्हने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझ से दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे। (१ शमुएल २:३०)
१०. ईश्वर न्यायी और पक्षपातरहित है
- क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे? (उत्पत्ति १८:२५)
- जिस से यह प्रगट हो, कि यहोवा सीधा है; वह मेरी चट्टान है, और उस में कुटिलता कुछ भी नहीं। (भजन संहिता ९२:१५)
- क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता। (रोमियो २:११)
- तू उन को दण्डवत न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं। (निर्गमण २०:५)
- क्योंकि जिस के पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिस के पास कुछ नहीं है, उस से जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा। (मत्ती १३:१२)
- और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था कि उस ने कहा, कि जेठा छुटके का दास होगा। इसलिये कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं, परन्तु बुलाने वाले पर बनी रहे। जैसा लिखा है, कि मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसौ को अप्रिय जाना। (रोमियो ९:११-१३)
see also: बाइबल Vs वेद (भाग २)
११. ईश्वर विपत्ति का निर्माता नहीं है
- क्योंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है। (१ कुरिन्थियों १४:३३)
- वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है। (व्यवस्थाविवरण ३२:४)
- क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है। (याकुब १:१३)
- विपत्ति और कल्याण, क्या दोनों परमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते? (विलापगीत ३:३८)
१२. जो मांगते हैं उन्हें ईश्वर उदारता से देता है
- पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। (याकुब १:५)
- क्योंकि यहोवा की जो मनसा थी, कि अपनी उस आज्ञा के अनुसार जो उसने मूसा को दी थी उन पर कुछ भी दया न करे; वरन सत्यानाश कर डाले, इस कारण उसने उनके मन ऐसे कठोर कर दिए, कि उन्होंने इस्राएलियों का साम्हना करके उन से युद्ध किया। (यहोशू ११:२०)
- कि उस ने उन की आंखें अन्धी, और उन का मन कठोर किया है; कहीं ऐसा न हो, कि आंखों से देखें, और मन से समझें, और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं। (यूहन्ना १२:४०)
- हे यहोवा, तू क्यों हम को अपने मार्गों से भटका देता, और हमारे मन ऐसे कठोर करता है कि हम तेरा भय नहीं मानते? अपने दास, अपने निज भाग के गोत्रों के निमित्त लौट आ। (यशायाह ६३:१७)
१३. ईश्वर जो उसे ढूंढते हैं उन्हें मिल जाता है
- क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है। (मत्ती ७:८)
- और जो मुझ को यत्न से तड़के उठ कर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। (नीतिवचन ८:१७)
- उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूंगी; वे मुझे यत्न से तो ढूंढ़ेंगे, परन्तु न पाएंगे। (नीतिवचन १:२८)
- जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा। (यशायाह १:१५)
- उन्होंने दोहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई भी बचाने वाला न मिला, उन्होंने यहोवा की भी दोहाई दी, परन्तु उसने भी उन को उत्तर न दिया। (भजन संहिता १८:४१)
१४. ईश्वर शांतिप्रिय है
- शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साथ रहे। (रोमियो १५:३३)
- क्योंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है। (१ कुरिन्थियों १४:३३)
- वह मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं मेरा नाम सेनाओं का यहोवा है। (यशायाह ५१:१५)
- धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथों को लड़ने, और युद्ध करने के लिये तैयार करता है। (भजन संहिता १४४:१)
- यहोवा योद्धा है; उसका नाम यहोवा है। (निर्गमण १५:३)
१५. ईश्वर दयालु कृपालु और नेक है
- जिस से प्रभु की अत्यन्त करूणा और दया प्रगट होती है। (याकुब ५:११)
- क्योंकि वह मनुष्यों को अपने मन से न तो दबाता है और न दु:ख देता है। (विलापगीत ३:३३)
- क्योंकि, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, जो मरे, उसके मरने से मैं प्रसन्न नहीं होता, इसलिये पश्चात्ताप करो, तभी तुम जीवित रहोगे। (यहेजकेल १८:३२)
- यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; उसकी करुणा सदा की है। (१ इतिहास १६:३४)
- यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है। (भजन संहिता १४५:९)
- वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहिचान लें। (१ तिमुथियुस २:४)
- हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है। (१ यूहन्ना ४:७)
- और देश देश के जितने लोगों को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे वश में कर देगा, तू उन सभों को सत्यानाश करना; उन पर तरस की दृष्टि न करना, और न उनके देवताओं की उपासना करना, नहीं तो तू फन्दे में फंस जाएगा। (व्यवस्थाविवरण ७:१६)
- उनके विष्य यहोवा यों कहता है कि मैं उन को उनकी भूमि में से उखाड़ डालूंगा, और यहूदा के घराने को भी उनके बीच में से उखड़ूंगा। (यिर्मयाह १२:१४)
- मैं उन पर कोमलता नहीं दिखाऊंगा, न तरस खऊंगा और न दया कर के उन को नष्ट होने से बचाऊंगा। (यिर्मयाह १३:१४)
- फिर इस कारण से कि बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के सन्दूक के भीतर झांका था उसने उन में से सत्तर मनुष्य, और फिर पचास हजार मनुष्य मार डाले; और वहां के लोगों ने इसलिये विलाप किया कि यहोवा ने लोगों का बड़ा ही संहार किया था। (१ शमूएल ६:१९)
- इसलिये अब तू जा कर अमालेकियों को मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए सत्यानाश कर; क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपिउवा, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल। (१ शमूएल १५:३)
- फिर जब वे इस्राएलियों के साम्हने से भागकर बेथोरोन की उतराई पर आए, तब अजेका पहुंचने तक यहोवा ने आकाश से बड़े बड़े पत्थर उन पर बरसाए, और वे मर गए; जो ओलों से मारे गए उनकी गिनती इस्राएलियों की तलवार से मारे हुओं से अधिक थी। (यहोशू १०:११)
see also: बाइबल Vs वेद (भाग ३)
१६. ईश्वर का कोप क्षणिक और मंद है
१७. ईश्वर जली हुई भेटों की और पवित्र दिनों की आज्ञा देता है और प्रसन्न होता है
१८. ईश्वर मनुष्यों की बलि बर्जता है
१९. ईश्वर किसी को परखता नहीं है
२०. ईश्वर झूठ नहीं बोल सकता
- क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है। (भजन संहिता ३०:५)
- यहोवा दयालु और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करने वाला और अति करूणामय है। (भजन संहिता १०३:८)
- और ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। (निर्गमण ४:२४)
- और यहोवा ने मूसा से कहा, प्रजा के सब प्रधानों को पकड़कर यहोवा के लिये धूप में लटका दे, जिस से मेरा भड़का हुआ कोप इस्त्राएल के ऊपर से दूर हो जाए। (गिनती २५:४)
- सो यहोवा का कोप इस्त्राएलियों पर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगों का अन्त न हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया था, तब तक अर्थात चालीस वर्ष तक वह जंगल में मारे मारे फिराता रहा। (गिनती ३२:१३)
१७. ईश्वर जली हुई भेटों की और पवित्र दिनों की आज्ञा देता है और प्रसन्न होता है
- अर्थात पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। (निर्गमण २९:३६)
- और वह उसकी अंतडिय़ों और पैरों को जल से धोए। तब याजक सब को वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे। (लैव्यव्यवस्था १:९)
- उसी सातवें महीने का दसवां दिन प्रायश्चित्त का दिन माना जाए; वह तुम्हारी पवित्र सभा का दिन होगा, और उस में तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना और यहोवा का हव्य चढ़ाना।(लैव्यव्यवस्था २३:२७)
- तुम्हारे होमबलियों से मैं प्रसन्न नहीं हूँ, और न तुम्हारे मेलबलि मुझे मीठे लगते हैं। (यिर्मयाह ६:२०)
१८. ईश्वर मनुष्यों की बलि बर्जता है
- तू अपने परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामों से यहोवा घृणा करता है और बैर-भाव रखता है, उन सभों को उन्होंने अपने देवताओं के लिये किया है, यहां तक कि अपने बेटे बेटियों को भी वे अपने देवताओं के लिये अग्नि में डालकर जला देते हैं॥ (व्यवस्थाविवरण १२:३१)
- उसने कहा, अपने पुत्र को अर्थात अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग ले कर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा। (उत्पत्ति २२:२)
१९. ईश्वर किसी को परखता नहीं है
- क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है। (याकूब १:१३)
- इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, इब्राहीम से यह कहकर उसकी परीक्षा की, कि हे इब्राहीम: उसने कहा, देख, मैं यहां हूं। (उत्पत्ति २२:१)
- और यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का, और उसने दाऊद को इनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा, कि इस्राएल और यहूदा की गिनती ले। (२ शमूएल २४:१)
२०. ईश्वर झूठ नहीं बोल सकता
- ईश्वर मनुष्य नहीं, कि झूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपनी इच्छा बदले। (गिनती २३:१९)
- तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के मनुष्यों के बीच एक बुरी आत्मा भेज दी; सो शकेम के मनुष्य अबीमेलेक का विश्वासघात करने लगे; (न्यायियों ९:२३)
- तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्ताओं के मुंह में एक झूठ बोलने वाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है। (१ राजा २२:२३)
- तब मैंने कहा, हाय, प्रभु यहोवा, तू ने तो यह कह कर कि तुम को शान्ति मिलेगी निश्चय अपनी इस प्रजा को और यरूशलेम को भी बड़ा धोखा दिया है; क्योंकि तलवार प्राणों को मिटाने पर है। (यिर्मयाह ४:१०)
- और यदि भविष्यद्वक्ता ने धोखा खाकर कोई वचन कहा हो, तो जानो कि मुझ यहोवा ने उस भविष्यद्वक्ता को धोखा दिया है। (यहेजकेल १४:९)
see also: बाइबल Vs वेद (भाग ४)
२१. ईश्वर मनुष्य को उसकी दुष्टता से नष्ट करता है
- तब यहोवा ने सोचा, कि मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। (उत्पत्ति ६:७)
- इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उन को फिर कभी न मारूंगा। (उत्पत्ति ८:२१)
२२. ईश्वर केवल एक ही है
- हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; (व्यवस्थाविवरण ६:४)
- और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं। (१ कुरिन्थियों ८:४)
- तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। (उत्पत्ति १:२७)
- फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। (उत्पत्ति ३:२२)
See also: बाइबल की अश्लीलता (भाग १)
२३. चोरी की आज्ञा
२४. सारी धर्मपुस्तक ईश्वर प्रेरित है
२५. वध की आज्ञा
- वरन तुम्हारी एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन, और अपके अपके घर की पाहुनी से सोने चांदी के गहने, और वस्त्र मांग लेगी, और तुम उन्हें अपके बेटोंऔर बेटियोंको पहिराना; इस प्रकार तुम मिस्रियोंको लूटोगे। (निर्गमण ३:२२)
- और यहोवा ने मिस्रियों को अपनी प्रजा के लोगों पर ऐसा दयालु किया, कि उन्होंने जो जो मांगा वह सब उन को दिया। इस प्रकार इस्राएलियों ने मिस्रियों को लूट लिया। (निर्गमण १२:३६)
- तू चोरी न करना। (निर्गमण २०:१५)
- तुम चोरी न करना, और एक दूसरे से न तो कपट करना, और न झूठ बोलना। (लैव्यव्यवस्था १९:११)
२४. सारी धर्मपुस्तक ईश्वर प्रेरित है
- हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। (२ तिमुथियुस ३:१६)
- इस बेधड़क घमण्ड से बोलने में जो कुछ मैं कहता हूं वह प्रभू की आज्ञा के अनुसार नहीं पर मानों मूर्खता से ही कहता हूं। (२ कुरिन्थियों ११:१७)
२५. वध की आज्ञा
- उसने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि अपनी अपनी जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपने अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों घात करो। (निर्गमण ३२:२७)
- तू खून न करना। (निर्गमण २०:१३)
- जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता। (१ युहन्ना ३:१५)
see also: बाइबल Vs वेद (भाग ५)
२६. खून बहाने वाला जरूर मारा जाएगा
- और निश्चय मैं तुम्हारा लोहू अर्थात प्राण का पलटा लूंगा: सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूंगा: मनुष्य के प्राण का पलटा मैं एक एक के भाई बन्धु से लूंगा। (उत्पत्ति ९:५)
- तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़ कर उसे घात किया।और यहोवा ने कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा ने हो कि कोई उसे पाकर मार डाले। (उत्पत्ति ४:८,१५)
२७. मूर्तियों का बनाने का निषेध
- तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। (निर्गमण २०:४)
- और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों सिरों पर लगवाना। एक करूब तो एक सिरे पर और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर लगवाना; और करूबों को और प्रायश्चित्त के ढकने को उसके ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनो सिरों पर लगवाना। और उन करूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उन से ढंपा रहे, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें। (निर्गमण २५:१८–२०)
२८. दासता और अत्याचार की आज्ञा
- इसलिये उसने कहा, कनान शापित हो: वह अपने भाई बन्धुओं के दासों का दास हो। (उत्पत्ति ९:२५)
- मैं तुम्हारे बेटे-बेटियों को यहूदियों के हाथ बिकवा दूंगा, और वे उसको शबाइयों के हाथ बेच देंगे जो दूर देश के रहने वाले हैं; क्योंकि यहोवा ने यह कहा है। (योएल ३:८)
- जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जा कर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। (निर्गमण २१:१६)
२९. क्रोध का अनुमोदन
- तब उसने पीछे की ओर फिर कर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उन को शाप दिया, तब जंगल में से दो रीछिनियों ने निकल कर उन में से बयालीस लड़के फाड़ डाले। (२ राजा २:२४)
- क्रोध तो करो, पर पाप मत करो। (इफिसियों ४:२६)
- क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और झट क्रोध करने वाले के संग न चलना। (नीतिवचन २२:२४)
- अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है। (सभोपदेशक ७:९)
३०. मनुष्यों के अच्छे कर्म दिखाई देने चाहिए
- उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें। (मत्ती ५:१६)
- तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे। (मत्ती ६:१)
३१. दुष्ट लोगों का समृद्ध और लम्बी आयु का होना
दुष्ट लोगों का समृद्ध और लम्बी आयु नहीं होना
- कोई धर्मी अपने धर्म का काम करते हुए नाश हो जाता है, और दुष्ट बुराई करते हुए दीर्घायु होता है। (सभोपदेशक ७:१५)
दुष्ट लोगों का समृद्ध और लम्बी आयु नहीं होना
- परन्तु दुष्ट का भला नहीं होने का, और न उसकी जीवनरूपी छाया लम्बी होने पाएगी, क्योंकि वह परमेश्वर का भय नहीं मानता। (सभोपदेशक ८:१३)
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